स्वामी दयानंद सरस्वती जी की 10 मुख्य पुस्तकों के बारे में जानकारी

Maharshi Dayanand Saraswati ki pustake

स्वामी दयानंद सरस्वती ने हिंदू धर्म की सभी धार्मिक पुस्तकों का गहन अध्ययन कर उनका विश्लेषण किया था। उन्हें सभी वेद व शास्त्र कंठस्थ हो गए थे (Books written by Swami Dayanand Saraswati in Hindi)। उन्होंने विश्व भर में हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से वेदों की ओर चलों का नारा दिया था जिसमे संपूर्ण विश्व को हिंदू धर्म की महत्ता से अवगत करवाना था (Swami Dayanand Saraswati books in Hindi)।

इसी उद्देश्य से उन्होंने स्वयं कई पुस्तकों व साहित्य की रचना की थी। पहले उन्होंने अपना लेखन संस्कृत भाषा में शुरू किया था किंतु धीरे-धीरे वे अपना लेखन हिंदी भाषा में करने लगे। उन्हें हिंदी भाषा से बहुत प्रेम था और वे भारत की आम भाषा के रूप में अंग्रेजी की बजाये हिंदी भाषा को देखना चाहते थे। उनका लेखन मुख्यतया दो ही भाषाओँ में लिखा गया था संस्कृत व हिंदी (Contribution of Swami Dayanand Saraswati in Hindi)।

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उन्होंने अपनी पुस्तकों में संपूर्ण वेदों का सार व्यक्त किया हैं व उसे सरल शब्दों में मनुष्य को आज के समयानुसार समझाने का प्रयास किया हैं। अपने लेखन व साहित्य के द्वारा उन्होंने मनुष्य को कई महत्वपूर्ण बातों को समझाने का प्रयास किया। उन्होंने लगभग 60 पुस्तकों की रचना की हैं जिसमे से मुख्य 10 पुस्तकों के बारे में आज हम जानेंगे।

स्वामी दयानंद सरस्वती के द्वारा लिखी गयी 10 मुख्य पुस्तकें व साहित्य (Swami Dayanand Saraswati books in Hindi)

#1. सत्यार्थ प्रकाश (Satyarth Prakash 1875 and 1884)

स्वामी जी के द्वारा लिखी गयी यह पुस्तक सबसे प्रसिद्ध व लोगों को जागरूक करने वाली हैं। पहली बार उन्होंने इस पुस्तक की रचना सन 1875 ईस्वीं में की थी जो हिंदी भाषा में थी। हालाँकि उन्होंने स्वयं इस पुस्तक में भाषा की त्रुटियाँ स्वीकार की थी क्योंकि उनकी मातृभाषा गुजराती थी व धर्म भाषा संस्कृत। इसलिये उनसे इस पुस्तक में भाषा की बहुत सी अशुद्धियाँ हुई थी। इस पुस्तक को उन्होंने फिर से सही करके लिखा व दूसरा संस्करण 1884 में प्रकाशित किया जो मान्य था।

यह पुस्तक हिंदी में थी किंतु वर्तमान समय में यह भारत की लगभग हर भाषा में व साथ ही विदेश की कई भाषाओँ में भी उपलब्ध हैं। इसमें 14 अध्याय हैं जिनमे वेदों का ज्ञान, चारों आश्रम, शिक्षा व अन्य धर्मों की कुरीतियों के बारे में बताया गया हैं।

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#2. संस्कृत वाक्य प्रबोधः (Sanskrit Vakyaprabodhini 1879)

संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार व लोगों को सिखाने के उद्देश्य से उन्होंने इस पुस्तक को लिखा। यह एक तरह से मनुष्य को संस्कृत सीखने व उसमे वार्तालाप करने के लिए प्रेरित करती हैं। इसमें आम बोलचाल के कई शब्दों को हिंदी की सहायता से संस्कृत में बताया गया हैं जिससे लोगों को सीखने में आसानी हो। यदि आप संस्कृत सीखने के इच्छुक हैं तो यह पुस्तक आपकी बहुत सहायता कर सकती हैं।

#3. गोकरुणानिधि (GokarunaNidhi 1880)

भारत देश कई वर्षों से अफगान, मुगल व स्वामी जी के समय अंग्रेजों के अधीन था। उन्होंने हिंदू धर्म को चिढ़ाने के उद्देश्य से गाय माता की बलि चढ़ाना, उनका मांस खाना, गोलियों के कारतूस में गाय का मांस लगाना जैसे प्रपंच कई रचे थे। इस कारण भारत की भूमि पर भी गाय माता को मारा जा रहा था।

इसके लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने गाय माता की रक्षा, कृषि में उनके सहयोग, उनसे मिलने वाले लाभ, गोबर गौमूत्र इत्यादि का उपयोग, इत्यादि का इस पुस्तक में विस्तृत वर्णन किया हैं ताकि समाज के लोगों में जागरूकता फैले व गौ हत्या रुके। इसी के साथ उन्होंने इस पुस्तक में अन्य जीवों को भी ना मरने व शाकाहार अपनाने की प्रेरणा दी हैं।

#4. आर्योद्देश्य रत्न माला (AaryoddeshyaRatnaMaala 1877)

इसमें उन्होंने 100 ऐसे शब्दों को समझाया हैं जो हिंदू साहित्य में मुख्य तौर पर प्रयोग में आते हैं। इन शब्दों को प्रयोग उन्हीने अपने आगे के साहित्य में भी किया हैं।

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#5. ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका (RigvedAadibBhasyaBhumika 1878)

यह हिंदू धर्म में वेदों के उत्थान, उनकी भूमिका व उनके उद्देश्य के बारें में बात करती हैं। ऋग्वेद चारों वेदों में सर्वप्रथम आता हैं। उन्होंने इस पुस्तक में ऋग्वेद का सारा सार बताने का प्रयास किया है (Rig veda by Dayanand Saraswati in Hindi)।

#6. व्यवहारभानु (VyavaharBhanu 1879)

यह मनुष्य जीवन के प्रतिदिन के व्यवहार व कार्यों से जुड़ी पुस्तक हैं। मनुष्य के जीवन में प्रतिदिन क्या काम होता हैं, उसे उन्हें किस प्रकार करना चाहिए, किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, क्या आदर्श अपनाने चाहिए, इत्यादि के ऊपर प्रकाश डाला गया हैं।

#7. चतुर्वेद विषय सूची (Chaturved Vishay Suchi 1971)

चारों वेदों पर लिखने से पहले उन्होंने एक पुस्तक प्रकाशित की जो उन पुस्तकों की विषय सूची थी। इसमें उन्होंने यह बताया कि वे आगे आने वाली पुस्तकों में वेदों की किस प्रकार व किस रूप में व्याख्या करेंगे व साथ ही उनके बारे में संक्षिप्त परिचय दिया।

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#8. ऋग्वेद भाष्य, यजुर्वेद भाष्य, अष्टाध्यायी भाष्य (Rigved Bhashyam 1877 to 1899, Yajurved Bhashyam 1878 to 1889 and Asthadhyayi Bhashya 1878 to 1879)

इसके बाद उन्होंने वेदों पर कई पुस्तकें प्रकाशित की जिसमे उन्होंने सभी वेदों के सार, भूमिका, शिक्षा इत्यादि के बारे में विस्तार से बताया। उका मुख्य उद्देश्य लोगों के मन में फैली भ्रांतियों को समाप्त कर उनके मन में वेदों का प्रकाश उजागर करने का था (Vedas by Dayanand Saraswati in Hindi)।

चूँकि वेद मुख्यतया संस्कृत भाषा में थे जो आम जन को जल्दी से समझ नही आते थे। इस कारण उन्हें धर्म का सहारा लेकर मुर्ख बनाना आसान था। इसलिए उन्होंने आम जन की भाषा में वेदों को समझाने के उद्देश्य से सभी वेदों का सार हिंदी भाषा में लिखा ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा जागरूक बने व वेदों को जाने।

#9. भागवत खंडन/ पाखंड खंडन/ वैष्णवमत खंडन (Bhagwat Khandnam/ Paakhand Khandan/ Vaishnavmat Khandan 1866)

यह पुस्तक उन्होंने हिंदू धर्म में फैले विभिन्न प्रकार के पाखंड, कुरीतियों व प्रपंच के विरोध स्वरुप में लिखी। इसमें उन्होंने कई प्रकार की कुरीतियों व उनके दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को बताया। साथ ही इसमें यह भी प्रकाश डाला गया कि इनका हिंदू धर्म के मूल अर्थात वेदों में कही कोई उल्लेख नही हैं। इस पुस्तक को उन्होंने कुंभ मेले में भी लोगों के बीच बंटवाया था।

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#10. पञ्च महायजना विधि (Panchmahayajya Vidhi 1874 and 1877)

इस पुस्तक में उन्होंने पृथ्वी के सभी अनमोल रत्नों जैसे कि भूमि, आकाश, वायु, जल इत्यादि को सुरक्षित व स्वच्छ रखने की बात कही हैं। साथ ही विभिन्न जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों को उचित सम्मान देने व उनकी हत्या ना करने की प्रेरणा दी गयी हैं।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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