आज हम आपके साथ परिक्रमा का अर्थ (Parikrama In Hindi) क्या होता है, इसके बारे में बात करेंगे। जब भी हम मंदिर जाते हैं तो गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा करना कभी नहीं भूलते लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि परिक्रमा क्यों की जाती है? दरअसल सनातन धर्म से जुड़ी हर चीज़ को वैज्ञानिक आधार पर तय किया गया था ताकि मनुष्यों को इसका सर्वोत्तम लाभ मिल सके।
जैसे कि मंदिर में प्रवेश करने से पहले झुकना, फिर घंटी बजाना, हाथ जोड़कर अंदर प्रवेश करना, गर्भगृह के सामने कुछ देर खड़े रहना, फिर उसके चारों ओर परिक्रमा करना इत्यादि सभी का अपना अलग-अलग महत्व है। इसलिए आज हम आपको परिक्रमा का मतलब (Parikrama Meaning In Hindi), कथा, महत्व, नियम, प्रकार इत्यादि सभी के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु, नदी, वृक्ष इत्यादि के चारों ओर घड़ी की सुई की दिशा में घूमने को परिक्रमा कहा जाता है। इसका तात्पर्य हुआ कि आप अपने बाहिने हाथ की ओर से परिक्रमा शुरू करें और फिर उस स्थान के चारों ओर घूमते हुए उसी जगह अपनी परिक्रमा समाप्त करें जहाँ से आपने शुरू की थी।
अब आप यह भी जान लें कि आप ऐसे ही किसी की भी परिक्रमा नहीं कर सकते हैं। परिक्रमा मुख्य तौर पर किसी पवित्र व्यक्ति, ईश्वर, वस्तु या स्थान की की जाती है। यह एक तरह से उनके प्रति अपना सम्मान जताने और उनकी शक्ति को अपने अंदर ग्रहण करने के लिए की जाती है। मुख्य तौर पर मंदिर में गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा की जाती है।
परिक्रमा को शुद्ध रूप में प्रदक्षिणा कहा जाता है। हालाँकि परिक्रमा नाम भी गलत नहीं है। वेदों सहित शास्त्रों में परिक्रमा के महत्व को विस्तार से बताया गया है। भगवान गणेश के द्वारा भी अपने माता-पिता की परिक्रमा कर उसके महत्व को बताया गया है। इस लेख में हम आपके साथ परिक्रमा की हरेक महत्वपूर्ण जानकारी को सांझा करने वाले हैं।
परिक्रमा को मूल रूप से प्रदक्षिणा कहा जाता है जो कि संस्कृत भाषा का एक शब्द है। यह दो शब्दों के मेल से बना है जिसमे “प्र” अर्थात “आगे की ओर” व “दक्षिणा” अर्थात “दक्षिण दिशा में”। दक्षिण दिशा की ओर आगे बढ़ने को ही प्रदक्षिणा कहा जाता है।
इस तरह से परिक्रमा का मतलब हुआ किसी पवित्र वस्तु, व्यक्ति या स्थान के चारों ओर दक्षिण दिशा में घूमना। परिक्रमा को कभी भी उल्टा नहीं किया जा सकता है अन्यथा उसका लाभ होने की बजाये दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं।
जब भी हम मंदिर जाते हैं तो गर्भगृह के सामने खड़े होकर भगवान की मूर्ति को प्रणाम करते हैं। उस मूर्ति के पीछे व दाएं-बाएं एक मार्ग बना होता है जिसे परिक्रमा मार्ग या प्रदक्षिणा पथ (Pradakshina Patha) कहा जाता है। इसी मार्ग से ही परिक्रमा पूरी की जाती है।
परिक्रमा की कथा (Parikrama Story Hindi) परम पूजनीय भगवान श्रीगणेश से जुड़ी हुई है। यह उनकी चतुराई और अपने माता-पिता के प्रति अपनी भक्ति को प्रदर्शित करती है। दरअसल एक बार भगवान कार्तिक व भगवान गणेश में से कौन ज्यादा श्रेष्ठ है, यह दुविधा दूर करने के लिए भगवान शिव ने दोनों को ब्रह्मांड के तीन चक्कर लगाकर आने को कहा। जो जल्दी आ जाएगा, वह विजयी माना जाएगा।
यह देखकर भगवान कार्तिक तो तेज गति से ब्रह्मांड के चक्कर लगाने निकल पड़े लेकिन भगवान गणेश ने अपनी चतुराई का परिचय देते हुए अपने पिता शिव और माता पार्वती के चारों ओर तीन बार प्रदक्षिणा कर ली। यह देखकर भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न हुए और गणेश को विजयी घोषित किया। इसके बाद से परिक्रमा हिंदू धर्म का अभिन्न अंग बन गयी।
