कृष्ण जन्मभूमि विवाद क्या है? जाने कृष्ण जन्मभूमि का इतिहास

कृष्ण जन्मभूमि का इतिहास

आप सभी अवश्य ही कृष्ण जन्मभूमि का इतिहास जानने को इच्छुक होंगे। मथुरा में स्थित श्री कृष्ण जन्मभूमि वह स्थल है जहाँ आज से हजारों वर्ष पूर्व द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। उस समय यह स्थल दुष्ट कंस का काराग्रह था जहाँ उसने अपनी बहन देवकी व उनके पति वासुदेव को बंधक बनाया हुआ था। आकाशवाणी के अनुसार उसे देवकी की आठवीं संतान का वध करना था जो स्वयं भगवान श्री कृष्ण थे।

भाद्रपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात्रि ठीक 12 बजे देवकी माता ने भगवान श्री कृष्ण को जन्म दिया। तब से ही इस स्थल की महत्ता अत्यधिक बढ़ गई। भगवान का जन्म स्थान होने के कारण यह स्थल पवित्र हो चुका था। जब भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी कर्तव्य पूर्ण कर लिए और द्वारका जाकर रहने लगे तब उनके प्रपोत्र ने सर्वप्रथम यहाँ मंदिर का निर्माण करवाया था।

बाद में अफगान और मुस्लिम आक्रांताओं के द्वारा इस मंदिर पर भीषण आक्रमण किए गए लेकिन हर बार इसका पहले से भी भव्य निर्माण करवा लिया गया। हालाँकि बाद में क्रूर शासक औरंगजेब के द्वारा कृष्ण मंदिर को तोड़कर इस पर मस्जिद खड़ी कर दी गई। वर्तमान में यहाँ भगवान श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर व उसके बीच जामा मस्जिद स्थित है। यहीं से कृष्ण जन्मभूमि विवाद (Krishna Janmabhoomi Vivad) की शुरुआत हुई जिसकी आज हम बात करने वाले हैं।

कृष्ण जन्मभूमि का इतिहास

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने समय में ही यह बता दिया था कि कलियुग में मनुष्य को किस-किस तरह के अधर्म व कुरीतियों का सामना करना पड़ सकता है। आगे चलकर भारत भूमि पर अफगान और मुस्लिम आक्रांताओं ने भीषण आक्रमण किए और यहाँ के लोगों पर असहनीय अत्याचार किए। वे सिंधु नदी को पार करके धीरे-धीरे भारत भूमि पर बढ़ते चले गए और एक दिन श्रीकृष्ण मंदिर को भी तोड़ डाला गया। इसे आज के समय में मथुरा जन्मभूमि विवाद (Krishna Janmabhoomi Case In Hindi) भी कहा जाता है।

यहाँ आपको यह जान लेना चाहिए कि आक्रांताओं के द्वारा श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर को एक बार नहीं बल्कि चार बार तोड़ा गया था। जितनी बार इसे तोड़ा गया, उतनी ही बार मंदिर का पुनर्निर्माण भी करवाया गया। हालाँकि औरंगजेब जैसे कृत मुस्लिम शासन में इस मंदिर को तोड़कर उस पर शाही ईदगाह मस्जिद खड़ी कर दी गई जो आज भी वहां स्थापित है। ऐसे में आज हम आपके सामने कृष्ण जन्म भूमि का इतिहास ही रखने जा रहे हैं।

#1. श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर – प्रथम

सर्वप्रथम इस स्थल पर मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के प्रपोत्र वसु ने करवाया था। कृष्ण भगवान की जन्मभूमि होने के कारण व उनकी लोकप्रियता के फलस्वरूप, वसु ने यहाँ एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था जो आज से हजारों वर्ष पहले हुआ था।

यहाँ पर सौदास के समय का एक शिलालेख भी मिला है जो कि ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ है। इसके अनुसार उस समय वसु ने इस मंदिर के निर्माण के साथ-साथ यहाँ मंदिर का तोरण द्वार व वेदिका का निर्माण करवाया था। यह मंदिर श्री कृष्ण जन्मभूमि का इतिहास दर्शाता है जो समय के साथ-साथ जर्जर हो गया।

#2. श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर – द्वितीय

इसके बाद भारत के महाराज विक्रमादित्य के द्वारा पुनः इस मंदिर का निर्माण 8वीं सदी में करवाया गया था। उस समय भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा बहुत धनवान व सभी सुख-सुविधाओं से संपन्न थी। शहर की भव्यता देखते ही बनती थी व शहर के बीचों-बीच भगवान कृष्ण की जन्मभूमि थी। इसी जन्मभूमि पर पुनः एक महाविशाल गगनचुम्बी मंदिर का निर्माण महाराज विक्रमादित्य द्वारा करवाया गया था।

