शबरी का प्रेम व श्रीराम का संदेश हम सभी को देता हैं एक अद्भुत शिक्षा

Ram Aur Sabri Ka Milan

प्रातःकाल का समय था, रामभक्ति में डूबी शबरी प्रतिदिन की भांति रास्ते में पुष्प बिछा रही थी। उसका मानना था कि (Shabari Ramayana Story In Hindi) एक दिन श्रीराम इसी रास्ते से उसकी कुटिया में आएंगे। उस अभागी को क्या पता था कि अब उसकी प्रतीक्षा समाप्त होने को आयी है। वह अपनी बूढ़ी हो चुकी आँखों से भी चुन-चुनकर पुष्प बिछा रही थी और रास्ते से कंकड़-पत्थर हटा ही रही थी कि सामने दो वनवासी आकर खड़े हो गए।

अभी कुछ देर पहले ही गाँव के कुछ लोग बेचारी की भक्ति को पागलपन बताकर उसका उपहास करके गए थे व बोले थे कि “माई, नही आने वाले तेरे श्रीराम, और आएंगे भी तो तेरी फटेहाल कुटिया में क्यों आएंगे। गाँव में अन्य बहुत बड़े-बड़े घर व महल हैं, वे तो वहां रुकेंगे ना।”

बेचारी ने सोचा वापस वही लोग तंग करने और उसका उपहास करने आ गए हैं। बूढ़ी हो चुकी शबरी उन वनवासियों को पहचान भी नही पायी (Sabri And Ram Story In Hindi) कि सामने आखिर खड़ा कौन है। खिन्न होकर बोली “यहाँ से हट जाओ, मेरे राम यही से आएंगे। तुम रोज-रोज आकर मेरे पुष्पों पर पैर मत रखा करो, बहुत मुश्किल से चुने हैं मैंने यह कोमल पुष्प ताकि मेरे श्रीराम को कोई कठिनाई ना हो।”

दोनों वनवासी उस भोली बुढियां की बात सुन ही रहे थे (Shri Ram Aur Sabri Ka Milan) कि तभी एक वनवासी प्रसन्न होकर बोला, “माँ, तुम्हारी प्रतीक्षा समाप्त हो गयी, तुम्हारा राम आ गया। मैं ही राम हूँ और ये मेरा अनुज लक्ष्मण। कैसी हो आप माँ? कौन तंग कर रहा था आपको? आप ठीक तो हो ना? हमे अपनी कुटिया में नही ले चलोगी।”

यह सुनना ही था कि शबरी सबकुछ भूल गयी। बेचारी इतने वर्षों से जिनकी प्रतीक्षा कर रही थी, पुष्प बिछा रही थी, कंकड़-पत्थर चुन-चुनकर हटा रही थी, आज वे स्वयं आए तो उन्हें ही नही पहचान पायी। प्रभु को सामने देखकर भी ना पहचान पाने से बेचारी को इतनी आत्म-ग्लानि अनुभव हुई कि प्रभु चरणों में गिर पड़ी और धो डाले आंसुओं से नारायण के पैर (Ramayan Shiksha Shabri Ram Story)। शबरी लगातार रोये जा रही थी और आंसू टप-टप करके प्रभु चरणों में गिर रहे थे। श्रीराम ने भी उन्हें हटाया नही, आखिर प्रेम के यह आंसू और कहा से मिलते उन्हें, स्वयं क्षीर सागर भी धन्य हो गया होगा इन्हें पाकर।

प्रभु बोले माँ हम बहुत थक गए हैं, अपनी कुटिया में लेकर नही चलोगी। यह सुन एकदम से खड़ी हो गयी वह और हाथ पकड़कर ले गयी अंदर कुटिया में। अंदर गए तो दोनों को जल्दी से आसन पर बिठाया फिर पूछा, प्रभु बहुत दूर से आए हो, अवश्य भूख लगी होगी। इतना कहकर लंगडाती हुई अपनी कुटिया के भीतर गयी और ले आयी अपने झूठे बेर (Shabri Ke Ber Story In Hindi)। प्रतिदिन प्रभु के लिए बाग से ताजा बेर तोड़कर लाती और कही प्रभु को खट्टे ना लगे, इसलिये थोड़ा सा चखकर भी देख लेती थी। खट्टे होते तो फेंक देती और जो मीठे होते वही टोकरी में टिक पाते।

बड़े ही भक्तिभाव व भोलेपन से प्रभु के सामने झूठे बेर (Shabri Ke Jhuthe Ber) लाकर रख दिए। कोई और सोच भी नही सकता था कि भगवान को झूठा भोग लगाया जाए। लक्ष्मण ने जब यह देखा तो प्रभु का अपमान महसूस किया लेकिन यह क्या, श्रीराम तो खुशी से एक-एक बेर उठाकर खाने लगे जैसे कि बहुत भूखे हो।

प्रभु बेर खा रहे थे, शबरी उन्हें देखे जा रही थी और बेचारे लक्ष्मण अचंभित थे। बीच में शबरी ने पूछ ही लिया, प्रभु बेर मीठे तो हैं ना, मैंने एक-एक चखकर देखे हैं ताकि आपको खट्टे ना लगे (Shabri Ka Shri Ram Ke Prati Prem)। श्रीराम ने भी तपाक से बोल दिया कि माँ, इतने मीठे बेर तो वैकुंठ में भी ना मिले। बस शबरी को और क्या चाहिए थे, बरसो का परिश्रम रंग जो लाया था।

लक्ष्मण अभी भी अचंभित ही था, सोच रहे थे कि जिनको भक्त अपने खाने से पहले उन्हें भोग लगाते हैं व फिर प्रसाद रूप में खाते हैं, आज वही एक नादान महिला के झूठे बेर क्यों खा रहे हैं लेकिन वे क्या जानते थे कि प्रभु ने शबरी के झूठे बेर खाकर क्या संदेश दे दिया। प्रभु के लिए सच्चा-झूठा भक्त की दी वस्तु से नही बल्कि उसके मन से महत्व रखती हैं। दूसरो का छीना हुआ, कपट से कमाया या अधर्म के पैसो का छप्पन भोग भी भगवान को लगा दो तो वह शबरी के झूठे बेर के आगे फीके ही रहेंगे।

अरे यह तो नारायण हैं जो शबरी के झूठे बेर खाकर भी खुश हो जाते हैं तो वही दूसरी ओर, भक्त सुदामा के दिये आधे चावल के दाने से ही उनका पेट भर जाता है।

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

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