आज हम मुगल आक्रांताओं के द्वारा पुरी जगन्नाथ मंदिर (Mandir Jagannath Puri) पर किए गए आक्रमण का संपूर्ण इतिहास रखने वाले हैं। हजारों वर्षों की अधीनता में हमारे लाखों मंदिरों को तोड़ डाला गया था तथा सनातनियों का रक्त बहाया गया था। पश्चिम दिशा से इस्लाम का झंडा लिए आए आक्रमणकारी निरंतर हिंदुओं का रक्त बहाते तथा मंदिरों गुरुकुलों को ध्वस्त करते हुए आगे बढ़ रहे थे।
इसके सबसे बड़े उदाहरण श्रीराम जन्मभूमि, श्रीकृष्ण जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ तथा सोमनाथ मंदिर हैं। क्या आप जानते हैं कि हमारे चार धामों में से एक भगवान जगन्नाथ के मंदिर (Jagan Nath Puri Mandir) पर भी सत्रह बार आक्रमण हुआ था। आज हम आपको उसी के बारे में विस्तार से बताएँगे।
वैसे तो हमारे देश में दसवीं शताब्दी से ही इस्लामी आक्रमण शुरू हो गए थे। लेकिन बारहवीं शताब्दी में जब भारत की शीर्ष सत्ता से महाराज पृथ्वीराज चौहान को अपदस्थ कर आक्रांता कुतुबुद्धीन ऐबक को बिठाया गया, तब से ही देश की दुर्गति शुरू हो गई थी। हिंदुओं के रक्त के भूखे इस्लामी आक्रांताओं ने भारत के हरेक हिस्से में रक्त की नदियाँ बहा दी थी। इस रक्त में बौद्ध और जैन धर्म के लोगों को भी कुचल डाला गया था।
मुगल आक्रांताओं का मुख्य निशाना हिंदू धर्म के मंदिर व गुरुकुल थे। यही कारण था कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर (Odisha Puri Mandir) पर भी एक बार नहीं बल्कि कुल सत्रह बार भीषण हमले किए गए। उस समय भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों को बचाने के लिए वहाँ के ब्राह्मणों, राजाओं और लोगों ने अपनी जान दे दी थी लेकिन मूर्तियों को बचा लिया था। हालाँकि इस दौरान मंदिर परिसर को बहुत नुकसान हुआ था।
आइए एक-एक करके जगन्नाथ मंदिर पर हुए इन सभी सत्रह आक्रमणों के बारे में जान लेते हैं।
उस समय उड़ीसा राज्य उत्कल के नाम से जाना जाता था तथा वहाँ के महाराज नरसिंह देव तृतीय थे। तब बंगाल के सुल्तान इलियास शाह ने मंदिर पर भीषण आक्रमण कर दिया था। राजा नरसिंह देव ने इलियास की सेना से युद्ध किया लेकिन इलियास की सेना के द्वारा मंदिर परिसर में लाखों सैनिकों, पुजारियों तथा श्रद्धालुओं की हत्या कर दी गई जिससे पूरा प्रांगन रक्त से भर गया था।
उस समय इलियास की क्रूर सेना के द्वारा मंदिर परिसर को बहुत क्षति पहुंचाई गई लेकिन राजा नरसिंह के आदेश पर सैनिकों ने मुख्य मूर्तियों को छुपा दिया था जिससे वे बच गई थी।
पहले हमले के 20 वर्षों के पश्चात सन 1360 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने पुरी जगन्नाथ मंदिर (Mandir Jagannath Puri) पर आक्रमण किया। तुगलक भारत के इतिहास में एक क्रूर तथा मूर्ख राजा के रूप में पहचाना जाता है।
जगन्नाथ मंदिर पर तीसरा हमला बंगाल के सुल्तान अलाउद्दीन हुसैन शाह के कमांडर इस्माइल गाजी के नेतृत्व में हुआ। आक्रमण की जानकारी मिलते ही किसी अनिष्ट की आशंका को ध्यान में रखते हुए मंदिर के पुजारियों ने मूर्तियों को बंगाल की खाड़ी में स्थित चिल्का नामक द्वीप में छुपा दिया था।
उस समय ओड़िशा के महाराज सूर्यवंशी प्रताप रूद्रदेव ने अपनी सेना के साथ अलाउद्दीन की सेना से हुगली में भयंकर युद्ध किया तथा शत्रु सेना को परास्त किया। राजा सूर्यदेव ने आक्रमणकारी सेना को वहाँ से भागने पर विवश कर दिया था।
चौथा हमला मंदिर पर हुए सबसे भीषण हमलों में से एक था जिसे काला पहाड़ नामक एक अफगान हमलावर के नेतृत्व में किया गया था। इस आक्रमण के पहले ही पुजारियों के द्वारा मुख्य मूर्तियों को चिल्का के द्वीप में छुपा दिया गया था। इसके पश्चात हुए आक्रमण में इतना भीषण रक्तपात हुआ था कि ओड़िशा राज्य हिंदू राजाओं के हाथ से निकलकर अफगान व मुस्लिम शासकों के हाथ में चला गया था।