सनातन धर्म को आदि अनन्त से चला आ रहा धर्म इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें जीवन जीने की एक उत्तम पद्धति विकसित की गयी है। इसी पद्धति के एक प्रमुख अंग हैं हमारे देवालय या मंदिर। मंदिरों की स्थापत्य कला इस प्रकार हुआ करती है कि इन्हें सकारात्मक ऊर्जा का प्रमुख स्रोत कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी।
दरअसल मंदिर निर्माण से पहले यह देखा जाता था कि भूमि पर किस जगह विद्युतीय व चुम्बकीय तरंगों का प्रभाव सबसे अधिक है अर्थात पृथ्वी के नीचे किस जगह से यह ज्यादा मात्रा में प्रवाहित हो रही है। उस स्थान का पता लगाकर उसके मध्य क्षेत्र को मंदिर के गर्भगृह के लिए चुना जाता जाता था जहाँ ईश्वर की मूर्ति स्थापित करनी होती थी। इसके बाद उस स्थान के चारों ओर मंदिर का निर्माण किया जाता था।
मुख्य मूर्ति को तांबे की धातु के ऊपर रखा जाता था क्योंकि तांबा ऊर्जा को सोखने का एक मुख्य स्रोत है। इसी के साथ मंदिर निर्माण में सभी चीज़ों को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता था कि पृथ्वी से ऊर्जा का लाभ ज्यादा से ज्यादा मनुष्यों तक पहुंचे जैसे मंदिर में होने वाला मंत्रोच्चार, दीपक प्रज्ज्वलित किया जाना, घंटियों को बजाना, आरती, ताली बजाना इत्यादि।
हम गर्भगृह के सामने खड़े होकर ईश्वर की मूर्ति को प्रणाम करते हैं क्योंकि गर्भगृह तीन ओर से दीवार से घिरा होने के कारण, वहां से ऊर्जा का प्रवाह सामने की ओर सबसे ज्यादा होता है। साथ ही इसकी परिक्रमा (Parikrama In Hindi) करने से हमारे शरीर के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसलिए प्रतिदिन मंदिर जाने और गर्भगृह की परिक्रमा करने को कहा जाता है।
सबसे पहले मंदिर में सिर झुकाकर प्रवेश करें। फिर घंटे को बजाकर हाथ जोड़ लें। अब गर्भगृह में रखी भगवान की मूर्ति को प्रणाम करें और कुछ देर उनका स्मरण करें। स्मरण करते समय अपने मन को शांत कर लें व परमात्मा पर ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करें। इसके लिए आप अपनी आँखें बंद भी कर सकते हैं।
इसके बाद ईश्वर पर ध्यान केन्द्रित करते हुए और हाथों को जोड़े हुए परिक्रमा पथ पर नियम के अनुसार परिक्रमा करें। परिक्रमा गर्भगृह के सामने आकर ही पूर्ण होती है। इस प्रकार आपकी एक परिक्रमा पूरी हो जाती है।
जब कोई व्यक्ति नियमित रूप से मंदिर जाता है व गर्भगृह की परिक्रमा करता है तो वह सकारात्मक ऊर्जा को अपने अंदर सोखता है। इसी के साथ वहां होने वाले मंत्रोच्चार व घंटे की ध्वनि से वह अपना ध्यान केन्द्रित कर पाता है। जब कई लोग एक साथ वहां पूजा करते हैं व मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो व्यक्ति अपने जीवन से संबंधित समस्याओं को भूल जाता है व परमात्मा पर ध्यान लगाता है।
यह एक बहुत धीमी प्रक्रिया है जिसे प्रतिदिन करने से मनुष्य पर शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ता है जो उसके सुखी जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। इससे मनुष्य का मन शांत रहता है व मन में बुरे या गलत विचार नही आते हैं। साथ ही सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने से उसका शारीरिक स्वास्थ्य ठीक बना रहता है।
इसलिए प्राचीन समय में मंदिरों को एक तरह से ऊर्जा के मुख्य केन्द्रों के रूप में स्थापित किया गया था जहां प्रतिदिन जाकर मनुष्य स्वयं को चार्ज करता था व एक नयी ऊर्जा से भर जाता था।
सब कुछ जानने के बाद एक बात आपको परेशान कर रही होगी कि आखिर परिक्रमा को हमेशा दक्षिण दिशा में या बाएं से दाएं करने को ही क्यों कहा जाता है, इसका उल्टा क्यों नही? जब मंदिर का गर्भगृह और मंदिर ऊर्जा का स्रोत ही है तो परिक्रमा चाहे दक्षिण की ओर करो या उत्तर की ओर, क्या अंतर पड़ता है?