इसी के साथ ही यह स्थल जैन व बुद्ध धर्म को मानने वालों के लिए भी मुख्य स्थल बन चुका था। यहाँ पर कई जैन व बुद्ध मंदिर बन चुके थे। इस तरह से यह नगरी हिंदू, जैन व बुद्ध धर्म के लिए एक पवित्र स्थल बन चुकी थी।

इसी समयकाल में भारतवर्ष पर मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण शुरू हो चुके थे। वे वर्तमान अफगानिस्तान, पाकिस्तान, पश्चिमी भारत के हिंदुओं, जैन व बौद्ध धर्म के लोगों का नरसंहार करते व मंदिरों-गुरुकुलों को ध्वस्त करते हुए आगे बढ़ रहे थे। 11 वीं सदी में जब दुष्ट राजा महमूद गजनवी भारत देश में आक्रमण करके यहाँ के मंदिरों व महलों की धन-संपदा को लूट रहा था तब उसने कृष्ण नगरी मथुरा पर भी आक्रमण किया था।

महमूद गजनवी के लेखक अल उत्बी ने अपनी पुस्तक तारीख-इ-यामिनी में भी कृष्ण जन्मभूमि की भव्यता व मुस्लिम आक्रांताओं के द्वारा इसके विध्वंस का विस्तार से उल्लेख किया है। अल उत्बी ने कृष्ण जन्मभूमि की भव्यता का परिचय देते हुए लिखा है कि

“मथुरा शहर के बीचों-बीच एक अति-विशाल मंदिर स्थित है जिसे यहाँ के लोग अपने आराध्य भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि कहते हैं। वे कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण किसी मनुष्य ने नही अपितु देव पुरुषों के द्वारा करवाया गया था। सच में यह मंदिर इतना भव्य व सुंदर है कि यदि हम ऐसा मंदिर बनवाना चाहें तो इसमें लाखों दीनारे लगेंगी व कम से कम 200 वर्षों का समय लगेगा वो भी कुशल कारीगरों की सहायता से। इस मंदिर की भव्यता को शब्दों या चित्रों के माध्यम से नहीं बताया जा सकता है।”

किन्तु महमूद गजनवी ने मथुरा पर बहुत अत्याचार किए। उसने असंख्य पंडितों व मंदिर के पुजारियों को मार डाला, महिलाओं के साथ दुराचार जैसा जघन्य अपराध किया, मंदिरों व लोगों के घरों में आग लगा दी व कृष्ण भगवान की जन्मभूमि पर बने इस विशाल मंदिर को भी ध्वस्त कर दिया गया। इसके साथ ही सोने, चांदी की मूर्तियों को खंडित करके लूट लिया गया। गजनवी ने केशवदेव का मंदिर भी इस समय तोड़ डाला था।

#3. श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर – तृतीय

इसके कुछ समय बाद विजयपाल देव तोमर जी मथुरा नगरी के महाराज बने व उसके शासन काल में फिर एक बार यहाँ विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया। संस्कृत में लिखे एक शिलालेख में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। विजयपाल जी के शासनकाल में जज्जा नाम के व्यक्ति ने यहाँ भगवान श्री कृष्ण को समर्पित आसमान छूते विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था जो बहुत ही भव्य था।

किन्तु विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण भारत देश के मंदिरों, महलों व गुरुकुलों पर तेजी से बढ़ते ही जा रहे थे। भारतवर्ष के लिए सबसे बुरा काल तब आया जब बारहवीं शताब्दी में भारत के सबसे शक्तिशाली और मुख्य राज्य दिल्ली के सिंहासन पर से महाराजा पृथ्वीराज चौहान को अपदस्थ कर दिया गया। अफगान शासक मोहम्मद गौरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत का सम्राट घोषित कर दिया। तब से भारत की सभ्यता, धर्म व संस्कृति पर प्रहार बहुत अधिक बढ़ गए क्योंकि भारत के मुख्य राज्य से हिंदू राजा को अपदस्थ कर दिया गया था।

उसके बाद कई वर्षों तक कृष्ण जन्मभूमि पर छोटे-मोटे आक्रमण होते रहे लेकिन 16वीं शताब्दी में क्रूर शासक सिकंदर लोदी के द्वारा पुनः इस मंदिर पर भीषण आक्रमण किया गया और इसे बुरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। मुस्लिम आक्रांताओं के द्वारा यह सभी आक्रमण कृष्ण जन्म भूमि का इतिहास मिटाने के उद्देश्य से ही किए गए थे।