इस समय मंदिर (Jagan Nath Puri Mandir) की वास्तुकला तथा नक्काशियों को अत्यधिक नुकसान पहुँचाया गया तथा कई मूर्तियों को जलाकर नष्ट कर दिया गया। यह आक्रमण ओड़िशा के इतिहास का सबसे भयानक नरसंहार वाला था जिसने वहाँ की सत्ता तक बदल डाली थी।
जगन्नाथ मंदिर पर पांचवा हमला ओड़िशा के सुल्तान ईशा के बेटे उस्मान तथा कुथू खान के बेटे सुलेमान के नेतृत्व में हुआ। इस आक्रमण में मंदिर की धन संपत्ति लूट ली गई थी तथा मूर्तियों को अपवित्र किया गया था।
मंदिर पर छठा हमला बंगाल के नवाब इस्लाम खान के कमांडर मिर्जा खुर्रम ने किया था। इस समय मुख्य मूर्तियों को बचाने के लिए पुजारियों ने इन्हें भार्गवी नदी के रास्ते नाव से कपिलेश्वर गाँव में पंचमुखी गोसानी मंदिर में छुपा दिया। इस समय इन मूर्तियों को बचाने के लिए अन्य स्थलों पर भी स्थानांतरित किया गया था। इस बीच इस्लाम खान के द्वारा फिर से आक्रमण किया गया था लेकिन मुख्य मूर्तियाँ वहाँ नहीं थी।
यह हमला 1601 से 1608 के मध्य में हुआ था जिसका नेतृत्व बंगाल के नवाब हाशिम खान ने किया था। इस समय खुर्दा के राजा पुरुषोत्तम देव के द्वारा मुख्य मूर्तियों को गोपाल मंदिर में छुपा दिया गया। इसके पश्चात मूर्तियों को 1608 में वापस लाया गया था।
मंदिर (Odisha Puri Mandir) पर आठवां हमला हाशिम खान के नेतृत्व में हिंदू राजपूत जागीरदार केसोदासमारू ने किया था। उस समय रथ यात्रा के उत्सव के कारण मूर्तियाँ मंदिर में नहीं थी तब हाशिम खान की सेना के द्वारा मंदिर को किले में बदल दिया गया था। मूर्तियाँ गुंडीचा मंदिर में 8 माह तक रही थी तथा हाशिम की सेना द्वारा मंदिर की करोड़ो की संपत्ति को लूट लिया गया था।
यह हमला अकबर के नवरत्नों में शामिल टोडरमल के बेटे कल्याण मल्ला ने करवाया था। इस समय मूर्तियों को चिल्का द्वीप के महिसनासी जगह में छुपा दिया गया था जहाँ ये लगभग एक वर्ष तक रही थी। इस जगह को ब्रह्मपुरा/ चकानासी के नाम से भी जाना जाता है। इस हमले में कल्याण मल्ला की सेना के द्वारा खुर्दा राजा पुरुषोत्तम के एक मंत्री तथा 16 सेनाध्यक्षों की हत्या कर दी गई थी तथा मंदिर का धन लूट लिया गया था।
यह हमला भी कल्याण मल्ला के नेतृत्व में हुआ था लेकिन इस समय खुर्दा के सैनिकों में इतना ज्यादा आक्रोश था कि उन्होंने कल्याण मल्ला की सेना का कटक तक पीछा किया तथा कईयों को मौत के घाट उतार दिया। पुरी जगन्नाथ मंदिर (Mandir Jagannath Puri) की मुख्य मूर्तियों को आक्रमणकारियों से बचाने के लिए उन्हें कुछ समय नाव में, फिर एक वृक्ष के नीचे तथा अंत में दधिबमन मंदिर में रखा गया था।
यह हमला दिल्ली के बादशाह जहाँगीर खान के द्वारा ओड़िशा के नवाब बनाए गए मुकर्रम खान के द्वारा किया गया था। पुजारियों के द्वारा भीषण रक्तपात तथा आतंक के बीच मूर्तियों को गोबापदार नामक स्थल पर ले जाकर रखा गया। मुकर्रम खान ने कुछ समय के लिए राजा पुरुषोत्तम के खुर्दा पर भी अधिकार कर लिया गया था तथा मंदिर से सोना व धन लूट लिया गया था।
राजा पुरुषोत्तम की मृत्यु हो चुकी थी तथा उनके पुत्र नरसिंह देव खुर्दा के नए राजा बने थे तब ओड़िशा के नवाब मिर्जा अहमद बेग के द्वारा फिर से हमला किया गया। उस समय दिल्ली के बादशाह शाहजहाँ ने उड़ीसा का अपनी सेना के साथ दौरा किया जिससे पुजारियों में भय व्याप्त हो गया।
