सतयुग से लेकर त्रेतायुग और द्वापर युग में अलग-अलग भूमिका निभाने वाले जामवंत कौन थे (Jamvant Kaun The)? जामवंत जी का जन्म सतयुग में ही हो गया था। उनका वर्णन समुद्र मंथन और वामन अवतार के समय में तो मिलता ही है, साथ ही रामायण में मुख्य रूप से उनका वर्णन आता है।
वहीं बहुत कम लोग जानते होंगे कि राम-रावण युद्ध में श्रीराम की सहायता करने वाले यही जामवंत आगे चलकर भगवान श्रीकृष्ण के ससुर बने थे। ऐसे में आज हम आपके साथ जामवंत की कहानी (Jamwant Kaun The) ही सांझा करने वाले हैं। आइए सतयुग से लेकर द्वापर युग तक जामवंत जी के जीवन के बारे में जानते हैं।
जामवंत भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे जिन्हें हमेशा अमर होने का वरदान प्राप्त था। मान्यता है कि एक बार जब ब्रह्मा जी जम्हाई ले रहे थे तब उनके मुख से जामवंत जी ने जन्म लिया था। जामवंत जी को ऋक्षपति या ऋक्षराज भी कहा जाता है। ऋक्ष एक शुद्ध शब्द है जो बाद में चलकर रीछ बन गया। आज के समय में रीछ को भालू कहा जाता है। इस तरह से जामवंत जी भालुओं के राजा या सरदार हुआ करते थे। उनका विवाह जयवंती से हुआ था जिससे उन्हें एक पुत्री जामवंती प्राप्त हुई थी।
उनका जन्म सतयुग काल में हुआ था व द्वापर युग के अंत तक वे जीवित रहे थे। जामवंत जन्म से ही अत्यधिक बुद्धिमान व शक्तिशाली थे। अपनी बुद्धि के बल पर ही उन्होंने अनेक महारथियों को परास्त कर दिया था। मुख्यतया त्रेता युग में उन्होंने भगवान राम की बहुत सहायता की थी। उन्हें अलग-अलग भाषाओं में कई नामों से जाना जाता है जैसे कि जामवंत, जांबवंत, जामुवन, जामवंता, जाम्बावान, सम्बुवन इत्यादि।
चूँकि जामवंत भी भगवान परशुराम व हनुमान की भाँति अमर थे, इसलिए उनका योगदान भी कई युगों तक रहा। साथ ही उन्होंने भगवान विष्णु के कई अवतारों को धरती पर जन्म लेते व अपना कार्य करते देखा। उनकी मुख्य भूमिका त्रेतायुग में भगवान राम के समय रही व एक छोटी भूमिका द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के समय रही। चलिए जामवंत की कहानी (Jamwant Kaun The) को क्रमानुसार एक-एक करके जानते हैं।
सतयुग में देवताओं व दानवों के द्वारा समुद्र मंथन किया गया था। उस समय भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार लेकर उनकी सहायता की थी। इस दौरान जामवंत जी ने भी देवताओं की सहायता करने के उद्देश्य से समुद्र मंथन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। यह कार्य कई दिनों तक चला था जिसमें से 14 बहुमूल्य रत्नों की प्राप्ति हुई थी। अंत में अमृत कलश निकला था जिसमें से कुछ अमृत जामवंत जी को भी मिला था।
इसका उल्लेख स्वयं जामवंत जी रामायण में उस समय करते हैं जब वानर दल समुद्र के किनारे पहुँच जाता है और आगे बढ़ने में असमर्थ होता है। उस समय जामवंत जी कहते हैं कि अब तो वे बूढ़े हो चुके हैं लेकिन अपनी युवावस्था में वे बहुत शक्तिशाली थे। जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था तब उन्होंने राजा बलि के अहंकार को दूर करने के लिए अति विशाल रूप ले लिया था।
उस समय जामवंत जी ने दो घड़ी में ही वामनावतार के सात चक्कर लगा लिए थे। इसके बाद जामवंत जी ने श्रीराम के सामने भी अपनी शक्ति का बखान किया था। श्रीराम मन ही मन समझ गए थे कि जामवंत जी को अपनी शक्ति का अहंकार हो गया है। इसलिए उन्होंने अगले अवतार श्रीकृष्ण के रूप में उनके इस अहंकार का अंत किया था जिसके बारे में हम आपको अंत में बताएंगे।
जब भगवान विष्णु ने त्रेता युग में अयोध्या नगरी में महाराज दशरथ के घर जन्म लिया तब उनका मुख्य उद्देश्य पापी रावण का अंत करना था जो कि लंका का राजा था। इसी के लिए उन्होंने 14 वर्षों का कठिन वनवास भोगा व माता सीता का रावण के द्वारा अपहरण करवाया गया।
जब भगवान श्रीराम माता सीता की खोज में वानर राज सुग्रीव से मिले तो जामवंत की सुग्रीव के मंत्री के रूप में भगवान श्रीराम से भेंट हुई। तब से उन्होंने भगवान राम की हर विपत्ति में अपनी बुद्धिमता से सहायता की।
