तुलसी चालीसा (Tulsi Chalisa) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित
हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत पवित्र व पूजनीय माना गया है। तुलसी को केवल पौधा नहीं अपितु उसे हमारी माता के समान दर्जा दिया गया है। तुलसी माता की कथा वृंदा व भगवान विष्णु से जुड़ी हुई है और इसी कारण भगवान विष्णु की हर पूजा में तुलसी मुख्य रूप से चढ़ाई जाती है। यदि आप तुलसी माता की पूजा करना चाहते हैं तो आज हम आपके सामने तुलसी चालीसा का पाठ (Tulsi Chalisa) ही करने जा रहे हैं।
तुलसी माता की चालीसा नमो नमो तुलसी महारानी चालीसा (Tulsi Chalisa Lyrics In Hindi) जगत प्रसिद्ध है किन्तु क्या आप जानते हैं कि तुलसी माता चालीसा एक नहीं बल्कि दो-दो हैं। एक तुलसी चालीसा सर्वप्रसिद्ध है तो दूसरी कम लोगों को ज्ञात होती है। ऐसे में हम दोनों प्रकार की तुलसी चालीसा को आपके समक्ष रखने वाले हैं।
इसके साथ ही बहुत से भक्त तुलसी चालीसा (अर्थ सहित) जानना चाहते हैं। भक्तों की इसी माँग को ध्यान में रखते हुए आज हम केवल श्री तुलसी चालीसा का पाठ ही नहीं करेंगे अपितु तुलसी चालीसा हिंदी में (Tulsi Chalisa In Hindi) भी आपके सामने रखेंगे। इसके साथ ही आपको तुलसी जी की चालीसा का महत्व व लाभ भी पढ़ने को मिलेंगे, तो आइये पढ़ें चालीसा तुलसी माता की।
नमो नमो तुलसी महारानी चालीसा (Tulsi Chalisa Lyrics In Hindi)
।। दोहा ।।
श्री तुलसी महारानी, करूँ विनय सिरनाय।
जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।
।। चौपाई ।।
नमो नमो तुलसी महारानी, महिमा अमित न जाए बखानी।
दियो विष्णु तुमको सनमाना, जग में छायो सुयश महाना।
विष्णुप्रिया जय जयति भवानि, तिहूं लोक की हो सुखखानी।
भगवत पूजा कर जो कोई, बिना तुम्हारे सफल न होई।
जिन घर तव नहिं होय निवासा, उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।
करे सदा जो तव नित सुमिरन, तेहिके काज होय सब पूरन।
कातिक मास महात्म तुम्हारा, ताको जानत सब संसारा।
तव पूजन जो करैं कुंवारी, पावै सुन्दर वर सुकुमारी।
कर जो पूजा नितप्रति नारी, सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।
वृद्धा नारी करै जो पूजन, मिले भक्ति होवै पुलकित मन।
श्रद्धा से पूजै जो कोई, भवनिधि से तर जावै सोई।
कथा भागवत यज्ञ करावै, तुम बिन नहीं सफलता पावै।
छायो तब प्रताप जगभारी, ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।
तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन में, सकल काज सिधि होवै क्षण में।
औषधि रूप आप हो माता, सब जग में तव यश विख्याता।
देव रिषी मुनि औ तपधारी, करत सदा तव जय जयकारी।
वेद पुरानन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया।
नमो नमो जै जै सुखकारनि, नमो नमो जै दुखनिवारनि।
नमो नमो सुखसम्पति देनी, नमो नमो अघ काटन छेनी।
नमो नमो भक्तन दुःख हरनी, नमो नमो दुष्टन मद छेनी।
नमो नमो भव पार उतारनि, नमो नमो परलोक सुधारनि।
नमो नमो निज भक्त उबारनि, नमो नमो जनकाज संवारनि।
नमो नमो जय कुमति नशावनि, नमो नमो सब सुख उपजावनि।
जयति जयति जय तुलसीमाई, ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।
निजजन जानि मोहि अपनाओ, बिगड़े कारज आप बनाओ।
करूँ विनय मैं मात तुम्हारी, पूरण आशा करहु हमारी।
शरण चरण कर जोरि मनाऊँ, निशदिन तेरे ही गुण गाऊँ।
करहु मात यह अब मोपर दाया, निर्मल होय सकल ममकाया।
