बटुक भैरव चालीसा इन हिंदी PDF फाइल, अर्थ, महत्व व लाभ सहित

Batuk Bhairav Chalisa

बटुक भैरव भगवान शिव के ही एक रूप भैरव बाबा के रूप हैं। ऐसे में बटुक भैरव चालीसा (Batuk Bhairav Chalisa) का पाठ करने से हमे उनके गुणों, कार्यों, महत्ता इत्यादि के बारे में विस्तार से जानने को मिलता है। बटुक भैरव की चालीसा में इन सभी बातों के बारे में अच्छे से बताया गया है।

इस लेख में सर्वप्रथम श्री बटुक भैरव चालीसा (Shri Batuk Bhairav Chalisa) पढ़ने को मिलेगी। इसके बाद इस चालीसा का हिंदी अनुवाद किया जाएगा। फिर आपको बटुक भैरव चालीसा इन हिंदी PDF फाइल भी मिलेगी जिसे आप अपने मोबाइल में सेव कर सकते हैं। अंत में हम बटुक भैरव चालीसा के लाभ भी जानेंगे। आइए सबसे पहले पढ़ते हैं बटुक भैरव चालीसा हिंदी में।

Batuk Bhairav Chalisa | बटुक भैरव चालीसा

॥ दोहा ॥

विश्वनाथ को सुमरि मन,
धर गणेश का ध्यान।
भैरव चालीसा पढूं,
कृपा करहु भगवान॥

बटुकनाथ भैरव भजूं,
श्री काली के लाल।
छीतरमल पर कर कृपा,
काशी के कुतवाल॥

॥ चौपाई ॥

जय जय श्री काली के लाला,
रहो दास पर सदा दयाला।

भैरव भीषण भीम कपाली,
क्रोधवन्त लोचन में लाली।

कर त्रिशूल है कठिन कराला,
गल में प्रभु मुण्डन की माला।

कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला,
पीकर मद रहता मतवाला।

रुद्र बटुक भक्तन के संगी,
प्रेतनाथ भूतेश भुजंगी।

त्रैल तेश है नाम तुम्हारा,
चक्र तुण्ड अमरेश पियारा।

शेखरचंद्र कपाल विराजै,
स्वान सवारी पै प्रभु गाजै।

शिव नकुलेश चण्ड हो स्वामी,
बैजनाथ प्रभु नमो नमामी।

अश्वनाथ क्रोधेश बखाने,
भैरों काल जगत ने जाने।

गायत्री कहैं निमिष दिगम्बर,
जगन्नाथ उन्नत आडम्बर।

क्षेत्रपाल दशपाणि कहाये,
मंजुल उमानन्द कहलाये।

चक्रनाथ भक्तन हितकारी,
कहैं त्र्यम्बक सब नर नारी।

संहारक सुनन्द तव नामा,
करहु भक्त के पूरण कामा।

नाथ पिशाचन के हो प्यारे,
संकट मेटहु सकल हमारे।

कृत्यायू सुन्दर आनन्दा,
भक्त जनन के काटहु फन्दा।

कारण लम्ब आप भय भंजन,
नमोनाथ जय जनमन रंजन।

हो तुम देव त्रिलोचन नाथा,
भक्त चरण में नावत माथा।

त्वं अशतांग रुद्र के लाला,
महाकाल कालों के काला।

ताप विमोचन अरिदल नासा,
भाल चन्द्रमा करहिं प्रकाशा।

श्वेत काल अरु लाल शरीरा,
मस्तक मुकुट शीश पर चीरा।

काली के लाला बलधारी,
कहाँ तक शोभा कहूँ तुम्हारी।

शंकर के अवतार कृपाला,
रहो चकाचक पी मद प्याला।

शंकर के अवतार कृपाला,
बटुकनाथ चेटक दिखलाओ।

रवि के दिन जन भोग लगावें,
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावें।

