आज हम उत्तराखंड में स्थित गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर (Gopinath Mandir Gopeshwar) की बात करेंगे। उत्तराखंड राज्य को देवभूमि के साथ-साथ भगवान शिव की भूमि भी कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। यहाँ स्थित हर मंदिर व पहाड़ी का संबंध भगवान शिव और उनसे जुड़ी कथाओं में मिल जाता है। ऐसे में आप गोपीनाथ मंदिर (Gopinath Mandir) को भगवान श्रीकृष्ण से जोड़ने की गलती ना करें क्योंकि यह मंदिर भी भगवान शिव को ही समर्पित है।
गोपीनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में गोपेश्वर के बीच में स्थित भगवान शिव का एक भव्य मंदिर है। इसके पीछे दो प्राचीन कथाएं जुड़ी हुई है। आज हम आपको गोपीनाथ मंदिर चमोली के बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।
गोपीनाथ मंदिर रुद्रनाथ महादेव के पास में स्थित है। रुद्रनाथ महादेव उत्तराखंड के पंच केदारों में से एक केदार है। ऐसे में जो भक्तगण रुद्रनाथ के दर्शन करने आते हैं, वे अवश्य ही गोपीनाथ मंदिर भी होकर आते हैं। गोपीनाथ मंदिर जिस कारण से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है, वह है यहाँ रखा गया त्रिशूल (Gopinath Temple Trishul)। मान्यता है कि इस त्रिशूल के नीचे शिवजी के असली त्रिशूल के कुछ अंश दबे हुए हैं।
इसी के साथ ही गोपीनाथ मंदिर की कहानी भगवान शिव व राजा सगर से जुड़ी हुई है। इसके लिए आपको गोपीनाथ मंदिर का इतिहास जानना होगा। अब हम एक-एक करके गोपीनाथ मंदिर का संपूर्ण विवरण आपके सामने रख रहे हैं।
गोपीनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व है और इसके पीछे का कारण है इससे जुड़ी दो प्राचीन कहानियां। आइए दोनों के बारे में जानते हैं।
यह तो हम सभी जानते हैं कि राजा दक्ष के द्वारा भगवान शिव का अपमान करने पर माता सती ने आत्म-दाह कर लिया था जिसके फलस्वरूप 51 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ था। किंतु बहुत कम भक्तों को पता होगा कि उसके बाद भगवान शिव सबकुछ त्याग कर लंबी साधना में चले गए थे।
इसके बाद ताड़कासुर नाम का एक भयानक राक्षस हुआ था जिसका वध केवल भगवान शिव व माता पार्वती (सती का पुनर्जन्म) का पुत्र ही कर सकता था। भगवान शिव को लंबी साधना से उठाने का दायित्व कामदेव को मिला जिन्होंने अपना दायित्व भलीभांति निभाया भी लेकिन शिव के क्रोध को शांत ना कर सके।
जब शिव अपनी लंबी साधना से जागे तो क्रोधवश उन्होंने कामदेव पर अपना त्रिशूल चला दिया जो इसी स्थल पर आकर धरती में धंस गया। मान्यता है कि Gopinath Mandir Gopeshwar के पास में जो त्रिशूल है वह उसी असली त्रिशूल की धातु के ऊपर गडा हुआ है।
भगवान श्रीराम के वंशजों में से एक राजा सगर का शासन यहाँ पर हुआ करता था। उन्हीं के नाम पर गोपेश्वर से कुछ दूरी पर सगर गाँव भी है। राजा सगर के समय एक गाय प्रतिदिन इस क्षेत्र में आया करती थी। उसके बारे में यह मान्यता थी कि उसके थनों से अपने आप दूध बहकर निकलता है।
एक दिन राजा सगर ने उस गाय का पीछा किया तो देखा कि गाय के थनों से दूध अपने आप निकल कर शिवलिंग का अभिषेक कर रहा है। यह देखकर राजा सगर अत्यधिक प्रभावित हुए और उस जगह भगवान शिव को समर्पित एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया।
Gopinath Mandir के निर्माण का उल्लेख यहाँ स्थापित शिलालेखों की सहायता से मिलता है। इसके अनुसार मंदिर का शुरूआती निर्माण 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच यहाँ शासन करने वाले कत्युरी के राजाओं के द्वारा किया गया था। इसके बाद 13वीं शताब्दी में नेपाल के शासक अनेकमल के द्वारा इस मंदिर को और भव्य रूप दिया गया था।
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण बहुत ही अद्भुत तरीके से किया गया है। यह मंदिर गोपेश्वर के बीचों बीच में स्थित है जहाँ से कई धामों व पंच केदारों की यात्रा शुरू होती है। मंदिर का निर्माण नागर शैली में किया गया है।
जहाँ एक ओर मंदिर का शिखर एक गुंबद की आकृति का है तो वहीं मंदिर का गर्भगृह 30 वर्गफुट के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए 24 द्वार बनाए गए हैं जो इसे एक अलग रूप प्रदान करते हैं।
इसके साथ ही Gopinath Mandir Gopeshwar के अंदर कई देवी-देवताओं की टूटी मूर्तियाँ भी रखी हुई हैं जो इसकी प्राचीनता को दर्शाती हैं। मंदिर के पास में ही माँ दुर्गा, भगवान गणेश व भक्त हनुमान के मंदिर भी बने हुए हैं।
