आज हम आपको जगन्नाथ जी की कथा (Jagannath Ji Ki Katha) बताएँगे। आपके भी मन में यह प्रश्न आया होगा कि आखिर भगवान जगन्नाथ की आँखें इतनी बड़ी व गोल क्यों है। साथ ही उनके भाई बलभद्र तथा बहन सुभद्रा की आँखें भी अत्यधिक बड़ी क्यों है। हमने आज तक जितने भी मंदिर देखे हैं तथा भगवान की मूर्तियों को देखा है, सभी में उन्हें मानव शरीर या उनके लिए गए अवतार के अनुसार दिखाया गया है।
ऐसे में भगवान जगन्नाथ की इस तरह की विचित्र आँखें होने के पीछे क्या रहस्य है। यह रहस्य जानने के लिए आपको भगवान जगन्नाथ की कथा (Jagannath Ki Katha) का श्रीकृष्ण से क्या संबंध है, इसके बारे में जानना होगा। वह इसलिए क्योंकि जगन्नाथ भगवान श्रीकृष्ण का ही एक रूप हैं। ऐसे में जगन्नाथ जी के इस विचित्र रूप का संबंध भी श्रीकृष्ण के जीवन में घटित एक घटना से जुड़ा हुआ है। आइए जान लेते हैं।
पहले तो हम आपको यह बता देते हैं कि जगन्नाथ जी की इन मूर्तियों का निर्माण किन परिस्थितियों में हुआ था और किसके द्वारा किया गया था। दरअसल इसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा जी ने राजा इन्द्रद्युम्न के आदेश पर किया था। इन्हें राजा इन्द्रद्युम्न के आदेश पर महान शिल्पकार विश्वकर्मा जी ने एक बंद कमरे में बनाया था।
अब इन मूर्तियों को कैसे बनाया गया, क्यों इस प्रकार बनाया गया, इसके बारे में कुछ भी लिखित या मौखिक प्रमाण नहीं मिलता है। विश्वकर्मा जी की शर्त थी कि वे एक बंद कमरे में इन मूर्तियों का निर्माण करेंगे तथा इस बीच कोई भी कमरे में ना आने पाए। इसके बाद विश्वकर्मा जी कई दिनों तक मूर्तियों का निर्माण कार्य करते रहे लेकिन राजा इंद्रद्युम्न के मन में शंका होने लगी।
एक दिन जब राजा इंद्रद्युम्न किसी अनहोनी की आशंका के चलते बीच में ही द्वार खोलकर अंदर चले गए तो उन्होंने देखा कि विश्वकर्मा जी वहाँ से विलुप्त हो चुके थे तथा आधी अधूरी मूर्तियाँ छोड़ गए थे। इसके बाद भगवान जगन्नाथ ने राजा के स्वप्न में आकर उन्हें आदेश दिया था कि वे इन्हीं मूर्तियों को मंदिर में स्थापित करें। तब से लेकर आज तक हम उन्हीं मूर्तियों की पूजा करते हैं।
अब विश्वकर्मा जी के द्वारा आधी-अधूरी मूर्तियों के कारण जगन्नाथ जी के पैर नहीं हैं और हाथ भी आधे हैं। यही हाल बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों के साथ भी है किन्तु यहाँ प्रश्न यह नहीं है। प्रश्न यह है कि मूर्तियों की आँखें इतनी बड़ी क्यों है? दरअसल इसके पीछे माता यशोदा और द्वारकावासियों की कहानी जुड़ी हुई है। आइए उसके बारे में भी जान लेते हैं।
यह बात तब की है जब भगवान श्रीकृष्ण द्वारका में रहने लगे थे। पहले श्रीकृष्ण वृंदावन में रहा करते थे। फिर अपने कर्तव्यों की पूर्ति के लिए वे वृंदावन आकर मथुरा बस गए। मथुरा पर कुछ वर्ष राज करने के बाद उन्होंने अपनी नगरी द्वारका में बसा ली थी। वृंदावन को छोड़कर जाने के बाद माता यशोदा और नंदबाबा से उनका मिलना-जुलना बहुत कम हो गया था। वे दोनों वृंदावन ही रहते थे।
इसी तरह कई वर्ष बीत गए। तब एक दिन उनसे मिलने वृंदावन निवासी, नंद बाबा, यशोदा माता व रोहिणी माता आई थी। द्वारका व वृंदावनवासियों में यही अंतर था कि द्वारकावासी उन्हें अपना ईश्वर तथा राजा मानते थे जबकि वृंदावनवासी उन्हें अपना प्रेमी मानते थे। वह इसलिए क्योंकि श्रीकृष्ण ने अपना बचपन और आधी युवावस्था वृंदावन में ही बिताई थी। आइए जाने तब ऐसा क्या घटित हुआ था।
