पुंसवन संस्कार कब होता है? जाने पुंसवन संस्कार विधि सहित

पुंसवन संस्कार (Punsavan Sanskar)

हिंदू धर्म के कुल सोलह संस्कारों में पुंसवन संस्कार (Punsavan Sanskar) द्वितीय हैं जो गर्भाधान संस्कार के बाद आता है। गर्भाधान संस्कार में एक शिशु बीज रूप में माँ के शरीर में पहुँचता हैं तथा धीरे-धीरे उसका विकास होने लगता है। इसके तीन माह के पश्चात पुंसवन संस्कार किया जाता है।

अब आपके मन में इसे लेकर कई तरह के प्रश्न उठ रहे होंगे। जैसे कि यह पुंसवन संस्कार क्या हैं, पुंसवन संस्कार करने की विधि क्या है या पुंसवन संस्कार का उद्देश्य क्या है, इत्यादि। ऐसे में आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको पुंसवन संस्कार के बारे में (Punsavan Sanskar In Hindi) शुरू से लेकर अंत तक हर जानकारी देने वाले हैं।

Punsavan Sanskar | पुंसवन संस्कार क्या हैं?

सनातन धर्म में कुल सोलह संस्कार है जिनमें से तीन संस्कार मनुष्य के जन्म से पहले ही संपन्न करवा लिए जाते हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि पहले के तीन संस्कार शिशु के जन्म से पहले उसके माता-पिता के द्वारा किये जाते हैं जिसमें से दूसरा संस्कार यहीं पुंसवन संस्कार होता है। इस संस्कार के माध्यम से गर्भ में पल रहे शिशु के लिए कई तरह के बदलाव या परिवर्तन किए जाते हैं जो मुख्यतया उसकी माँ को करने होते हैं।

एक निश्चित अंतराल के बाद गर्भ पक्का हो जाता है और शिशु का विकास होने लगता है। उस समय माँ के द्वारा गर्भ में पल रहे शिशु के समुचित विकास के लिए अपनी दिनचर्या में कई तरह के बदलाव किए जाते हैं। इस कार्य में उसका पति और अन्य घरवाले भी उसका साथ देते हैं। ऐसा करने से शिशु का विकास तेजी से होता है और वह बिना किसी संकट के नौ माह बाद अपनी माँ के गर्भ से बाहर आता है।

भ्रूण के विकास में योगदान देने केकारण इस पुंसवन संस्कार का महत्व बहुत ज्यादा है। ऐसे में आज हम आपको पुंसवन संस्कार विधि (Punsavan Sanskar Vidhi) सहित उसके करने का समय भी आपको बताएँगे। आइए एक-एक करके इन सभी बातों के बारे में जान लेते हैं।

पुंसवन संस्कार कब होता है?

पुंसवन संस्कार महिला के गर्भधारण के तीसरे माह में किया जाना निर्धारित किया गया है। यह समय वह होता हैं जब एक महिला के गर्भधारण करने की पुष्टि हो जाती है तथा उसके अंदर भ्रूण का विकास होने लगता है। इस समय तक एक शिशु का लिंग निर्धारण नही होता हैं तथा वह लड़का होगा या लड़की इसके बारे में पता नही होता है।

इसलिये ऐसे समय में शिशु के लिंग निर्धारण से पहले Punsavan Sanskar को किया जाता हैं जिससे उसका समुचित विकास हो। इस समय तक शिशु का शारीरिक विकास होने की क्रिया शुरू होने लगती है तथा वह तेज गति से विकास करने लगता है।

पुंसवन संस्कार विधि (Punsavan Sanskar Vidhi)

इस संस्कार में गर्भधारण करने वाली महिला को अपने होने वाले शिशु को स्वस्थ तथा शक्तिशाली बनाने के लिए अपने रहन-सहन, खानपान, दिनचर्या इत्यादि में परिवर्तन लाने की आवश्यकता होती है। इसके लिए महिला को अपने आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिससे शिशु का विकास सही ढंग से हो सके।

