रामायण में जब राम विभीषण मिलन (Ram Vibhishan Milan) हुआ तब किसी ने नहीं सोचा था कि श्रीराम उनका उसी समय लंका के राजा के रूप में राज्याभिषेक कर देंगे। विभीषण महान ऋषि विश्रवा व राक्षसी कैकसी के पुत्र थे जो रावण व कुंभकरण के छोटे भाई थे। वे शुरू से ही भगवान विष्णु के भक्त रहे थे व राक्षसों के बीच रहकर भी उनकी स्तुति करते थे। जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया तब विभीषण ने उन्हें बहुत रोका लेकिन रावण ने विभीषण की एक नहीं सुनी।
जब भगवान राम दक्षिण में समुंद्र के तट तक आ पहुँचे तब रावण अपने महल में मंत्रणा कर रहा था। उस समय विभीषण ने फिर से अपनी बात दोहराई व श्रीराम की शरण में जाने को कहा। यह सुनकर रावण इतना क्रोधित हो गया था कि उसने उसी समय विभीषण का त्याग कर लंका से निकाला दे दिया।
इसके बाद ही राम और विभीषण का मिलन (Ram Aur Vibhishan Ka Milan) हो पाया था और युद्ध की परिस्थिति ही बदल गई थी। इसके बाद विभीषण भगवान श्रीराम की शरण में आ गए। लेकिन यहाँ प्रश्न उठता है कि श्रीराम ने शत्रु के भाई होने पर भी विभीषण को क्यों अपनाया? आइए जानते हैं।
रावण के द्वारा लंका नगरी से निकाले जाने के बाद जब विभीषण अपने कुछ साथियों के साथ समुंद्र पार कर श्रीराम की शरण में आए तो वानर सेना असमंजस में आ गई। वानर सेना के द्वारा इसकी सूचना तुरंत महाराज सुग्रीव व श्रीराम को दी गई। इसके बाद आपातकाल में बैठक बुलाई गई। उस बैठक में सभी विभीषण को शरण देने के विरुद्ध थे क्योंकि उन्हें डर था कि इसमें शत्रु की कोई चाल हो सकती है।
फिर भी सभी के परामर्श को दरकिनार करते हुए आखिर किसके कहने पर श्रीराम ने विभीषण से मिलने और उसे अपनाने का निर्णय ले लिया था? आज हम आपके सामने इससे जुड़े पाँच प्रमुख कारणों को गिनाने जा रहे हैं।
भगवान श्रीराम को हनुमान पर स्वयं से भी ज्यादा विश्वास था तथा वे उनकी भक्ति से भलीभाँति परिचित थे। जब विभीषण समुंद्र पार करके श्रीराम की शरण में आए तब हनुमान ने श्रीराम को उन्हें अपनाने का परामर्श दिया। चूँकि हनुमान की विभीषण से लंका में भेंट हो चुकी थी इसलिए वे उनके व्यवहार से भलीभाँति परिचित थे।
हनुमान के द्वारा विभीषण के चरित्र व प्रभु भक्ति के बारे में बताने पर प्रभु राम की आधी शंका उसी समय दूर हो गई। किंतु उनके मंत्री जैसे कि जामवंत, नल नील इत्यादि शंका में थे। इसलिए भगवान ने उनकी शंका भी दूर करने का निश्चय किया।
एक मान्यता के अनुसार त्रिजटा को विभीषण की पुत्री माना जाता है व विभीषण ने अपनी पुत्री के सहारे माता सीता की बहुत सहायता की थी। कभी-कभी वह माता सीता को अपनी बेटी के सहारे ढांढस भी बंधाते थे जिसका प्रमाण स्वयं हनुमान ने दिया था। यह सुनकर प्रभु राम अत्यंत प्रसन्न हो गए थे।
अपनी सेना की शंका को दूर करने व उनके चित्त को शांत करने के उद्देश्य से श्रीराम ने उन्हें इतिहास के कई उदाहरण दिए व अपनी शरण में आए हुए शत्रु की भी सहायता करने का धर्म बताया। उनके अनुसार यदि कोई भी मनुष्य आपकी शरण में आया हुआ हो तो हमें उसकी सहायता करनी चाहिए।