मांगू मात यह बर दीजै, सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।
जानूं नहिं कुछ नेम अचारा, छमहु मात अपराध हमारा।
बारह मास करै जो पूजा, ता सम जग में और न दूजा।
प्रथमहि गंगाजल मंगवावे, फिर सुन्दर स्नान करावे।
चन्दन अक्षत पुष्प चढ़ावे, धूप दीप नैवेद्य लगावे।
करे आचमन गंगा जल से, ध्यान करे हृदय निर्मल से।
पाठ करे फिर चालीसा की, अस्तुति करे मात तुलसी की।
यह विधि पूजा करे हमेशा, ताके तन नहिं रहै क्लेशा।
करै मास कार्तिक का साधन, सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं।
है यह कथा महा सुखदाई, पढ़ै सुने सो भव तर जाई।
।। दोहा ।।
यह श्री तुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।
गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय।।
तुलसी चालीसा हिंदी में (Tulsi Chalisa In Hindi)
।। दोहा ।।
श्री तुलसी महारानी, करूँ विनय सिरनाय।
जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।
हे तुलसी माता!! मैं सिर झुकाकर आपसे विनती करता हूँ कि यदि मेरे ऊपर कोई संकट या विपदा है तो आप उसको दूर कर दीजिये।
।। चौपाई ।।
नमो नमो तुलसी महारानी, महिमा अमित न जाए बखानी।
दियो विष्णु तुमको सनमाना, जग में छायो सुयश महाना।
विष्णुप्रिया जय जयति भवानि, तिहूं लोक की हो सुखखानी।
भगवत पूजा कर जो कोई, बिना तुम्हारे सफल न होई।
हे तुलसी महारानी!! आपको मेरा नमन है। आपकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है। स्वयं भगवान विष्णु ने आपके मान को बढ़ाया है जिसके कारण आपका यश संपूर्ण विश्व में फैल गया है। आप ही भगवान विष्णु को प्रिय हो और आप ही तीनों लोकों में सुखों की खान हो। जो कोई भी भगवान विष्णु की पूजा करता है, वह आपके बिना संपन्न नहीं हो सकती है।
जिन घर तव नहिं होय निवासा, उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।
करे सदा जो तव नित सुमिरन, तेहिके काज होय सब पूरन।
कातिक मास महात्म तुम्हारा, ताको जानत सब संसारा।
तव पूजन जो करैं कुंवारी, पावै सुन्दर वर सुकुमारी।
जिस घर में तुलसी का निवास नहीं होता है, वहां भगवान विष्णु भी नहीं बसते हैं। जो कोई भी तुलसी माता का प्रतिदिन ध्यान करता है, उसके सभी काम अपने आप बन जाते हैं। कार्तिक मास आपका ही है जब संपूर्ण विश्व आपकी आराधना करता है। उस समय यदि कोई कुंवारी स्त्री आपकी पूजा कर लेती है तो उसे एक सुन्दर वर की प्राप्ति होती है।
कर जो पूजा नितप्रति नारी, सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।
वृद्धा नारी करै जो पूजन, मिले भक्ति होवै पुलकित मन।
श्रद्धा से पूजै जो कोई, भवनिधि से तर जावै सोई।
कथा भागवत यज्ञ करावै, तुम बिन नहीं सफलता पावै।
यदि कोई विवाहित नारी आपकी पूजा करती है तो उसके घर में सुख व संपदा आती है तथा उसके पति का काम अच्छा चलता है। यदि कोई वृद्ध नारी आपकी पूजा करती है तो उसे आपकी कृपा से भक्ति मिलती है तथा उसका मन आनंदित होता है। जो कोई भी श्रद्धा भाव से तुलसी माता की चालीसा गाता है, उसे मुक्ति मिल जाती है और वह भाव सागर को पार कर लेता है। भागवत कथा भी आपके बिना सफल नहीं हो सकती है।
छायो तब प्रताप जगभारी, ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।
तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन में, सकल काज सिधि होवै क्षण में।
औषधि रूप आप हो माता, सब जग में तव यश विख्याता।
देव रिषी मुनि औ तपधारी, करत सदा तव जय जयकारी।