महिला को शिशु के विकास को ध्यान में रखते हुए अपने व्यवहार में बदलाव लाना चाहिए तथा मानसिक अवसाद में नही जाना चाहिए। इस समय यदि महिला का मन प्रसन्न रहेगा तथा वह खुश रहेगी तभी शिशु पर उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

इसमें महिला को मंत्रों इत्यादि का भी जाप करवाया जाता हैं जिसका प्रभाव उसके होने वाले शिशु पर पड़ता है। यह सब क्रियाएं पुंसवन संस्कार के समय ही की जाती है।

पुंसवन संस्कार के द्वारा पुत्र प्राप्ति

Punsavan Sanskar को करने का एक उद्देश्य और भी था जिसमें महिला को पुत्र प्राप्ति के लिए यह करवाया जाता था। प्राचीन समय में युद्ध ज्यादा होते थे तथा उसमे पुरुष की हानि होती थी। इसलिये ऐसे समय में पुत्र को जन्म देने वाली महिला को भाग्यशाली समझा जाता था जो देश व समाज के लिए लड़ता था।

पुत्र प्राप्ति के लिए पुंसवन संस्कार का समय उचित माना गया था क्योंकि उस समय तक भ्रूण का लिंग विकसित नही होता था तथा उसका शारीरिक विकास बस प्रारंभ ही होने वाला होता था। ऐसे समय में महिला को विशिष्ट औषधि युक्त पदार्थ को उसकी दाहिनी नासिका से अंदर डाला जाता था जिससे पुरुष प्रजनांग शिशु के अंदर विकसित होते थे।

पुंसवन संस्कार का उद्देश्य क्या है?

पुंसवन संस्कार (Punsavan Sanskar In Hindi) का किया जाना अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि एक शिशु का शारीरिक विकास केवल उसकी माता पर निर्भर करता है। चूँकि एक माँ के गर्भ में ही नए जीव की उत्पत्ति होती हैं। इसलिये उसके किसी प्रकार के दोष से रहित होने, सुंदर काया होने तथा स्वस्थ व बलवान शरीर के होने के लिए माता का अपनी दिनचर्या में परिवर्तन करना अति-आवश्यक होता था।

पुंसवन संस्कार के द्वारा महिला एक सुयोग्य व कर्मठ संतान को जन्म देती हैं। साथ ही यह महिला और पुरुष के बीच आपसी समझ और प्रेम को विकसित करने में भी अहम योगदान देता है। इसके माध्यम से ना केवल महिला बल्कि उसका पति भी अपने जीवन में बदलाव लाता है ताकि होने वाले बच्चे के विकास में कोई बाधा उत्पन्न ना हो।

पुंसवन संस्कार से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: पुंसवन का अर्थ क्या है?

उत्तर: पुंसवन का अर्थ होता है गर्भ के विकास में तेजी लाना इसके माध्यम से माँ के गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए कई तरह के कार्य किए जाते हैं

प्रश्न: पुंसवन संस्कार कब किया जाता है?

उत्तर: पुंसवन संस्कार को सामान्य तौर पर गर्भधारण करने के तीसरे माह के पश्चात किया जाता है एक तरह से इसे दूसरी तिमाही की शुरुआत में करना होता है जो भ्रूण के विकास में सहायक होता है

प्रश्न: पुंसवन संस्कार किसे कहते हैं?

उत्तर: पुंसवन संस्कार में महिला गर्भधारण करने के तीन माह के पश्चात भ्रूण के विकास के लिए अपनी दिनचर्या और खानपान में कई तरह के परिवर्तन लाती है इन्हीं परिवर्तनों को ही पुंसवन संस्कार कहा जाता है

प्रश्न: पुंसवन संस्कार में क्या किया जाता है?

उत्तर: पुंसवन संस्कार में महिला एक आदर्श दिनचर्या का पालन करती है उसे अपने खानपान, रहन-सहन, कपड़ों, काम करना इत्यादि में कई तरह के बदलाव लाने होते हैं इसी के साथ ही मंत्रों का जाप करना और सकारात्मक चीज़े सुननी और पढ़नी होती है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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