रामायण: कुंभकरण का जीवन परिचय

Kumbhkaran In Ramayan In Hindi

कुंभकरण रामायण (Kumbhkaran In Ramayan In Hindi) का एक ऐसा पात्र था जिसका चरित्र धर्मावलंबी होने के साथ-साथ राक्षसी प्रवत्ति का भी था। कुंभकरण (Kumbhkaran In Hindi) को आप अपनी शक्तियों के दायरे में रहकर क्या किया जा सकता हैं, यह जानने वाला राक्षस कह सकते है। वह रावण के जैसे अहंकारी ना होकर चतुर राक्षस था। साथ ही उसे नारायण की शक्ति का भी ज्ञान (Kumbhkaran Kaun Tha) था। आज हम आपको कुंभकरण के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक का संपूर्ण परिचय देंगे।

रामायण में कुंभकरण का जीवन परिचय (Kumbhkaran In Ramayan In Hindi)

कुंभकरण का जन्म (Kumbhkaran History In Hindi)

कुंभकरण का जन्म ब्राह्मण-राक्षस कुल (Kumbhkaran Ka Janam) में हुआ था। उसके पिता महान ऋषि विश्रवा थे जबकि माता राक्षस कुल की कैकसी। कुंभकरण का बड़ा भाई (Kumbhkaran Ka Bhai) लंकापति रावण व छोटा भाई विभीषण था। वह जन्म से ही अतिविशाल शरीर लेकर पैदा हुआ था तथा समय के साथ-साथ वह और विशाल होता गया।

कुंभकरण प्रतिदिन असंख्य लोगों के बराबर भोजन (Kumbhkaran Ki Kahani) खा जाता था। इसके कारण देवताओं को धरती पर अन्न का संकट पैदा होने की समस्या होने लगी लेकिन कोई भी देवता उससे युद्ध करने का साहस नही रखता था।

कुंभकरण का भगवान ब्रह्मा की तपस्या करना (Kumbhkaran Sleeping Story In Hindi)

कुंभकरण देव इंद्र के द्वारा स्वयं से ईर्ष्या रखने की बात जानता था तथा उसे भी देव इंद्र पसंद नही थे। फलस्वरूप उसने अपने भाइयो रावण व विभीषण के साथ कई हज़ार वर्षों तक भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या (Kumbhkaran Tapasya) की व उन्हें प्रसन्न किया। भगवान ब्रह्मा ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए।

कुंभकरण भगवान ब्रह्मा से वरदान में इंद्रासन मांगना चाहता था अर्थात देव इंद्र का आसन जिससे देवलोक पर उसका अधिकार हो जाता। उसी समय देव इंद्र ने सरस्वती माता से सहायता मांगी (Kumbhkaran Ka Rahasya) तो माँ सरस्वती कुंभकरण के वरदान मांगते समय उसकी जिव्हा पर बैठ गयी।

इस कारण कुंभकरण ने भगवान ब्रह्मा से इंद्रासन की बजाए निद्रासन मांग लिया अर्थात हमेशा सोते रहने का वरदान। भगवान ब्रह्मा ने उसे यह वरदान दे दिया। यह सुनकर तीनो भाई भयभीत हो गए।

रावण की भगवान ब्रह्मा से विनती (Kumbhkaran Kitne Din Jagta Tha)

यह देखकर रावण ने भगवान ब्रह्मा से याचना की कि कुंभकरण भी उन्ही के द्वारा बनाया गया एक प्राणी है तथा यदि वे किसी की मृत्यु से पहले ही उसे हमेशा सोते रहने का वरदान दे देंगे तो यह उनकी मृत्यु के समान ही होगा। फलस्वरूप भगवान ब्रह्मा ने कुंभकरण के लगातार छह माह तक सोते रहने व केवल एक दिन के लिए जागने (Kumbhkaran Kitne Din Jagta Tha) का वरदान दिया।

इसके पश्चात कुंभकरण का सारा जीवन सोते हुए ही बीता। छह माह तक निरंतर सोने के पश्चात वह केवल एक दिन के लिए जागता तथा उस दिन बहुत सारा भोजन खाता, मदिरा पिता, नृत्य देखता व फिर से सो जाता। रावण के द्वारा किए जा रहे अधर्म रुपी कार्य के बारे में उसे कुछ नही पता था।

कुंभकरण का जागना (Kumbhkaran Ko Kaise Uthaya)

एक दिन कुंभकरण सो रहा था कि उसे छह माह से पहले ही रावण के सैनिकों के द्वारा जगा दिया गया। इसके लिए बहुत प्रयास किये गए व अन्तंतः कुंभकरण जाग गया। जागते ही (Kumbhkaran Ko Jagana) उसे बहुत सारा भोजन व मदिरा पीने को दी गयी। इसके बाद कुंभकरण ने स्वयं को समय से पहले जगाने का औचित्य पूछा तो उन्होंने इसे महाराज रावण का आदेश बताया। कुंभकरण भोजन करने के पश्चात रावण से मिलने उसके भवन की ओर निकल पड़ा।