जो कोई भी सच्चे मन से आपका ध्यान करता है, उसका यश संपूर्ण जगत में फैल जाता है। आप ही यंत्र व तंत्र की माता हैं और आपके कारण ही इस जगत में सब काम बनते हैं। आपका उपयोग कई रोगों की औषधि के रूप में भी किया जाता है जिसे संपूर्ण जगत जानता है। देवता, ऋषि, मुनि व तपस्वी लोग सभी आपका ही ध्यान करते हैं और आपकी जय-जयकार करते हैं।
वेद पुरानन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया।
नमो नमो जै जै सुखकारनि, नमो नमो जै दुखनिवारनि।
नमो नमो सुखसम्पति देनी, नमो नमो अघ काटन छेनी।
नमो नमो भक्तन दुःख हरनी, नमो नमो दुष्टन मद छेनी।
वेदों और पुराणों में भी आपके यश का बखान किया गया है और वे भी आपकी महिमा को पार नहीं सके हैं। हम सभी को सुख प्रदान करने वाली, दुखों को दूर करने वाली, सुख-संपत्ति देने वाली, कष्टों का नाश करने वाली, भक्तों के दुःख हरने वाली तथा दुष्टों का नाश करने वाली तुलसी माता!! हम सभी का आपको नमन है।
नमो नमो भव पार उतारनि, नमो नमो परलोक सुधारनि।
नमो नमो निज भक्त उबारनि, नमो नमो जनकाज संवारनि।
नमो नमो जय कुमति नशावनि, नमो नमो सब सुख उपजावनि।
जयति जयति जय तुलसीमाई, ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।
हमें भव सागर पार करवाने वाली, परलोक में सुधार लाने वाली, भक्तों को मोक्ष देने वाली, हमारे काम सही करने वाली, अज्ञानता का नाश करने वाली तथा हम सभी को सुख ही सुख देने वाली तुलसी माता!! आपको हम सभी का नमन है। हे तुलसी माता!! आपकी जय हो, जय हो। हम सभी अपना शीश झुकाकर आपका ध्यान करते हैं।
निजजन जानि मोहि अपनाओ, बिगड़े कारज आप बनाओ।
करूँ विनय मैं मात तुम्हारी, पूरण आशा करहु हमारी।
शरण चरण कर जोरि मनाऊँ, निशदिन तेरे ही गुण गाऊँ।
करहु मात यह अब मोपर दाया, निर्मल होय सकल ममकाया।
हे तुलसी माता! हमें अपना मान कर अपना लीजिये और हमारे सभी बिगड़े हुए काम बना दीजिये। मैं आपके सामने विनती करता हूँ कि आप हमारी आशाओं को पूरा कीजिये। मैं आपके चरणों का ध्यान कर आपको मनाता हूँ और दिन-रात आपका ही ध्यान करता हूँ। अब आप मुझ पर दया कीजिये और मेरे शरीर को निर्मल बना दीजिये।
मांगू मात यह बर दीजै, सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।
जानूं नहिं कुछ नेम अचारा, छमहु मात अपराध हमारा।
बारह मास करै जो पूजा, ता सम जग में और न दूजा।
मैं आपसे यही वरदान मांगता हूँ कि आप मेरी सभी मनोकामनाओं को पूरा कर दीजिये। मैं तो अज्ञानी हूँ और आप मेरे अपराधों को क्षमा कर दीजिये। जो कोई भी बारह महीने तुलसी माता की पूजा करता है, उसके जैसा इस जगत में कोई दूसरा नहीं होता है।
प्रथमहि गंगाजल मंगवावे, फिर सुन्दर स्नान करावे।
चन्दन अक्षत पुष्प चढ़ावे, धूप दीप नैवेद्य लगावे।
करे आचमन गंगा जल से, ध्यान करे हृदय निर्मल से।
पाठ करे फिर चालीसा की, अस्तुति करे मात तुलसी की।
सबसे पहले गंगा जल लेकर आपको स्नान करवाना चाहिए। उसके बाद आपको चंदन, अक्षत व पुष्प चढ़ाने चाहिए। इसके साथ ही आपके सामने धूप व दीपक जलाना चाहिए और नैवेद्य का भोग लगाना चाहिये। गंगाजल से आचमन कर अर्थात अपनी शुद्धि कर, हमें निर्मल हृदय से माता तुलसी का ध्यान करना चाहिए। इसके पश्चात तुलसी चालीसा का पाठ करना चाहिए।
यह विधि पूजा करे हमेशा, ताके तन नहिं रहै क्लेशा।
करै मास कार्तिक का साधन, सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं।
है यह कथा महा सुखदाई, पढ़ै सुने सो भव तर जाई।
