रामायण में राजा जनक कौन थे (Raja Janak Kaun The) व उनकी क्या भूमिका थी? दरअसल वे माता सीता के धर्म पिता तथा श्रीराम के ससुर थे। उनकी नगरी मिथिला थी जिसको उन्होंने धार्मिक व सांस्कृतिक नगरी होने का गौरव प्रदान किया था। इस कारण उन्हें धर्म राजा भी कहा जाता है।
राजा जनक (Ramayan Raja Janak) एक ऐसे मनुष्य थे जिन्हें सांसारिक वस्तुओं से प्रेम नहीं था बल्कि वे हमेशा भगवान की भक्ति में खोए रहते थे। इस कारण उनका एक नाम विदेह या वैदेह भी पड़ गया था। उनके दरबार में हमेशा बड़े-बड़े विद्वानों, ऋषि-मुनियों का आना जाना लगा रहता था। आज हम आपके सामने राजा जनक का जीवन परिचय ही रखने जा रहे हैं।
दरअसल उनका नाम जनक ना होकर सीरध्वज था। मिथिला राज्य के हर राजा को जनक के नाम की उपाधि दी जाती थी। इस प्रकार कई राजा जनक हुए लेकिन श्रीराम के ससुर होने के कारण हम उन्हें ही मुख्यतया जनक के नाम से जानते हैं। उनके पिता का नाम ह्रस्वरोमा था जिनकी दो संताने थी, एक सीरध्वज व दूसरी कुशध्वज।
कुशध्वज राजा जनक के छोटे भाई थे। जनक की पत्नी का नाम सुनैना था जिनसे उन्हें एक पुत्री उर्मिला प्राप्त हुई। माता सीता उन्हें भूमि से प्राप्त हुई थी जिसे उन दोनों ने गोद ले लिया था। उनके भाई कुशध्वज की भी दो पुत्रियाँ मांडवी व श्रुतकीर्ति हुई।
राजा जनक का उल्लेख (Raja Janak Kon The) रामायण में मुख्य रूप से सीता स्वयंवर, चित्रकूट में श्रीराम और भरत के बीच संधि करवाना और सीता वनवास के समय देखने को मिलता है। आज हम राजा जनक के जीवन में घटी इन तीनों घटनाओं का विस्तार से वर्णन करने वाले हैं।
पहले कुछ वर्षों तक राजा जनक व सुनैना के कोई संतान नहीं हुई थी जिससे वे दोनों परेशान रहा करते थे। एक दिन मिथिला नगरी में भयंकर अकाल पड़ा तब राजा जनक ने ऋषियों के आदेश पर यज्ञ किया। उस यज्ञ के पूर्ण होने के लिए राजा जनक को एक खेत में हल जोतना था। जब वे हल जोत रहे थे तब वह भूमि में किसी चीज से टकराया व रुक गया।
भूमि को खोदकर देखा गया तो उसमें से एक बच्ची प्राप्त हुई। चूँकि दोनों के कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने इसे भगवान का आशीर्वाद मानकर गोद ले लिया तथा उसका नाम सीता रख दिया। बाद में उन्हें उर्मिला पुत्री की प्राप्ति हुई।
जब सीता विवाह योग्य हो गई तब अपनी पुत्री के लिए सर्वश्रेष्ठ वर चुनने के लिए राजा जनक ने एक भव्य स्वयंवर का आयोजन किया तथा इसमें चारों दिशाओं के राजाओं को आमंत्रण भेजा गया। राजा जनक के पास भगवान शिव का पिनाक धनुष था जिसे उन्होंने इस स्वयंवर में रखा था।
उन्होंने माता सीता से विवाह के लिए यह शर्त रखी थी कि जो कोई भी इस धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसका विवाह माता सीता से होगा। उस स्वयंवर में श्रीराम भी गुरु विश्वामित्र के साथ पधारे थे। एक-एक करके जब सभी योद्धा शिव धनुष को उठाने में असफल रहे तो राजा जनक (Ramayan Raja Janak) अत्यंत निराश हो गए थे।
उन्होंने भरी सभा में अपना दुःख व्यक्त किया तथा किसी के भी इतना शक्तिशाली ना होने का शोक जताया। इस पर विश्वामित्र के आदेश पर श्रीराम ने स्वयंवर में भाग लिया तथा धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा दी। यह देखकर राजा जनक बहुत प्रसन्न हुए तथा खुशी-खुशी उन्होंने माता सीता का विवाह श्रीराम के साथ करवा दिया।
माता सीता के श्रीराम के साथ विवाह के पश्चात अयोध्या समाचार भेजा गया। तब राजा दशरथ अपने पूरे परिवार के साथ मिथिला पहुँचे तथा दोनों के बीच सहमति बनी कि दोनों अपने बाकि पुत्र-पुत्रियों के विवाह भी एक-दूसरे के साथ करवा दें। फलस्वरूप उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से, मांडवी का विवाह भरत से तथा श्रुतकीर्ति का विवाह शत्रुघ्न के साथ करवा दिया गया।
इसके बाद राजा जनक की भूमिका चित्रकूट में देखने को मिलती है जहाँ वे अपनी बुद्धिमता से उत्तम निर्णय लेते हैं। श्रीराम के माता सीता से विवाह के कुछ दिनों के पश्चात राजा जनक को सूचना मिलती है कि श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास हुआ है व भरत को अयोध्या का राजा घोषित किया गया है। श्रीराम के साथ उनकी पुत्री सीता व लक्ष्मण भी वनवास में चले जाते हैं व उसके बाद महाराज दशरथ की मृत्यु हो जाती है।