#4. श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर – चतुर्थ

16वीं शताब्दी में ही ओरछा के राजा वीरसिंह जूदेव बुंदेला द्वारा पुनः इस मंदिर का निर्माण करवाया गया। इस समय मंदिर को इतना बड़ा बनवाया गया था कि यह आगरा शहर से भी दिखाई देता था। इसके साथ ही मुगल शासकों से इसकी रक्षा के लिए मंदिर के चारों ओर एक विशाल व मजबूत दीवार का निर्माण करवाया गया था जिसके अवशेष आज भी विद्यमान हैं। इसी के साथ राजा ने मंदिर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक विशाल कुएं का निर्माण करवाया था जिससे मंदिर में फव्वारा चलाया जाता था।

किन्तु अब भारतवर्ष की कमान विदेशी आक्रांताओं के इतिहास में सबसे क्रूर राजा औरंगजेब के हाथ में आ चुकी थी। दिल्ली के शासक औरंगजेब की आखों में यह मंदिर बहुत खटकता था। साथ ही वह मंदिर की भव्यता को देखकर ईर्ष्या और घृणा से भर चुका था। इसलिए उसने अपनी विशाल सेना के साथ मंदिर पर भीषण आक्रमण किया और एक बार पुनः मंदिर को बुरी तरह तोड़ दिया गया।

उस समय उसने मंदिर की भूमि को असंख्य पुजारियों, पंडितों, भक्तों और हिंदू सेना के रक्त से रंग दिया था। चारों और कृष्ण भक्तों के शव बिखरे पड़े थे। यह एक बहुत बड़ा नरसंहार था क्योंकि उसने विशाल सेना के साथ मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त करने के लिए आक्रमण किया था। राजा वीरसिंह ने मंदिर के पास जिस कुएं का निर्माण करवाया था, औरंगजेब ने उसी कुएं में लाखों हिंदुओं की गला काटकर हत्या करवा दी और उस कुएं में फिंकवा दिया।

मथुरा मस्जिद का इतिहास

ऊपर आपने जाना कि किस तरह से मुस्लिम आक्रांता व क्रूर शासक औरंगजेब के द्वारा कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को तोड़कर तहस नहस कर दिया गया था। इसी के साथ ही औरंगजेब को कृष्ण मंदिर के इतिहास के बारे में भी ज्ञान था और उसने अभी तक हजारों मंदिर ढहाए थे और लाखों हिन्दुओं की हत्या की थी। वह जानता था कि यदि वह उस मंदिर को तोड़कर ऐसे ही चला जाएगा तो बाद में चलकर फिर कोई हिन्दू राजा उस पर भव्य मंदिर खड़ा कर देगा।

ऐसे में औरंगजेब ने अपने मंत्रियों व सेनाओं को वहाँ पर एक विशाल मस्जिद का निर्माण करने का आदेश देकर कृष्ण जन्मभूमि का इतिहास मिटाने का काम किया। यह कृष्ण जी की जन्मस्थली के ठीक ऊपर बनाई जानी थी। ऐसे में औरंगजेब के आदेश पर तुरंत काम शुरू हो गया और कुछ ही महीनों में वहां एक विशाल मस्जिद खड़ी कर दी गई। आज हम सभी उसे शाही ईदगाह मस्जिद या मथुरा की जामा मस्जिद के नाम से जानते हैं।

इसी कारण ही कृष्ण जन्मभूमि विवाद शुरू हो गया। उसके बाद कई मौकों पर मंदिर के पुनर्निर्माण के प्रयास किए गए लेकिन वहां मस्जिद के खड़े हो जाने के कारण यह संभव नहीं हो पाया। हालाँकि वह मस्जिद आज भी वहां खड़ी है लेकिन इसी के साथ ही वहां कृष्ण मंदिर भी है जिसका निर्माण बीसवीं शताब्दी में पंडित मालवीय जी के द्वारा करवाया गया था।

Krishna Janmabhoomi Vivad | कृष्ण जन्मभूमि विवाद

धीरे-धीरे भारत देश पर अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन हो गया और मुगलों का प्रभाव कम हो गया। सन 1804 ईस्वी में मथुरा अंग्रेजों के अधीन हो गई। इसके बाद से ही मथुरा जन्मभूमि विवाद शुरू हो गया और विभिन्न न्यायालयों सहित कई जगह इसको लेकर लड़ाइयाँ लड़ी गई। आइए एक-एक करके इसका पूरा इतिहास जान लेते हैं।

