काली चालीसा के लाभ – अर्थ व महत्व सहित

Kali Chalisa In Hindi

आज हम आपको काली चालीसा लिखी हुई (Kali Chalisa In Hindi) हिंदी में अर्थ सहित देंगे। माँ दुर्गा ने दुष्ट से दुष्टों व पापियों का नाश करने के उद्देश्य से ही अपने इस भयंकर रूप काली को प्रकट किया था जो हमेशा ही क्रोध की अग्नि में जलता रहता है। काली माता दिखने में अवश्य ही भयंकर है लेकिन वे केवल दुष्टों, अधर्मियों और बुरी प्रवृत्ति वाले लोगों का ही नाश करती है।

आज के इस लेख में हम आपके साथ काली चालीसा हिंदी में (Kali Chalisa Lyrics In Hindi) साझा करने वाले हैं ताकि आप उसका संपूर्ण अर्थ व महत्व जान सकें। यदि हम काली चालीसा अर्थ सहित जान लेते हैं तो हमें उसका ज्यादा लाभ देखने को मिलता है। अंत में आपको काली चालीसा के लाभ भी जानने को मिलेंगे। तो आइए सबसे पहले जानते हैं काली चालीसा हिंदी में अर्थ सहित।

Kali Chalisa In Hindi | काली चालीसा लिखी हुई

॥ दोहा ॥

जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार।
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार॥

हे माँ काली, आपकी जय हो। आप ही कलियुग में पापों का नाश करने वाली हो। आपकी महिमा तो सभी जगह फैली हुई है। आपने ही माँ दुर्गा के रूप में महिषासुर राक्षस का वध किया था और इसी कारण आपका एक नाम महिषमर्दिनी पड़ गया था। आपने ही राक्षसों का अंत कर देवताओं के भय का नाश किया था।

॥ चौपाई ॥

अरि मद मान मिटावन हारी, मुण्डमाल गल सोहत प्यारी।

अष्टभुजी सुखदायक माता, दुष्टदलन जग में विख्याता।

भाल विशाल मुकुट छवि छाजै, कर में शीश शत्रु का साजै।

दूजे हाथ लिए मधु प्याला, हाथ तीसरे सोहत भाला।

आप ही हमारे अहंकार का नाश करती हैं और आपके गले में राक्षसों की मुंडमाला बहुत ही सुंदर लग रही है। आपकी आठ भुजाएं हैं जो बहुत ही सुख प्रदान करती है, इन्हीं भुजाओं से आप दुष्टों का नाश करती हैं। आपका भाला अत्यधिक विशाल व सिर पर मुकुट हैं। हाथों में आपने शत्रु का कटा हुआ सिर पकड़ा हुआ है। दूसरे हाथ में आपने राक्षसों के रक्त से भरा हुआ प्याला लिया हुआ है और तीसरे हाथ में भाला बहुत ही सुंदर लग रहा है।

चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे, छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे।

सप्तम करदमकत असि प्यारी, शोभा अद्भुत मात तुम्हारी।

अष्टम कर भक्तन वर दाता, जग मनहरण रूप ये माता।

भक्तन में अनुरक्त भवानी, निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी।

आपके चौथे हाथ में खप्पर है तो पांचवे हाथ में खड्ग अर्थात तलवार है। छठे हाथ में आपने त्रिशूल लिया हुआ है। सातवें हाथ में करदमकत है जिससे आपकी शोभा बढ़ रही है। आठवें हाथ से आप अपने भक्तों को अभयदान दे रही हैं और आपका यह रूप पूरे जगत में प्रसिद्ध व मन को मोहित करने वाला है। आप भक्तों को अत्यधिक सुख प्रदान करने वाली हैं और ऋषि, मुनि व ज्ञानी पुरुष दिन-रात आपका नाम ही जपते हैं।

महशक्ति अति प्रबल पुनीता, तू ही काली तू ही सीता।

पतित तारिणी हे जग पालक, कल्याणी पापी कुल घालक।

शेष सुरेश न पावत पारा, गौरी रूप धर्यो इक बारा।

तुम समान दाता नहिं दूजा, विधिवत करें भक्तजन पूजा।

आपकी शक्ति का कोई अंत नहीं है और आपके कई रूप हैं। आप भयंकर रूप लिए काली भी हैं तो वही सौम्य रूप लिए माँ सीता भी हैं। आप अपने सौम्य रूप में इस जगत का पालन करती हैं और उसका कल्याण करती हैं तो वहीं भयंकर रूप में पापियों का नाश भी करती हैं। जब आपने गौरी का रूप धरा था तब शेषनाग व शिव भी आपको पार नहीं पा सके थे। आपके जैसा दानवीर कोई नहीं है और हम सभी भक्तगण विधिवत रूप से आपकी पूजा करते हैं।

