सती के आत्म-दाह से लेकर 51 शक्ति पीठों के निर्माण की संपूर्ण कथा

Shiv and Sati katha in hindi

देवो के देव भगवान शिव सभी देवों व भगवानों में सबसे महान हैं जिनकी प्रथम पत्नी का नाम माता सती था (Story of Sati death in Hindi)। हालाँकि भगवान शिव को वैराग्य पसंद था किंतु उन्हें अपनी पत्नी सती से बहुत प्रेम था। माता सती राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी जो उन्हें कठिन तपस्या के बाद स्वयं देवी के रूप में प्राप्त हुई थी (Lord Shiva and Sati story in Hindi)। सती भगवान शिव से प्रेम करती थी व अंत में उनकी उन्हीं से शादी हुई (Prajapati Daksh and Shiv Story)।

ब्रह्मा का यज्ञ व दक्ष का अपमान महसूस करना (Why Daksha disliked Shiva in Hindi)

एक बार भगवान ब्रह्मा ने यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें सभी देवतागण व महान ऋषियों को बुलाया गया था। इस यज्ञ में स्वयं महादेव भी आये थे। जब दक्ष प्रजापति (Daksha Prajapati) इस यज्ञ में पहुंचे तब सभी देवता उनके सम्मान में खड़े हो गए किंतु भगवान शिव खड़े नही हुए। यह देखकर दक्ष को अपना अपमान महसूस हुआ और उन्होंने वही पर शिव को भला बुरा कहा किंतु शिव ने उनसे कुछ नही कहा। भगवान शिव अपने मन में वैराग्य का भाव रखते थे इसलिये उन्हें किसी भी प्रकार की माया, ईर्ष्या, अपमान का अंतर नही पड़ता था।

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दक्ष ने आयोजित करवाया यज्ञ (Daksha Yagna)

उसके कुछ दिनों के पश्चात राजा दक्ष ने भी एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया जिसमे समस्त देवी-देवता व ऋषियों को न्योता दिया गया था किंतु दक्ष ने स्वयं महादेव व अपनी पुत्री सती को नही बुलाया था (Prajapati Daksh ka Yagya)। इस बात से सती अनभिज्ञ थी किंतु उन्होंने आकाश मार्ग से देवताओं को जाते हुए देखा तो जिज्ञासा पूर्वक अपने पति से इसका कारण पूछा (Sati Daksha story in Hindi)।

शिव ने सती को जाने की आज्ञा दी

माता सती के पूछने पर शिव ने उन्हें राजा दक्ष के द्वारा आयोजित किये गए यज्ञ की बात बताई तो माता सती ने उनसे पूछा कि क्या इस यज्ञ में हमें नही बुलाया गया। शिव ने उस दिन की सारी बात सती को बताई और कहा कि वे हमसे ईर्ष्या व वैमनस्य भाव रखते हैं, इसलिये हमें वहां नही बुलाया गया हैं। सती यह सुनकर आहत हुई किंतु उस यज्ञ में उनकी सभी बहने इत्यादि आने वाली थी, इसलिये वे उस यज्ञ में जाना चाहती थी। भगवान शिव ने उन्हें बिना बुलाएँ वहां जाने पर मना किया किंतु सती के बार-बार आग्रह करने पर वे मान गये तथा अपने मित्र वीरभद्र के साथ उन्हें उस यज्ञ में भेज दिया।

शिव का अपमान व माता सती का आत्म-दाह

वहां पहुंचकर सती ने देखा कि उन्हें देखकर उनके पिता को बिल्कुल भी प्रसन्नता नही हुई। इसी के साथ माता सती ने यज्ञ स्थल पर भगवान शिव का स्थान ना देखकर नाराज़ हो गयी। उन्होंने अपने पिता दक्ष से इसका कारण पूछा तो उन्होंने भगवान शिव का अपमान किया। राजा दक्ष ने शिव को भरी सभा में भगवान मानने से मना कर दिया और कहा कि वह तो भूतों के राजा हैं जो पहाड़ों पर नग्न अवस्था में रहते हैं व मेरी पुत्री को भी बिना गहनों व श्रृंगार के रखते हैं (Hawan kund Sati jumped)।

अपने पति का सभी के सामने ऐसा अपमान देखकर सती अत्यंत क्रोधित हो गयी। सभा में शिव के अपमान के बाद भी समस्त देवता व ऋषियों के चुप रहने के कारण उनका क्रोध अत्यधिक बढ़ गया। इसी क्रोध में उन्होंने उसी यज्ञ में अपने शरीर की आहुति देने के लिए उस ज्वाला में कूद पड़ी। यह देख सब जगह हाहाकार मच गया व वीरभद्र ने समस्त यज्ञ ध्वस्त कर डाला व दक्ष का मस्तक काटकर अलग कर दिया (Daksh Vadh)।

भगवान शिव का सती के मृत शरीर को लेकर दौड़ना (51 Shakti Peeth with body parts in Hindi)

जैसे ही भगवान शिव को इसके बारे में पता चला तो वे अग्नि की तेज गति से वहा पहुंचे व सती का मृत शरीर देखकर अत्यंत भावुक हो गए। संपूर्ण विश्व को सँभालने वाले भगवान शिव इतने ज्यादा व्याकुल हो उठे थे कि उन्हें किसी भी चीज़ का आभास नही रहा, यहाँ तक कि स्वयं के शरीर का भी। उन्होंने सती के मृत शरीर को अग्नि कुंड में से निकाला व अपने कंधे पर रखकर दसों दिशाओं में बेतहाशा होकर घूमने लगे।

भगवान विष्णु ने काटा सती का शरीर (Vishnu cuts Sati body)

शिव की ऐसी अवस्था देखकर सब जगह बेचैनी फैल गयी तब भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा। सुदर्शन चक्र ने एक-एक करके सती के शरीर के विभिन्न अंगों को काटा जो पृथ्वी पर 51 अलग-अलग स्थानों पर गिरे। वर्तमान में उन्हीं स्थानों पर माँ आदिशक्ति के 51 शक्तिपीठ स्थापित हैं जहाँ हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

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शिव के आंसुओं से बना कुंड (Shiva cried for Sati)

इसके बाद भगवान शिव माता सती की याद में इतना रोये थे कि उनके आंसुओं से दो कुंड का निर्माण हुआ जिसमे एक कुंड राजस्थान के पुष्कर (Pushkar Kund Shiva) में स्थित हैं तो दूसरा कुंड पाकिस्तान के कटासराज मंदिर (Katasraj Mandir Shiva) में। इसके बाद भगवान शिव ने सभी प्रकार का वैराग्य त्याग दिया व चीर साधना में चले गये।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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