दरशन करके भक्त सिहावें,
दारुड़ा की धार पिलावें।

मठ में सुन्दर लटकत झावा,
सिद्ध कार्य कर भैरों बाबा।

नाथ आपका यश नहीं थोड़ा,
करमें सुभग सुशोभित कोड़ा।

कटि घूँघरा सुरीले बाजत,
कंचनमय सिंहासन राजत।

नर नारी सब तुमको ध्यावहिं,
मनवांछित इच्छाफल पावहिं।

भोपा हैं आपके पुजारी,
करें आरती सेवा भारी।

भैरव भात आपका गाऊँ,
बार बार पद शीश नवाऊँ।

आपहि वारे छीजन धाये,
ऐलादी ने रूदन मचाये।

बहन त्यागि भाई कहाँ जावे,
तो बिन को मोहि भात पिन्हावे।

रोये बटुकनाथ करुणा कर,
गये हिवारे मैं तुम जाकर।

दुखित भई ऐलादी बाला,
तब हर का सिंहासन हाला।

समय ब्याह का जिस दिन आया,
प्रभु ने तुमको तुरत पठाया।

विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ,
तीन दिवस को भैरव जाओ।

दल पठान संग लेकर धाया,
ऐलादी को भात पिन्हाया।

पूरन आस बहन की कीनी,
सुर्ख चुन्दरी सिर धर दीनी।

भात भरा लौटे गुणग्रामी,
नमो नमामी अन्तर्यामी।

॥ दोहा ॥

जय जय जय भैरव बटुक,
स्वामी संकट टार।
कृपा दास पर कीजिए,
शंकर के अवतार॥

जो यह चालीसा पढ़े,
प्रेम सहित सत बार।
उस घर सर्वानन्द हों,
वैभव बढ़ें अपार॥

Shri Batuk Bhairav Chalisa | श्री बटुक भैरव चालीसा – अर्थ सहित

॥ दोहा ॥

विश्वनाथ को सुमरि मन, धर गणेश का ध्यान।
भैरव चालीसा पढूं, कृपा करहु भगवान॥

बटुकनाथ भैरव भजूं, श्री काली के लाल।
छीतरमल पर कर कृपा, काशी के कुतवाल॥

भगवान विश्वनाथ जी का सुमिरन कर व भगवान गणेश का ध्यान कर, मैं बटुक भैरव चालीसा का पाठ करता हूँ। हे भैरव बाबा, आप मुझ पर अपनी कृपा करें। हे काली के लाल, बटुकनाथ भैरव चालीसा का मैं भजन करता हूँ। हे काशी के कोतवाल! इस छीतरमल पर अपनी कृपा करें।

॥ चौपाई ॥

जय जय श्री काली के लाला, रहो दास पर सदा दयाला।

हे काली के लाल, आपकी जय हो, जय हो। अपने इस दास पर सदा कृपा बनाए रखें।

भैरव भीषण भीम कपाली, क्रोधवन्त लोचन में लाली।

भैरव बाबा का रूप अत्यंत भीषण, क्रोधवाला व लाल रंग का है।

कर त्रिशूल है कठिन कराला, गल में प्रभु मुण्डन की माला।

उन्होंने अपने हाथों में त्रिशूल धारण किया हुआ है और गले में असुरों की खोपड़ियों की माला है 

कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला, पीकर मद रहता मतवाला।

उनका वर्ण कृष्ण के समान सांवला है और वे मदिरा पीकर मस्त रहते हैं।

रुद्र बटुक भक्तन के संगी, प्रेतनाथ भूतेश भुजंगी।

उनका बटुक नामक रूद्र रूप हमेशा अपने भक्तों के साथ रहता है। वे प्रेतों के राजा, शिव व भुजंग हैं।

त्रैल तेश है नाम तुम्हारा, चक्र तुण्ड अमरेश पियारा।

उनका एक नाम त्रैल तेश भी है और वे चक्रतुंड अमरेश पियारा हैं।

शेखरचंद्र कपाल विराजै, स्वान सवारी पै प्रभु गाजै।

उनके मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है और वे कुत्ते की सवारी करते हैं।