रूप भयंकर जब तुम धारा, दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा।

नाम अनेकन मात तुम्हारे, भक्तजनों के संकट टारे।

कलि के कष्ट कलेशन हरनी, भव भय मोचन मंगल करनी।

महिमा अगम वेद यश गावैं, नारद शारद पार न पावैं।

आप जब क्रोधित हो जाती हैं तो दुष्टों की सेना में हाहाकार मच जाता है। आप उन सभी का वध कर देती हैं। हे माँ!! आपके तो गुणों के अनुसार अनेक नाम हैं और आप उसी के अनुसार ही अपने भक्तों के संकटों को दूर करती हैं। आप इस कलियुग के सभी प्रकार के संकटों को हरने वाली हैं और इस जगत का मंगल करने वाली हैं। आपकी महिमा का बखान तो सभी वेद भी करते हैं और उसे नारद मुनि व शारदा माता भी पार नहीं पा सकते हैं।

भू पर भार बढ्यौ जब भारी, तब तब तुम प्रकटीं महतारी।

आदि अनादि अभय वरदाता, विश्वविदित भव संकट त्राता।

कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा, उसको सदा अभय वर दीन्हा।

ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा, काल रूप लखि तुमरो भेषा।

जब कभी भी इस धरती पर पाप का बोझ बढ़ जाता है, तब-तब आप इस धरती पर अवतार रूप में प्रकट होती हो। आप आदि काल से ही सज्जन मनुष्यों को अभय का वरदान देती आ रही हैं और यह तो सभी जानते हैं कि आप ही इस जगत के संकट दूर करती हैं। जिस किसी ने भी आपका नाम लिया है, आपने उसे तुरंत ही अभय का वरदान दिया है। आपका ध्यान तो स्वयं शेषनाग व भगवान शिव भी करते हैं और काल भी आपका भेष धरते हैं।

कलुआ भैंरों संग तुम्हारे, अरि हित रूप भयानक धारे।

सेवक लांगुर रहत अगारी, चौसठ जोगन आज्ञाकारी।

त्रेता में रघुवर हित आई, दशकंधर की सैन नसाई।

खेला रण का खेल निराला, भरा मांस-मज्जा से प्याला।

कलुआ भैरों भी आपके साथ ही है जिन्होंने भयानक रूप धरा हुआ है। आपकी सेवा में लंगूर हमेशा ही तैयार रहते हैं और चौसठ जोगन आपकी आज्ञा का पालन करती हैं। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की रावण के साथ युद्ध में आप भी सहायता करने के लिए आयी थी। आपके द्वारा ही दुष्ट रावण की सेना में हाहाकार मच गया था। आपने उस युद्ध में अप्रत्यक्ष रूप से अलग ही खेल खेला था और अपने प्याले को राक्षसों के मांस व रक्त से भर लिया था।

रौद्र रूप लखि दानव भागे, कियौ गवन भवन निज त्यागे।

तब ऐसौ तामस चढ़ आयो, स्वजन विजन को भेद भुलायो।

ये बालक लखि शंकर आए, राह रोक चरनन में धाए।

तब मुख जीभ निकर जो आई, यही रूप प्रचलित है माई।

आपका रोद्र रूप देख कर तो सभी दानव अपना घरबार छोड़कर भागने लग जाते हैं। जब आपका क्रोध बढ़ता ही चला गया और वह शांत होने को नहीं आया तब आप सज्जन व दुर्जन पुरुषों में भेद करना ही भूल गयी और रोद्र रूप धारण कर लिया। आपका यह रूप देखकर सब भयभीत हो गए और तब भगवान शिव आपके चरणों में लेट गए। शिव को अपने चरणों में देखकर आपकी जीभ बाहर आ गयी और आपका यही रूप संपूर्ण विश्व में प्रचलित हो गया।

बाढ्यो महिषासुर मद भारी, पीड़ित किए सकल नर-नारी।

करूण पुकार सुनी भक्तन की, पीर मिटावन हित जन-जन की।

तब प्रगटी निज सैन समेता, नाम पड़ा मां महिष विजेता।

शुम्भ-निशुम्भ हने छन माहीं, तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं।

एक समय में महिषासुर राक्षस का आंतक बहुत बढ़ गया था और उसने मनुष्यों पर बहुत अत्याचार शुरू कर दिए थे। सभी भक्तों ने एक सुर में आपका ही नाम पुकारा था और आपने उनका कष्ट दूर करने की ठान ली। तब आप अपनी सेना सहित वहां प्रकट हुई और महिषासुर का सेना सहित अंत कर दिया जिस कारण आपका एक नाम महिष विजेता पड़ गया। आपने पलभर में ही शुम्भ-निशुम्भ जैसे आततायी राक्षसों का अंत कर दिया और आपके जैसा इस जगत में कोई दूसरा नहीं है।

मान मथनहारी खल दल के, सदा सहायक भक्त विकल के।

दीन विहीन करैं नित सेवा, पावैं मनवांछित फल मेवा।

संकट में जो सुमिरन करहीं, उनके कष्ट मातु तुम हरहीं।

प्रेम सहित जो कीरति गावैं, भव बन्धन सों मुक्ती पावैं।

आपने अपने भक्तों के मान की हमेशा ही रक्षा की है और उनकी सहायता की है। जो भी दीन-हीन व्यक्ति आपकी सेवा करता है, उसकी आपकी कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। संकट के समय जो आपका ध्यान करता है, आप उसके सभी कष्ट दूर कर देती हैं। जो भी आपकी कीर्ति का बखान प्रेम सहित करता है, आप उसके सभी सांसारिक बंधनों को तोड़ देती हैं।