जो कोई भी इस विधि के साथ तुलसी माता की चालीसा का पाठ कर लेता है, उसके सभी दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं। कार्तिक के महीने में यदि हम प्रतिदिन तुलसी चालीसा का पाठ करते हैं और इसे सुनते हैं तो हम भव सागर को पार कर जाते हैं और मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
।। दोहा ।।
यह श्री तुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।
गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय।।
जो कोई भी भक्तगण इस तुलसी चालीसा का पाठ करता है, उसे श्री हरि की कृपा से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और उसकी प्रत्येक इच्छा पूर्ण हो जाती है।
तुलसी चालीसा – द्वितीय (Tulsi Chalisa)
।। दोहा ।।
जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी।।
श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब।
जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब।।
।। चौपाई ।।
धन्य धन्य श्री तलसी माता, महिमा अगम सदा श्रुति गाता।
हरि के प्राणहु से तुम प्यारी, हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी।
जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो, तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो।
हे भगवन्त कन्त मम होहू, दीन जानी जनि छाडाहू छोहू।
सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी, दीन्हो श्राप कध पर आनी।
उस अयोग्य वर मांगन हारी, होहू विटप तुम जड़ तनु धारी।
सुनी तुलसी हीँ श्रप्यो तेहिं ठामा, करहु वास तुहू नीचन धामा।
दियो वचन हरि तब तत्काला, सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला।
समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा, पुजिहौ आस वचन सत मोरा।
तब गोकुल मह गोप सुदामा, तासु भई तुलसी तू बामा।
कृष्ण रास लीला के माही, राधे शक्यो प्रेम लखी नाही।
दियो श्राप तुलसिह तत्काला, नर लोकही तुम जन्महु बाला।
यो गोप वह दानव राजा, शंख चुड नामक शिर ताजा।
तुलसी भई तासु की नारी, परमसती गुण रूप अगारी।
अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ, कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ।
वृन्दा नाम भयो तुलसी को, असुर जलन्धर नाम पति को।
करि अति द्वन्द अतुल बलधामा, लीन्हा शंकर से संग्राम।
जब निज सैन्य सहित शिव हारे, मरही न तब हर हरिही पुकारे।
पतिव्रता वृन्दा थी नारी, कोऊ न सके पतिहि संहारी।
तब जलन्धर ही भेष बनाई, वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई।
शिव हित लही करि कपट प्रसंगा, कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा।
भयो जलन्धर कर संहारा, सुनी उर शोक उपारा।
तिही क्षण दियो कपट हरि टारी, लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी।
जलन्धर जस हत्यो अभीता, सोई रावन तस हरिही सीता।
अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा, धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा।
यही कारण लही श्राप हमारा, होवे तनु पाषाण तुम्हारा।
सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे, दियो श्राप बिना विचारे।
लख्यो न निज करतूती पति को, छलन चह्यो जब पारवती को।
जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा, जग मह तुलसी विटप अनूपा।
धग्व रूप हम शालिग्रामा, नदी गण्डकी बीच ललामा।
जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं, सब सुख भोगी परम पद पईहै।
