आखिरकार रामायण में सीता को अपनी पवित्रता क्यों साबित करनी पड़ी थी? माता सीता का चरित्र किसी से छिपा नहीं लेकिन जो काल में पहले से ही लिखा गया हो उसे स्वयं भगवान भी नहीं बदल सकते। इसके साथ ही भगवान द्वारा इस पृथ्वी पर अवतार ही इसलिए लिया जाता है जिससे प्रजा के बीच एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया जाए जो सदियों तक प्रेरणा देता रहे।
यही कारण था कि श्रीराम को माता सीता की पवित्रता पर संदेह नहीं होने के पश्चात भी दोनों को इतने कष्ट झेलने पड़े थे। जब भरे दरबार में लव कुश ने अपने आप का श्रीराम और माता सीता के पुत्र के रूप में परिचय दिया तो राम सीता की पवित्रता का परीक्षण कैसे करते हैं!! आइए जाने माता सीता अपनी पवित्रता कैसे सिद्ध करती हैं।
लोक अपवाद के कारण भगवान श्रीराम को माता सीता का त्याग करना पड़ा था। इसके बाद माता सीता वाल्मीकि आश्रम में रही थी जहाँ उनके दो पुत्रों लव कुश का जन्म हुआ था। जब वे दोनों बड़े हो गए तब उन्होंने अपने गुरु वाल्मीकि के आदेश पर अयोध्या में जाकर रामायण का गुणगान किया। उनके संगीत से प्रभावित होकर श्रीराम ने उन्हें राजदरबार में रामायण गाने को आमंत्रित किया।
लव कुश ने श्रीराम की आज्ञानुसार संपूर्ण राम कथा को संगीत के माध्यम से सुनाया तथा अंत में अपना परिचय श्रीराम व माता सीता के पुत्रों के रूप में दिया। यह सुनते ही अयोध्या की प्रजा में इसके विरोध में भी स्वर उठने लगे। चूँकि राजा को कोई भी निर्णय प्रजा के मत के अनुसार ही लेना होता है इसलिए श्रीराम ने स्वयं माता सीता की पवित्रता पर कोई संदेह न होने के बाद भी उनसे पुत्र होने का प्रमाण माँगा।
इसके पश्चात गुरु वाल्मीकि तथा माता सीता अयोध्या के राज दरबार में पहुँचे। वहाँ गुरु वाल्मीकि ने बहुत प्रयास किए जिससे माता सीता को अपनी शुद्धता का प्रमाण न देना पड़े। उन्होंने पूरी सभा के सामने माता सीता की पवित्रता को माना तथा कहा कि यदि उनके आचरण में कोई भी त्रुटी है तो उनकी अभी तक की तपस्या का कोई भी फल उन्हें ना मिले।
भगवान राम ने स्वयं खड़े होकर महर्षि वाल्मीकि जी से क्षमा याचना की तथा उनके द्वारा कहे गए कथनों को सत्य बताया। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें पूर्ण विश्वास है कि माता सीता पवित्र हैं तथा लव कुश उन्हीं के पुत्र हैं लेकिन फिर भी लोक अपवाद को ध्यान में रखकर माता सीता को स्वयं अपनी प्रमाणिकता की शपथ लेनी पड़ेगी जिससे प्रजा में कोई भी विरोध का स्वर न रहे।
जब भगवान राम के द्वारा यह कथन कहे गए तब माता सीता ने हमेशा के लिए इस अपवाद को समाप्त कर देने के उद्देश्य से अपनी प्रमाणिकता की शपथ ली। उन्होंने कहा कि यदि वह शुद्ध है तथा लव कुश उनके तथा श्रीराम के पुत्र हैं तो यह धरती अभी फट जाए तथा वह उसमें समा जाए। इसके पश्चात धरती फट गई तथा माता सीता उसमें समा गई थी।
सीता की पवित्रता से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: क्यों देनी पड़ी माता सीता को अग्नि परीक्षा?
उत्तर: रावण वध के पश्चात श्रीराम को अग्नि देव से अपनी असली सीता चाहिए थी। इस कारण माता सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा था। साथ ही लोगों के मन में सीता के चरित्र के प्रति कोई संदेह ना रहे, इसलिए भी उन्हें यह परीक्षा देनी पड़ी थी।
प्रश्न: सीता माता को अग्नि परीक्षा क्यों देनी है?
उत्तर: माता सीता लगभग एक वर्ष के लिए रावण की नगरी लंका में रही थी। ऐसे में लोगों के मन में उनके चरित्र के प्रति संदेह ना रहे, इसलिए उन्हें अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी।
प्रश्न: सीता ने कौन सा पाप किया था?
उत्तर: माता सीता ने कोई पाप नहीं किया था। वे एक पतिव्रता नारी थी जिनका आचरण एकदम शुद्ध था। उनका नाम लेने मात्र से ही नारियां पवित्र हो जाती हैं।
प्रश्न: राम ने सीता को स्वीकार क्यों नहीं किया?
उत्तर: श्रीराम ने राजधर्म से बंधे होने के कारण माता सीता को स्वीकार नहीं किया था। इससे पहले उन्होंने सीता को अपनी पवित्रता को प्रमाणित करने को कहा था।
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