जब वानर सैनिकों का एक दल दक्षिण दिशा में माता सीता की खोज में निकला तब उसमें हनुमान, जामवंत, अंगद, नल व नीर थे। जब वे समुंद्र किनारे पहुँचे तब वहाँ से आगे जाना असंभव था। इस समय केवल हनुमान व जामवंत ही थे जो समुंद्र पार करके उस ओर जा सकते थे। चूँकि जामवंत जी अब बूढ़े हो चुके थे इसलिए वे समुंद्र को लांघने में असमर्थ थे।
उन्होंने हनुमान जी को अपनी शक्तियां याद दिलाई जिन्हें वे बचपन में एक श्राप के कारण भूल चुके थे। जामवंत के द्वारा याद दिलाने पर ही हनुमान जी को अपनी शक्तियां वापस मिली तथा वे माता सीता को खोजने में सफल रहे।
इसके अलावा भी जामवंत जी भगवान राम व रावण के युद्ध के समय योजना बनाने, कोई विपत्ति आने पर उसका हल निकालने जैसे कार्य किया करते थे। जामवंत की बुद्धिमता के कारण ही भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम को बहुत सहायता मिली।
एक बार जब श्रीकृष्ण के ऊपर स्यमंतक मणि के चोरी होने के मिथ्या आरोप लगे तो उन्होंने उसकी खोज प्रारंभ की। वह मणि जामवंत के पास थी जो एक गुफा में रहते थे। जब भगवान श्रीकृष्ण को इसके बारे में पता चला तो उनका जामवंत से भीषण युद्ध हुआ। यह युद्ध कई दिनों तक चला जिसमें अंत में जामवंत जी पराजित हुए।
भगवान ब्रह्मा के पुत्र होने व स्वयं को मिले वरदान के कारण जामवंत जी किसी से हार नहीं सकते थे। इसलिए उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह कैसे किसी मानव से हार सकते हैं। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से उनका परिचय जाना व अपना असली अवतार दिखाने को कहा। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि वे स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं व राम अवतार के बाद यह उनका अगला जन्म है।
यह सुनकर जामवंत जी को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ व उन्होंने श्रीकृष्ण को अंतिम बार भगवान राम के रूप में ही दर्शन देने का अनुरोध किया। श्रीकृष्ण ने उनका यह अनुरोध स्वीकार किया व उन्हें त्रेतायुग के भगवान श्रीराम के दर्शन दिए। इसके बाद जामवंत जी ने उन्हें वह मणि लौटा दी व अपनी पुत्री जामवंती के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा। श्रीकृष्ण ने उनका यह प्रस्ताव स्वीकार किया व उनकी पुत्री जामवंती के साथ विवाह किया।
श्रीराम के दर्शन के बाद जामवंत जी ने अपने प्राण त्याग दिए थे और मोक्ष प्राप्त कर लिया था। कुछ लोग कहते हैं कि जामवंत जी अभी भी जीवित हैं और कलियुग के अंत तक वे जीवित रहेंगे। हालाँकि ग्रंथों के अनुसार जामवंत जी ने श्रीकृष्ण से मिलने के बाद अपने प्राण त्याग दिए थे व विष्णु लोक चले गए थे। इस तरह से आपने जामवंत कौन थे (Jamvant Kaun The) व उनकी क्या कहानी थी, के बारे में विस्तार से जानकारी ले ली है।
जामवंत की कहानी से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: जामवंत की उम्र कितनी थी?
उत्तर: रामायण के अनुसार जामवंत जी की आयु 6 मन्वंतर की है। एक मन्वंतर में 306,720,000 वर्ष आते हैं। हालाँकि उनका जन्म सतयुग में हुआ था और द्वापर युग के अंत में उन्हें मोक्ष प्राप्त हो गया था।
प्रश्न: जामवंत की पत्नी कौन थी?
उत्तर: जामवंत की पत्नी का जान जयवंती था। जयवंती से उन्हें एक पुत्री की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम जामवंती था।
प्रश्न: जामवंत के भाई का नाम क्या है?
उत्तर: लोक मान्यताओं के अनुसार जामवंत जी के 4 भाई थे। उनके नाम रुक्मरथ, रुक्म बाहु, रुक्मकेश और रुक्ममाली थे।
प्रश्न: जामवंत जी का इतिहास क्या है?
उत्तर: जामवंत जी का जन्म सतयुग के समय हुआ और उन्होंने श्रीराम और श्रीकृष्ण के समय में अपनी भूमिका निभाई थी।
प्रश्न: जामवंत जी का जन्म कैसे हुआ?
उत्तर: एक बार जब भगवान ब्रह्मा जम्हाई ले रहे थे तब उनके मुख से जामवंत जी प्रकट हुए थे।
प्रश्न: जामवंत के माता पिता का नाम क्या है?
उत्तर: जामवंत के पिता भगवान ब्रह्मा माने जाते हैं जो उनके मुख से निकले थे। ऐसे में उनकी कोई माता नहीं थी।
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पहले श्री राम का अवतार हुआ द्वापार युग में. बाद मे श्री कृष्ण का त्रेता युग में.
Who is the mother of jambawanti
चंदन जी, अभी हमें इसके बारे में जानकारी नहीं है किन्तु कही से भी यदि अधिकृत जानकारी प्राप्त होती है तो हम आपको सूचित करेंगे।