माता लक्ष्मी को धन व वैभव की देवी माना जाता है। उनकी निरंतर पूजा करने से मनुष्य को धन-संपत्ति की कभी कोई कमी नहीं रहती है लेकिन इसी के साथ ही मनुष्य के अंदर विद्या व बुद्धि का होना भी आवश्यक है अन्यथा माँ लक्ष्मी ज्यादा दिन तक वहां टिकती नहीं हैं। अब यदि आपको माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करना है तो आपको प्रतिदिन लक्ष्मी चालीसा (Laxmi Chalisa) का पाठ करना चाहिए। आज के इस लेख में हम आपके साथ माँ लक्ष्मी चालीसा का पाठ (Lakshmi Chalisa) करने जा रहे हैं।
साथ ही इस लेख के माध्यम से आपको लक्ष्मी चालीसा इन हिंदी (Laxmi Chalisa In Hindi) में भी पढ़ने को मिलेगी ताकि आप उसका संपूर्ण अर्थ व महत्व जान सकें। यदि श्री लक्ष्मी चालीसा को पढ़ने के साथ-साथ उसका हिंदी अर्थ भी जान लिया जाए तो यह आपके लिए अत्यधिक हितकारी सिद्ध होगा। अंत में आपको लक्ष्मी माता की चालीसा को पढ़ने के लाभ भी जानने को मिलेंगे, आइये पढ़ें माता लक्ष्मी चालीसा।
लक्ष्मी चालीसा (Laxmi Chalisa)
।। दोहा ।।
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध करि, पुरवहु मेरी आस।।
।। सोरठा ।।
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननी जगदम्बिका।।
।। चौपाई ।।
सिन्धु सुता मैं सुमिरों तोही, ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोही।
तुम समान नहीं कोई उपकारी, सब विधि पुरवहु आस हमारी।
जय जय जय जननी जगदंबा, सबकी तुम ही हो अवलम्बा।
तुम हो सब घट घट के वासी, विनती यही हमारी खासी।
जग जननी जय सिन्धु कुमारी, दीनन के तुम हो हितकारी।
बिनवों नित्य तुमहिं महारानी, कृपा करो जगजननि भवानी।
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी, सुधि लीजै अपराध बिसारी।
कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी, जग जननी विनती सुन मोरी।
ज्ञान बुद्धि सब सुख की दाता, संकट हरो हमारो जय लक्ष्मी माता।
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो, चौदह रत्न सिन्धु में पायो।
चौदह रत्न में तुम सुखरासी, सेवा कियो प्रभु बन दासी।
जो जो जन्म जहां प्रभु लीन्हा, रुप बदल तहं सेवा कीन्हा।
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा, लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा।
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं, सेवा कियो हृदय पुलकाहीं।
अपनायो तोहि अन्तर्यामी, विश्व विदित त्रिभुवन के स्वामी।
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी, कहं लौ महिमा कहौं बखानी।
मन क्रम वचन करै सेवकाई, मन इच्छित वाँछित फल पाई।
तजि छल कपट और चतुराई, पूजहिं विविध भाँति मन लाई।
और हाल मैं कहौं बुझाई, जो यह पाठ करै मन लाई।
ताको कोई कष्ट न होई, मन इच्छित पावै फल सोई।
त्राहि-त्राहि जय दुःख निवारिणी, ताप भव बंधन हारिणी।
जो यह पढ़ै और पढ़ावै, ध्यान लगाकर सुनै सुनावै।
ताको कोई न रोग सतावै, पुत्र आदि धन सम्पति पावै।
पुत्रहीन अरु सम्पति हीना, अन्ध वधिर कोढ़ी अति दीना।
विप्र बोलाय के पाठ करावै, शंका दिल में कभी न लावै।
पाठ करावें दिन चालीसा, तापर कृपा करें गौरीशा।
सुख सम्पति बहुत सो पावै, कमी नहीं काहु की आवै।
बारह मास करै जो पूजा, तेहि सम धन्य और नहिं दूजा।
प्रतिदिन पाठ करै मन माही, उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं।
बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई, लेय परीक्षा ध्यान लगाई।
करि विश्वास करै व्रत नेमा, होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा।
जय जय जय लक्ष्मी भवानी, सब में व्यापित हो गुणखानी।
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं, तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं।
मोहिं अनाथ की सुध अब लीजै, संकट काटि भक्ति मोहि दीजै।
भूल चूक करि क्षमा हमारी, दर्शन दीजै दशा निहारी।
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी, तुमहि अछत दुःख सहते भारी।
नहिं मोहि ज्ञान बुद्धि है मन में, सब जानत हो अपने मन में।
रुप चतुर्भुज करके धारण, कष्ट मोर अब करहु निवारण।
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई, ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई।
।। दोहा ।।
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो बेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो दुश्मन का नाश।।
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पै, करहु दया की कोर।।
लक्ष्मी चालीसा इन हिंदी (Laxmi Chalisa In Hindi)
।। दोहा ।।
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध करि, पुरवहु मेरी आस।।
हे माँ लक्ष्मी, आप मेरे हृदय में वास कर मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि रखें। आप मेरी सभी मनोकामनाओं को पूरा कीजिये। मेरी आपसे यही विनती है कि आप मेरा कल्याण कीजिये।
।। सोरठा ।।
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननी जगदम्बिका।।
मैं आपके सामने हाथ जोड़कर विनती करता हूँ कि आप मेरे घर में वास कीजिये। हे माँ जननी और जगत का पालन करने वाली माँ!! आपकी जय हो।
।। चौपाई ।।
सिन्धु सुता मैं सुमिरों तोही, ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोही।
तुम समान नहीं कोई उपकारी, सब विधि पुरवहु आस हमारी।
जय जय जय जननी जगदंबा, सबकी तुम ही हो अवलम्बा।
तुम हो सब घट घट के वासी, विनती यही हमारी खासी।
हे सागर की पुत्री!! मैं आपका ही ध्यान करता हूँ। आप मुझे ज्ञान व बुद्धि प्रदान कीजिये। आपके जैसा कोई भी दयावान व उपकार करने वाला नहीं है और मैं सभी विधि सहित आपकी पूजा करता हूँ। आप इस जगत का निर्माण करने वाली व उसका उद्धार करने वाली हैं। आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप ही हम सभी की इच्छाओं को पूरा करती हैं। आप ही हर जगह निवास करने वाली हैं और यही हमारी आपसे आशा है।
जग जननी जय सिन्धु कुमारी, दीनन के तुम हो हितकारी।
बिनवों नित्य तुमहिं महारानी, कृपा करो जगजननि भवानी।
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी, सुधि लीजै अपराध बिसारी।
कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी, जग जननी विनती सुन मोरी।
हे जगत की माता व सागर पुत्री!! आपकी जय हो। आप हम दीन-दुखियों का भला करने वाली हैं। हम प्रतिदिन आपका ही ध्यान करते हैं और अब आप हम पर कृपा कीजिये। मैं किस विधि के तहत आपकी स्तुति करूँ व अब आप मेरे द्वारा किये गए अपराध पर अंकुश लगाएं। अपनी कृपा दृष्टि मुझ पर बनाये रखें और मेरी विनती सुनिए।
ज्ञान बुद्धि सब सुख की दाता, संकट हरो हमारो जय लक्ष्मी माता।