वे आनन-फानन में मूर्तियों को चिल्का द्वीप के उस पार शालिया नदी में अन्धारिगादा लेकर गए। मूर्तियों को सन 1624 ईस्वी में वापस लाया गया तथा उनके स्थान पर स्थापित किया गया।
मंदिर पर यह हमला मिर्जा मक्की ने किया था। इस समय राजनीति के चक्कर में खुर्दा के राजा नरसिंह देव की हत्या कर दी गई तथा गंगाधर वहाँ के नए राजा बने।
मंदिर पर चौदहवां हमला भी मिर्जा मक्की के नेतृत्व में हुआ था। यह हमला उसने वर्ष 1641 से 1647 के बीच में किया था।
मंदिर पर पंद्रहवां हमला अमीर फतेह खान ने किया था तथा इस हमले में उसने रत्नभंडार में मौजूद बहुमूल्य हीरे, आभूषण, मोती तथा सोना लूट लिया था।
इस समय भारत पर सबसे क्रूर शासक औरंगजेब का राज था जिसने सन 1692 में मंदिर (Jagan Nath Puri Mandir) पर भीषण आक्रमण करवाया तथा उसका साफ आदेश था कि पूरे मंदिर को ध्वस्त करके तोड़ दिया जाए। उस समय ओड़िशा का नवाब इकरम खान था जिसने अपने भाई मस्तरम खान के साथ मिलकर मंदिर पर आक्रमण किया तथा भगवान जगन्नाथ के सोने के मुकुट तक को लूट लिया।
इस समय मूर्तियों को पीछे बिमला मंदिर में श्री नामक स्थान पर छिपाया गया, फिर इसे ब्रह्मगिरी स्थान पर ले जाया गया। अंत में इन्हें जैसे-तैसे करके चिल्का द्वीप के उस पार बड़ा हन्तुअदा नामक स्थान पर ले जाया गया। मूर्तियों को वापस अपने स्थान पर वर्ष 1699 में लाया गया था।
इसके पश्चात मंदिर (Odisha Puri Mandir) पर आखिरी हमला ओड़िशा के नवाब मोहम्मद तकी खान के नेतृत्व में दो बार वर्ष 1731 तथा 1733 ईस्वी में किया गया। इसके बाद धीरे-धीरे देश से मुगलों का शासन कमजोर हो गया तथा मराठा शासन आ गया तथा जगन्नाथ मंदिर पर आई विपत्ति टल गई।
इस दौरान मंदिर की वास्तुकला को बहुत नुकसान पहुँचा तथा अधिकांश संपत्ति लूट ली गई थी लेकिन मुख्य मूर्तियाँ सुरक्षित थी। यह एक चमत्कार ही था तथा उड़ीसा के लोग आज तक इसके लिए आभारी रहेंगे। मंदिर पर इतने वर्षों तक हुए आक्रमण के कारण भगवान जगन्नाथ को अपने मंदिर से लगभग 144 वर्षों तक दूर रहना पड़ा था तथा रथयात्रा बाधित हुई थी। यही कारण है कि आज तक इस मंदिर में गैर हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है।
पुरी जगन्नाथ मंदिर से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: क्या जगन्नाथ मंदिर में केवल हिंदू की अनुमति है?
उत्तर: जगन्नाथ में विश्वभर के हिन्दू ही जा सकते हैं। इनके अलावा भारतीय जैन, बौद्ध व सिख समुदाय के लोग मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं, विदेशी जैन, बौद्ध या सिख नहीं।
प्रश्न: क्या जगन्नाथ मंदिर में दलितों की अनुमति है?
उत्तर: आपका यह प्रश्न सर्वथा अनुचित है। जगन्नाथ मंदिर समेत भारत के किसी भी मंदिर में हिंदू धर्म के किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति देखकर प्रवेश नहीं दिया जाता है। यदि कहीं पर ऐसा है तो तुरंत उसकी सूचना पास के पुलिस थाने में दें।
प्रश्न: जगन्नाथ पुरी की कहानी क्या है?
उत्तर: जगन्नाथ पुरी की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यह सनातन धर्म के चार धाम में से एक है। साथ ही यहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण के हृदय से भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का निर्माण किया गया है।
प्रश्न: भगवान जगन्नाथ जी के हाथ क्यों नहीं है?
उत्तर: भगवान विश्वकर्मा जी ने जगन्नाथ की मूर्तियाँ बनाते समय यह शर्त रखी थी कि उस समय उन्हें कोई देखेगा नहीं। हालाँकि पुरी के राजा बीच में वहाँ चले गए थे जिस कारण भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी रह गई थी।
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