आज हम आपके सामने रामायण के एक प्रमुख पात्र शबरी का जीवन परिचय (Shabari Story In Hindi) रखने जा रहे हैं। रामायण में जब भगवान श्रीराम माता सीता को ढूंढते हुए आगे निकलते हैं तब उनकी भेंट माता शबरी से होती है। शबरी तो जीवनभर इसी पल की ही प्रतीक्षा कर रही होती है कि मेरे राम आएँगे, मेरे राम आएँगे। फिर एक दिन श्रीराम उनकी झोपड़ी के बाहर आकर खड़े हो जाते हैं।
हालाँकि यहाँ जो मुख्य प्रश्न उठता है, वह यह है कि शबरी कौन थी (Sabari Kaun Thi) व क्यों वह जीवनभर श्रीराम के आने की प्रतीक्षा करती रही। साथ ही श्रीराम को माता शबरी से क्या काम था जो वे उनसे मिलने उनकी झोपड़ी तक चले गए थे। आज के इस लेख में हम आपको माता शबरी के जीवन के बारे में हर जानकारी देने जा रहे हैं।
रामायण का हरेक प्रसंग अद्भुत शिक्षा देकर जाता है। इसी में एक प्रसंग शबरी और राम के मिलन का भी है। इसे देखकर हर व्यक्ति की आँखें नम हो जाती हैं। शबरी की श्रीराम के प्रति जो निश्छल भक्ति थी, उसके सामने तो श्रीहरि भी नतमस्तक हो गए थे। हम भगवान को कभी झूठे भोजन का भोग नहीं लगाते हैं लेकिन शबरी की भक्ति देखकर भगवान ने उसके झूठे बेर भी खा लिए थे।
आज हम आपको शबरी के जीवन से जुड़े अनकहे व प्रचलित सभी पहलुओं से अवगत करवाने वाले हैं। जैसे कि शबरी का विवाह, शबरी के गुरु का नाम, राम शबरी संवाद इत्यादि। आइए जाने माता शबरी की कथा।
शबरी एक भील जाति से थी जिसका बचपन का नाम श्रवणा था। उसकी जाति में किसी शुभ कार्य या आयोजनों पर पशुओं की बलि दी जाती थी जैसे कि बकरा, भैंस इत्यादि। शबरी को यह सब पसंद नहीं था। उसे पशु-पक्षियों से प्रेम था तो वह इन सबके विरुद्ध थी। साथ ही वह हमेशा भगवान की भक्ति में मग्न रहती थी व पूजा पाठ करती थी। उसके अंदर धर्म को और भी अच्छे से जानने की जिज्ञासा थी ताकि उसका आत्म ज्ञान हो सके।
एक दिन शबरी के घरवालों ने उसका विवाह तय कर दिया व उस दिन पशुओं की बलि दी जानी थी। शबरी ने सोचा कि यदि वह घर से ही भाग जाए तो पशु बच जाएंगे। यह सोचकर एक दिन वह अवसर पाकर अपना घर छोड़कर चली गई व कभी वापस नहीं आई।
वह जंगलों में कई दिनों तक भटकी व अंत में उसे ऋषि मतंग का आश्रम दिखाई पड़ा। वह अंदर जाने से हिचकिचा रही थी तो स्वयं ऋषि ने बाहर आकर उसके बारे में पूछा। शबरी ने ऋषि मतंग को अपना परिचय दिया व धर्म के प्रति अपनी जिज्ञासा प्रकट की। ऋषि मतंग शबरी की सच्ची भक्ति व निष्ठा देखकर प्रसन्न हो गए व उन्हें अपने आश्रम में स्थान दिया।
शबरी ने ऋषि मतंग को अपना गुरु मान लिया था व उनके आश्रम में रहने लगी थी। वह दिन भर आश्रम के सारे काम करती व गुरु से शिक्षा लेती थी। उसके भक्ति भाव को देखकर सभी प्रसन्न थे। कुछ ही दिनों में वह गुरु की भी प्रिय शिष्य बन गई थी। इसी तरह समय बीतता गया व उनके गुरु का अंत समय आ गया। अपने अंत समय में ऋषि मतंग ने शबरी को बुलाया व उससे भेंट की।
चूँकि शबरी की जिज्ञासा अभी शांत नहीं हुई थी। वह अपने गुरु की भाँति धर्म का गूढ़ ज्ञान जानना चाहती थी इसलिए उसने अपने गुरु से इसकी प्रार्थना की। ऋषि मतंग भी शबरी के भक्तिभाव से प्रसन्न थे। उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया कि एक दिन भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम तुम्हारी कुटिया में आएंगे व तुम्हें संपूर्ण ज्ञान देंगे। यह कहकर ऋषि ने हमेशा के लिए समाधि ले ली।
