रामायण: सुग्रीव का जीवन परिचय

Sugriv Kaun The

सुग्रीव रामायण का एक ऐसा पात्र था (Sugreev In Ramayan In Hindi) जिसने श्रीराम-रावण युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। श्रीराम ने सुग्रीव की वानर सेना के साथ ही लंका पर चढ़ाई की थी व रावण की राक्षस सेना के साथ महायुद्ध किया था। सुग्रीव बालि का छोटा भाई व किष्किन्धा का राजा (Sugriv In Hindi) था। उसका साम्राज्य दक्षिण भारत में फैला हुआ था। आज हम आपको सुग्रीव का जीवन परिचय (Sugriv Kaun The) व रामायम में उसकी भूमिका का वर्णन करेंगे।

रामायण में सुग्रीव का जीवन परिचय (Sugreev In Ramayan In Hindi)

सुग्रीव का जन्म व परिवार (Sugriv Kiske Putra The)

सुग्रीव भगवान सूर्य का पुत्र (Sugriv Kiske Putra The) था जो वानर जाति से था। उसके बड़े भाई का नाम बालि था जो अत्यंत शक्तिशाली व किष्किन्धा नगरी का राजा था। सुग्रीव का विवाह रुमा (Sugriv Ki Patni Ka Naam) के साथ हुआ था। रुमा के पिता इसके लिए तैयार नही थे इसलिये सुग्रीव ने हनुमान की सहायता से रुमा के साथ गंधर्व विवाह किया था। वह अपने भाई बालि के साथ किष्किन्धा का राज्य संभालता था।

सुग्रीव का किष्किन्धा का राजा बनना (Bali Sugreev Story In Hindi)

सुग्रिव का भाई बालि अत्यंत शक्तिशाली था तथा उसे यह वरदान प्राप्त था कि वह जिससे भी युद्ध करेगा तो सामने वाले की आधी शक्ति उसमें आ जाएगी। इस प्रकार बालि अजेय था तथा उससे समय-समय पर कोई न कोई योद्धा युद्ध करने आया करता था।

एक दिन एक मायावी राक्षस ने किष्किन्धा के द्वार पर आकर बालि को युद्ध की चुनौती दी। तब सुग्रीव भी अपने भाई के साथ गया। दोनों भाइयो को साथ में आता देखकर वह मायासी राक्षस एक गुफा के अंदर जाकर छुप गया। बालि ने सुग्रीव को गुफा के द्वार पर पहरा देने को कहा व स्वयं उस मायावी राक्षस से युद्ध करने गया।

द्वार पर खड़े-खड़े सुग्रीव को कई माह बीत गए। तभी उसे अंदर से किसी के कराहने की आवाज़ आयी (Sugriv Bali Ki Katha) व बाहर तक रक्त बहता हुआ आया। उसे लगा उसके भाई की मृत्यु हो चुकी हैं और इस डर से कि वह राक्षस बाहर आकर उन पर भी आक्रमण ना कर दे, उसने गुफा के द्वार को एक चट्टान की सहायता से बंद कर दिया।

इसके बाद उसने किष्किन्धा आकर सारी सूचना मंत्रियों इत्यादि को दी। सभी ने मिलकर सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा बना दिया। अब सुग्रीव किष्किन्धा पर राज करने लगा।

बालि द्वारा सुग्रीव का अपमान करना (Bali Sugriv Ki Kahani)

राजा बनने के कुछ दिनों के पश्चात ही सुग्रीव ने देखा कि उसका भाई जीवित लौट आया है। यह देखकर वह आश्चर्यचकित भी हुआ और प्रसन्न भी। वह अपने भाई को जीवित देखकर उसके चरणों में गिर गया (Sugriv Bali Ki Ramayan) किंतु बालि ने उसे ठोकर मारकर गिरा दिया। उसने सुग्रीव पर आरोप लगाया कि उसने स्वयं किष्किन्धा का राजा बनने के लिए यह सब षड़यंत्र रचा व उसे गुफा में बंद करके आ गया।

सुग्रीव ने इस सब षड़यंत्र को नकार दिया किंतु साथ ही अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी लेकिन बालि ने उसे अपमानित करके राज्य से निकाल दिया। इसके साथ ही उसने सुग्रीव की पत्नी रुमा को उसकी इच्छा के विरुद्ध अपनी पत्नी बनाकर रख लिया।