एक दिन रोहिणी माता द्वारकावासियों को भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा वृंदावन में की गई रासलीला, प्रेम प्रसंग इत्यादि की कथा सुना रही थी। चूँकि सुभद्रा भगवान कृष्ण की बहन थी तथा उनके सामने यह बात करना उचित नहीं था इसलिए माता रोहिणी ने उन्हें द्वार पर जाकर खड़े रहने को कहा। सब वृंदावनवासी तथा द्वारकावासी भगवान कृष्ण की भक्ति तथा उनकी कथाओं में डूबे हुए थे तथा उनकी बहन अकेली द्वार पर उदास खड़ी थी। यह देखकर उनके दोनों बड़े भाई बलराम व कृष्ण भी उनके दाएं व बाएं आकर खड़े हो गए।
भगवान कृष्ण के बचपन की कथाएं इतनी ज्यादा मनमोहक तथा मन को आश्चर्यचकित कर देने वाली थी कि सभी द्वारकावासी उनके प्रेम में डूब गए। द्वार पर खड़े तीनों भाई बहन भी इसे चुपके से सुन रहे थे तथा वे इसे सुनकर इतने ज्यादा स्तब्ध रह गए थे कि तीनों की आँखें पूरी खुल गई थी। आश्चर्य में उनकी आँखें पूरी खुली हुई थी तथा मुँह बड़ा हो गया था।
उसी समय स्वयं नारद मुनि भी धरती पर आ गए थे तथा तीनों भाई बहन को इस तरह साथ देखकर व इस रूप में देखकर आश्चर्यचकित रह गए थे। नारद मुनि ने देखा कि तीनों भाई-बहन का यह रूप मन को मोहित कर देने वाला है। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की थी कि उनके इस रोचक रूप के दर्शन करने का सौभाग्य उनके भक्तों को भी मिलता रहे।
श्रीकृष्ण ने भी नारद मुनि जी की यह बात मान ली और भविष्य में अपने इस रूप का भव्य मंदिर बनाने का भी कहा। साथ ही वे तीनों भाई-बहन जैसे खड़े थे, उसी तरह ही उनका मंदिर बनाने का कहा। यही कारण है कि जगन्नाथ जी की कथा (Jagannath Ji Ki Katha) का संबंध श्रीकृष्ण से है। श्रीकृष्ण की मृत्यु के पश्चात उन्होंने अर्जुन, इन्द्रद्युम्न और विश्वकर्मा जी की सहायता से जगन्नाथ मंदिर और मूर्तियों का निर्माण करवाया था।
जगन्नाथ जी की कथा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: जगन्नाथ भगवान का अवतार कैसे हुआ?
उत्तर: भगवान जगन्नाथ का अवतार श्रीकृष्ण का ही एक रूप है। अपने बचपन में की गई रासलीला की कहानियां सुनकर श्रीकृष्ण का यह रूप प्रचलित हुआ था। उसके बाद विश्वकर्मा जी ने उनकी इस रूप की मूर्तियों का निर्माण किया था।
प्रश्न: भगवान जगन्नाथ की आंखें बड़ी क्यों है?
उत्तर: इसकी कहानी माता रोहिणी और श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है। एक दिन जब माता रोहिणी द्वारकावासियों को श्रीकृष्ण के बचपन की कहानियां सुना रही थी तब श्रीकृष्ण उन्हें सुनकर आश्चर्यचकित रह गए थे। उसी समय उनका यह रूप बना था।
प्रश्न: जगन्नाथ भगवान की आंखें बड़ी क्यों होती हैं?
उत्तर: जगन्नाथ भगवान की आंखें बड़ी होने के पीछे का रहस्य श्रीकृष्ण का अपने बचपन की कहानियों को सुनकर आश्चर्यचकित हो जाना है। जब माता रोहिणी ने श्रीकृष्ण की रासलीला का वर्णन किया तो उस समय श्रीकृष्ण की आँखें बड़ी-बड़ी हो गई थी।
प्रश्न: क्या कृष्ण और जगन्नाथ एक ही हैं?
उत्तर: जी हाँ, भगवान जगन्नाथ भगवान श्रीकृष्ण का ही एक रूप हैं। ऐसे में दोनों में कोई अंतर नहीं है।
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