कुंभ मेले का इतिहास (Kumbh Mela History in Hindi) सतयुग काल से जुड़ा हुआ है। कुंभ का आयोजन हर चार वर्ष के अंतराल में किया जाता है तथा हर 12 वर्षों के पश्चात महाकुम्भ का आयोजन किया जाता है। कुंभ के आयोजन के बीच में इतने वर्षों के अंतराल को देखकर बहुत भक्तों के मन में यह शंका उठती है कि आखिर इसके पीछे का तथ्य क्या है?
दरअसल कुंभ मेले की कथा (Kumbh Mela Story In Hindi) समुंद्र मंथन से जुड़ी हुई है जो सतयुग में देव और दानवों के बीच हुआ था। इसलिए आज हम आपके साथ कुम्भ मेले का इतिहास व उससे जुड़ी कथा सांझा करेंगे।
यह तो आपको पता ही होगा कि किस प्रकार देव और दानवों ने समुद्र मंथन का कार्य किया था। उस दौरान क्या-क्या घटित हुआ था। हालांकि बहुत से लोग केवल यही जानते हैं कि समुंद्र में से निकला विष भगवान शिव ने पी लिया था। फिर जब उसमें से अमृत निकला तो उसके लिए देव और दानवों के बीच संघर्ष हुआ था। उस संघर्ष का समाधान भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लेकर किया था।
हालांकि भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार लेने से पहले ही देव और दानवों के बीच बारह दिनों तक युद्ध हुआ था। इसी से ही कुंभ मेले की कहानी (Kumbh Mela Ki Kahani) जुड़ी हुई है जो आपको जाननी चाहिए। इसकी शुरुआत महर्षि दुर्वासा के श्राप से शुरू हुई जो देव-दानवों के बीच अमृत कलश के युद्ध पर समाप्त हुई। आइए शुरू करें।
एक बार ऋषि दुर्वासा ने देवताओं से क्रुद्ध होकर उन्हें श्राप दिया जिससे देवराज इंद्र समेत सभी देवताओं की शक्ति कम होने लगी। इसका लाभ उठाकर असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। असुरों के प्रकोप से बचने के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास गये। भगवान विष्णु ने उन्हें दानवों के साथ मिलकर समुंद्र मंथन की सलाह दी।
इसके बाद भगवान विष्णु से आशीर्वाद पाकर सभी देवता व दानव समुंद्र मंथन करने लगे। समुंद्र के बीच में एक विशाल पर्वत शिला को रखा गया व उसके दोनों ओर विशाल शेषनाग को लपेटा गया जिसका मुख दानवों की ओर व पूँछ देवताओं की ओर थी। उसका एक सिरा सभी देवता मिलकर खींच रहे थे व दूसरा सिरा सभी दानव। इस समुंद्र मंथन में कई बहुमूल्य रत्न निकले व साथ ही अथाह विष भी जिसे भगवान शिव ने पिया।
सबसे बहुमूल्य वस्तु जो समुंद्र मंथन से निकली वह थी अमृत कलश जिसे पीने से व्यक्ति या तो अमर हो जाता है या दीर्घायु। अमृत कलश निकलते ही देवराज इंद्र ने अपने पुत्र जयंत को इसे लेकर उड़ जाने को कहा ताकि वह दानवों के हाथ ना आये। पिता की आज्ञा पाकर जयंत वह कलश लेकर आकाश में उड़ गया।
जब असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने जयंत को अमृत कलश लेकर भागते हुए देखा तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने सभी असुरों को जयंत का पीछा कर वह अमृत कलश लाने को कहा। सभी दानवों ने मिलकर उसका बहुत पीछा किया व अंत में उसे पकड़ लिया।
जयंत के पकड़े जाने के बाद सभी देवता व दानवों के बीच भीषण युद्ध हुआ। यह युद्ध 12 अलग-अलग स्थानों पर 12 दिनों तक चला। हर स्थान पर अमृत कलश से कुछ बूंदे छलकी व नीचे गिरी। इन 12 स्थानों में से 4 स्थल मृत्यु लोक जिसे पृथ्वी लोक भी कहते हैं वहां गिरी, जहाँ आज हम कुंभ मेले का आयोजन करते हैं। अन्य 8 स्थल देव लोक में थे जहाँ मनुष्य नहीं पहुँच सकता है।
