माता सीता के वन जाने के बाद श्रीराम का जीवन कैसे बीता?

राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं

क्या आप जानते हैं कि राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं। बहुत से लोग सोचते हैं कि राज्याभिषेक के बाद प्रजा के दबाव में आकर श्रीराम ने माता सीता का त्याग कर दिया था और उन्हें वन भेज दिया था। हालाँकि यह अर्ध सत्य है। राजधर्म का पालन करने हेतु अवश्य ही माता सीता वन में चली गई थी लेकिन राम ने सीता माता का परित्याग कभी नहीं किया था।

माता सीता के वन में जाने के बाद, उनका वाल्मीकि आश्रम में रहना, लव-कुश का जन्म देना, अश्व मेघ यज्ञ, राम सीता पुनः मिलन, लव कुश का रामकथा सुनाना व माता सीता का धरती में समाना के प्रसंग आते हैं। माता सीता के परित्याग के बाद वन में उनके जीवन व परिश्रम से लोग भलीभांति परिचित हैं लेकिन क्या आपने माता सीता के परित्याग के बाद भगवान राम का जीवन कैसे बीता (What Happened To Ram After Sita Left), यह जाना? आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे व इससे जो हम सभी को शिक्षा मिलती है वह भी जानेंगे।

माता सीता का परित्याग

सबसे पहले यह जान लें कि भगवान राम ने माता सीता का कभी त्याग नहीं किया था बल्कि वे तो सीता के लिए अपना राज सिंहासन तक छोड़ देना चाहते थे। साथ ही माता सीता पर ऊँगली उठाने वाला केवल एक धोबी नहीं बल्कि अयोध्या की अधिकांश प्रजा थी। धोबी की तो एक घटना हुई थी जिसके कारण भगवान राम को प्रजा के बीच जाना पड़ा व इससे उन्हें प्रजा का मत पता चला।

राम व सीता के अलग होने के पीछे समाज व आने वाली पीढ़ियों को एक संदेश देना था। कहते हैं ना स्वयं की प्रजा पर हथियार उठाने से अच्छा उनके गलत विचारों को ही काट दिया जाए तो वह एक उदाहरण बन जाता है। यही उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए माता सीता वन में गई व यही उदाहरण भगवान राम ने राजमहल में रहकर प्रस्तुत किया।

माता सीता का संदेश

प्रजा के द्वारा माता सीता पर कलंक लगाने के बाद रघुवंशी कुल की मर्यादा के लिए माता सीता ने स्वयं वन जाने का निर्णय लिया व अयोध्या की प्रजा को कुछ बुरा नहीं कहा। उन्होंने खुशी-खुशी महारानी होते हुए भी एक सन्यासी का जीवन चुना वह भी तब जब वे गर्भवती थी। उन्होंने अयोध्या की जनता को दिखा दिया कि एक स्त्री का सबसे बड़ा अस्त्र हिंसा नहीं बल्कि त्याग है व वह लोगों के शरीर को नहीं अपितु मन को काटती है।

राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं

श्रीराम माता सीता को वन भेजने के बिल्कुल विरुद्ध थे लेकिन सीता के हठ व संकल्प के आगे वे हार गए थे। सीता ने उन्हें अपनी प्रतिज्ञा दी थी व उनके जाने के बाद अश्रु ना बहाने को कहा था ताकि अयोध्या की प्रजा उन्हें कमजोर ना समझे। भगवान राम को माता सीता अपने प्राणों से भी ज्यादा प्रिय थी लेकिन माता सीता को दिए वचन के अनुसार उन्होंने कभी उनकी याद में आंसु नहीं बहाए हालाँकि उनका मन अंदर से हमेशा व्याकुल रहता था।

अयोध्या की प्रजा को संदेश

माता सीता के जाने के बाद भगवान श्रीराम ने अप्रत्यक्ष रूप से अयोध्या की जनता को कई संदेश दिए। प्रजा राजा की हर चीज़ देखती है व उसका अनुसरण करती है। जिस प्रजा ने भगवान राम के रावण के साथ युद्ध व माता सीता के रावण के महल में रहने तक को ध्यान में रखा व उसके कारण माता सीता के चरित्र पर प्रश्न उठाए, उस प्रजा को माता सीता का परित्याग व उसके बाद अपने राजा का जीवन कैसे ना दिखता।

अयोध्या की जनता प्रतिदिन अपने राजा को देख रही थी व पश्चाताप की अग्नि में जल रही थी। जाने कैसे:

#1. भगवान राम का भूमि पर सोना

माता सीता के त्याग के बाद भगवान राम ने अयोध्या के राजा होते हुए भी सब निजी सुखों को त्याग दिया था। अब वे माता सीता की तरह भूमि पर सोते थे। उन्होंने सब प्रकार के राजसी भोग व सुख सुविधाओं का त्याग कर दिया था। अपने राजा का इस तरह प्रतिदिन भूमि पर सोना व त्याग को अयोध्या की प्रजा प्रतिदिन देख रही थी।

#2. नहीं किया दूसरा विवाह

उस समय राजाओं के द्वारा अपनी पत्नी के साथ में होते हुए भी कई विवाह करने की परंपरा थी लेकिन भगवान राम ने माता सीता के त्याग के बाद भी कभी दूसरी स्त्री से विवाह का नहीं सोचा। लोग सोच रहे थे कि अब भगवान राम दूसरा विवाह करेंगे जिनसे उन्हें अयोध्या के अगले राजा मिलेंगे लेकिन राम ने ऐसा नहीं किया। इससे उन्होंने माता सीता को दिए अपने वचन का पालन किया।

#3. प्रजा के सामने हमेशा प्रसन्न

अयोध्या की प्रजा अपने राजा की दशा को भलीभांति जानती थी व उनसे दंड चाहती थी लेकिन भगवान राम ने कभी दंड देना तो दूर उन्हें भला बुरा भी नहीं कहा। उन्होंने प्रजा के सामने स्वयं को हमेशा बाहरी रूप से प्रसन्न व मजबूत रखा।

#4. राम राज्य की स्थापना

वे प्रतिदिन राज्य से जुड़े काम करते रहे, जनता के सुख दुःख सुनते रहे व सभी को न्याय देते रहे। उन्होंने अपने राज्य को ऐसे संभाला जिसका उदाहरण आज तक राम राज्य के रूप में दिया जाता है।

#5. नहीं तोड़ा सीता का संकल्प

भगवान राम प्रतिदिन माता सीता के वियोग में रहते थे व उन्हें सीता के गर्भवती होने का भी पता था। समय बीतता गया लेकिन उन्होंने सीता के संकल्प को बनाए रखने के लिए कभी भी उन्हें ढूंढने का प्रयत्न नहीं किया। वे केवल अपने मन में सीता की छवि से ही बात किया करते थे।

#6. अश्वमेघ यज्ञ के समय विवाह की बात का खंडन करना

माता सीता के जाने के बहुत समय पश्चात भगवान श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ करवाने का निर्णय किया जिसमें राजा की पत्नी का साथ में बैठना आवश्यक था। इसलिए पूरी अयोध्या में भगवान राम के पुनः विवाह करने की बात फैल गई। जब भगवान राम को इस बात का पता चला तो उन्होंने विवाह का सबके सामने खंडन कर दिया व यज्ञ में माता सीता की मूर्ति बनवाकर अपने साथ रखी।

#7. लव कुश की रामायण कथा

भगवान राम को सबकुछ ज्ञात होने के बाद भी उन्होंने लव कुश को राम दरबार में वाल्मीकि जी के द्वारा लिखी गई रामायण सुनाने की अनुमति दी थी। लव कुश ने पूरी अयोध्या के सामने भगवान राम के जन्म से लेकर पूरी रामायण को गीत के माध्यम से सबको सुनाया। अयोध्या के लोग माता सीता के त्याग व वन जाने के बाद उनका जीवन नहीं जानते थे। इसलिए लव कुश ने अयोध्या की प्रजा के द्वारा किए गए पाप व उनके द्वारा माता सीता व भगवान राम को मिले दुःख को सबके सामने रख दिया।

इसलिए राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं, बल्कि प्रजा को उनकी गलती का अनुभव कराने व इससे आगे आने वाली पीढ़ियों को संदेश देने के लिए दोनों ने अपना सर्वस्व दिया व एक-दूसरे का जीवन पर्यंत तक वियोग सहा।

सीता परित्याग से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: क्या राम ने सीता का त्याग किया था?

उत्तर: हाँ भी और नहीं भी क्योंकि श्रीराम माता सीता का त्याग नहीं करना चाहते थे लेकिन माता सीता ने उन्हें राजधर्म का पाठ पढ़ाकर अपना त्याग करने को विवश किया था

प्रश्न: राम ने सीता को क्यों स्वीकार नहीं किया?

उत्तर: श्रीराम ने माता सीता को हमेशा स्वीकार किया उन्होंने केवल राजधर्म का पालन करने हेतु सीता को प्रजा के सामने स्वीकार करने से मना कर दिया था

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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