दरअसल इसके पीछे भी एक गहरा रहस्य छुपा हुआ है जिसका जानना आपके लिए आवश्यक है। इसे हम आपको एक उदाहरण देकर समझाएंगे जो परिक्रमा के दार्शनिक महत्व (Parikrama In Hindi) को समझाता है। परिक्रमा का दार्शनिक महत्व कहता है कि इस विश्व में ही नही अपितु संपूर्ण ब्रह्मांड में हरेक वस्तु (आकाशगंगा, तारे, ग्रह, उपग्रह इत्यादि) गतिमान है और सभी एक-दूसरे के चक्कर लगा रहे हैं।
सभी निरंतर गति कर रहे हैं तभी उनके अंदर ऊर्जा है और उसी ऊर्जा के कारण उनका अस्तित्व है। सभी की गति को देखने पर हम पाएंगे कि सभी उत्तर की ओर नही बल्कि दक्षिण की ओर घेरा बनाते हुए गति करते हैं। इसका साक्ष्य हम प्रतिदिन उगने वाले सूर्य की गति को देखकर भी पा सकते हैं। सूर्य पूर्व दिशा से उगता है और दक्षिण की ओर घूमता हुआ पश्चिम दिशा में पहुँच जाता है।
सरल शब्दों में कहने का तात्पर्य यह हुआ कि जैसे चुंबक के समान ध्रुव एक-दूसरे से दूर जाते हैं लेकिन विपरीत पास। ठीक उसी प्रकार यदि हम मंदिर की दक्षिणावर्ती परिक्रमा ना करके वामवर्ती परिक्रमा करेंगे तो वहां की सकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर की आंतरिक ऊर्जा के तेज को बढ़ाने की बजाए उसे कम कर देगी अर्थात इस प्रक्रिया का हमारे ऊपर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसलिए हमेशा दक्षिणावर्ती परिक्रमा करने को ही कहा गया है।
परिक्रमा करने के कुछ नियम होते हैं या यूँ कहें कि परिक्रमा करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है तभी हमें उसका संपूर्ण लाभ मिलता है। आइए जानते हैं:
परिक्रमा करते समय आपको इन सभी नियमों का ध्यान रखना चाहिए। यदि व्यक्ति के द्वारा नियमों की अवहेलना कर परिक्रमा की जाती है तो इससे कई तरह के दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं।
यह तो हमने जान लिया कि परिक्रमा करने का संबंध हमारे शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ाने से है लेकिन इसका ज्यादा से ज्यादा लाभ कैसे उठाया जाए, इसके बारे में भी जानना आवश्यक है। इसके लिए दो मुख्य बातें हैं जिनका हर स्त्री व पुरुष को ध्यान रखना चाहिए।
मंदिर जाने से पहले यदि हम रेशमी वस्त्रों को पहनेंगे तो यह और भी ज्यादा लाभप्रद होगा क्योंकि किसी और कपड़े की तुलना में रेशमी कपड़ों में ऊर्जा को सोखने की क्षमता सबसे अधिक होती है। इसी के साथ महिलाओं को मंदिर जाने से पहले गहने पहनने को कहा जाता है। धातु ऊर्जा को सोखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए मंदिर जाने से पहले रेशमी वस्त्रों व गहनों को अनिवार्य रूप से पहनेंगे तो अधिक लाभ मिलेगा।
शास्त्रों में सभी देवी-देवताओं के रूप के अनुसार परिक्रमाओं की संख्या (Parikrama In Hindi) को भी निर्धारित किया गया है और हमें उसी के अनुसार उनकी परिक्रमा करनी चाहिए।
जिन देवी-देवताओं की प्रदक्षिणा का उल्लेख नही है उनकी विधिवत रूप से तीन प्रदक्षिणा की जा सकती है।
सनातन धर्म से निकले तीन मुख्य धर्मों जैन, बौद्ध व सिख में भी परिक्रमा का विशेष महत्व है। वहां भी मुख्य गर्भगृह के चारों ओर ईश्वर/ अवतार/ गुरु की परिक्रमा करने का विधान है। इसी के साथ इस्लाम के सबसे पवित्र स्थल मक्का-मदीना में भी काबा के चारों ओर घूमते हुए लोगों को देखा जा सकता है।
परिक्रमा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: परिक्रमा करने से क्या लाभ होता है?
उत्तर: परिक्रमा करने से हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। हालाँकि परिक्रमा करते समय इसकी विधि व नियमों का पालन किया जाना आवश्यक होता है।
प्रश्न: हम भगवान की परिक्रमा क्यों करते हैं?
उत्तर: जिस जगह पर भगवान की मूर्ति को स्थापित किया जाता है, उसके अंदर अत्यधिक ऊर्जा का संचार हो रहा होता है। ऐसे में उस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए ही हम भगवान की परिक्रमा करते हैं।
प्रश्न: परिक्रमा करने का क्या अर्थ है?
उत्तर: परिक्रमा करने का अर्थ होता है किसी पवित्र व्यक्ति, वस्तु या स्थान के चारों ओर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अर्थात अपने बाएं हाथ की ओर घूमना।
प्रश्न: मंदिर में कितनी परिक्रमा लगानी चाहिए?
उत्तर: हर भगवान की अलग-अलग संख्या में परिक्रमा की जाती है। ऐसे में यह उस पर निर्भर करता है कि आप किस मंदिर में जा रहे हैं।
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