12 दिनों तक भीषण युद्ध चलने के बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक स्त्री का अवतार लिया जो बहुत सुंदर नारी थी। उसने देवता व दानवों से अमृत कलश लेकर उनका युद्ध शांत करवाया।
ऊपर आपने एक तरह से कुंभ मेले के इतिहास के बारे में जानकारी ले ली है। अब समय है यह जानने का कि अमृत कलश को लेकर हुए देव-दानवों के बीच इस युद्ध का कुंभ मेले से क्या संबंध है। तो सबसे पहले तो आप यह जान लें कि देवलोक का एक दिन पृथ्वी लोक के एक वर्ष के बराबर होता है। इस तरह से देवलोक में बारह दिनों तक चला यह युद्ध पृथ्वी वासियों के लिए बारह वर्षों के बराबर हो गया।
ऊपर आपने यह भी जाना कि जब यह युद्ध चल रहा था, तो अमृत कलश में से 4 बूंदे पृथ्वी लोक पर गिरी थी। यह चार स्थान हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक व उज्जैन थे। आज के समयकाल में इन चार जगहों पर ही हर तीन वर्ष के पश्चात कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान हर छह वर्ष में अर्धकुंभ व बारह वर्षों में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।
प्रत्येक स्थान पर बारह वर्षों के पश्चात महाकुंभ लगता है। इस तरह से कुंभ मेले का इतिहास (Kumbh Mela History in Hindi) समुंद्र मंथन के दौरान निकले अमृत कलश की लड़ाई से जुड़ा हुआ है।
कुंभ मेले का इतिहास से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: कुंभ का मेला 12 साल में क्यों लगता है?
उत्तर: कुंभ का मेला 12 साल में इसलिए लगता है क्योंकि समुंद्र मंथन से निकले अमृत कलश को पाने के लिए देव-दानवों का संघर्ष 12 दिनों तक चला था। पृथ्वीवासियों के लिए देवलोक का एक दिन एक वर्ष के बराबर होता है।
प्रश्न: कुंभ मेले के पीछे की कहानी क्या है?
उत्तर: कुंभ मेले के पीछे की कहानी समुंद्र मंथन से जुड़ी हुई है। यह कहानी हमने विस्तार से इस लेख में सांझा की है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।
प्रश्न: कुंभ नाम क्यों पड़ा?
उत्तर: कुंभ मेले की कहानी सतयुग में देव-दानवों के बीच हुए अमृत कलश से जुड़ी हुई है। चूंकि इस कलश को कुंभ भी कहते हैं। इस कारण इसका नाम कुंभ पड़ा।
प्रश्न: कुंभ मेला हिंदू धर्म में क्या है?
उत्तर: हिन्दू धर्म में कुंभ मेला सबसे बड़ा आयोजन होता है। इस दौरान सनातन धर्म को मानने वाले लोग कुंभ मेले में एकत्रित होते हैं और पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं।
प्रश्न: कुंभ मेला इतना लोकप्रिय क्यों है?
उत्तर: कुंभ मेले के अवसर पर पवित्र नदी में स्नान करने का सर्वाधिक फल देखने को मिलता है। साथ ही यह हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा मेला होता है जहाँ सभी संत एकत्रित होते हैं।
प्रश्न: कुंभ मेला किसने शुरू किया था?
उत्तर: कुंभ मेले की शुरुआत तो सतयुग से ही चली आ रही है। हालांकि राजा हर्षवर्धन ने लगभग 2700 वर्ष पहले इसका आयोजन शुरू करवाया था।
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