आज हम आपको इस लेख के माध्यम से करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Vrat Katha) देंगे। सुहागिन स्त्रियाँ हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखती हैं व अपने पति की लंबी व सुखद आयु की कामना करती है। यह व्रत सभी विवाहित महिलाएं बहुत चाव से रखती हैं मुख्यतया उत्तर भारत में।
हर व्रत को रखने के पीछे एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई होती हैं जो उस व्रत के महत्व को समझती हैं। ऐसे में सभी महिलाएं करवा चौथ की कथा (Karva Chauth Ki Katha) सुनकर ही व्रत रखती है। वैसे तो करवाचौथ व्रत कथा में एक ही कथा सुनी जाती है लेकिन इस दिन से दो और कथाएं भी जुड़ी हुई है। इसलिये आज हम आपको तीनो करवा चौथ कथा के बारे में बताएँगे।
एक समय में एक गाँव में सात भाइयों की एक बहन थी वीरवती। एकमात्र बहन होने के कारण वह अपने भाइयो की सबसे प्रिय थी तथा सभी का लाड-प्यार उसे मिलता था। जब उसका विवाह हो गया तब वह अपने ससुराल चली गयी।
अपने पहले करवा चौथ के दिन वह अपने मायके आयी हुई थी तथा पूरी श्रद्धा के साथ करवाचौथ का व्रत रखा था। सुबह से उसने ना कुछ खाया था तथा ना ही कुछ पिया था। उसे शाम में चंद्रमा के दर्शन करके ही अन्न-जल ग्रहण करना था।
सुबह से दोपहर तक तो वह ठीक थी लेकिन शाम होते-होते वह भूख से बहुत बेचैन हो उठी लेकिन अपना व्रत नही तोड़ा। जब उसके सभी भाई शाम में अपने काम से घर लौटे तो अपनी बहन की यह स्थिति देखकर दुखी हो गए। उनकी बहन बहुत कमजोर व भूख के मारे व्याकुल दिखाई पड़ रही थी।
यह देखकर सभी सातो भाइयो ने एक योजना बनायी व घर से दूर एक पीपल के वृक्ष पर चढ़ गए। उन्होंने एक दीपक की प्रज्जवलित कर उसे पेड़ के पत्तो में इस प्रकार छुपा दिया कि वह करवा चौथ के चंद्रमा की तरह प्रतीत हो।
तभी घर पर उपस्थित वीरवती के भाइयो ने उसे जगाया व चंद्रमा दिखाया। चंद्रमा को देखकर भूख से व्याकुल वीरवती प्रसन्न हो उठी। उसने अपनी भाभियों को भी चंद्रमा दिखाया लेकिन भाभियों ने कहा कि उनका चंद्रमा अभी नहीं निकला है। साथ ही वे अपने पतियों के दबाव में अपनी ननद को कुछ कह नहीं पाई।
वीरवती उस नकली चंद्रमा को प्रणाम कर भोजन करने बैठी। किंतु जैसे ही उसने भोजन का पहला निवाला मुहं में डाला तो उसमें बाल आ गया। दूसरा निवाला मुहं में डाला तो उसे छींक आ गई। इतने अपशकुन को भी वीरवती समझ नहीं पा रही थी और अनजाने में करवाचौथ का व्रत तोड़ने चली थी।
इन अपशकुनो के बाद जब वीरवती तीसरा निवाला खाने लगी तो उसे अपने ससुराल पक्ष की ओर से समाचार प्राप्त हुआ कि उसके पति बहुत ज्यादा बीमार है। यह सुनकर वीरवती अवाक रह गयी व तुरंत अपने ससुराल जाने लगी। वीरवती को देने के लिए जो भी कपडा मिला वह सफेद रंग का था। ऐसे में वह सफेद रंग के पकडे पहन कर ही अपने ससुराल निकल पड़ी।
