करवा चौथ की व्रत कथा, इतिहास व जाने इसे क्यों मनाते है

Karwa Chauth Ki Katha In Hindi

सुहागिन स्त्रियाँ हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत (Karva Chauth Ki Katha) रखती हैं व अपने पति की लंबी व सुखद आयु की कामना करती है। यह व्रत सभी विवाहित महिलाएं बहुत चाव से रखती हैं मुख्यतया उत्तर भारत में। हिंदू धर्म में हर व्रत को रखने के पीछे एक प्राचीन कथा (Karwa Chauth Ki Kahani) जुड़ी हुई हैं जो हमे एक शिक्षा देकर जाती हैं व उस व्रत की महत्ता को समझती हैं। इसलिये आज हम आपको करवा चौथ के व्रत से जुड़ी कथा बताएँगे।

करवा चौथ की व्रत कथा (Karwa Chauth Ki Katha In Hindi)

रानी वीरवती की कथा (Karva Chauth Vrat Katha In Hindi)

एक समय में एक गाँव में सात भाइयों की एक बहन थी वीरवती। एकमात्र बहन होने के कारण वह अपने भाइयो की सबसे प्रिय थी तथा सभी का लाड-प्यार (Karva Chauth Kyu Manaya Jata Hai) उसे मिलता था। जब उसका विवाह हो गया तब वह अपने ससुराल चली गयी।

अपने पहले करवा चौथ के दिन वह अपने मायके आयी हुई थी तथा पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखा था। सुबह से उसने ना कुछ खाया था तथा ना कुछ पिया था। अब उसे संध्या में चंद्रमा के दर्शन करके ही अन्न-जल ग्रहण करना था।

सुबह से दोपहर तक तो वह ठीक थी लेकिन संध्या होते-होते वह भूख से बहुत बेचैन (Karwa Chauth Story In Hindi) हो उठी लेकिन अपना व्रत नही तोड़ा। जब उसके सभी भाई संध्या में अपने काम से घर लौटे तो अपनी बहन की यह स्थिति देखकर दुखी हो गए। उनकी बहन बहुत कमजोर व भूख के मारे व्याकुल दिखाई पड़ रही थी।

यह देखकर सभी सातो भाइयो ने एक योजना बनायी व घर से दूर एक पीपल के वृक्ष पर चढ़ गए। उन्होंने एक दीपक की प्रज्जवलित कर उसे पेड़ के पत्तो में इस प्रकार छुपा दिया कि वह करवा चौथ के चंद्रमा की तरह प्रतीत हो।

तभी घर पर उपस्थित वीरवती के भाइयो ने उसे जगाया (Karwa Chauth History In Hindi) व चंद्रमा दिखाया। चंद्रमा को देखकर भूख से व्याकुल वीरवती प्रसन्न हो उठी तथा उन्हें प्रणाम कर भोजन करने बैठी। किंतु जैसे ही उसने भोजन का पहला ग्रास मुहं में डाला तो उसे छींक आ गयी। जब वह दूसरा ग्रास खाने लगी तो उसमे बाल आ गया।

इन अपशकुनो के बाद जब वीरवती तीसरा ग्रास (Karva Chauth Ki History) खाने लगी तो उसे अपने ससुराल पक्ष की ओर से समाचार प्राप्त हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी हैं। यह सुनकर वीरवती अवाक रह गयी व तुरंत अपने ससुराल जाने लगी।

ससुराल जाते समय उसे रास्ते में माता पार्वती के दर्शन हुए तथा उन्होंने उसे सब सच्चाई बतायी। यह सुनकर वह स्वयं को दोष देने लगी तथा अपने पति की मृत्यु के लिए स्वयं को उत्तरदायी ठहराने लगी। तब माता पार्वती ने उससे कहा कि वे उसके पति को जीवित तो कर देंगी लेकिन वह स्वस्थ नही रहेगा। जब अगले करवा चौथ के दिन वह पूरे विधि-विधान के साथ यह व्रत रखेगी तो उसका पति पूर्णतया स्वस्थ हो जायेगा।

घर पहुंचकर वीरवती ने देखा कि उसका पति जीवित तो था लेकिन उसके शरीर में अनेक सुइयां/ घास गड़े हुए थे। कुछ लोगों के अनुसार उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी लेकिन उसने अपने पति का अंतिम संस्कार नही किया। एक वर्ष तक उसने अपने पति के शरीर को संभालकर रखा तथा जो भी शरीर में घास इत्यादि उगती वह उन्हें चुन-चुनकर निकाल देती।

एक वर्ष के पश्चात जब करवाचौथ का त्यौहार (Karwa Chauth Ki Katha Hindi Me) आया तब उसने पूरे विधि-विधान के साथ वह व्रत रखा व सभी नियमो का पालन किया। उस करवाचौथ के व्रत के पश्चात वीरवती का पति पूर्णतया स्वस्थ हो गया व कई वर्षों तक दोनों साथ में रहे।

करवा चौथ के व्रत की अन्य कथाएं (Karwa Chauth Vrat Katha In Hindi)

इसके अलावा कुछ अन्य कथाएं भी हैं जो इस व्रत से जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं:

करवाचौथ से जुड़ी करवा की कथा (Karva Chauth Ki Katha In Hindi)

एक समय में करवा नामक एक महिला करवाचौथ के दिन अपने पति के साथ स्नान करने नदी पर गयी हुई थी। तब वहां एक मगरमच्छ ने उसके पति का पैर पकड़ लिया। यह देखकर उसका पति जोर-जोर से चिल्लाने लगा। अपने पति की आवाज़ सुनकर करवा वहां आयी व मगरमच्छ से अपने पति को बचाने लगी।

उसने अपने पति को तो बचा लिया लेकिन मगरमच्छ पर बहुत क्रोधित (Karva Chauth Puja Katha) हो गयी। इसके बाद वह सीधे यमराज के दरबार में गयी तथा मगरमच्छ को नरक भेजने को कहा। यमराज ने कहा कि उस मगरमच्छ की आयु अभी शेष हैं इसलिये वह उसे नरक नही भेज सकते।

यह सुनकर करवा ने यमराज को श्राप दे देने की चुनौती दी। एक पतिव्रता स्त्री से श्राप मिलने का सुनकर यमराज भयभीत हो गए व उन्होंने उसी समय मगरमच्छ को नरक भेज दिया।

द्रौपदी की करवा चौथ की कथा

एक समय अर्जुन नीलगिरी के पहाड़ियों पर गए हुए थे। तब बाकि चार पांडवो को राज्य को सँभालने में बहुत मुश्किल हो रही थी। उन पांचो पांडवो की पत्नी द्रौपदी थी जो अर्जुन की चिंता में डूबी थी तथा बाकि चारो पांडवो की समस्याओं को देखकर व्याकुल थी।

तब उसने अपने धर्मभाई श्रीकृष्ण का आह्वान किया तथा उन्हें अपनी समस्या बतायी। श्रीकृष्ण ने उन्हें कहा कि ऐसी ही समस्या एक बार माता पार्वती को भी हुई थी तब उन्होंने करवा चौथ का व्रत किया था जिसके पश्चात उनकी सब समस्या दूर हो गयी थी।

यह सुनकर द्रौपदी ने भी श्रीकृष्ण के कहे अनुसार करवाचौथ का व्रत किया व अपने पति की सभी समस्याओं को दूर करने व उनकी लंबी आयु की कामना की। द्रौपदी के द्वारा करवाचौथ का व्रत किये जाने के पश्चात अर्जुन भी कुछ समय बाद सकुशल लौट आये व पांडवो की सभी समस्या भी हल हो गयी।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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