कुंभकरण रावण का संवाद (Kumbhkaran Ravan Samvad)

जब कुंभकरण रावण से मिला तो उसे सब घटना का ज्ञान हुआ। रावण ने उसे बताया कि (Ravan Kumbhkaran Samvad In Hindi) किस प्रकार उसने माता सीता का हरण कर लिया है, श्रीराम ने वानर सेना के साथ लंका पर चढ़ाई कर दी है, युद्ध में रावण के कई योद्धा व भाई-बंधु मारे जा चुके है, स्वयं रावण भी श्रीराम के हाथों परास्त हो चुका हैं, इसलिये उसे समय से पहले श्रीराम की सेना के साथ युद्ध करने के लिए जगाया गया है।

कुंभकरण को यह आभास हो गया था कि श्रीराम कोई और नही अपितु नारायण का अवतार हैं तथा माता सीता स्वयं माँ लक्ष्मी का। उसने भूतकाल में घटित हुई कुछ घटनाओं का उदाहरण देकर रावण को समझाने का प्रयास किया कि वह माता सीता को लौटा दे तथा श्रीराम की शरण में चला जाए। साथ ही उसने यह भी कहा कि यदि उसने ऐसा नही किया तो राक्षस कुल का विनाश (Kumbhkaran Ka Vadh Kisne Kiya Tha) हो जाएगा।

यह सुनकर रावण ने कुंभकरण पर बहुत क्रोध किया तथा उसे युद्ध में जाने का आदेश दिया। अंत में जब कुंभकरण समझ गया कि अब रावण को समझाने का कोई प्रयास नही तो उसने युद्धभूमि में जाकर नारायण के हाथों मरने (Kumbhkaran Ko Kisne Mara) का निश्चय किया। यह कहकर वह श्रीराम के साथ युद्ध करने के लिए निकल पड़ा।

कुंभकरण विभीषण संवाद (Kumbhkaran Vibhishan Samvad)

जब कुंभकरण अपना विशाल शरीर लेकर युद्धभूमि में पहुंचा तो वानर सेना में आंतक व्याप्त हो गया। यह देखकर कुंभकरण का छोटा भाई विभीषण उससे वार्तालाप करने आया। उसने कुंभकरण को श्रीराम की सेना के साथ मिलकर धर्म का साथ देने को कहा।

तब कुंभकरण ने अपना धर्म (Kumbhkaran Vibhishan Ka Samvad) अपने भाई व लंका के राजा के लिए लड़ना बताया। उसने विभीषण को भी गलत नही कहा तथा उससे कहा कि वह अपने धर्म का पालन कर रहा है। उसने विभीषण का श्रीराम की सेना के साथ मिलकर युद्ध करने का प्रस्ताव ठुकरा दिया तथा युद्ध करने के लिए आगे बढ़ गया।

महाराज सुग्रीव का अपहरण (Kumbhkaran Sugriv Ko Bandi Banaya)

इसके बाद कुंभकरण ने वानर सेना में भीषण तबाही मचा दी। वह वानरो को अपने पैरो तले कुचलता हुआ आगे बढ़ रहा था व उन्हें चबाकर खा रहा था। बीच में उसका हनुमान (Kumbhakarna vs Hanuman), लक्ष्मण, अंगद इत्यादि से भी युद्ध हुआ लेकिन कोई भी उसको रोक पाने में अक्षम था।

जब वानर नरेश महाराज सुग्रीव उससे युद्ध करने आए तब वह बहुत प्रसन्न हो गया। उसकी योजना थी कि यदि वह सुग्रीव को ही बंदी बनाकर रावण के सामने ले जाएगा तो इससे वानर सेना का साहस टूट जाएगा व अपने राजा को बंदी बना देखकर वे निराश हो जाएंगे।

कुंभकरण का श्रीराम के हाथो वध (Ramayan Mein Kumbhkaran Ko Kisne Mara Tha)

जब वह सुग्रीव को बंदी बनाकर रावण के महल की ओर जाने लगा तो पीछे से स्वयं श्रीराम (Kumbhakarna vs Ram) ने उसे चुनौती दी। कुंभकरण को पता चल गया था कि उसके सामने स्वयं नारायण आ चुके हैं व अब उसका अंत निश्चित है लेकिन नारायण के हाथों मृत्यु (Shri Ram Ne Kumbhkaran Ko Kaise Mara) होने से वह निश्चिंत भी था।

उसने श्रीराम के साथ भीषण युद्ध किया तथा अंत में भगवन श्रीराम ने इन्द्रास्त्र चलाकर कुंभकरण की दोनों भुजाएं काट डाली। इसके बाद प्रभु ने ब्रह्म दंड चलाया जिससे कुंभकरण का मस्तक कटकर समुंद्र में जा गिरा। अंत में प्रभु ने कुंभकरण के पेट को काटकर अलग कर दिया और कुंभकरण का वध (Kumbhkaran Vadh) हो गया।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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