आज हम आपको अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha) देंगे। कार्तिक का माह शुरू होते ही कई मुख्य त्यौहार व व्रत आ जाते है। इसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सभी माताओं के द्वारा अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत के माध्यम से सभी माताएं अपनी संतान की लंबी आयु व सुखद जीवन की कामना करती है।
इसी के साथ जिन महिलाओं को अभी तक संतान का सुख प्राप्त नही हुआ है या उनकी संतान की छोटी आयु में ही मृत्यु हो चुकी हैं तो वे भी संतान प्राप्ति की अभिलाषा से यह व्रत पूरे विधि-विधान के साथ रखती हैं। आज हम आपको अहोई अष्टमी व्रत के नियम (Ahoi Ashtami Vrat Vidhi) और साथ ही व्रत रखने का महत्व भी बताएँगे। आइए सबसे पहले जानते हैं अहोई अष्टमी की कथा।
Ahoi Ashtami Vrat Katha | अहोई अष्टमी व्रत कथा
अहोई अष्टमी की कथा साहूकार की बहुओं और उसमें भी मुख्य तौर पर सबसे छोटी बहु और बेटी से जुड़ी हुई है। साथ ही इसमें एक जीव स्याहु का भी योगदान है। यह कथा बहुत ही रोचक है। आइए पढ़ते हैं साहूकार की बेटी और छोटी बहु से जुड़ी अहोई अष्टमी की व्रत कथा।
बहुत समय पहले एक गाँव में एक धनी साहूकार रहता था। उसके परिवार में सात पुत्र, उनकी पत्नियाँ तथा एक पुत्री थी जो विवाहित थी। घर में सभी के बच्चे इत्यादि भी थे लेकिन उसकी बेटी का नया-नया विवाह हुआ था, इसलिये उसकी कोई संतान नही थी।
दीपावली के दिनों में साहूकार की बेटी अपने मायके आयी हुई थी। उस दिन अहोई अष्टमी के व्रत का दिन था जिसमे घर की दीवार पर भगवान की आकृति बनाने के लिए मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसलिये साहूकार की बेटी अपनी सभी भाभियों के साथ खेत से मिट्टी लेने चली गयी।
- अनजाने में मरे स्याहु के बच्चे
जब सभी मिलकर खुरपी से मिट्टी को खोद रही थी तब अचानक साहूकार की बेटी की खुरपी से स्याहु नाम के जीव के बच्चे मर गए। स्याहु धरती में रहने वाला एक जीव होता है। अपने बच्चों के मरने से स्याहु इतनी ज्यादा क्रोधित हो गयी कि वह साहूकार की बेटी को श्राप देने लगी कि वह उसकी गोद बांध देगी अर्थात बाँझ बना देगी।
- छोटी भाभी का त्याग
चूँकि साहूकार की बेटी के अभी तक कोई संतान नही थी इसलिये उसने अपनी भाभियों से विनती की कि वह इस श्राप को उसकी ओर से ले ले। सभी भाभियों ने इसके लिए मना कर दिया क्योंकि कोई भी बाँझ नही बनना चाहती थी। अंत में अपनी ननद का दुःख देखकर सबसे छोटी भाभी इस श्राप को लेने को तैयार हो गयी।
- पंडित जी का परामर्श
इसके बाद सभी अपने घर आ गयी लेकिन इस घटना के कुछ दिनों के पश्चात छोटी बहु के सभी बच्चे एक-एक करके मर गए। यह देखकर सभी बहुत परेशान हो गए तथा एक पंडित जी को इसके हल के लिए बुलाया गया। पंडित जी ने छोटी बहु को परामर्श दिया कि वह सुरही प्रजाति की गाय की सेवा व पूजा करे।
- सुरही गाय की सेवा
पंडित जी के कहे अनुसार छोटी बहु ने वैसा ही किया तथा सुरही गाय की बहुत सेवा की। इससे वह गाय बहुत प्रसन्न हो गयी तथा उसे स्याहु के पास लेकर जाने लगी। जाते समय बीच में जब दोनों थक गए तो एक जगह रूककर विश्राम करने लगे।
- बचाया गरुड़ के बच्चों को
तभी छोटी बहु ने देखा कि एक विषैला सांप गरुड़ पंखनी के बच्चों को डसने वाला है। यह देखकर छोटी बहु ने उस सांप को मार दिया। जब गरुड़ पंखनी वहां आयी तो यह दृश्य देखकर उसे लगा कि उसने उसके बच्चों को मार दिया है। यह देखकर वह छोटी बहु को चोंच से मारने लगी लेकिन जैसे ही उसे सत्य घटना का ज्ञान हुआ तो उसने उससे क्षमा मांगी तथा उसके साथ ही स्याहु से मिलने चल पड़ी।
- लिया अपना श्राप वापस
सभी मिलकर स्याहु के पास पहुंचे तथा उसे छोटी बहु के गुण बताए। उन्होंने स्याहु को कहा कि वह छोटी बहु को दिया श्राप वापस ले ले। स्याहु छोटी बहु की कर्तव्यनिष्ठा देखकर प्रसन्न हुई तथा उसे श्राप मुक्त कर दिया। इसके बाद उसके सभी पुत्र जीवित हो गए। कुछ की मान्यता के अनुसार फिर उसके सात पुत्र हुए जिससे उसके परिवार में फिर से खुशियाँ आ गयी।
तो यह थी अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha) जिसे व्रत करने वाली महिलाएं सुनती है। इसी कथा को सुनने के बाद ही व्रत शुरू होता है।
अहोई अष्टमी का व्रत क्यों रखा जाता है?
अहोई अष्टमी के व्रत में माता पार्वती की अहोई रूप में पूजा की जाती है। इसमें सभी महिलाएं माता पार्वती से संतान सुख की कामना करती है जिससे कि उनका पुत्र हमेशा स्वस्थ व सुखी रहे तथा उसके जीवन में कोई संकट ना आए। जिस प्रकार करवाचौथ का व्रत पति के सुखद भविष्य के लिए किया जाता हैं, ठीक उसी प्रकार अहोई अष्टमी के व्रत का संतान के लिए महत्व है।
इस व्रत को रखने के तीन मुख्य कारण होते हैं। आइए उनके बारे में जान लेते हैं:
- जिन महिलाओं की संतान एकदम स्वस्थ है, वे उनके आगे भी स्वस्थ बने रहने की कामना करती है। साथ ही वे अपने जीवन में आगे बढ़े और अपना भविष्य उज्जवल बनाए, इसी आशा से अहोई अष्टमी का व्रत रखती है।
- जिन महिलाओं की संतान को कोई स्वास्थ्य स्वास्थ्य समस्या है या उनके जीवन या करियर में कोई संकट है तो वह जल्दी दूर हो तथा वे स्वस्थ हो जाए, इस आशा से वे अहोई अष्टमी व्रत रखती है।
- जिन महिलाओं को संतान का सुख चाहिए लेकिन विवाह के कई वर्ष के पश्चात भी उन्हें संतान प्राप्ति का सुख नहीं मिल पा रहा है तो वे अशोई अष्टमी व्रत के माध्यम से माता पार्वती से एक स्वस्थ संतान प्राप्ति की कामना करती है।
बस इन्हीं कारणों स एहर विवाहिक और खासकर माताओं के द्वारा अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। अब हम अहोई अष्टमी व्रत विधि या अहोई अष्टमी व्रत के नियमों के बारे में जान लेते हैं।
अहोई अष्टमी व्रत के नियम (Ahoi Ashtami Vrat Vidhi)
इस दिन सभी महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके अहोई व्रत करने का संकल्प लेती हैं। स्नान करने के पश्चात हलवा या मीठा बनाते है। कुछ महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं तो कुछ फलाहार। आप अपनी सुविधानुसार यह कर सकती हैं। सुबह स्नान आदि करने के पश्चात आप फलो, हलवे आदि का सेवन कर सकती है।
इनका सेवन करने से पहले घर की सभी महिलाएं पूजा स्थल पर बैठे। दीवार पर माता पार्वती के अहोई रूप की मिट्टी से प्रतिमा बनाए। साथ ही मिट्टी का एक बर्तन ले व उसमे पानी भरकर रखे। आजकल लोग मिट्टी की प्रतिमा बनाने के स्थान पर उसका चित्र लेकर आ जाते है। आप अपनी सुविधानुसार यह कर सकते है। इसके बाद सभी महिलाएं अहोई अष्टमी की कथा सुने व माता पार्वती की पूजा करे।
इसके बाद शाम में जैसे ही आपको तारो के दर्शन हो तो आप भोजन ग्रहण कर व्रत खोल सकती है। भोजन करने से पहले आप भगवान गणेश व कार्तिक का ध्यान अवश्य करे। इस तरह से आज आपने अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha) सहित उसकी पूजा करने के नियमों के बारे में जानकारी ले ली है।
अहोई अष्टमी व्रत कथा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: अहोई अष्टमी व्रत में पानी पी सकते हैं क्या?
उत्तर: यह संपूर्ण रूप से आपकी क्षमता पर निर्भर करता है। कुछ महिलाएं पूरे दिन निर्जला उपवास करती है तो कुछ पानी पीकर तो कुछ फलाहार लेकर व्रत रखती है।
प्रश्न: अहोई अष्टमी के पीछे क्या कहानी है?
उत्तर: अहोई अष्टमी ककी कहानी साहूकार की छोटी बहु, उसकी बेटी और स्याहु के श्राप से जुड़ी हुई है। इस लेख में हमने संपूर्ण कहानी को विस्तार से बताया है।
प्रश्न: अहोई अष्टमी में किसकी पूजा की जाती है?
उत्तर: अहोई अष्टमी में अहोई माता की पूजा की जाती है। अहोई माता को पार्वती माता का ही एक रूप माना जाता है जो संतान का सुख देती है।
प्रश्न: अहोई माता के व्रत में क्या खाना चाहिए?
उत्तर: अहोई माता के व्रत में आप फल खा सकती है। इसके अलावा मेवे, आलू का हलवा इत्यादि खाया जा सकता है।
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