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो, चौदह रत्न सिन्धु में पायो।
चौदह रत्न में तुम सुखरासी, सेवा कियो प्रभु बन दासी।
जो जो जन्म जहां प्रभु लीन्हा, रुप बदल तहं सेवा कीन्हा।
आप ही हम सभी को ज्ञान, बुद्धि व सुख प्रदान करती हैं और अब आप हमारे सभी संकटों का नाश कर दीजिये। भगवान विष्णु के आदेश पर जब देवता व दानवों ने समुंद्र मंथन का कार्य किया तब उसमें से चौदह रत्न निकले थे। इन चौदह रत्नों में से एक आप थी जिन्होंने प्रभु श्रीहरि की अनवरत सेवा की। इसके अलावा भगवान विष्णु ने मानव कल्याण के उद्देश्य से जब-जब भी जहाँ कहीं भी अवतार लिया है, तब-तब आपने भी उनके साथ अवतार लेकर उनकी सेवा की है।
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा, लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा।
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं, सेवा कियो हृदय पुलकाहीं।
अपनायो तोहि अन्तर्यामी, विश्व विदित त्रिभुवन के स्वामी।
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी, कहं लौ महिमा कहौं बखानी।
जब भगवान विष्णु ने दुष्ट रावण का अंत करने के लिए अयोध्या में भगवान श्रीराम के रूप में अवतार लिया था, तब आपने माता सीता के रूप में जनक नगरी में अवतार लिया और प्रभु की सेवा की। उस समय आपके स्वयंवर में भगवान श्रीराम के साथ आपका विवाह हुआ जिनके बारे में पूरा विश्व जानता है कि वे तीनों लोकों के स्वामी हैं। आपके जैसी कोई दूसरी शक्ति नहीं है और ना ही आपकी महिमा का वर्णन किया जा सकता है।
मन क्रम वचन करै सेवकाई, मन इच्छित वाँछित फल पाई।
तजि छल कपट और चतुराई, पूजहिं विविध भाँति मन लाई।
और हाल मैं कहौं बुझाई, जो यह पाठ करै मन लाई।
ताको कोई कष्ट न होई, मन इच्छित पावै फल सोई।
जो भी सच्चे मन, कर्म व वचन से आपकी सेवा करता है और आपका ध्यान लगाता है, उसे इच्छा अनुसार फल की प्राप्ति होती है। हमें छल, कपट व चतुराई को त्याग कर नाना प्रकार से आपकी पूजा करनी चाहिए। अब इससे ज्यादा और मैं क्या ही कहूँ कि जो भी लक्ष्मी चालीसा का पाठ करता है, उसे किसी भी तरह का कष्ट नहीं होता है और उसे उसकी इच्छा अनुसार ही फल प्राप्त होता है।
त्राहि-त्राहि जय दुःख निवारिणी, ताप भव बंधन हारिणी।
जो यह पढ़ै और पढ़ावै, ध्यान लगाकर सुनै सुनावै।
ताको कोई न रोग सतावै, पुत्र आदि धन सम्पति पावै।
हे लक्ष्मी माँ!! आप ही हम सभी का दुःख दूर करने वाली हो। आप ही हमारे बंधनों को काटने वाली और ताप को कम करने वाली हो। जो भी व्यक्ति इस लक्ष्मी चालीसा को पढ़ता है या पढ़वाता है तथा इसे सुनता है या सुनाता है, उसे किसी भी तरह का रोग नहीं होता है, साथ ही उसे पुत्र, धन व संपत्ति की प्राप्ति होती है।
पुत्रहीन अरु सम्पति हीना, अन्ध वधिर कोढ़ी अति दीना।
विप्र बोलाय के पाठ करावै, शंका दिल में कभी न लावै।
पाठ करावें दिन चालीसा, तापर कृपा करें गौरीशा।
सुख सम्पति बहुत सो पावै, कमी नहीं काहु की आवै।
यदि किसी व्यक्ति के पुत्र नहीं हो रहा है, यदि वह बहुत निर्धन है, यदि वह अंधा, बहरा, गूंगा, कूबड़ इत्यादि समस्याओं से घिरा हुआ है तो उसे अपने घर पर ब्राह्मण को बुलाकर बिना किसी शंका के श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करवाना चाहिए। यदि वह इस प्रकार अपने घर पर चालीस दिन तक पाठ करवा लेता है तो उस पर माँ लक्ष्मी की कृपा दृष्टि होती है। उसे सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है तथा साथ ही कभी भी किसी चीज़ की कमी नहीं होती है।
