भगवान राम ने शबरी को क्या नवधा भक्ति दी

Navdha Bhakti in Hindi

शबरी भगवान श्रीराम की अनन्य भक्त व मतंग ऋषि की शिष्य थी (Navdha bhakti in Hindi)। जब भगवान श्रीराम अपने 14 वर्षों के वनवास में चित्रकूट पहुंचे थे तो उसी समय ऋषि मतंग ने समाधि ले ली थी व अपने लोक को चले गये थे (Navdha Ramayan bhakti)। जाने से पहले उन्होंने अपनी शिष्य शबरी की ईश्वर भक्ति से प्रसन्न होकर उससे कहा था कि एक दिन भगवान विष्णु के रूप श्रीराम स्वयं तुम्हारी कुटिया में आयेंगे व तुम्हारा उद्धार करेंगे (Navdha Ramayan)।

तब से लेकर शबरी प्रतिदिन भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा करती व उनके लिए अपनी कुटिया को सजाती (Ramayan Sabri Charitra)। उसके अंदर अपने गुरु की भांति धर्म का संपूर्ण ज्ञान पाकर मोक्ष प्राप्ति की इच्छा थी। एक दिन जब भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए माता शबरी की कुटिया में पहुंचे तो शबरी ने उनका आतिथ्य सत्कार किया (Navdha bhakti katha)।

भगवान राम भी शबरी की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न थे। अंत में जब भगवान राम जाने लगे तब शबरी ने अपने गुरु की बात उन्हें बताई व ज्ञान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की। तब प्रभु श्रीराम ने उन्हें मूक भाषा में हृदय से हृदय तक नवधा भक्ति का ज्ञान दिया। आइये जाने वह नवधा भक्ति क्या थी (Navdha bhakti in Ramayan in Hindi)।

भगवान श्रीराम के द्वारा शबरी को दी गयी नवधा भक्ति/ ज्ञान (Shabri Navdha bhakti Ramayan)

#1. हमेशा संतो, ऋषि मुनियों के आचरण में रहो व उनसे शिक्षा प्राप्त करो।

#2. ईश्वर पर विश्वास करके उनकी कथाओं के द्वारा शिक्षा लो व उनके बताये मार्ग पर चलो।

#3. बिना किसी स्वार्थ भावना के हमेशा अपने गुरु की सेवा व आदर करो।

#4. प्रभु का हमेशा ध्यान करो व उनकी स्तुति करो। उस समय मन में किसी भी प्रकार की कपट छल की भावना को मत आने दो।

#5. भगवान के नाम को शक्तिशाली मंत्रों के साथ जाप करो व शरीर को शुद्ध करो। उसके लिए वेदों व शास्त्रों का अध्ययन करो व उनसे मिली शिक्षा व जीवन पद्दति को अपने जीवन में अपनाओं।

#6. स्वयं का आत्म मंथन करो व सांसारिक भौतिक वस्तुओं के मोह में ना पड़कर सामाजिक कल्याण के कार्य करो। स्वयं का आत्म-विकास करो व उन्नति के मार्ग पर बढ़ो।

#7. सातवीं भक्ति में भगवान ने गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर बताया व कहा कि उनके द्वारा ही हमें भगवान, भक्ति, वेद इत्यादि का ज्ञान होता है। इसलिये गुरु का स्थान सबसे ऊँचा माना जाता है।

#8. हमेशा स्वयं में संतोष भावना रखो व अधिक पाने की लालसा मत रखो। दूसरों में दोष देखने की बजाये स्वयं का उद्धार करो।

#9. हमेशा स्वयं के मन को सरल बनाओं व किसी के साथ छल मत करो। हमेशा धर्म के मार्ग पर चलो व भगवान पर विश्वास रखो।

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

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