क्या आप भारत के पाँच राज्यों में फैले विंध्याचल पर्वत की कहानी (Vindhyachal Parvat Ki Kahani) जानना चाहते हैं!! दरअसल विंध्याचल पर्वत की कथा महान ऋषि अगस्त्य से जुड़ी हुई (Vindhyachal Parvat Story In Hindi) है। विंध्याचल पर्वत को अगस्त्य ऋषि ने एक आदेश दिया था जिसका वह आज तक पालन कर रहा है।
इस कारण यह पर्वत ज्यादा ऊँचा ना होकर फैले हुए रूप में है। आज हम आपके साथ विंध्याचल पर्वत का रहस्य ही सांझा करने वाले हैं। आइए जाने अगस्त्य मुनि व विंध्याचल पर्वत से जुड़ी कहानी के बारे में।
विंध्याचल पर्वत की कहानी
एक समय की बात है जब उत्तर भारत में स्थित विंध्याचल पर्वत को अपनी शक्ति पर घमंड आ गया था। उसने स्वयं को विश्व में सर्वश्रेष्ठ पर्वत सिद्ध करने के लिए अपनी ऊँचाई को इतना अधिक बढ़ा लिया था कि स्वयं सूर्य देव का मार्ग अवरुद्ध हो गया था। विंध्याचल पर्वत की ऊँचाई बढ़ने के कारण सूर्य का प्रकाश धरती पर आगे नहीं बढ़ पा रहा था। इस कारण पृथ्वी लोक में उनका तेज कम हो गया (Vindhyachal Parvat Ki Kahani) था।
पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश सही से ना पहुँच पाने के कारण मनुष्य जाति के लिए संकट उत्पन्न होने लगा था। साथ ही सूर्य देव की स्तुति व आराधना करने में भी संकट आ खड़ा हुआ था। मनुष्यों की ऐसी स्थिति देखकर देवलोक में बैठे सभी देवता भी चिंता में पड़ गए। सभी मिलकर अगस्त्य मुनि के पास सहायता मांगने के लिए गए। जब अगस्त्य मुनि ने देवताओं की समस्या सुनी तो उन्हें भी विंध्याचल पर्वत के अहंकार पर क्रोध आया लेकिन उन्होंने अपनी बुद्धिमता से काम लिया।
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अगस्त्य मुनि गए विंध्याचल
अगस्त्य मुनि स्वयं विंध्याचल पर्वत पर गए। चूँकि विंध्याचल पर्वत ऋषि अगस्त्य की महानता व तप से परिचित थे, इसलिए उसने सर्वप्रथम उनकी पूजा-अर्चना की। इसके बाद वह उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और आदेश देने को कहा।
अगस्त्य मुनि ने उनसे कहा कि वे दक्षिण भारत की यात्रा पर जा रहे हैं लेकिन उनकी विंध्याचल की ऊँचाई आवश्यकता से अधिक होने के कारण वे उसे पार नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए ऋषि ने उन्हें आगे जाने के लिए मार्ग देने को कहा। यह सुनकर विंध्याचल पर्वत ने अगस्त्य ऋषि के चरणों में स्वयं को झुका लिया। इसके बाद ऋषि विंध्याचल पर्वत पर चढ़कर दक्षिण भारत जाने लगे।
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विंध्याचल पर्वत का रहस्य
विंध्याचल पर्वत का अगस्त्य मुनि के सम्मान में झुकना और उन्हें आगे बढ़ने के लिए रास्ता देना तो ठीक था लेकिन विंध्याचल पर्वत की कथा (Vindhyachal Parvat Story In Hindi) में असली मोड़ आना अभी बाकी था। जब अगस्त्य मुनि विंध्याचल पर्वत की दूसरी ओर पहुँच गए तब दक्षिण भारत की दिशा में आगे बढ़ने से पहले उन्होंने विंध्याचल से कहा कि जब तक वे दक्षिण से पुनः वापस नहीं आ जाते तब तक वे इसी अवस्था में ही रहे।
विंध्याचल पर्वत को पता था कि अगस्त्य मुनि कितने शक्तिशाली हैं। एक बार समुंद्र ने उन्हें अपना अहंकार दिखाया था तो वे उसका सारा जल पी गए थे। ऐसे में यदि उसने मुनि की बात का उल्लंघन किया तो वे उसे भी नष्ट कर सकते हैं। इसलिए विंध्याचल ने ऋषि की आज्ञा का पालन किया।
उसके बाद से अगस्त्य मुनि ने अपना आश्रम दक्षिण भारत में ही बना लिया व वहीं रहने लगे। उनके वापस ना लौटने के कारण विंध्याचल पर्वत आज भी उसी अवस्था में स्थित है। यही विंध्याचल पर्वत का रहस्य है कि अगस्त्य ऋषि के सम्मान में वह वैसे ही झुका रहा। इस कारण वह ज्यादा ऊँचा ना होकर भारत के कई राज्यों में फैला हुआ है।
इस प्रकार अगस्त्य मुनि ने अपनी बुद्धिमता से विंध्याचल पर्वत के अहंकार का सदा के लिए नाश कर दिया व उसे इसी प्रकार हमेशा के लिए छोड़ दिया। विंध्याचल पर्वत के पुनः नीचे हो जाने के कारण सूर्य का प्रकाश भी पृथ्वी पर बिना अवरोध के भलीभाँति आम जनमानस तक पहुँचने लगा। यही विंध्याचल पर्वत की कहानी (Vindhyachal Parvat Ki Kahani) और रहस्य दोनों थे।
विंध्याचल पर्वत की कहानी से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: विंध्याचल का पुराना नाम क्या है?
उत्तर: विंध्याचल का पुराना नाम विंध्याचल ही है। यह नाम पर्वत के उद्गम से ही दे दिया गया था जो आज तक चला आ रहा है।
प्रश्न: विंध्याचल पर्वत की ऊंचाई कितनी है?
उत्तर: विंध्याचल पर्वत की ऊंचाई 752 मीटर (2467 फीट) है।
प्रश्न: विंध्याचल में सती का कौन सा भाग गिरा था?
उत्तर: विंध्याचल में माता सती के बाएं हाथ का अंगूठा गिरा था। उसके बाद विंध्याचल पर्वत पर मातारानी का एक मंदिर बनाया गया था।
प्रश्न: विंध्याचल का रहस्य क्या है?
उत्तर: विंध्याचल का रहस्य यही है कि दक्षिण भारत की ओर जाते हुए अगस्त्य ऋषि ने इसे यूँ ही झुके रहने को कहा था। उसके बाद से यह ऋषि की आज्ञा का पालन कर रहा है।
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