इसके कुछ दिनों के पश्चात राजा जनक को सूचना मिलती है कि भरत ने राज सिंहासन का पद ठुकरा दिया है तथा वे अपने संपूर्ण परिवार सहित चित्रकूट के लिए निकल पड़े हैं। यह सुनकर वे भी अपनी सेना सहित चित्रकूट के लिए निकल पड़ते हैं। वहाँ वे अपनी पुत्री सीता को देखकर भावुक हो जाते हैं क्योंकि उन्होंने सीता को हमेशा बहुत लाड-प्यार से पाला था।
उस समय श्रीराम अपने पिता के वचन को निभाने के लिए चौदह वर्ष के वनवास में रुकने का कह रहे होते हैं तो भरत अपने प्रेम के लिए श्रीराम को वापस अयोध्या चलने को कहते हैं। अंत में इसका निर्णय राजा जनक को लेने को कहा जाता है।
तब राजा जनक (Raja Janak Kon The) अपनी बुद्धिमता से ऐसा निर्णय लेते हैं कि वह सभी का दिल जीत लेता है। वे श्रीराम के वचनबद्ध होने व भरत के प्रेम में भरत की जीत बताते हैं लेकिन साथ ही भरत को प्रेम का अर्थ समझाते हैं। वे भरत को बताते हैं कि जहाँ प्रेम होता है वहाँ पूर्ण समर्पण होता है। प्रेम में व्यक्ति को वही करना चाहिए जो उसके प्रेमी को अच्छा लगे। इस प्रकार राजा जनक भरत को जिताकर भी श्रीराम को विजयी बना देते हैं।
इसके बाद राजा जनक की भूमिका तब दिखाई पड़ती है जब माता सीता को अकेले वनवास मिलता है। दरअसल माता सीता वनवास में जाने से पूर्व ही अपने पिता जनक को सब सूचित कर देती है तथा इसके लिए श्रीराम को दोषी नहीं ठहराने को कहती है तथा उनका ध्यान रखने को कहती है।
माता सीता के वनवास में जाने के कुछ समय पश्चात राजा जनक अयोध्या आते हैं तो श्रीराम उनसे मिलने में लज्जा अनुभव करते हैं। तब राजा जनक ना केवल उन्हें सहानुभूति देते हैं बल्कि उनके दुखों को बांटते हैं। वे इसके लिए श्रीराम को दोष न देकर नियति को दोष देते हैं। इसके बाद राजा जनक श्रीराम को कुछ दिनों के लिए अपनी नगरी मिथिला लेकर जाते हैं क्योंकि सीता के वनवास के बाद उनकी पत्नी सुनैना बहुत बीमार रहने लगी थी। श्रीराम से मिलकर सुनैना पुनः स्वस्थ हो जाती है।
इसके बाद राजा जनक अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण घटनाओं को देखते हैं। जैसे कि उनकी पुत्री सीता का वापस भूमि में समा जाना, उनके दोनों दोहितों लव कुश का श्रीराम के द्वारा अपनाना इत्यादि। इसके बाद उनका रामायण में कोई उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसे में राजा जनक की मृत्यु किन परिस्थितियों में और कब हुई, यह बताया नहीं जा सकता है।
ऐसे में जब राजा जनक वृद्ध हो गए होंगे तब उन्होंने शांतिपूर्वक अपनी देह का त्याग कर दिया होगा। देह त्याग करने के पश्चात उन्हें अपने कर्मों के अनुसार मोक्ष प्राप्ति हो गई होगी। इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने राजा जनक कौन थे (Raja Janak Kaun The) उनकी क्या कुछ भूमिका रही थी, के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है।
राजा जनक से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: राजा जनक की कितनी पत्नियां थी?
उत्तर: राजा जनक ने एक ही विवाह किया था। उनकी पत्नी का नाम सुनैना था। सुनैना से राजा जनक को एक पुत्री की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम उर्मिला था। माता सीता को उन्होंने गोद लिया था।
प्रश्न: राजा जनक पूर्व जन्म में कौन थे?
उत्तर: राजा जनक के पूर्व जन्म के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता है। जनक के रूप में उनकी प्रसिद्धि एक धर्म राजा के रूप में थी। वे माता सीता के पिता थे जिनका विवाह श्रीराम के साथ हुआ था।
प्रश्न: राजा जनक का विवाह कैसे हुआ?
उत्तर: राजा जनक का विवाह सामान्य विधि के अनुसार माता सुनैना के साथ हुआ था। इसके कई वर्षों के पश्चात जब उन्हें कोई संतान प्राप्ति नहीं हुई तब उन्होंने माता सीता को गोद ले लिया था।
प्रश्न: राजा जनक का ससुराल कहाँ है?
उत्तर: राजा जनक के ससुराल के बारे में ग्रंथों में कोई उल्लेख नहीं है। हालाँकि उनकी पत्नी का नाम सुनैना था और राजा जनक की नगरी मिथिला थी।
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