बारह मास करै जो पूजा, तेहि सम धन्य और नहिं दूजा।
प्रतिदिन पाठ करै मन माही, उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं।
बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई, लेय परीक्षा ध्यान लगाई।
करि विश्वास करै व्रत नेमा, होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा।
जो बारह महीने तक लक्ष्मी चालीसा का पाठ करता है और माँ लक्ष्मी की पूजा करता है, उसके जैसा धन्य व्यक्ति इस विश्व में कोई दूसरा नहीं है। जो प्रतिदिन लक्ष्मी माता की चालीसा का पाठ करता है, उसके जैसा व्यक्ति जगत में कोई दूसरा नहीं है। हे माँ लक्ष्मी!! आप अपने भक्तों की कई तरह से परीक्षा लेती हैं और अब मैं इसके बारे में क्या ही बताऊँ। जो भी व्यक्ति पूर्ण विश्वास के साथ माँ लक्ष्मी का व्रत कर उनकी पूजा करता है, उसके सभी काम बन जाते हैं और हृदय में प्रेम का संचार होता है।
जय जय जय लक्ष्मी भवानी, सब में व्यापित हो गुणखानी।
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं, तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं।
मोहिं अनाथ की सुध अब लीजै, संकट काटि भक्ति मोहि दीजै।
भूल चूक करि क्षमा हमारी, दर्शन दीजै दशा निहारी।
हे माँ लक्ष्मी व भवानी!! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप सभी जगह पर निवास करें और अपने गुण फैलाये। आपका तेज तो इस संपूर्ण जगत में फैला हुआ है और आपके जैसा दयालु और कोई नहीं है। अब मेरे जैसे अनाथ की आप सुन लीजिये और मेरे संकटों का नाश कर अपनी शरण में ले लीजिये। मेरी हर तरह की भूल व अपराध को क्षमा कर दीजिये और मुझे दर्शन देकर मेरा उद्धार कीजिये।
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी, तुमहि अछत दुःख सहते भारी।
नहिं मोहि ज्ञान बुद्धि है मन में, सब जानत हो अपने मन में।
रुप चतुर्भुज करके धारण, कष्ट मोर अब करहु निवारण।
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई, ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई।
आपके दर्शन के बिना हम सभी बहुत ही व्याकुल हैं तथा आपके होते हुए भी दुःख सह रहे हैं। मैं तो अज्ञानी व बुद्धिहीन हूँ और आप तो यह सब जानती ही हैं। आप अपना चतुर्भुज रूप धारण कर मेरे सभी कष्टों का निवारण कर दीजिये। अब मैं किस तरह से आपकी महिमा का बखान करूँ क्योंकि इतना ज्ञान व बुद्धि मेरे पास नहीं हैं।
।। दोहा ।।
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो बेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो दुश्मन का नाश।।
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पै, करहु दया की कोर।।
हे माँ लक्ष्मी!! आप दुखों को दूर करने वाली और संकटों का नाश करने वाली हैं। आपकी जय हो, जय हो। आप हमारे शत्रुओं का नाश कर दीजिये। रामदास आपका ध्यान करके आपके सामने हाथ जोड़कर यह विनती करता है कि इस सेवक पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें और हम सभी पर दया कीजिये।
श्री लक्ष्मी चालीसा का महत्व (Lakshmi Chalisa – Mahatva)
ऊपर आपने माँ लक्ष्मी की चालीसा पढ़ी और साथ ही उसका अर्थ भी जाना। इससे आपको लक्ष्मी माता के महत्व का ज्ञान हो गया होगा तथा साथ ही यह भी पता चल गया होगा कि धन के साथ-साथ मनुष्य के लिए विद्या व बुद्धि की कितनी आवश्यकता होती है। यही कारण है कि माता लक्ष्मी की पूजा कभी भी अकेले नहीं की जाती है अन्यथा वह पूजा संपन्न नहीं मानी जाती है।
आप जब भी देखेंगे तो पाएंगे कि माँ लक्ष्मी की पूजा भगवान गणेश व माँ सरस्वती के साथ ही की जाती है। दीपावली के पावन अवसर पर भी तीनों की एक साथ ही पूजा की जाती है ताकि धन का सदुपयोग हो सके। माँ लक्ष्मी ने स्वयं कहा है कि जहाँ भी उनकी पूजा होगी और यदि उस जगह भगवान गणेश की पूजा नहीं होगी तो मेरी पूजा का कोई लाभ नहीं मिलेगा। इस कथन का तात्पर्य यह हुआ कि मनुष्य के पास यदि धन है लेकिन बुद्धि का अभाव है तो धन ज्यादा समय तक उसके पास नहीं रह सकेगा।
तो ऐसे ही कुछ भावों को इस लक्ष्मी चालीसा के माध्यम से प्रकट किया गया है। इसी के साथ ही माँ लक्ष्मी ने भगवान विष्णु का कितना सहयोग किया है और इस सृष्टि के कल्याण के कार्य किये हैं, उन्हें भी श्री लक्ष्मी चालीसा के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है। यही लक्ष्मी माता की चालीसा का महत्व होता है।
माँ लक्ष्मी चालीसा पढ़ने के फायदे (Laxmi Chalisa Benefits In Hindi)
अब यदि आप निरंतर रूप से माँ लक्ष्मी की चालीसा का पाठ अपने घर पर या मंदिर में करते हैं और माँ लक्ष्मी का सच्चे मन से ध्यान करते हैं तो अवश्य ही माँ लक्ष्मी की कृपा आपके ऊपर बरसती है। यदि आपके जीवन में किसी भी तरह का आर्थिक संकट है या वैभव की कमी है तो वह दूर हो जाती है। कई बार यह देखने में आता है कि बहुत प्रयास करने के पश्चात भी आपका काम सही से नहीं चल पा रहा होता है और उसमें कई तरह की दिक्कतें आती हैं।
ऐसी स्थिति में यदि आप सच्चे मन से लक्ष्मी माता की चालीसा का सुबह जल्दी उठकर तथा नहा-धोकर पाठ करने लगेंगे तो उसका प्रभाव कुछ ही दिनों में देखने को मिल जाएगा। इससे ना केवल आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी होगी बल्कि समाज में आपका मान-सम्मान भी बढ़ेगा। हालाँकि इसी के साथ ही आपको उस प्राप्त धन का सदुपयोग करना होगा और धर्म व समाज सेवा के कार्य भी करते रहने होंगे। तभी वह धन आपके पास टिक पायेगा अन्यथा वह कुछ ही दिनों में पुनः चला जाएगा।
लक्ष्मी चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: लक्ष्मी जी का मूल मंत्र क्या है?
उत्तर: ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नमः।
प्रश्न: सुबह उठकर क्या करना चाहिए जिससे लक्ष्मी आए?
उत्तर: यदि आप चाहते हैं कि आपके घर में माँ लक्ष्मी का प्रवेश हो तो आपको प्रतिदिन सुबह उठकर व नहा-धोकर लक्ष्मी चालीसा का सच्चे मन से पाठ करना चाहिए।
प्रश्न: लक्ष्मी जी की कृपा कैसे पाएं?
उत्तर: लक्ष्मी जी की कृपा पानी है तो आपको नित्य रूप से लक्ष्मी माँ की चालीसा का पाठ सच्चे मन से करना शुरू कर देना चाहिए।
प्रश्न: लक्ष्मी जी का पाठ कैसे किया जाता है?
उत्तर: लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने के लिए आपको सुबह जल्दी उठकर तथा नहा-धोकर सच्चे मन से लक्ष्मी माता की मूर्ति या चित्र के सामने बैठना चाहिए और पाठ करना शुरू करना चाहिए।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
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