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा, अतिशय उठत शीश उर पीरा।
जो तुलसी दल हरि शिर धारत, सो सहस्त्र घट अमृत डारत।
तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी, रोग दोष दुःख भंजनी हारी।
प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर, तुलसी राधा में नाही अन्तर।
व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा, बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा।
सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही, लहत मुक्ति जन संशय नाही।
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत, तुलसिहि निकट सहसगुण पावत।
बसत निकट दुर्बासा धामा, जो प्रयास ते पूर्व ललामा।
पाठ करहि जो नित नर नारी, होही सुख भाषहि त्रिपुरारी।
।। दोहा ।।
तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी।
दीपदान करि पुत्र फल पावही बन्ध्यहु नारी।।
सकल दुःख दरिद्र हरि हार ह्वै परम प्रसन्न।
आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र।।
लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम।।
तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास।।
तुलसी चालीसा (अर्थ सहित) – (Shri Tulsi Chalisa – With Meaning)
।। दोहा ।।
जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी।।
श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब।
जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब।।
ईश्वर प्रिय, सत्य पाठ पर चलने वाली और सुखों को प्रदान करने वाली तुलसी माता!! आपकी जय हो, जय हो। श्री हरी को प्रिय व वृंदा के रूप में गुणों की खान!! आपको हमारा नमन है। आप श्रीहरि के मस्तक पर विराजित हैं और अब आप हमें अमर होने का वरदान दीजिये। हे माँ वृन्दावनी!! अब आप हमारे काम बनाने में देरी मत कीजिये।
।। चौपाई ।।
धन्य धन्य श्री तलसी माता, महिमा अगम सदा श्रुति गाता।
हरि के प्राणहु से तुम प्यारी, हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी।
जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो, तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो।
हे भगवन्त कन्त मम होहू, दीन जानी जनि छाडाहू छोहू।
हे तुलसी माता!! आप धन्य हो। हम सभी हमेशा आपका ही गुणगान करते हैं। आप श्रीहरि को प्राण से भी अधिक प्रिय हो और आपने उन्हें पाने के लिए बहुत कठिन तपस्या की थी। आपकी तपस्या से प्रसन्न होकर हरि ने आपको दर्शन दिए और आपने उनके सामने हाथ जोड़कर विनती की। आपने भगवान विष्णु को पति रूप में माँग लिया लेकिन श्री विष्णु ने आपको अज्ञानी समझ कर छोड़ दिया।
सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी, दीन्हो श्राप कध पर आनी।
उस अयोग्य वर मांगन हारी, होहू विटप तुम जड़ तनु धारी।
सुनी तुलसी हीँ श्रप्यो तेहिं ठामा, करहु वास तुहू नीचन धामा।
दियो वचन हरि तब तत्काला, सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला।
समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा, पुजिहौ आस वचन सत मोरा।
जब लक्ष्मी माता को आपकी इस बात का ज्ञान हुआ तो उन्हें बहुत क्रोध आया और उन्होंने आपको श्राप दे दिया। आपके द्वारा पति के रूप में अयोग्य वर का चुनाव किये जाने के कारण लक्ष्मी माता से आपको जड़ सहित वृक्ष होने का श्राप मिला। यह देखकर आपने भी भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे भी पत्थर रूप में आपके साथ निवास करेंगे।
