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भगवान जगन्नाथ की महिमा (Jagannath Mahima) अपरंपार है। क्या आप जानते हैं कि जगन्नाथ मंदिर में जो भगवान जगन्नाथ, बलभद्र तथा सुभद्रा की मूर्तियाँ स्थापित हैं उनके अंदर ब्रह्म पदार्थ रखा हुआ है? जी हाँ, इसकी कथा भगवान कृष्ण की मृत्यु से जुड़ी हुई है। श्री कृष्ण के हृदय से ही इन मूर्तियों का निर्माण किया गया था।
हालाँकि इस पर बाहरी आवरण लकड़ी का बना हुआ होता है जो हमें दिखता है। लकड़ी से बने बाहरी शरीर को कुछ वर्षों के बाद बदला जाता है। इस दौरान मूर्ति के अंदर के शरीर को नए शरीर में डाला जाता है। इसे नवकलेवर उत्सव (Navkalevar) के नाम से जाना जाता है। इसका महत्व जगन्नाथ रथयात्रा से भी अधिक है। आज हम इसी के बारे में विस्तार से जानेंगे।
यह एक उड़िया शब्द है जो दो शब्दों के मेल से बना है “नव” अर्थात “नया”, “कलेवर” अर्थात “शरीर”। नवकलेवर का अर्थ हुआ अपने पुराने शरीर को त्यागकर नए शरीर में प्रवेश करना। प्राचीन मान्यता के अनुसार भगवान अपने पुराने शरीर का त्याग करके नए शरीर में प्रवेश करते हैं। इसलिए जगन्नाथ मंदिर के पुजारी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा तथा सुदर्शन चक्र के बाहरी लकड़ी से बने शरीर से अंदर का आवरण निकालते हैं तथा उसे नए शरीर में डालते हैं।
इसके पश्चात उनके पुराने शरीरों का मंदिर के पास स्थित कोइली बैकुंठ में अग्नि संस्कार कर दिया जाता है। इस प्रकार भगवान अपने नए शरीर को धारण करते हैं जिसे नवकलेवर नाम दिया गया है।
यह आषाढ़ मास की अधिकमास की रात्रि के समय किया जाता है। अधिकमास तब पड़ता है जब आषाढ़ मास में दो बार पूर्णिमा आती है इसलिए इसे अधिकमास या पुरुषोत्तममास कहा गया है। इसे क्रमशः 9, 12 तथा 19वे साल के अंतराल में बदला जाता है। इस उत्सव की तैयारियां चैत्र मास से ही प्रारंभ कर दी जाती है।
पिछली बार नवकलेवर की प्रथा को सन 2015 में किया गया था जो 1996 के बाद 19 वर्षों पश्चात आया था। इस दिन लगभग तीस लाख लोग इस प्रथा का भाग बनने आए थे। अब अगला नवकलेवर 2024 में किया जाएगा जिस दिन प्रभु को नया शरीर मिलेगा।
जिन लकड़ियों की सहायता से भगवान के शरीर का निर्माण किया जाता है वह नीम के पेड़ से बनी होती है। साथ में कस्तूरी, चंदन इत्यादि पदार्थों का मिश्रण किया जाता है। इसके निर्माण के लिए किसी साधारण नीम के पेड़ की लकड़ियाँ नहीं ली जाती है बल्कि चारों मूर्तियों के निर्माण के लिए विशेष गुणों से युक्त नीम के पेड़ का चुनाव किया जाता है तथा उसके पश्चात ही उनका प्रयोग किया जाता है।
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के लिए नीम के वृक्ष की छाल का रंग गहरा होना चाहिए तथा उसकी केवल 4 शाखाएं ही होनी चाहिए। वृक्ष पर शंख तथा चक्र का चिन्ह होना चाहिए तथा जड़ में एक सांप का बिल होना भी आवश्यक है। वृक्ष के ऊपर किसी पक्षी का घोंसला नहीं होना चाहिए। इस नीम के वृक्ष के आसपास नदी/ तालाब/ तीन पर्वत/ तीन रास्ते, श्मशान घाट, अन्य वृक्ष, शिव मंदिर होने भी आवश्यक हैं।
भगवान बलभद्र के शरीर के लिए नीम के वृक्ष की छाल का रंग हल्का भूरा/ श्वेत तथा सात शाखाओं का होना चाहिए। इस पर हल या मूसल का चिन्ह होना चाहिए तथा यह किसी श्मशान घाट या ऐतिहासिक स्थल पर होना आवश्यक है। माँ सुभद्रा के नीम के वृक्ष की छाल का रंग पीला तथा शाखाएं पांच होनी चाहिए। इस वृक्ष पर कमल के पुष्प का होना आवश्यक है। सुदर्शन चक्र के नीम के वृक्ष की छाल का रंग लाल तथा शाखाएं तीन होनी चाहिए। इस वृक्ष पर चक्र जो बीच में से भिदा हुआ हो वो होना चाहिए।