चूँकि विभीषण लंकापति रावण का छोटा भाई था तो संभवतया उन्हें लंका व रावण की सेना के बहुत सारे भेद भी पता थे। विभीषण को अपने साथ लेकर श्रीराम ने कूटनीति का भी सहारा लिया जो आगे चलकर बहुत काम आई। विभीषण ने भगवान श्रीराम की हर समय पर उचित सहायता करके उनकी विजय का मार्ग प्रशस्त किया था।
भगवान श्रीराम का उद्देश्य लंका की सत्ता को हथियाना नहीं था। वे केवल अपनी पत्नी सीता को सम्मानपूर्वक वापस पाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें लंका के राजा रावण व उसकी सेना का वध करना था। रावण के वध के पश्चात लंका राजाविहीन हो जाती तो उसके बाद एक उचित राजा की आवश्यकता पड़ती। इसी को ध्यान में रखते हुए भगवान श्रीराम ने उसके लिए विभीषण को चुना। ताकि वे लंका पर विजय पाकर पुनः वही लंका लंकावासियों को सौंप कर वापस अयोध्या चले जाएं।
उपरोक्त कारणों से श्रीराम ने विभीषण से मिलने का निर्णय लिया। इसके लिए वानर सेना को उन्हें सम्मान पूर्वक श्रीराम के कक्ष में लाने को कहा गया। वहाँ पहुँच कर विभीषण ने अपने साथ लंका में घटित हुए व्यवहार का संपूर्ण विवरण श्रीराम को दे दिया। उन्होंने बताया कि अब लंका के राजा रावण ने उनका त्याग कर दिया है और इस कारण वे श्रीराम की सहायता करने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं।
इसी के साथ ही विभीषण ने इस धर्म युद्ध में श्रीराम की यथासंभव सहायता करने का प्रण लिया। उन्होंने बताया कि रावण को हराने में वे लंका के सभी भेद उन्हें बताएँगे। श्रीराम ने भी स्थिति का आंकलन किया और उसी समय विभीषण को लंका का अगला राजा घोषित कर दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी संपूर्ण सेना के सामने विभीषण का लंका के अगले राजा के रूप में राज्याभिषेक तक कर दिया था।
इस तरह से समुंद्र किनारे हुआ यह राम विभीषण मिलन (Ram Vibhishan Milan) आगे चलकर युद्ध में बहुत काम आया था। विभीषण ने समय-समय पर श्रीराम व उनकी सेना की बहुत सहायता की थी। बदले में श्रीराम ने भी रावण वध के पश्चात उन्हें लंका नगरी का राजा बना दिया था।
राम विभीषण मिलन से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: राम ने विभीषण को क्या कहा?
उत्तर: राम और विभीषण के मिलन के बाद श्रीराम ने उन्हें लंकेश कहकर संबोधित किया था। इसी के साथ ही श्रीराम के द्वारा विभीषण का राज्याभिषेक भी कर दिया गया था।
प्रश्न: विभीषण श्री राम के चरणों में क्या सुनकर आए?
उत्तर: विभीषण पहले से ही श्रीराम के भक्त थे। जब उनके भाई रावण ने उनका त्याग कर दिया तो वे श्रीराम की शरण में जाने को स्वतंत्र हो गए थे।
प्रश्न: विभीषण ने राम का साथ क्यों दिया?
उत्तर: विभीषण जानते थे कि रावण ने माता सीता का हरण करके महापाप किया है और इस कारण उसका अंत निश्चित है। ऐसे में विभीषण ने धर्म युद्ध में श्रीराम का साथ दिया था।
प्रश्न: रावण की मृत्यु के बाद विभीषण का क्या हुआ?
उत्तर: रावण की मृत्यु के बाद विभीषण को लंका का अगला राजा नियुक्त कर दिया गया था।
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