जाने से पहले वीरवती की माँ ने उसे एक सोने का सिक्का दियाऔर कहा कि रास्ते में जो भी स्त्री मिले, उसके पैर छूते जाना। जो भी स्त्री तुझे सुहागिन रहने का आशीर्वाद दे, उसकी झोली में यह सिक्का बाँध देना। वीरवती ने हर किसी के पैर छुए लेकिन सभी ने उसे सुखी रहने, खुश रहने के आशीर्वाद दिए लेकिन सुहागिन रहने का आशीर्वाद किसी ने नहीं दिया।
जब वीरवती अपने ससुराल पहुंची तो वहाँ उसकी छोटी ननद खड़ी थी। उसने उसके भी पैर छुए तो उस बच्ची ने उसे सुहागिन रहने का आशीर्वाद दिया। यह सुनकर वीरवती बहुत प्रसन्न हुई और वह सोने का सिक्का उसकी झोली में बाँध दिया।
अंदर जाकर देखा तो उसकी सास ने उसे रोते हुए बताया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है। वह ऊपर अपने पति के कमरे में गई और देखा कि वहाँ उसके पति मृत पड़े है। उनके शरीर से घास उगने लगी थी जो वीरवती निकाल दे रही थी। उसे पता चल गया था कि उसने करवाचौथ का व्रत पूरा नहीं किया, जिस कारण यह सब हुआ।
वह अपनी भूल के लिए चौथ माता से क्षमा मांगने लगी और जोर-जोर से रोने लगी। उसके सच्चे प्रेम को देखकर चौथ माता ने उसे दर्शन दिए। चौथ माता ने उसे बताया कि अब से उसे हर माह की चौथ को बिना कुछ खाए पिए चौथ का व्रत रखना है। फिर अगले वर्ष करवाचौथ का व्रत पूरा होते ही उसका पति जीवित हो जाएगा।
यह सुनकर वीरवती अगले 11 महीनो तक हर चौथा का पूरे विधि-विधान के साथ व्रत रखा। उसने अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया। उसके शरीर में जो भी घास उगती, वह उसे निकालती जाती थी। उसकी सास भी कमरे में ही भोजन इत्यादि पहुंचा दिया करती थी। इसी तरह 11 महीने बीत गए और फिर से करवाचौथ का दिन आ गया।
आखिरकार वह दिन आ ही गया, जिसकी वीरवती एक वर्ष से प्रतीक्षा कर रही थी। उसने चौथ माता की पूजा की और पूरे विधि-विधान के साथ करवाचौथ का व्रत रखा। जैसे ही उसका व्रत पूरा हुआ, चौथ माता ने वीरवती के पति को पूरी तरह स्वस्थ कर दिया। यह देखकर वीरवती ने अपने पति के पैर छुए और उनका आशीर्वाद लिया।
जब यह बात वीरवती के घरवालों को पता चली तो सभी अचंभित रह गए। वीरवती के कठिन तप और चौथ माता के चमत्कार की चर्चा हर जगह होने लगी। फिर धीरे-धीरे यहीं करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Vrat Katha) बन गई। चौथ माता ने भी वीरवती को सुहागिन बने रहने का आशीर्वाद दिया। उसके बाद अगले कई वर्षों तक दोनों साथ में रहे और उनके कई पुत्र-पुत्रियाँ हुए।
अब वैसे तो यहीं आधिकारिक तौर पर करवा चौथ कथा मानी जाती है लेकिन इसके अलावा भी दो और कथाएं है। आइए उनके बारे में भी जान लेते हैं।
एक समय में करवा नामक एक महिला करवाचौथ के दिन अपने पति के साथ स्नान करने नदी पर गयी हुई थी। तब वहां एक मगरमच्छ ने उसके पति का पैर पकड़ लिया। यह देखकर उसका पति जोर-जोर से चिल्लाने लगा। अपने पति की आवाज़ सुनकर करवा वहां आयी व मगरमच्छ से अपने पति को बचाने लगी।