मंदिर के प्रागंण में भगवान शिव को समर्पित त्रिशूल भी स्थापित है। यह त्रिशूल भक्तों के बीच रहस्य का केंद्र है। मान्यता है कि इस त्रिशूल के नीचे शिव के असली त्रिशूल का कुछ भाग अभी भी है जो अष्टधातु से बना हुआ है। इसके साथ ही इस त्रिशूल को भी अष्टधातु से निर्मित किया गया है जिस पर किसी भी मौसम का कोई प्रभाव नही पड़ता है।
इस त्रिशूल पर आज तक जंग नही लगा है। यहाँ आने वाले भक्तगण जब इस त्रिशूल को छूते हैं तो उनके अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मान्यता है कि शिव का सच्चा भक्त जब इस त्रिशूल को अपनी ऊँगली से छूता है तो उसके अंदर एक अद्भुत कंपन्न महसूस होता है।
पंच केदार में चतुर्थ केदार रुद्रनाथ मंदिर में स्थापित है जो गोपीनाथ मंदिर से 20 किलोमीटर की चढ़ाई पर है। रुद्रनाथ मंदिर की चढ़ाई गोपीनाथ मंदिर के पास सगर गाँव से शुरू होती है। सर्दियों में रुद्रनाथ मंदिर के रास्ते भीषण बर्फबारी के कारण बंद हो जाते हैं तब रुद्रनाथ भगवान के प्रतीकात्मक स्वरुप को वहां से लाकर गोपीनाथ मंदिर में ही स्थापित किया जाता है।
यह मुख्यतया दीपावली के बाद किया जाता है। उसके बाद भगवान रुद्रनाथ छह माह तक Gopinath Mandir में ही निवास करते हैं। इसके बाद मई माह में शुभ मुहूर्त देखकर भगवान रुद्रनाथ को पालकी में बिठाकर डोली यात्रा निकाली जाती है और उन्हें फिर से गोपीनाथ मंदिर से रुद्रनाथ मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है।
वैसे तो आप वर्ष में किसी भी समय मंदिर जा सकते हैं लेकिन ज्यादातर भक्त गर्मियों के महीनो में यहाँ जाते हैं। उस समय यहाँ हल्की ठंड पड़ती है जबकि नवंबर से फरवरी के माह में यहाँ कड़ाके की ठंड देखने को मिलती है। साथ ही उस समय यहाँ से ऊपर पहाड़ों पर भीषण बर्फबारी होती है। इसलिए यदि आपको ठंड का मौसम पसंद है तो आप नवंबर से फरवरी के महीनो में भी यहाँ जा सकते हैं।
इसके लिए आपको गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर के खुलने व बंद होने के समय व तिथि के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। आइये उनके बारे में भी जान लेते हैं।
Gopinath Mandir Gopeshwar भक्तों के लिए वर्षभर खुला रहता है। हालाँकि सर्दियों में यहाँ भीषण ठंड पड़ती है लेकिन भक्तगण उस समय भी यहाँ जाते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसलिए आप अपनी सुविधा अनुसार वर्ष के किसी भी समय गोपीनाथ मंदिर जा सकते हैं। सर्दियों के मौसम में तो यहाँ प्रतीकात्मक तौर पर रुद्रनाथ महादेव के भी दर्शन हो जाते हैं।
मंदिर भक्तों के लिए सुबह 5 से 6 बजे खुल जाता है और शाम में 7 से 8 बजे के बीच बंद हो जाता है। अब यह पूर्ण रूप से मौसम पर निर्भर करता है। गर्मियों के महीने में गोपीनाथ मंदिर चमोली के खुलने का समय सुबह 5 बजे तो वहीं बंद होने का समय शाम को 8 बजे होता है। वहीं सर्दियों में यह एक से दो घंटे कम होकर सुबह 6 बजे से शाम को 7 बजे तक का हो जाता है।
अभी तक तो हमने आपको गोपीनाथ मंदिर कहां स्थित है, इसके बारे में जानकारी दी लेकिन इसके सबसे नजदीकी हवाई अड्डा या रेलवे स्टेशन कौन सा है, यह जानना भी आवश्यक है। इसलिए अब हम आपको Gopinath Mandir पहुँचने के हवाई, रेल व सड़क तीनों मार्गों के बारे में जानकारी देंगे।
इसके बारे में आपको बिल्कुल भी चिंता करने की आवश्यकता नही है क्योंकि गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर (Gopinath Mandir Gopeshwar) में स्थित है जहाँ से कई मंदिरों और केदारों की धार्मिक यात्राएँ शुरू होती है। इसलिए आपको यहाँ आराम से सरकारी विश्राम गृह, होटल, हॉस्टल, लॉज, होमस्टे इत्यादि की सुविधाएँ मिल जाएँगी।
आप चाहें तो Gopinath Mandir के साथ ही वहां के अन्य मंदिर भी घूम सकते हैं। हालाँकि इसके लिए आपको अपनी यात्रा के दिनों में बढ़ोत्तरी करनी होगी। तो आइये जाने गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर के साथ-साथ और कहां-कहां घूमा जा सकता है।
तो इन सभी जगह की यात्रा आप अपनी गोपीनाथ मंदिर की यात्रा के साथ कर सकते हैं। यदि आप पहले से ही एक योजना बनाकर जायेंगे तो ज्यादा बेहतर रहेगा।
Gopinath Mandir जाने से पहले आपको कुछ बातों का भी ध्यान रखना चाहिए। ऐसे में आप हमारे द्वारा बताई गयी टिप्स को फॉलो करके गोपीनाथ मंदिर की यात्रा पर जाएंगे तो ज्यादा सही रहेगा।
इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर (Gopinath Mandir Gopeshwar) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। आशा है कि आपको गोपीनाथ मंदिर के बारे में सबकुछ पता चल गया होगा। फिर भी यदि आपके मन में कोई शंका रह गयी है तो आप नीचे कमेंट कर पूछ सकते हैं।
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