अपने गुरु के कहे वचनों के अनुसार शबरी अब दिन भर भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा करती। वह सुबह से शाम भगवान श्रीराम के नाम का जाप करती, अपनी कुटिया के मार्ग में आने वाले पत्थरों व कंकड़ों को हटाती, उद्यान से पुष्प तोड़कर उसे कुटिया के आने वाले मार्ग पर सजाती व प्रभु के लिए कंद मूल व बेर भी तोड़कर लाती। शबरी तो भगवान की भक्ति में इतना डूब गई थी कि कहीं श्रीराम को दिया जाने वाला एक भी बेर खट्टा या कड़वा ना निकले, इसलिए वह हर बेर को थोड़ा सा चखकर देखती व मीठे बेर ही रखती और खट्टे बेर फेंक देती।
इसी प्रकार भगवान राम की प्रतीक्षा में शबरी बूढ़ी हो गई लेकिन उसका भक्तिभाव कम नहीं हुआ। अभी भी वह एक लकड़ी के डंडे के सहारे चलती व सब काम करती व प्रभु के आने की प्रतीक्षा करती।
एक दिन भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता की खोज में शबरी की कुटिया में आ पहुँचे। अपने सामने स्वयं भगवान श्रीराम को देखकर शबरी की खुशी आँसुओं में बहने लगी। उसने प्रभु के चरणों को अपने आँसुओं से ही धो दिया। भगवान भी उसकी भक्ति को देखकर भाव विभोर हो उठे।
वे अपने भाई लक्ष्मण के साथ शबरी की कुटिया में गए व आसन ग्रहण किया। जब शबरी ने उन्हें खाने के लिए बेर दिए तो लक्ष्मण ने तो विस्मय किया लेकिन प्रभु ने वे बेर अत्यंत प्रसन्न होकर खाए। अपने भक्त की ऐसी भक्ति देखकर प्रभु का मन भी बहुत आनंदित हो रहा था।
इसके बाद शबरी ने प्रभु श्रीराम को माता सीता की खोज में सहायता के लिए किष्किंधा के राजा बालि के भाई सुग्रीव का पता बताया व हनुमान का भी वर्णन किया। शबरी की सहायता व उसके मार्गदर्शन से ही भगवान श्रीराम व लक्ष्मण सुग्रीव को ढूंढने में सफल हो पाए।
इसके बाद शबरी उन्हें अपने गुरु की समाधि स्थल पर ले गई व उन्हें सब बात बताई। उसने भगवान श्रीराम से उन्हें धर्म का संपूर्ण ज्ञान व मोक्ष प्राप्ति की प्रार्थना की। भगवान ने भी शबरी की याचना को स्वीकार किया व उसे हृदय से ही धर्म का संपूर्ण ज्ञान दिया। स्वयं प्रभु से धर्म ज्ञान को पाकर शबरी की आत्मा तृप्त हो गई। उसे जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल गई। उसी समय शबरी की आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो गया।
इस तरह से आज आपने माता शबरी का जीवन परिचय (Shabari Story In Hindi) जान लिया है। माता शबरी की कथा हमें प्रतीक्षा के साथ-साथ धैर्य का महत्व भी सिखाकर जाती है। आज के समय में व्यक्ति को माता शबरी से बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है।
शबरी माता से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: शबरी पूर्व जन्म में कौन थी?
उत्तर: मान्यताओं के अनुसार शबरी माता पूर्व जन्म में देवराज इंद्र के दरबार में एक अप्सरा हुआ करती थी। उनका अगला जन्म शबरी के रूप में हुआ जिसके बाद उन्हें मोक्ष प्राप्त हो गया।
प्रश्न: शबरी की कहानी क्या है?
उत्तर: शबरी की कहानी श्रीराम की प्रतीक्षा करने से शुरू हुई थी और श्रीराम के द्वारा मोक्ष प्राप्त करने से समाप्त हो गई थी। इस लेख में हमने शबरी की कहानी को विस्तार से बताया है।
प्रश्न: शबरी कहाँ रहती थी?
उत्तर: शबरी महर्षि मतंग के आश्रम में रहा करती थी। यह आश्रम छत्तीसगढ के शिवरीनारायण में स्थित है।
प्रश्न: सबरी कौन जाति की थी?
उत्तर: माता सबरी भील जाति से आती थी। महर्षि मतंग ने उन्हें अपना शिष्य बनाया था तो वहीं श्रीराम ने नवधा भक्ति दी थी।
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