शिव नकुलेश चण्ड हो स्वामी, बैजनाथ प्रभु नमो नमामी।

वे शिव हैं, नकुलेश हैं, चंड हैं और हम सभी के स्वामी भी। उन बैजनाथ प्रभु को हमारा नमन है।

अश्वनाथ क्रोधेश बखाने, भैरों काल जगत ने जाने।

उन अश्वनाथ व क्रोध के स्वामी का बखान सब करते हैं और भैरों बाबा की महिमा को पूरा जगत जानता है।

गायत्री कहैं निमिष दिगम्बर, जगन्नाथ उन्नत आडम्बर।

गायत्री माता दिगम्बर से उनके बारे में कहती हैं कि वे जगत के नाथ हैं।

क्षेत्रपाल दशपाणि कहाये, मंजुल उमानन्द कहलाये।

वे क्षेत्रपाल, दशपाणि, मंजुल, उमानंद इत्यादि नाम से भी जाने जाते हैं।

चक्रनाथ भक्तन हितकारी, कहैं त्र्यम्बक सब नर नारी।

वे चक्रनाथ के रूप में सभी भक्तों के हितों की रक्षा करते हैं और सभी मनुष्य उन्हें त्रयम्बक के नाम से भी जानते हैं।

संहारक सुनन्द तव नामा, करहु भक्त के पूरण कामा।

दुष्टों के संहार के कारण ही उनका हर जगह नाम है और वे अपने भक्तों के सब काम पूर्ण करते हैं।

नाथ पिशाचन के हो प्यारे, संकट मेटहु सकल हमारे।

भैरव बाबा भूत व पिशाचों के प्यारे हैं और हम सभी के सभी संकट मिटाते हैं।

कृत्यायू सुन्दर आनन्दा, भक्त जनन के काटहु फन्दा।

वे हम सभी को लंबी आयु, सुंदरता व आनंद प्रदान करते हैं और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर कर देते हैं।

कारण लम्ब आप भय भंजन, नमोनाथ जय जनमन रंजन।

वे अपने भक्तों के भय को दूर कर देते हैं और उनके नाम का स्मरण करने मात्र से ही मन को आनंद की अनुभूति होती है।

हो तुम देव त्रिलोचन नाथा, भक्त चरण में नावत माथा।

वे तीनों लोकों के स्वामी हैं और सभी भक्तगण उनके चरणों में अपना शीश नवाते हैं।

त्वं अशतांग रुद्र के लाला, महाकाल कालों के काला।

वे रुद्ररूपी हैं और महाकाल भी अर्थात तीनों कालों के राजा हैं जिनमें भूतकाल, वर्तमानकाल व भविष्यकाल आते हैं।

ताप विमोचन अरिदल नासा, भाल चन्द्रमा करहिं प्रकाशा।

उनके कारण ही सूर्य देव हमे रोशनी प्रदान करता है व चंद्रमा प्रकाश फैलाता है।

श्वेत काल अरु लाल शरीरा, मस्तक मुकुट शीश पर चीरा।

श्वेत काल में उनका शरीर लाल रंग का है और उनके मस्तक पर एक मुकुट है।

काली के लाला बलधारी, कहाँ तक शोभा कहूँ तुम्हारी।

वे काली के लाला हैं अर्थात काल के स्वामी हैं और उनकी महिमा का हम कहां तक बखान करें।

शंकर के अवतार कृपाला, रहो चकाचक पी मद प्याला।

वे भगवान शंकर के एक अवतार हैं जो हम सभी पर कृपा करते हैं। साथ ही वे मदिरा का प्याला पीकर मस्त रहते हैं।

शंकर के अवतार कृपाला, बटुकनाथ चेटक दिखलाओ।

वे भगवान शंकर के एक अवतार हैं जो हम सभी पर कृपा करते हैं। हे बटुकनाथ!! हमें अपने रूप के दर्शन दीजिए।