उसने अपने पति को तो बचा लिया लेकिन मगरमच्छ पर बहुत क्रोधित हो गयी। इसके बाद वह सीधे यमराज के दरबार में गयी तथा मगरमच्छ को नरक भेजने को कहा। यमराज ने कहा कि उस मगरमच्छ की आयु अभी शेष हैं इसलिये वह उसे नरक नही भेज सकते। यह सुनकर करवा ने यमराज को श्राप दे देने की चुनौती दी। एक पतिव्रता स्त्री से श्राप मिलने का सुनकर यमराज भयभीत हो गए व उन्होंने उसी समय मगरमच्छ को नरक भेज दिया।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, करवा ने उसी समय यमराज से प्रार्थना की जब मगरमच्छ ने उसके पति का पैर पकड़ लिया था। इस पर यमराज ने उससे कहा कि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है जबकि उसके पति की आयु पूरी हो चुकी है। फिर करवा के द्वारा यमराज को श्राप देने की चेतावनी के बाद यमराज ने उसके पति की प्राण रक्षा की और मगरमच्छ को मृत्यु दंड दिया।
एक समय अर्जुन नीलगिरी के पहाड़ियों पर गए हुए थे। तब बाकि चार पांडवो को राज्य को सँभालने में बहुत मुश्किल हो रही थी। उन पांचो पांडवो की पत्नी द्रौपदी थी जो अर्जुन की चिंता में डूबी थी तथा बाकि चारो पांडवो की समस्याओं को देखकर व्याकुल थी।
तब उसने अपने धर्मभाई श्रीकृष्ण का आह्वान किया तथा उन्हें अपनी समस्या बतायी। श्रीकृष्ण ने उन्हें कहा कि ऐसी ही समस्या एक बार माता पार्वती को भी हुई थी तब उन्होंने करवा चौथ का व्रत किया था जिसके पश्चात उनकी सब समस्या दूर हो गयी थी।
यह सुनकर द्रौपदी ने भी श्रीकृष्ण के कहे अनुसार करवाचौथ का व्रत किया व अपने पति की सभी समस्याओं को दूर करने व उनकी लंबी आयु की कामना की। द्रौपदी के द्वारा करवाचौथ का व्रत किये जाने के पश्चात अर्जुन भी कुछ समय बाद सकुशल लौट आये व पांडवो की सभी समस्या भी हल हो गयी।
तो यह थी करवा चौथ की कथाएं लेकिन यदि आप करवाचौथ व्रत रखने जा रही हैं तो आपको पहले वाली करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Vrat Katha) को ही सुनना चाहिए।
करवा चौथ व्रत कथा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: करवा चौथ में कौन सा कथा पढ़ा जाता है?
उत्तर: करवा चौथ में वीरवती की कथा को पढ़ा जाता है। वीरवती ने अपने पति की मृत्यु होने पर हर चौथ का व्रत किया और फिर बारहवें महीने करवाचौथ का व्रत कर अपने पति को जीवित करवा दिया था।
प्रश्न: करवा चौथ की असली कहानी क्या है?
उत्तर: करवा चौथ की असली कहानी वीरवती से जुड़ी हुई है। वीरवती ने अपने पति की मृत्यु होने के बाद चौथ माता के नाम का व्रत किया था। इस कथा को हमने इस लेख में विस्तार से दिया है।
प्रश्न: करवा चौथ की देवी कौन थी?
उत्तर: करवा चौथ की देवी चौथ माता को माना जाता है। चौथ माता कोई और नहीं बल्कि माता पार्वती या माता गौरी को ही कहा जाता है।
प्रश्न: करवा चौथ का भगवान कौन है?
उत्तर: करवा चौथ के भगवान नहीं बल्कि देवी होती है। करवा चौथ का व्रत चौथ माता के नाम से रखा जाता है जो माता पार्वती का ही एक रूप है। इस तरह से करवा चौथ के भगवान के रूप में भगवान शिव की पूजा की सकती है।
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