हर किसी के मन में यह जानने की जिज्ञासा रहती है कि कुंभकरण कितने दिन सोता था (Kumbhkaran Kitne Din Sota Tha)। कुंभकरण कोई ऐसा वैसा राक्षस नहीं था बल्कि वह महान ऋषि विश्रवा व कैकसी का पुत्र था। इसी के साथ ही वह लंका के राजा रावण का छोटा भाई भी था। उसने रामायण के युद्ध में भी मुख्य भूमिका निभाई थी जिसका वध श्रीराम के हाथों हुआ था।
हालाँकि वह अपने पराक्रम या युद्ध से ज्यादा अपने सोने के लिए प्रसिद्ध है। हर कोई जानता है कि कुंभकरण 6 महीने तक सोता रहता था लेकिन इसके पीछे का कारण बहुत कम लोगों को पता है। ऐसे में आज हम आपके इसी प्रश्न कुंभकरण 6 महीने क्यों सोता था (Kumbhkaran 6 Mahine Kyon Sota Tha), का उत्तर देने वाले हैं।
कुंभकरण बचपन से ही विशाल शरीर का था जो दिन-प्रतिदिन सामान्य मनुष्यों के शरीर से बहुत बड़ा होता जा रहा था। इस कारण उसे इतनी भूख लगती थी कि वह प्रतिदिन अकेले ही सैकड़ों लोगों का खाना खा जाता था। उसके कारण पृथ्वी पर अन्न भंडार की भी कमी होने लगी थी जिस कारण उसे छह माह तक सोने का वरदान या यूँ कहें कि श्राप मिला था।
कुंभकरण के 6 महीने सोने की कथा बहुत ही रोचक है। वह इसलिए क्योंकि भगवान ब्रह्मा ने उसे यह वरदान दिया था लेकिन यह वरदान की बजाए श्राप बनकर उभरा। आखिर यह कैसे हुआ और इसमें किसकी क्या भूमिका थी। आइए उसके बारे में जान लेते हैं।
कुंभकरण के इतने विशाल शरीर व पराक्रम के कारण आकाश में देवता भी उससे ईर्ष्या करने लगे थे लेकिन रावण के भय के कारण कोई उसका कुछ नहीं कर सकता था। एक दिन कुंभकरण ने अपने दोनों भाई रावण व विभीषण के साथ मिलकर भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की। तीनों भाइयों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिए।
कुंभकरण भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करके उनसे इंद्र का राज सिंहासन मांगने वाला था। इसके बाद देवताओं पर कुंभकरण का अधिकार हो जाता जिससे इंद्र बहुत डर गए। किंतु वे भगवान ब्रह्मा को वरदान देने से मना नहीं कर सकते थे क्योंकि किसी को भी उसकी तपस्या का फल देना उनका कर्तव्य था। इसलिए वे माता सरस्वती के पास सहायता मांगने के लिए गए।
जब देव इंद्र माता सरस्वती के पास गए व उन्हें सारी बात बताई तो माता सरस्वती ने एक योजना बनाई। उन्होंने देव इंद्र को कहा कि जब कुंभकरण भगवान ब्रह्मा जी से वरदान मांग रहा होगा तब माता सरस्वती उसकी जिव्हा पर बैठ जाएगी। इस कारण वह इन्द्रासन की जगह निद्रासन मांग लेगा।
जब भगवान ब्रह्मा ने कुंभकरण की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा तभी देवी सरस्वती कुंभकरण की जिव्हा पर आकर बैठ गई। इस कारण कुंभकरण के मुँह से इंद्रासन की जगह निद्रासन निकला। भगवान ब्रह्मा ने उसे यह वरदान दे दिया जिसके फलस्वरूप अब वह जीवन भर केवल सोता ही रहेगा। यह देखकर कुंभकरण व उसके दोनों भाई बहुत डर गए।
जब रावण ने अपने भाई की यह स्थिति देखी तो उसने भगवान ब्रह्मा से याचना की कि जिस मनुष्य को आपने बनाया है उसे आप इस तरह जीवन भर के लिए नींद में सुलाकर उसका जीवन मृत्यु से पहले ही समाप्त कर देंगे। रावण का अपने भाई के प्रति प्रेम व कुंभकरण का दुःख देखकर भगवान ब्रह्मा को उन पर दया आ गई।
उन्होंने कहा कि चूँकि ब्रह्म वाक्य झुठलाया नहीं जा सकता है फिर भी वे कुंभकरण को 6 माह में एक दिन निद्रा से जागने की अनुमति देते हैं। अर्थात कुंभकरण 6 माह तक गहरी निद्रा में सोएगा व केवल एक दिन के लिए जागेगा तथा उसके पश्चात फिर 6 मास के लिए सो जाएगा।
इस घटना के बाद कुंभकरण 6 माह तक लगातार सोता था व केवल एक दिन के लिए जागता था व उसी दिन सारे कार्य, भोजन इत्यादि करता था। इस प्रकार इंद्र की चाल व माता सरस्वती के कारण कुंभकरण छह माह तक सोता रहता था।
अब आपने यह तो जान लिया है कि कुंभकरण कितने दिन सोता था (Kumbhkaran Kitne Din Sota Tha) लेकिन बहुत से लोग कुंभकरण के जागने को लेकर आशंकित रहते हैं। बहुत लोगों को लगता है कि कुंभकरण 6 महीने तक सोता था और फिर अगले 6 महीने तक जागता था। ऐसे में हम आपको पहले ही स्पष्ट कर दें कि यह तथ्य सरासर भ्रामक है। भगवान ब्रह्मा के वरदान के अनुसार कुंभकरण 6 महीने सोने के बाद केवल एक दिन के लिए ही जागता था और फिर पुनः 6 महीने के लिए सो जाता था।
कुंभकरण के सोने से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: कुंभकरण कितने दिन सोता था?
उत्तर: कुंभकरण लगातार 6 महीने के लिए सोता था। इस तरह वह लगभग 182 दिनों के आसपास सोता रहता था।
प्रश्न: कुंभकरण इतना क्यों सोता था?
उत्तर: कुंभकरण को भगवान ब्रह्मा ने 6 महीने तक लगातार सोते रहने का वरदान दिया था। इसलिए कुंभकरण इतना सोता था।
प्रश्न: कुंभकर्ण छः महीने तक कैसे सो लेता था?
उत्तर: कुंभकर्ण भगवान ब्रह्मा के दिए वरदान के कारण छः महीने तक लगातार सो लेता था।
प्रश्न: कुंभकरण की लंबाई कितनी थी?
उत्तर: रामायण के अनुसार कुंभकरण की लंबाई 600 धनुष के बराबर थी। वहीं उसकी चौड़ाई 100 धनुष के बराबर हुआ करती थी।
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