  • ब्रिटिश कंपनी ने इस संपूर्ण जन्मभूमि की नीलामी की जिसे राजा पटनीमल के द्वारा खरीद लिया गया। वे यहाँ पर एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाना चाहते थे किंतु वहां के मुसलमानों ने इसका पुरजोर विरोध किया और ब्रिटिश न्यायालय में इसके विरुद्ध केस कर दिया। इस कारण राजा पटनीमल वहां मंदिर का निर्माण नही करवा सके।
  • समय के साथ-साथ यह केस चलता रहा हर बार इस भूमि का निर्णय राजा पटनीमल या उनके वंशजों के पक्ष में आया किंतु उसके बाद फिर यह केस किसी और न्यायालय में मुस्लिम पक्ष के द्वारा डाल दिया जाता। इस कारण वहां मंदिर का निर्माण नही हो पाता था।
  • सन 1940 के पास महामना पंडित मदनमोहन मालवीय व कैलाश नाथ काटजू भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि देखने मथुरा आए वहां का हाल देखकर उनका मन व्याकुल हो गया।
  • श्री कृष्ण की जन्मभूमि की ऐसी जर्जर स्थिति देखकर उनसे रहा नही गया और उन्होंने एक बड़े व्यापारी जुगल किशोर बिड़ला के द्वारा सन 1944 में वह स्थान पटनीमल के वंशजों से खरीद लिया।
  • जब बिड़ला जी यहाँ मंदिर का निर्माण शुरू करने वाले थे तभी मदनमोहन मालवीय जी की मृत्यु हो गई इस कारण मंदिर का निर्माण कार्य रुक गया।
  • इसके कुछ समय बाद बिड़ला जी ने मंदिर के नाम पर श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की स्थापना की व मंदिर का स्वामित्व उसे दे दिया।
  • सन 1953 में मुस्लिम पक्ष के द्वारा डाली गई याचिका न्यायालय से ख़ारिज होने के पश्चात वहां मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ।
  • इसके बाद यह केस विभिन्न न्यायालयों में चलता रहा व अंत में 1982 में कृष्ण जन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया लेकिन मस्जिद आज भी वहीं बीच में स्थित है।

अभी भी यह केस न्यायालय में चल रहा है। कृष्ण जन्मभूमि व शाही ईदगाह के बीच सन 1968 में एक समझौता हुआ था जिसके तहत न्यायालय ने दोनों पक्षों को ही पूजा का अधिकार दे दिया था। साथ ही मंदिर व मस्जिद को एक दीवार से अलग कर दिया गया। हालाँकि हिन्दू पक्ष के द्वारा न्यायालय के द्वारा करवाए गए इसी समझौते को चुनौती दी गई है और संपूर्ण भूमि श्रीकृष्ण मंदिर को सौंपने (Krishna Janmabhoomi Case In Hindi) को कहा गया है।

ध्यान दें: उपरोक्त दी गई सभी जानकारी इतिहास व विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है। यह हिन्दू धर्म की भावनाओं व पक्षकारों के द्वारा बताई गई बातों के संदर्भ में लिखा गया है जो कि वास्तविकता भी है। हम ऊपर बताए गए सभी दावों के प्रबल समर्थक हैं। चूँकि यह केस न्यायालय में चल रहा है तो वर्तमान में इसका न्यायिक प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं है।

कृष्ण जन्मभूमि का इतिहास से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: कृष्ण भगवान की जन्म भूमि कौन सी है?

उत्तर: कृष्ण भगवान की जन्म भूमि मथुरा में स्थित दुष्ट कंस का कारागार है जहाँ आज कृष्ण जन्म भूमि मंदिर व आक्रांता औरंगजेब के द्वारा बनाई गई शाही ईदगाह मस्जिद खड़ी है

प्रश्न: कृष्ण का जन्म कौन से गांव में हुआ था?

उत्तर: कृष्ण का जन्म किसी गाँव में नहीं बल्कि मथुरा नगरी में कंस के कारागृह में हुआ था आज वहीं पर कृष्ण जन्मभूमि मंदिर बना हुआ है

प्रश्न: कृष्ण जन्म भूमि विवाद क्या है?

उत्तर: कृष्ण जन्म भूमि विवाद यही है कि वर्षों पहले दुष्ट मुस्लिम आक्रांता औरंगजेब ने कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को ढहाकर वहां एक विशाल मस्जिद खड़ी कर दी थी जिसे अब हिन्दू पुनः माँग रहे हैं

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

अन्य संबंधित लेख:

Recommended For You

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझ से किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *