द्रोणागिरी पर्वत कहां है? जाने वहाँ हनुमान जी की पूजा क्यों नही होती है

Dronagiri Parvat

उत्तराखंड में द्रोणागिरी पर्वत (Dronagiri Parvat) और वहाँ के गाँव में हनुमान जी पूजा नहीं की जाती है। इस गाँव और पर्वत का संबंध त्रेता युग में हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी लाने से जुड़ा हुआ है। हम सभी हनुमान जी की मुख्य तौर पर पूजा करते हैं और मंगलवार को तो उनके नाम का प्रसाद भी चढ़ाते हैं। वहीं उत्तराखंड का यह द्रोणागिरी गाँव एकमात्र ऐसी जगह है जहाँ हनुमान जी को नहीं पूजा जाता है।

ऐसे में यह द्रोणागिरी पर्वत कहां है (Dronagiri Parvat Kaha Hai) व इसके पीछे कौन-सी कहानी जुड़ी हुई है, इसके बारे में आज हम आपको बताएँगे। इतना ही नहीं, इस लेख में आपको लंका से द्रोणागिरी पर्वत की दूरी भी जानने को मिलेगी। तो आइए जाने द्रोणागिरी पर्वत का रहस्य व यहाँ के लोगों के द्वारा हनुमान की पूजा नहीं करने के पीछे की कहानी।

Dronagiri Parvat | द्रोणागिरी पर्वत

जब मेघनाद तथा लक्ष्मण का भीषण युद्ध चल रहा था तो उस समय मेघनाथ ने शक्ति बाण की सहायता से लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया था। इसका प्रहार इतना ज्यादा तेज था कि लक्ष्मण को बचाना लगभग असंभव था। ऐसे समय में लंका के राजवैद्य सुषेण की सहायता ली गई। उन्होंने इसका उपाय केवल एक बूटी बताया जो थी संजीवनी बूटी।

इस बूटी में इतनी शक्ति थी कि वह मरणासन्न व्यक्ति को भी जीवित कर सकती थी। अर्थात जिस व्यक्ति के अभी तक प्राण न निकले हो लेकिन वह कुछ ही पल का मेहमान हो तो उस व्यक्ति के प्राण यह बूटी बचा सकती थी।

इस कार्य को करने के लिए समय बहुत कम था तथा सूर्योदय से पहले-पहले संजीवनी बूटी का लाना आवश्यक था। इस काम को केवल हनुमान जी ही कर सकते थे। इसलिए सुषेण वैद्य ने उन्हें संजीवनी बूटी का पता बताया तथा बताया कि वह कैसी दिखती है। बूटी के स्थान का पता करके हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने हिमालय के लिए निकल पड़े।

द्रोणागिरी पर्वत का रहस्य

सुशेन वैद्य के बताए अनुसार हनुमान जी उत्तराखंड के द्रोणागिरी पर्वत जा पहुँचे लेकिन वहाँ पहुँचकर कई सारी बूटियों को देखकर अचंभे में पड़ गए। सुषेण वैद्य ने उन्हें बताया था कि संजीवनी बूटी में से प्रकाश निकलता है लेकिन वहाँ कई बूटियाँ ऐसी थी जिनमें से प्रकाश निकल रहा था। इसके साथ ही हनुमान जी के पास इतना समय नहीं था कि वे पुनः जाकर सुषेण वैद्य से पूछ सके कि कौन सी बूटी संजीवनी बूटी होगी अन्यथा लक्ष्मण के प्राण निकल जाते।

ऐसे समय में हनुमान ने अपनी बुद्धिमता से काम लिया तथा अपना शरीर पर्वत से भी विशालकाय कर लिया। इसके पश्चात उन्होंने उस पूरे पर्वत को ही उखाड़ लिया तथा अपने हाथ पर उठाकर लंका ले गए। उसके बाद सुषेण वैद्य ने संजीवनी बूटी से लक्ष्मण का उपचार किया जिससे उनके प्राण बच गए। इसके पश्चात सुषेण वैद्य की आज्ञा पाकर हनुमान द्रोणागिरी पर्वत को पुनः उसी स्थल पर छोड़ आए थे।