इसके पश्चात उनको मूर्त रूप देने के लिए शिल्पकारों को बुलाया जाता है जो मंदिर के ऊपर एक बंद कमरे में बैठकर मूर्ति का निर्माण करते हैं। उन्हें 21 दिन तक मंदिर में रहकर मूर्ति का निर्माण करना होता है। इस दौरान वे ना ही कहीं बाहर जा सकते हैं तथा ना ही बाहर का कुछ खा पी सकते हैं। 21 दिनों तक उन्हें मंदिर का महाप्रसाद खाना होता है तथा उसी कक्ष में सोना होता है। मुख्य पुजारी तथा अन्य किसी को भी उस कक्ष में जाने की अनुमति नहीं होती है।
21 दिन बाद उन मूर्त शरीरों को मंदिर के मुख्य गर्भगृह में लाया जाता है। इन चारों मूर्तियों को पुरानी मूर्तियों की ओर मुख करके रखा जाता है। इस दौरान किसी को भी अंदर आने की अनुमति नहीं होती है तथा यह कार्य रात्रि में किया जाता है। मुख्य पुजारी जो शरीर को बदलने का कार्य करता है उसकी आँखों पर पट्टी तथा हाथों पर कपड़ा बंधा होता है। यह मान्यता है कि मूर्ति के अंदर का आवरण कोई भी नहीं देख सकता अन्यथा उसकी उसी समय मृत्यु हो जाएगी।
नई मूर्तियों को सामने रखने के पश्चात उस रात्रि किसी भी प्रकार की पूजा नहीं होती तथा न ही प्रसाद लगाया जाता है। पुजारी पुरानी मूर्तियों में से शरीर को निकालकर नई मूर्तियों में स्थापित कर देता है। इसके पश्चात देह त्याग तथा नए शरीर धारण करने की प्रक्रिया के मंत्र पढ़े जाते हैं।
अंत में प्राचीन शरीर का पूरे विधि-विधान के साथ कोइली वैकुंठ में अंतिम संस्कार कर दिया जाता है तथा नई मूर्तियों को प्राचीन मूर्तियों के स्थान पर स्थापित कर दिया जाता है। अगले दिन पूरी नगरी में धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है। भगवान जगन्नाथ की महिमा (Jagannath Mahima) को देखने लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं।
नवकलेवर से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: जगन्नाथ की मूर्ति क्यों बदली जाती है?
उत्तर: भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का बाहरी आवरण विशेष प्रकार की लकड़ी का बनाया गया होता है। लकड़ी कुछ वर्षों के बाद बदलनी पड़ती है अन्यथा वह ख़राब हो जाती है। इसलिए जगन्नाथ की मूर्ति बदली जाती है।
प्रश्न: जगन्नाथ पुरी कब बंद रहता है?
उत्तर: ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन से जगन्नाथ पुरी के द्वार भक्तों के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इसके बाद लगभग 15 दिनों के लिए जगन्नाथ मंदिर बंद रहता है।
प्रश्न: जगन्नाथ की मूर्तियाँ कैसे बनाई गईं?
उत्तर: जगन्नाथ की मूर्तियाँ भगवान विश्वकर्मा जी के द्वारा बनाई गई थी। उन्होंने यह सब गुप्त रूप से किया था। ऐसे में इन मूर्तियों को किस प्रकार बनाया गया था, इसके बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
प्रश्न: जगन्नाथ मंदिर कहा है?
उत्तर: जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा राज्य के पुरी नगरी में स्थित है। यह हिन्दू धर्म के चार धाम में से एक है जिसे पूर्व भारत का धाम कहा जाता है।
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