काली चालीसा जो पढ़हीं, स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं।

दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा, केहि कारण मां कियौ विलम्बा।

करहु मातु भक्तन रखवाली, जयति जयति काली कंकाली।

सेवक दीन अनाथ अनारी, भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी।

जो भी इस काली चालीसा का पाठ करता है, वह बिना किसी बंधन के स्वर्ग लोक को प्राप्त करता है। हे मातारानी!! अब आप हम सभी पर अपनी दया दिखाइए और इसमें किसी तरह की देरी मत कीजिये। हे माँ काली कंकाली!! आप हम सभी भक्तों की रक्षा कीजिये। हम सभी आपके सेवक अनाथ व अनाड़ी हैं और भक्तिभाव से आपकी ही शरण में आये हैं।

॥ दोहा ॥

प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ।
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ॥

जो भी व्यक्ति प्रेम भाव से काली चालीसा पाठ करता है और मातारानी का ध्यान करता है, उसके सभी काम माँ काली की कृपा से बन जाते हैं और वह सभी सुखों को प्राप्त करता है।

काली चालीसा इन हिंदी में अर्थ सहित (Kali Chalisa Lyrics In Hindi) यहीं समाप्त हो जाती है। अब बारी आती है काली चालीसा के लाभ और उसके महत्व को जानने की। आइए अब इसके बारे में भी विस्तार से जान लेते हैं।

काली चालीसा का महत्व

माँ दुर्गा ने अपने गुणों के अनुसार कई तरह के रूप लिए हैं और उसी के अनुसार ही उनकी पूजा करने का विधान रहा है। अब मातारानी के कुछ रूप बहुत ही मनोहर, मन को शांति देने वाले तथा सौम्य रंग रूप वाले होते हैं लेकिन इन सभी रूपों के विपरीत माँ दुर्गा का माँ काली वाला रूप मन को भयभीत कर देने वाला, काले रंग का व गले में राक्षसों के कंकाल लिए हुए होता है। इस रूप में मातारानी रक्त से सनी हुई, क्रोधित व लाल आँखों वाली होती है।

काली चालीसा के माध्यम से हमें ना केवल माँ काली के रूप का वर्णन मिलता है अपितु उन्होंने किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जन्म लिया था, इसके बारे में भी पता चलता है। ऐसे में धर्म का कार्य करने वाले लोगों को तो माँ काली से भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि जिस तरह से माँ काली सज्जन मनुष्यों की अधर्मी लोगों से रक्षा कर पाने में समर्थ होती है, उतना तो मातारानी का कोई भी अन्य रूप नहीं कर सकता है।

इस तरह से माँ काली के महत्व को इस काली चालीसा के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है। इससे हमें यह ज्ञात होता है कि माँ काली भी उतनी ही आवश्यक हैं जितनी की मातारानी के अन्य रूप। अब यदि पाप बहुत अधिक बढ़ जाता है और वह धर्म के ऊपर हावी होने लगता है तो उस समय माँ काली ही हमारी व धर्म की रक्षा कर सकती हैं और अधर्म का नाश करने में समर्थ होती हैं। यही माँ काली चालीसा का मुख्य महत्व होता है।

काली चालीसा के लाभ

अब यदि आप प्रतिदिन सच्चे मन के साथ श्री काली चालीसा का पाठ करते हैं और माँ काली का ध्यान करते हैं तो अवश्य ही माँ आपकी हरेक इच्छा को पूरा करती हैं। यदि आपको कोई परेशान कर रहा है या आपके शत्रु हमेशा आपका नुकसान करने की ताक में रहते हैं या आपके जीवन में कई तरह के संकट आये हुए हैं और उनका हल नहीं निकल पा रहा है या फिर आपको किसी अन्य बात को लेकर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है तो निश्चित तौर पर आपको काली माता की चालीसा का पाठ करना चाहिए।

माँ काली के द्वारा अपने भक्तों की हरसंभव सहायता की जाती है। जो भी भक्तगण सच्चे मन से माँ काली चालीसा का जाप करता है तो माँ काली उसके हर तरह के संकटों का नाश कर देती हैं और उसे आगे का मार्ग दिखाती हैं। ऐसे में आपको अपने हर तरह के कष्ट, पीड़ा, दुःख, दर्द, संकट, परेशानियाँ, नकारात्मक भावनाएं इत्यादि को दूर करने के लिए नित्य रूप से काली चालीसा का पाठ करना चाहिए।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने काली चालीसा लिखी हुई (Kali Chalisa In Hindi) हिंदी में अर्थ सहित पढ़ ली है। साथ ही आपने काली चालीसा के लाभ और उसके महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

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