जामवंत जी के बारे में संपूर्ण जानकारी व भगवान श्रीराम-श्रीकृष्ण से उनका संबंध

Jambvant In Hindi

जाम्बवंत भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे (Jambvant In Hindi) जिन्हें हमेशा अमर होने का वरदान प्राप्त था। उनका जन्म सतयुग काल में हुआ था व द्वापर युग के अंत तक वे जीवित रहे थे। जामवंत जन्म से ही अत्यधिक बुद्धिमान व शक्तिशाली थे। अपनी बुद्धि के बल पर ही उन्होंने अनेक महारथियों को परास्त कर दिया था। मुख्यतया त्रेता युग में उन्होंने भगवान राम की बहुत सहायता की थी। उन्हें अलग-अलग भाषाओँ में कई नामों से जाना जाता हैं (Jamwant Ka Dusra Naam) जैसे कि जामवंत, जाम्बवंत, जामुवन (Jambavan), जामवंता, जाम्बावान, सम्बुवन इत्यादि। आज हम उनके बारे में विस्तार से जानेंगे।

जामवंत के बारे में संपूर्ण जानकारी (Jambvant In Hindi)

चूँकि जामवंत भी भगवान परशुराम व हनुमान की भांति अमर थे (Jambavan Power) इसलिये उनका योगदान भी कई युगों तक रहा। साथ ही उन्होंने भगवान विष्णु के कई अवतारों को धरती पर जन्म लेते व अपना कार्य करते देखा। उनकी मुख्य भूमिका त्रेतायुग में भगवान राम के समय रही व एक छोटी भूमिका द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के समय रही। आज हम दोनों युगों में उनके योगदान को जानेंगे।

त्रेता युग में जाम्बवंत का योगदान (Jamvant In Ramayan In Hindi)

जब भगवान विष्णु ने त्रेता युग में अयोध्या नगरी में महाराज दशरथ के घर जन्म लिया तब उनका मुख्य उद्देश्य पापी रावण का अंत करना था जो कि लंका का राजा था। इसी के लिए उन्होंने 14 वर्षों का कठिन वनवास भोग व माता सीता का रावण के द्वारा अपहरण करवाया गया (Jamvant Kaun The)।

जब भगवान श्रीराम माता सीता की खोज में वानर राज सुग्रीव से मिले तो जाम्बवंत की सुग्रीव के मंत्री के रूप में भगवान श्रीराम से भेंट हुई। तब से उन्होंने भगवान राम की हर विपत्ति में अपनी बुद्धिमता से सहायता की।

जब वानर सैनिकों का एक दल दक्षिण दिशा में माता सीता की खोज में निकला तब उसमे हनुमान, जाम्बवंत, अंगद, नल व नीर थे। जब वे समुंद्र किनारे पहुंचे तब वहां से आगे जाना असंभव था। इस समय केवल हनुमान व जाम्बवंत ही थे जो समुंद्र पार करके उस ओर जा सकते थे। चूँकि जाम्बवंत जी अब बूढ़े हो चुके थे इसलिये वे समुंद्र को लांघने में असमर्थ थे।

उन्होंने हनुमान जी को अपनी शक्तियां याद दिलाई जिन्हें बचपन में एक श्राप के कारण भूल चुके थे। जाम्बवंत के द्वारा ही याद दिलाने पर हनुमान जी को अपनी शक्तियां वापस मिली तथा वे माता सीता को खोजने में सफल रहे।

इसके अलावा भी जाम्बवंत जी भगवान राम व रावण के युद्ध के समय योजना बनाने, कोई विपत्ति आने पर उसका हल निकलने जैसे इत्यादि कार्य किया करते थे। जाम्बवंत की बुद्धिमता के कारण ही भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम को बहुत सहायता मिली।

द्वापर युग में जाम्बवंत का योगदान (Jamwant Aur Krishna)

एक बार जब श्रीकृष्ण के ऊपर स्यमंतक मणि के चोरी होने के मिथ्या आरोप लगे तो उन्होंने उसकी खोज प्रारंभ की। वह मणि जाम्बवंत के पास थी जो एक गुफा में रहते थे। जब भगवान श्रीकृष्ण को इसके बारे में पता चला तो उनका जाम्बवंत से भीषण युद्ध हुआ। यह युद्ध कई दिनों तक चला जिसमे अंत में जाम्बवंत जी पराजित हुए (Jamwant Aur Krishna Ka Yuddh)।

भगवान ब्रह्मा के पुत्र होने व स्वयं को मिले वरदान के कारण जाम्बवंत जी किसी से हार नही सकते थे इसलिये उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह कैसे किसी मानव से हार सकते है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से उनका परिचय जाना व अपना असली अवतार दिखाने को कहा। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि वे स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं व राम अवतार के बाद यह उनका अगला जन्म हैं।

यह सुनकर जाम्बवंत जी को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ व उन्होंने श्रीकृष्ण को अंतिम बार भगवान राम के रूप में ही दर्शन देने का अनुरोध किया। श्रीकृष्ण ने उनका यह अनुरोध स्वीकार किया व उन्हें त्रेतायुग के भगवान श्रीराम के दर्शन दिए।

इसके बाद जाम्बवंत जी ने उन्हें वह मणि लौटा दी व अपनी पुत्री जाम्बवंती (Jamvant Ki Beti) के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा। श्रीकृष्ण ने उनका यह प्रस्ताव स्वीकार किया व उनकी पुत्री जाम्बवंती के साथ विवाह किया। इसके बाद जाम्बवंत जी ने मोक्ष (Jambavan Death In Hindi) प्राप्त किया।

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

3 Comments

    1. चंदन जी, अभी हमें इसके बारे में जानकारी नहीं है किन्तु कही से भी यदि अधिकृत जानकारी प्राप्त होती है तो हम आपको सूचित करेंगे।

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