रवि के दिन जन भोग लगावें, धूप दीप नैवेद्य चढ़ावें।

सूर्य भगवान के दिन अर्थात रविवार के दिन सभी उन्हें धूप, दीप, नैवेद्य का भोग लगाते हैं।

दरशन करके भक्त सिहावें, दारुड़ा की धार पिलावें।

उनके दर्शन करने मात्र से ही भक्तों को आनंद मिलता है और वे सभी उन्हें दारू का भोग लगाते हैं।

मठ में सुन्दर लटकत झावा, सिद्ध कार्य कर भैरों बाबा।

वे सुंदर हैं और झूमते हुए चलते हैं। हे भैरों बाबा! हम सभी के सभी कार्य सिद्ध कर दीजिए।

नाथ आपका यश नहीं थोड़ा, करमें सुभग सुशोभित कोड़ा।

हे नाथ, आपका यश किसी से कम नही है और आपके हाथों में तो कोड़ा भी सुशोभित लगता है।

कटि घूँघरा सुरीले बाजत, कंचनमय सिंहासन राजत।

आपके पैरों में घुंघरू मधुर संगीत करते हुए बजते हैं और आप कंचन के सिंहासन पर विराजमान हैं।

नर नारी सब तुमको ध्यावहिं, मनवांछित इच्छाफल पावहिं।

जो नर-नारी आपका ध्यान करते हैं, उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार फल की प्राप्ति होती है।

भोपा हैं आपके पुजारी, करें आरती सेवा भारी।

भोपा आपके एक पुजारी हैं जो दिन-रात आपकी सेवा व आरती करते हैं।

भैरव भात आपका गाऊँ, बार बार पद शीश नवाऊँ।

मैं भैरव बाबा के भात गाता हूँ और बार-बार उनके चरणों में अपना शीश नवाता हूँ।

आपहि वारे छीजन धाये, ऐलादी ने रूदन मचाये।

आपके कारण ही ऐलादी का सबकुछ छिन गया और वह जोर-जोर से रोने लगा।

बहन त्यागि भाई कहाँ जावे, तो बिन को मोहि भात पिन्हावे।

बहन के त्याग से भाई अत्यंत दुखी हो गया और उसे समझ में नही आया कि वह भात कैसे भरे। 

रोये बटुकनाथ करुणा कर, गये हिवारे मैं तुम जाकर।

तब ऐलादी ने रो-रोकर आपके सामने याचना की और उसके बाद आप उसके पास गए।

दुखित भई ऐलादी बाला, तब हर का सिंहासन हाला।

आपने ऐलादी भाई के दुखों को कम किया और हर के सिंहासन को हिला दिया।

समय ब्याह का जिस दिन आया, प्रभु ने तुमको तुरत पठाया।

जिस दिन ऐलादी की बहन के ब्याह का समय आया, उस दिन भैरव बाबा ने आपको पाठ पढ़ाया।

विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ, तीन दिवस को भैरव जाओ।

विष्णु भगवान ने कहा कि अब देर मत करो और तीन दिन के लिए भैरव चालीसा का पाठ करो।

दल पठान संग लेकर धाया, ऐलादी को भात पिन्हाया।

वर पक्ष सब अपने दल के साथ वहां आया तब ऐलादी ने आपकी कृपा से भात भरा।

पूरन आस बहन की कीनी, सुर्ख चुन्दरी सिर धर दीनी।

आपके कारण ही ऐलादी ने अपनी बहन की सब आशाओं को पूर्ण किया और उनके माथे पर सुहाग की चुनरी ओढा दी।

भात भरा लौटे गुणग्रामी, नमो नमामी अन्तर्यामी।

भात भरकर सभी गाँव वाले लौट गए। हे भैरव बाबा!! आप अंतर्यामी हैं, आपको नमन है।

॥ दोहा ॥

जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार।
कृपा दास पर कीजिए, शंकर के अवतार॥

जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार।
उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बढ़ें अपार॥

हे बटुक भैरव बाबा!! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप हम सभी के संकटों को दूर करते हो। हे शंकर के अवतार!! आप अपने इस दास पर कृपा कीजिए। जो कोई भी भक्तगण इस चालीसा का सात बार पाठ कर लेता है, उसके घर में आनंद आता है और उसका वैभव बहुत बढ़ जाता है।

इस तरह से आज आपने बटुक भैरव चालीसा (Batuk Bhairav Chalisa) को अर्थ सहित पढ़ लिया है। अब हम इसकी पीडीएफ फाइल का लिंक भी देते हैं और साथ ही इसे पढ़ने से मिलने वाले लाभ और महत्व के बारे में भी बता देते हैं।

बटुक भैरव चालीसा इन हिंदी PDF

अब हम बटुक भैरव चालीसा की PDF फाइल भी आपके साथ साझा कर देते हैं

यह रहा उसका लिंक: बटुक भैरव चालीसा इन हिंदी PDF

ऊपर आपको लाल रंग में बटुक भैरव चालीसा इन हिंदी PDF फाइल का लिंक दिख रहा होगा। आपको बस उस पर क्लिक करना है और उसके बाद आपके मोबाइल या लैपटॉप में पीडीएफ फाइल खुल जाएगी। फिर आपके सिस्टम में इनस्टॉल एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर के हिसाब से डाउनलोड करने का विकल्प भी ऊपर ही मिल जाएगा।

श्री बटुक भैरव चालीसा का महत्व

बटुक भैरव चालीसा के माध्यम से भैरव बाबा के गुणों, शक्तियों, महत्व, महिमा इत्यादि के ऊपर प्रकाश डाला गया है। बटुक भैरव बाबा मुख्यतया भूतों और प्रेतों के राजा माने जाते हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि उनका इन पर पूर्ण रूप से नियंत्रण रहता है।

बटुक भैरव की चालीसा के माध्यम से हम भैरव बाबा की आराधना करते हैं। इससे भैरव बाबा आपसे प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा आप पर बरसाते हैं। बटुक भैरव जी के बारे में संपूर्ण परिचय देने और साथ ही उनकी आराधना करने के कारण ही बटुक भैरव चालीसा का महत्व बढ़ जाता है।

बटुक भैरव चालीसा के लाभ

जो भक्तगण प्रतिदिन सच्चे मन के साथ श्री बटुक भैरव चालीसा पढ़ते हैं, उन्हें कई तरह के अभूतपूर्व लाभ देखने को मिलते हैं। यदि उनके ऊपर या उनके घर में किसी नकारात्मक शक्ति या भूत-प्रेत का साया है तो वह बटुक भैरव की कृपा से स्वतः ही दूर हो जाता है। भैरव बाबा हमारे ऊपर से नकारात्मक शक्तियों, काला जादू, भूत, प्रेत इत्यादि को दूर करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

इसी के साथ ही आपको मानसिक शांति का भी अनुभव होता है। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि यदि आपके मन में बुरे विचार आते हैं या मानसिक अवसाद या किसी बात की चिंता सताती रहती है तो आपको बटुक भैरव चालीसा पढ़नी चाहिए। इससे आपका मन शांत होता है और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। यहीं श्री बटुक भैरव चालीसा के लाभ होते हैं।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने बटुक भैरव चालीसा अर्थ सहित (Batuk Bhairav Chalisa) पढ़ ली है। साथ ही आपने श्री बटुक भैरव चालीसा के पाठ से मिलने वाले लाभ और उसके महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आपको बटुक भैरव चालीसा इन हिंदी PDF फाइल को डाउनलोड करने में किसी तरह की समस्या होती है या आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो आप नीचे कमेंट करें। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देंगे।

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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