आरती

एकादशी माता की आरती (Ekadashi Mata Ki Aarti)

एकादशी आरती का पाठ (Ekadashi Aarti) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

एक वर्ष में कुल 24 बार एकादशी आती है जिसमें से 12 एकादशी कृष्ण पक्ष में आती है तो 12 एकादशी शुक्ल पक्ष में। वहीं जिस वर्ष में अधिक मास लग जाता है, तो उस वर्ष 24 की बजाये 26 एकादशी हो जाती है। इसके साथ ही हर एकादशी में व्रत रखने की भी परंपरा होती है और इन 24 में से कुछ एक एकादशी का अत्यधिक महत्व होता है। उस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और साथ ही श्रीहरि व माँ लक्ष्मी के सामने एकादशी आरती का पाठ (Ekadashi Aarti) किया जाता है।

आज के इस लेख में हम आपके साथ एकादशी की आरती (Ekadashi Ki Aarti) ही करने जा रहे हैं। इसी के साथ ही हम आपको एकादशी माता की आरती अर्थ सहित (Ekadashi Mata Ki Aarti) भी समझायेंगे ताकि आप उसका भावार्थ समझ सकें। एकादशी व्रत की आरती को ग्यारस की आरती भी कह दिया जाता है। अंत में आपको एकादशी आरती के लाभ व महत्व भी जानने को मिलेंगे। आइये सबसे पहले पढ़ते हैं एकादशी मैया की आरती।

एकादशी आरती (Ekadashi Aarti)

ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥ॐ॥

तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥ॐ॥

मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥ॐ॥

पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनंद अधिक रहै॥ॐ॥

नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥ॐ॥

विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥ॐ॥

चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥ॐ॥

शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी, अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥ॐ॥

योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥ॐ॥

कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा, आनंद से रहिए॥ॐ॥

अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥ॐ॥

पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥ॐ॥

देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं, विनती पार करो नैया॥ॐ॥

परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी, दुःख दारिद्र हरनी॥ॐ॥

जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥ॐ॥

एकादशी की आरती (Ekadashi Ki Aarti) – अर्थ सहित

ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥ॐ॥

एकादशी माता की जय हो, जय हो जय हो। हम सभी भगवान विष्णु के नाम का व्रत कर उनकी पूजा करते हैं। एकादशी का व्रत रखने से हमें शक्ति व मुक्ति मिलती है जिससे हमारा उद्धार हो जाता है।

तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥ॐ॥

अब मैं हर माह के अनुसार एकादशी माता के विभिन्न नाम गिनाने जा रहा हूँ। इसलिए हे एकादशी माता!! आप मुझे अपनी भक्ति प्रदान कीजिये। आप ही हमें सभी तरह के गण व गौरव प्रदान करती हैं और आपका वर्णन शास्त्र भी करते हैं।

मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥ॐ॥

एकादशी माता की उत्पत्ति मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष में हुई थी और उन्होंने इस विश्व का उद्धार करने के लिए जन्म लिया था। इस कारण मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी में उनका नाम उत्पन्ना पड़ गया।मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष में एकादशी माता को मोक्षदा के नाम से जाना गया अर्थात जो हमें मोक्ष प्रदान करती हैं।

पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनंद अधिक रहै॥ॐ॥

पौष मास के कृष्ण पक्ष में एकादशी माता को सफला नाम दिया गया अर्थात जो हमारे सभी कार्यों को बना देती हैं। पौष मास के ही शुक्ल पक्ष में उनका नाम पुत्रदा पड़ा अर्थात जो हमें पुत्र प्राप्ति का वरदान देती हैं। इस मास में एकादशी माता हमारे मन को आनंद प्रदान करती हैं।

नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥ॐ॥

माघ मास के कृष्ण पक्ष में उनका नाम षटतिला पड़ा अर्थात जो हमारे ग्रहों के दोष को दूर कर देती हैं। माघ मास के ही शुक्ल पक्ष में उन्हें जया नाम दिया गया जो हर युद्ध, कार्य व चुनौती में हमें विजय दिलवाने का कार्य करती हैं।

विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥ॐ॥

फागुन मास के शुक्ल पक्ष में उन्हें आमलकी के नाम से जाना गया और उस दिन हम सभी आमलकी एकादशी का पावन पर्व भी मनाते हैं। इस दिन आंवले की पूजा की जाती है जो मोक्ष का परिचायक है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में उन्हें विजया के नाम से जाना जाता है अर्थात जो हमारी विजय की सूत्रधार होती हैं।

चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥ॐ॥

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में उन्हें कामदा के नाम से जाना जाता है जो हमारे कार्य बना देती हैं और हमें धन प्रदान करती हैं। वहीं चैत्र मास के ही कृष्ण पक्ष में उन्हें पापमोचनी के नाम से जाना जाता है जो हमारे हर तरह के पाप का अंत कर देती हैं।

शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी, अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥ॐ॥

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में उन्हें मोहिनी के नाम से जाना जाता है जो हमारे मन को मोह लेती हैं। वैशाख मास के ही कृष्ण पक्ष में उन्हें वरूथिनी के नाम से जाना जाता है जो हर विपत्ति में कवच रूप में हमारी रक्षा करती हैं।

इसके बाद आने वाले ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में उन्हें निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी में सबसे बड़ा व्रत होता है जिस दिन जल का भी त्याग कर देना होता है। ज्येष्ठ मास के ही कृष्ण पक्ष में उन्हें अचला के नाम से जाना जाता है जो पृथ्वी का परिचायक है।

योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥ॐ॥

इसके बाद आने वाले आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में उन्हें देवशयनी के नाम से जाना जाता है जिस दिन देवता सो जाते हैं। आषाढ़ मास के ही कृष्ण पक्ष में उन्हें योगिनी के नाम से जाना जाता है जो योग साधना में लीन रहती हैं।

कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा, आनंद से रहिए॥ॐ॥

फिर शिव भगवान का महिना श्रावण आ जाता है जिसके शुक्ल पक्ष में एकादशी माता का नाम कमला माता हो जाता है जो धन की देवी लक्ष्मी माता का ही प्रतीक हैं। श्रावण मास के ही कृष्ण पक्ष में उन्हें कामिका के नाम से जाना जाता है जो हमारे कामों को बना देने वाली होती हैं।

अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥ॐ॥

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में उन्हें परिवर्तिनी या जलझूलनी के नाम से जाना जाता है। इस दिन देशभर में डोल ग्यारस का पर्व भी आयोजित किया जाता है। भाद्रपद मास के ही कृष्ण पक्ष में उन्हें अजा के नाम से जाना जाता है जो प्रकृति की शक्ति का प्रतीक हैं।

पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥ॐ॥

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में उन्हें पापांकुशा के नाम से जाना जाता है जो इस सृष्टि में पाप पर अंकुश लगाने का कार्य करती हैं। वहीं आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में उन्हें एकादशी श्राद्ध के नाम से जाना जाता है जो पितरों को याद करने का पर्व होता है।

देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं, विनती पार करो नैया॥ॐ॥

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में उन्हें देवोत्थानी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन हम सभी देवताओं के पुनः उठने पर देवउठनी एकादशी का पर्व मनाते हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में उन्हें रमा के नाम से जाना जाता है जो भाग्य की देवी मानी जाती हैं।

एकादशी माता हमारे दुखों का नाश कर देती हैं। हम सभी इस पावन महीने में उनके नाम की आरती करते हैं और उनसे भवसागर पार करवा देने की प्रार्थना करते हैं।

परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी, दुःख दारिद्र हरनी॥ॐ॥

अधिक मास के शुक्ल पक्ष में उन्हें पद्मिनी के नाम से जाना जाता है जो कई वर्षों में आता है। पद्मिनी एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण होती है और इस दिन वे हमारे सभी तरह के दुखों व दरिद्रता को दूर कर देती हैं। वहीं अधिक मास के कृष्ण पक्ष में उन्हें परमा के नाम से जाना जाता है जो हमें परम आनंद की अनुभूति करवाती हैं।

जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥ॐ॥

जो कोई भी सच्चे मन के साथ एकादशी आरती का पाठ करता है और एकादशी माता के प्रति भक्ति का भाव रखता है, उसके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं और उसकी हर तरह की मनोकामना पूरी हो जाती है।

एकादशी माता की आरती (Ekadashi Mata Ki Aarti) – महत्व

जब भी किसी देवता या माता की आरती की जाती है तो उस आरती के माध्यम से उनके गुणों व शक्तियों का भी वर्णन कर दिया जाता है और उसी के साथ ही उनकी आराधना भी हो जाती है। तो वैसा ही कुछ इस एकादशी माता की आरती के साथ देखने को मिलता है। अब एकादशी का व्रत तो भगवान विष्णु के नाम से किया जाता है लेकिन आरती के रूप में माता लक्ष्मी को महत्व दिया जाता है या फिर श्रीहरि के साथ उनकी आरती की जाती है।

ऐसे में एकादशी आरती है तो माता लक्ष्मी को समर्पित किन्तु इसमें उनकी पूजा श्रीहरि के साथ ही की जाती है। अब दोनों की सम्मिलित आरती करते हुए उनकी आराधना करने को ही इस एकादशी की आरती के माध्यम से दिखाया गया है। यही एकादशी माता की आरती का महत्व होता है।

ग्यारस की आरती (Gyaras Ki Aarti) – लाभ

अब यदि आप प्रतिदिन या फिर हर ग्यारस को सच्चे मन के साथ ग्यारस की आरती करते हैं और एकादशी माता व विष्णु भगवान की पूजा करते हैं तो आपको एक नहीं बल्कि कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं। लक्ष्मी माता के प्रसन्न होने से आपके घर में कभी भी धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है और वहीं यदि श्रीहरि भी आपसे प्रसन्न हो जाते हैं तो इसी जीवन में ही आपका उद्धार संभव हो जाता है।

श्रीहरि की कृपा से आपको अपने जीवन में संतोष की प्राप्ति होती है, परम ज्ञान मिलता है तथा सभी तरह की स्वास्थ्य व मानसिक संबंधित समस्याएं व विकार दूर हो जाते हैं। आप अच्छे से अपना जीवनयापन करते हैं और मृत्यु के पश्चात आपको वैकुण्ठ धाम में स्थान मिलता है जिसे मोक्ष प्राप्ति कहा जाता है। यही एकादशी आरती के मुख्य लाभ होते हैं।

एकादशी आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: कौन सी एकादशी बहुत महत्वपूर्ण है?

उत्तर: वर्ष की दो एकादशी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होती है जिसमें से एक निर्जला एकादशी है तो दूसरी पद्मिनी एकादशी। पद्मिनी एकादशी अधिक मास में आती है जो बहुत कम देखने को मिलती है।

प्रश्न: एकादशी के व्रत में क्या खा सकते हैं?

उत्तर: यह व्यक्ति के परिवार, समाज, कुल और उसमें बनायी गयी नीतियों पर निर्भर करता है क्योंकि कोई तो बिना कुछ खाए एकादशी का व्रत रखते हैं तो कोई इसमें फल खा लेते हैं।

प्रश्न: एकादशी की पूजा क्यों की जाती है?

उत्तर: एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि व माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन दोनों की सम्मिलित पूजा किये जाने से हमें कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं।

प्रश्न: एकादशी के व्रत में चाय पी सकते हैं क्या?

उत्तर: जी हां, आप एकादशी के व्रत में चाय या दूध का सेवन बिना किसी रोकटोक के कर सकते हैं और इसकी कोई मनाही नहीं है।

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कृष्णा

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