यह सब देख कर भगवान विष्णु ने वचन दिया जिससे सभी के मन में बेचैनी छा गयी। उन्होंने कहा कि भविष्य में वे तुलसी माता के पति बनेंगे और उनकी पूजा हर जगह की जाएगी।
तब गोकुल मह गोप सुदामा, तासु भई तुलसी तू बामा।
कृष्ण रास लीला के माही, राधे शक्यो प्रेम लखी नाही।
दियो श्राप तुलसिह तत्काला, नर लोकही तुम जन्महु बाला।
यो गोप वह दानव राजा, शंख चुड नामक शिर ताजा।
तब गोकुल में गोप सुदामा की आप पत्नी बनी। द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण रासलीला रचा रहे थे तब माता राधा को आपके प्रेम पर शंका हुई। माता राधा ने उसी समय तुलसी को श्राप दिया कि आप मनुष्य लोक में जन्म लेंगी और उस युग में शंख चुड नामक राक्षस राजा से आपका विवाह होगा।
तुलसी भई तासु की नारी, परमसती गुण रूप अगारी।
अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ, कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ।
वृन्दा नाम भयो तुलसी को, असुर जलन्धर नाम पति को।
करि अति द्वन्द अतुल बलधामा, लीन्हा शंकर से संग्राम।
तुलसी माता तो परमसती व गुणों को लिए हुए नारी हैं। इसी तरह एक और कल्प बीत गया और अगले कल्प में आपका तीसरा जन्म हुआ। उस कल्प में आपका नाम वृंदा था और आपके पति का नाम जलंधर जो कि असुर था। जलंधर ने हर जगह आंतक मचा दिया था और भगवान शंकर से भी युद्ध करने लग गया था।
जब निज सैन्य सहित शिव हारे, मरही न तब हर हरिही पुकारे।
पतिव्रता वृन्दा थी नारी, कोऊ न सके पतिहि संहारी।
तब जलन्धर ही भेष बनाई, वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई।
शिव हित लही करि कपट प्रसंगा, कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा।
तब भगवान शिव भी अपनी सेना सहित जलंधर को युद्ध में पराजित नहीं कर सके और यह देखकर उन्होंने भगवान विष्णु की सहायता मांगी। जलंधर की रक्षा पतिव्रता वृंदा के कारण हो रही थी जिस कारण कोई भी उसे छू नहीं पा रहा था। यह देखकर भगवान विष्णु ने जलंधर राक्षस का रूप धरा और वृंदा की कुटिया में पहुँच गए। शिव भगवान को युद्ध में विजयी करवाने के लिए श्री हरि ने छल किया और वृंदा के सतीत्व को भंग कर दिया।
भयो जलन्धर कर संहारा, सुनी उर शोक उपारा।
तिही क्षण दियो कपट हरि टारी, लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी।
जलन्धर जस हत्यो अभीता, सोई रावन तस हरिही सीता।
अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा, धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा।
यही कारण लही श्राप हमारा, होवे तनु पाषाण तुम्हारा।
इसके तुरंत बाद भगवान शिव ने जलंधर का वध कर दिया जिसका भगवान विष्णु को पता चल गया। उसी क्षण श्रीहरि ने वृंदा को अपना नारायण रूप दिखा दिया जिसे देखकर वृंदा अत्यधिक दुखी हो गयी। आप भगवान विष्णु से इतनी दुखी हुई कि आपने उन्हें श्राप दिया कि जिस प्रकार आपने मेरे साथ छल कर जलंधर का वध करवाया है, उसी तरह रावण भी आपकी पत्नी सीता का हरण करेगा।
वृंदा ने भगवान विष्णु से कहा कि आपने अधर्म का आश्रय लेकर मेरे साथ गलत किया है और यह आपके पत्थर दिल होने का प्रमाण है। इसी कारण मैं आपको श्राप देती हूँ कि आपका शरीर भी पत्थर के समान हो जाएगा।
सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे, दियो श्राप बिना विचारे।
लख्यो न निज करतूती पति को, छलन चह्यो जब पारवती को।
जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा, जग मह तुलसी विटप अनूपा।
धग्व रूप हम शालिग्रामा, नदी गण्डकी बीच ललामा।
आपके श्राप को सुनकर श्री हरि ने आपसे कहा कि तुमने बिना कुछ सोचे-समझे ही मुझे श्राप दे दिया है। तुम्हें अपने पति के दैत्य कर्म दिखाई नहीं दिए जिस कारण माता पार्वती का सुहाग छीन जाता। तुम्हारी बुद्धि क्षीण हो गयी है और इसी कारण तुम जड़ का रूप ले लोगी और विश्व में तुलसी के पौधे के रूप में पहचानी जाओगी। तुम्हारे श्राप के फलस्वरूप हम भी शालिग्राम के रूप में गण्डकी नदी में निवास करेंगे।
जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं, सब सुख भोगी परम पद पईहै।
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा, अतिशय उठत शीश उर पीरा।
जो तुलसी दल हरि शिर धारत, सो सहस्त्र घट अमृत डारत।
तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी, रोग दोष दुःख भंजनी हारी।
भगवान विष्णु ने कहा कि तुम्हें तुलसी रूप में जो भी हमें चढ़ाएगा, उसे परम सुख की प्राप्ति होगी। बिना तुलसी के हरि का शरीर जल उठेगा और उसके हृदय में पीड़ा होगी। जो भगवान विष्णु के मस्तक पर तुलसी अर्पित करेगा, उसे भगवान विष्णु पर हजारों घड़े अमृत डालने का पुण्य मिलेगा। तुलसी भगवान विष्णु के मन को बहुत भाती हैं और इसके माध्यम से रोग, दोष व दुःख दूर किये जा सकते हैं।
प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर, तुलसी राधा में नाही अन्तर।
व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा, बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा।
सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही, लहत मुक्ति जन संशय नाही।
हमें प्रेम सहित श्री हरि के भजन करने चाहिए और उनके लिए तुलसी व राधा में कोई भी अंतर नहीं है। यदि हम भगवान विष्णु को छप्पन भोग भी बिना तुलसी के चढ़ाते हैं तो वह भी किसी काम का नहीं रहता है। माता तुलसी के पौधे की छाया में सभी तीर्थों का पुण्य मिलता है। इस बात में किसी को शंका नहीं करनी चाहिए कि तुलसी पूजा से हमें मुक्ति मिलती है।
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत, तुलसिहि निकट सहसगुण पावत।
बसत निकट दुर्बासा धामा, जो प्रयास ते पूर्व ललामा।
पाठ करहि जो नित नर नारी, होही सुख भाषहि त्रिपुरारी।
कवि के द्वारा भी श्री हरि के सुन्दर भजन गाये जाते हैं और तुलसी माता के निकट रहकर वह कई गुणों को प्राप्त करता है। वह दुर्वासा ऋषि के आश्रम के पास रहता है। जो कोई भी मनुष्य इस तुलसी चालीसा का पाठ कर लेता है, उसे सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है।
।। दोहा ।।
तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी।
दीपदान करि पुत्र फल पावही बन्ध्यहु नारी।।
सकल दुःख दरिद्र हरि हार ह्वै परम प्रसन्न।
आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र।।
हमें तुलसी चालीसा का पाठ करना चाहिए और साथ ही अपने घर में तुलसी का पौधा लगाना चाहिए। तुलसी पर दीपक प्रज्ज्वलित कर नारी को पुत्र की प्राप्ति होती है। तुलसी पूजन से हरि प्रसन्न होकर हमारे दुःख व दरिद्रता को दूर कर देते हैं। हमारे घर में धन, अन्न की कमी नहीं होती है।
लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम।।
तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास।।