हनुमान जी के द्वारा संजीवनी बूटी के लिए पूरे द्रोणागिरी पर्वत को उठा कर ले जाने से द्रोणागिरी गाँव के लोग आज तक रूष्ट हैं। इसलिए वहाँ हनुमान जी का एक भी मंदिर नहीं है। साथ ही वहाँ लाल रंग का झंडा लगाना भी वर्जित है। आशा है एक दिन वहाँ के लोग हनुमान जी की महत्ता तथा उद्देश्य को समझेंगे तथा अपनी इस प्राचीन कुरीति का त्याग करेंगे।

Dronagiri Parvat Kaha Hai | द्रोणागिरी पर्वत कहां है?

यह तो आप जान ही गए हैं कि यह द्रोणागिरी पर्वत उत्तराखंड राज्य में पड़ता है। अब यह उत्तराखंड में कहाँ और किस जगह है, यह हम आपको बता देते हैं। तो उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के जोशीमठ क्षेत्र में यह पर्वत पड़ता है। इस द्रोणागिरी पर्वत को इसके द्रोणागिरी गाँव के नाम से जाना जाता है। हालाँकि इसका सही नाम दूनागिरी गाँव है। वहीं कुछ लोग इसे द्रोनागिरी गाँव भी बोल देते हैं।

यदि आप भी द्रोणागिरी पर्वत जाना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे पहले आपको उत्तराखंड के जोशीमठ पहुँचना होगा। वहाँ से लगभग 50 किलोमीटर आगे जुम्मा नाम की एक जगह आती है। यहीं से आप द्रोणागिरी पर्वत की पैदल चढ़ाई शुरू कर सकते हैं। आप चाहें तो यहाँ से द्रोणागिरी गाँव जाया जा सकता है जिसके साथ में धौली गंगा भी बहती है।

लंका से द्रोणागिरी पर्वत की दूरी

अब आप यह भी जान लें कि उत्तराखंड भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक राज्य है जबकि श्रीलंका दक्षिणी भाग में। ऐसे में हनुमान जी ने एक ही रात में दक्षिण भारत से उत्तर भारत और फिर उत्तर भारत से दक्षिण भारत की यात्रा की थी। ऐसे में उनके द्वारा कुल कितने किलोमीटर की दूरी तय की गई थी, यह जानना रोचक हो सकता है।

अब यदि हम मान लेते हैं कि हनुमान जी ने जहाँ से संजीवनी पर्वत उठाया था, वह यही द्रोणागिरी पर्वत ही था। तो लंका से द्रोणागिरी पर्वत की दूरी लगभग 3500 से 4000 किलोमीटर की है। हनुमान जी ने एक ही रात में लंका से द्रोणागिरी पर्वत और फिर द्रोणागिरी पर्वत से लंका तक की दूरी तय की थी। इस तरह एक ही रात या फिर यूँ कहें कि कुछ ही घंटों में हनुमान जी ने 7 से 8 हज़ार किलोमीटर की यात्रा कर ली थी।

द्रोणागिरी पर्वत से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: द्रोणागिरी पर्वत का क्या हुआ?

उत्तर: लक्ष्मण जी के उपचार के बाद जब वे ठीक हो गए तब राजवैद्य सुषेण ने हनुमान जी को द्रोणागिरी पर्वत वापस उसी जगह रख आने को कहा था, जहाँ से वो लाए थे

प्रश्न: द्रोणागिरी में भगवान हनुमान की पूजा क्यों नहीं की जाती है?

उत्तर: हनुमान जी यहाँ से संजीवनी बूटी ले जाने की बजाए पूरा का पूरा पर्वत ही उठा ले गए थे इसलिए द्रोणागिरी में भगवान हनुमान की पूजा नहीं की जाती है

प्रश्न: दूनागिरी पर्वत कहाँ स्थित है?

उत्तर: दूनागिरी पर्वत उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के जोशीमठ क्षेत्र में स्थित है यह द्रोणागिरी गाँव के पास में है

प्रश्न: हनुमान ने द्रोणागिरी को कहां रखा था?

उत्तर: हनुमान ने द्रोणागिरी को वापस वहीं रख दिया था जहाँ से वे उसे लाए थे यह जगह उत्तराखंड के चमोली जिले में है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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