सुग्रीव का ऋषयमुख पर्वत पर जाकर रहना (Sugriv Ka Nivas Kis Parvat Par Tha)

सुग्रीव बालि के भय से अपने मंत्रियों व कुछ विश्वस्त सिपाहियों के साथ ऋषयमुख पर्वत (Sugriv Kis Parvat Par Rehta Tha) पर जाकर रहने लगा। केवल यही वह स्थान था जहाँ वह सुरक्षित था क्योंकि एक ऋषि के श्राप से बालि उस पर्वत पर नही आ सकता था। वह उस पर्वत पर अपने मंत्रियों हनुमान, जाम्बवंत, नल, नील के साथ निवास करने लगा।

सुग्रीव की श्रीराम से मित्रता (Ram Aur Sugriv Ki Mitrata Ki Kahani)

कुछ समय पश्चात उस पर्वत पर भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ सुग्रीव (Sugriv Ram Milan) से मिलने आए। उनके द्वारा उसे पता चला कि उनकी पत्नी सीता का रावण के द्वारा अपहरण कर लिया गया है। तब दोनों ने मित्रता की तथा भगवान श्रीराम ने सुग्रीव को उसका खोया हुआ राज्य वापस लौटाने का संकल्प लिया तो सुग्रीव ने माता सीता को ढूंढने का।

सुग्रीव व बालि का युद्ध व बालि वध (Ram Sugreev Mitrata Bali Vadh)

इसके बाद श्रीराम के कहे अनुसार सुग्रीव बालि से युद्ध करने गया व श्रीराम एक वृक्ष के पीछे छुपकर बालि की प्रतीक्षा करने लगे। श्रीराम बालि को मिले वरदान के कारण उसे सामने से नही मार सकते थे (Why Ram Killed Bali In Hindi) इसलिये उन्हें वृक्ष के पीछे से छुपकर उसका वध करना था।

धर्मसंकट की स्थिति तब उत्पन्न हुई जब श्रीराम ने बालि को पहली बार देखा। बालि और सुग्रीव में रूप, काया, रंग इत्यादि में कोई भेदभाव नही था तथा दोनों एक समान दिखते थे। इसलिये श्रीराम ने बालि पर तीर नही चलाया क्योंकि उन्हें भय था कि वे गलती से सुग्रीव का भी वध कर सकते हैं। उस युद्ध में बालि ने सुग्रीव को बहुत मारा (Sugriv Bali Ki Ladai) व सुग्रीव को अपने प्राण बचाकर वहां से भागना पड़ा।

इसके बाद श्रीराम ने सुग्रीव को एक पुष्प माला पहनायी तथा फिर से युद्ध (Bali Sugriv Yudh In Hindi) करने को कहा। श्रीराम के कहने पर सुग्रीव बालि से फिर से युद्ध करने गया तथा बालि भी उससे युद्ध करने आ गया। दोनों का युद्ध चल ही रहा था कि श्रीराम ने अपने धनुष बाण से बालि का वध कर दिया।

सुग्रीव का किष्किन्धा नरेश बनना (Sugriv Ka Rajtilak)

बालि वध के पश्चात श्रीराम ने सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा बना दिया। उन्होंने बालि की पत्नी तारा के समक्ष सुग्रीव के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे उसने स्वीकार कर लिया। इसके बाद सुग्रीव का तारा के साथ विवाह करवा दिया गया।

राजा बनने के पश्चात सुग्रीव ने माता सीता को ढूंढने की इच्छा व्यक्त की। इस पर श्रीराम ने कहा कि अभी वर्षा ऋतु चल रही हैं इसलिये इस समय माता सीता को ढूँढना बहुत मुश्किल हैं। उन्होंने सुग्रीव को चार मास के पश्चात शरद ऋतु के आरंभ में माता सीता की खोज शुरू करने को कहा तथा तब तक अपने राज्य को सुव्यवस्थित करने का सुझाव दिया।

लक्ष्मण का सुग्रीव पर क्रोध (Sugriv Laxman Ka Krodh)

किष्किन्धा का राजा बनने के पश्चात सुग्रीव भोग-विलासिता में इतना खो गया कि उसे पता ही नही चला कि चार मास का समय कब बीत गया। वह भगवान श्रीराम को दिए अपने वचन को भूल गया तथा नृत्य, संगीत इत्यादि में व्यस्त रहने लगा।

फिर एक दिन उसके महल में लक्ष्मण अत्यंत क्रोध में आये व सुग्रीव को पुकारने लगे। तब अपने मंत्रियों हनुमान व जाम्बवंत के द्वारा उन्हें सब घटना का ज्ञान हुआ तथा वह हाथ जोड़ते हुए लक्ष्मण के सामने आया व क्षमा मांगी। सुग्रीव उसी समय श्रीराम से मिलने उनके पास गया तथा अपने वचन को भूल जाने के कारण क्षमा याचना की।

माता सीता की खोज (Sugriv Dwara Sita Ki Khoj)

भगवान श्रीराम से आदेश पाकर उसने अपनी संपूर्ण वानर सेना को बुलाया व उसे चार भागो में बाँट दिया। प्रत्येक दल को उसने भारत की चारो दिशाओं के कोने तक जाने का आदेश दिया व हर भूभाग में माता सीता को खोजने को कहा। अपने सबसे प्रमुख वानर दल को उसने दक्षिण दिशा में भेजा क्योंकि रावण की नगरी वही थी।

कुछ समय पश्चात दक्षिण दिशा में गए वानर दल में से हनुमान ने आकर माता सीता का पता दिया व बताया कि उन्हें रावण ने अपनी नगरी लंका में रखा है। यह सुनते ही सुग्रीव श्रीराम व वानर सेना के साथ लंका के लिए निकल पड़ा।

श्रीराम-रावण युद्ध व रावण वध (Sugriv Ravan Yudh)

वानर सेना का नेतृत्व सुग्रीव की अध्यक्षता में श्रीराम स्वयं कर रहे थे। सुग्रीव ने उनकी हर आज्ञा का पालन किया तथा उनका पूरा साथ दिया। वानर सेना की सहायता से समुंद्र पर सौ योजन लंबा सेतु बनाया गया व सुग्रीव की वानर सेना लंका पहुँच गयी। उसके बाद दोनों सेनाओं के बीच कई दिनों तक भीषण युद्ध चला व अंत में रावण का वध हो गया व माता सीता को मुक्त करवा लिया गया।

तब तक श्रीराम के वनवास का समय भी समाप्त होने को आया था तथा उन्हें पुनः अयोध्या लौटना था। सुग्रीव ने भगवान श्रीराम के साथ अयोध्या जाकर उनके राज्याभिषेक देखने की इच्छा व्यक्त की जिसे श्रीराम ने स्वीकार कर लिया। उसके बाद सुग्रीव लंका के नए राजा विभीषण के पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या पहुंचे व श्रीराम के राज्याभिषेक के साक्षी बने। उसके कुछ दिनों के पश्चात सुग्रीव अपनी नगरी लौट गए व वहां का राज्य सँभालने लगे।

सुग्रीव का श्रीराम के पुत्रों लव-कुश के साथ युद्ध (Bharat Sugriva Hanuman Luv Kush Yudh)

श्रीराम के राज्याभिषेक के कुछ वर्षों के पश्चात उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। उसमे सुग्रीव को भी आमंत्रण मिला तथा उन्होंने उस यज्ञ में भाग लिया। तब वाल्मीकि आश्रम के दो छात्रों लव-कुश ने अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को पकड़कर श्रीराम के राज्य को चुनौती दी।

शत्रुघ्न व लक्ष्मण के परास्त होने के पश्चात भगवान श्रीराम ने भरत, सुग्रीव तथा हनुमान को लव-कुश से युद्ध करने भेजा। तब सुग्रीव का लव-कुश से भयानक युद्ध हुआ लेकिन वे उसमे परास्त हो गए। लव-कुश ने उन्हें मुर्छित कर दिया।

सुग्रीव का जल में समाधि लेना (Sugriv Ki Mrityu Kaise Hui)

इसके कई वर्षों के पश्चात जब प्रभु श्रीराम ने अपने देह त्याग का निर्णय लिया व सरयू नदी में समाधि लेने लगे। तब सुग्रीव ने भी उनके साथ जल में समाधि ले ली (Sugriv Death Hindi) तथा अपने पिता सूर्य देव के पास चले गए।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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