तुलसी माता की चालीसा का पाठ करने से हमारे सभी काम बन जाते हैं और हमारे हृदय में हरि का वास होता है। तुलसी माता को जल चढ़ाने से हमारे घर में भगवान विष्णु का भी वास होता है। इस तुलसी चालीसा की रचना कर सुखराम ने उसी तरह का काम किया है जिस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना करके किया था।
तुलसी माता की चालीसा – महत्व (Tulsi Mata Ki Chalisa – Mahatva)
ऊपर आपने माता तुलसी की चालीसा पढ़ ली और वो भी दो-दो। इसी के साथ ही आपने दोनों तरह की ही तुलसी चालीसा का अर्थ भी जान लिया है। इसे पढ़कर आपको तुलसी माता की चालीसा के महत्व का ज्ञान तो हो ही गया होगा, फिर भी हम इसे विस्तृत रूप दे देते हैं। दरअसल तुलसी जी की चालीसा के माध्यम से माँ वृंदा के कर्मों, भक्ति व गुणों के बारे में बताया गया है।
साथ ही यह भी बताया गया है कि किस प्रकार राक्षस कुल में जन्म लेने और राक्षस से ही विवाह करने के पश्चात भी एक स्त्री विष्णु भक्ति से अपने आप को इतिहास में अमर करवा सकती है। भक्त के सामने तो स्वयं भगवान भी हार मान जाते हैं और यही कारण है कि भगवान विष्णु की कोई भी पूजा बिना तुलसी के अधूरी मानी जाती है। इसी के साथ ही भगवान विष्णु के जितने भी रूप हैं, उनकी पूजा में भी तुलसी माता का अत्यधिक महत्व होता है। यही तुलसी चालीसा का महत्व होता है।
श्री तुलसी चालीसा पढ़ने के लाभ (Tulsi Chalisa Padhne Ke Fayde)
अब यदि आप तुलसी चालीसा को पढ़कर उससे मिलने वाले लाभों के बारे में जानना चाहते हैं तो वह भी हम आपको बता देते हैं। तुलसी चालीसा को पढ़ने से जो सबसे प्रमुख लाभ हम सभी को मिलता है वह है हमारे हृदय का शीतल हो जाना व मन में शांति का अनुभव होना। यह तो हम सभी जानते हैं कि तुलसी भगवान विष्णु को कितनी प्रिय हैं और उसी परमात्मा का अंश हमारे अंदर आत्मा रूप में निवास करता है।
ऐसे में यदि हम प्रतिदिन तुलसी चालीसा का पाठ करते हैं तो उससे हमारे मन व मस्तिष्क में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिलते हैं। यदि हमारे मन में किसी बात को लेकर उहापोह चल रही थी तो वह समाप्त हो जाती है और तनाव दूर होता है। इसी के साथ ही माँ तुलसी के साथ ही भगवान विष्णु भी हमसे प्रसन्न होते हैं और हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। तुलसी चालीसा के पाठ से हम अपने घर में भी सुख-समृद्धि ला सकते हैं और अशांति दूर कर सकते हैं। इस तरह से तुलसी चालीसा के माध्यम से बहुत से लाभ देखने को मिलते हैं।
तुलसी चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: तुलसी की पूजा कौन से दिन करते हैं?
उत्तर: तुलसी की पूजा आप किसी भी दिन कर सकते हैं, बस रविवार व एकादशी के दिन को छोड़कर।
प्रश्न: तुलसी जी की पूजा कैसे की जाती है?
उत्तर: तुलसी माता के पौधे के सामने बैठ कर एक दीपक जलाये और तुलसी चालीसा व आरती का पाठ करें।
प्रश्न: तुलसी जी किसकी बेटी थी?
उत्तर: तुलसी जी पहले वृंदा थी जो बाद में तुलसी बनी। माता वृंदा राक्षस राजा कालनेमि की पुत्री थी।
प्रश्न: तुलसी का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर: तुलसी का दूसरा नाम वृंदा है किन्तु इनके कई अन्य नाम भी प्रचलन में हैं जैसे कि हरि प्रिया, विष्णु प्रिया व कृष्ण जीवनी।
प्रश्न: तुलसी में दीपक कब नहीं चलना चाहिए?
उत्तर: तुलसी में रविवार व एकादशी के दिन दीपक नहीं जलाना चाहिए।
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