सिकंदर का भारत पर आक्रमण और उससे पड़ने वाला प्रभाव

Alexander In India In Hindi

अलेक्जेंडर (भारतीय नाम सिकंदर या अलेक्छेंदर) यूनान के एक छोटे से राज्य मेसेडोनिया (भारतीय नाम मकदुनिया) का राजा (Sikandar Ki Kahani In Hindi) था। वहां के राजा पहले फिलिप थे जिनकी हत्या कर दी गयी थी। उसके बाद उनका पुत्र सिकंदर मात्र 20 वर्ष की आयु में 336 ईसा पूर्व वहां का राजा बना था। वह अरस्तु का शिष्य था जिसके अंदर विश्व विजय की महान अभिलाषाएं थी।

जब वह मेसेडोनिया का राजा बन गया तब उसकी इच्छा विश्व विजय की हो (Sikander Ka Bharat Per Aakraman) गयी। इसी कारण वह अपनी सेना की विशिष्ट व विशाल टुकड़ी लेकर विश्व विजय अभियान के लिए यूनान से निकल कर पूर्वी सीमा की ओर बढ़ने लगा। वह लगभग 12 वर्षों तक विभिन्न राज्यों को जीतता, भारत भूमि पर संघर्ष व विरोध झेलता हुए वापस अपनी भूमि को लौटते हुए बीच रास्ते में ही मर गया था।

आज हम आपको सिकंदर का भारत की सीमाओं पर आक्रमण, देशद्रोही राजाओं का छल, पराक्रमी राजाओं की गाथा, झेलम का भीषण युद्ध, आचार्य चाणक्य की रणनीति, सिकंदर की सेना का विद्रोह व उसका भारत की भूमि से वापस लौटना इत्यादि संपूर्ण जानकारी क्रमानुसार (Sikandar Ke Aakraman Ka Prabhav) देंगे।

सिकंदर व भारत (Alexander In India In Hindi)

सिकंदर का विश्व विजयी अभियान पर निकलना (Sikander Ka Itihas)

सिकंदर यूनान से निकल कर लगातार यूरोप, अफ्रीका, एशिया महाद्वीप के देशों को जीतता हुआ आगे बढ़ रहा था। इसमें ईरान के पारसी राजा से लड़ा गया युद्ध सबसे बड़ा था जिसके बाद सिकंदर का पूरे ईरान पर अधिकार हो गया था। उसके द्वारा जीते गए देशों के वर्तमान नाम:

  • ग्रीस
  • बुल्गारिया
  • अल्बानिया
  • तुर्की
  • लेबनान
  • फिलिस्तीन
  • ईराक
  • ईरान
  • तुर्कमेनिस्तान
  • उज्बेकिस्तान

उज्बेकिस्तान के बाद भारत गणराज्य की सीमाएं शुरू हो जाती थी जिसमें सर्वप्रथम जनपद था गांधार जिसे वर्तमान में अफगानिस्तान के नाम से जाना जाता है।

सिकंदर के समय भारतवर्ष की स्थिति (Sikander Bharat Kab Aaya)

उस समय तक भारत अनेक छोटे व बड़े जनपदों में बंटा हुआ विभाजित देश था जिसमें प्रत्येक के छोटे व बड़े राज्य हुआ करते थे। इसमें पश्चिमी सीमा से दो बड़े जनपद लगते थे जिसमें पहला जनपद गांधार (वर्तमान अफगानिस्तान) था जहाँ के राजा आम्भिराज थे। गांधार की राजधानी तक्षशिला थी जो भारत का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय हुआ करता था।

दूसरा सीमावर्ती व गांधार के बाद का जनपद था कैकेय (वर्तमान पाकिस्तान) जिसके राजा थे पर्वतेश्वर (प्रसिद्ध नाम राजा पोरस या पुरु)। इन्हीं राजा के साथ सिकंदर का निर्णायक युद्ध हुआ था जिसने सिकंदर की सेना के मनोबल को बुरी तरह तोड़ दिया था।

गांधार व कैकेय के आसपास कई छोटे जनपद भी थे जैसे कि मालव, क्षुद्रक, मुल्तान इत्यादि जिनके अपने छोटे-छोटे राजा हुआ करते थे। हालाँकि सिंध नदी के उस पार गंगा नदी के पास भारत का सबसे बड़ा, शक्तिशाली व समृद्ध जनपद मगध (वर्तमान बिहार व आसपास का क्षेत्र) था जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र व राजा धनानंद थे। इसके अलावा बंगाल, दक्षिण भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, तिब्बत इत्यादि कई जनपद भारत भूमि के अंतर्गत आते थे। हालाँकि इसमें सबसे बड़ा जनपद मगध ही था।

सिकंदर के भारत आगमन के बाद गांधार, कैकेय व मगध जनपदों की भूमिका ही उस समय की राजनीति में प्रमुख रही थी। इसलिए हमने आपको इन तीनों जनपदों और उनके राजाओं के बारे में बताया। अब एक-एक करके इन तीनों जनपदों की भूमिका सिकंदर के भारत आगमन के समय में जानते हैं।

सिकंदर व गांधार नरेश आम्भी कुमार (Sikander Invasion In India In Hindi)

उस समय तक गांधार पर आम्भिराज का शासन था लेकिन वे वृद्ध हो चले थे। इसलिए उनके पुत्र आम्भी कुमार के निर्णय ही ज्यादा सुने जाते थे। हालाँकि आम्भी कुमार एक अहंकारी शासक था जिस पर अपने पिता की बातों का कोई प्रभाव नही पड़ा।

सिकंदर के भारत आने से कुछ वर्षों पूर्व आम्भी ने छलपूर्वक कैकेय प्रदेश की सीमाओं का कई बार अतिक्रमण किया था जिसका उत्तर कैकेय के राजा पर्वतेश्वर ने तक्षशिला पर आक्रमण के रूप में दिया था। इसके बाद आम्भी कैकेय नरेश से अपने अपमान का बदला लेने के लिए छटपटा रहा था।

कई वर्षों के बाद जब सिकंदर विश्व के देशों को जीतता हुआ भारत की सीमाओं पर आने वाला था तब उसने अपना एक दूत आम्भी कुमार के पास भेजा। आम्भी ने तुरंत ही सिकंदर का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसके लिए भारत की भूमि के द्वार खोल दिए।

जब इसकी भनक गांधार नरेश आम्भिराज को लगी तो उनकी अपने पुत्र से तीखी बहस हुई। अंत में उन्होंने आम्भी कुमार को बंदी बनाने का आदेश दिया जिसका उनके सैनिकों के द्वारा पालन नही किया गया। आम्भिराज अब समझ चुके थे कि उनकी महत्ता समाप्त हो चुकी हैं व अब केवल उनके पुत्र की ही सुनी जाएगी।

भारत की सीमाओं को शत्रुओं के लिए खोले जाने के दुःख में आम्भिराज इतने क्षुब्ध थे कि उन्होंने आत्म-हत्या कर ली। इसके बाद आधिकारिक रूप से आम्भी कुमार गांधार नरेश बन गए। जब सिकंदर अपनी सेना के साथ गांधार आया तब आम्भी कुमार ने उसका भव्य स्वागत किया। उसने सिकंदर के सामने एक तरह से आत्म-समर्पण कर दिया था।

इतना ही नही, उसने गांधार से आगे कैकेय प्रदेश पर आक्रमण करने के लिए गुप्त रूप से सिकंदर को गांधार की सेना का एक विशाल भाग भी दे दिया। कुछ दिन गांधार में राजसी सुख बिताने के पश्चात सिकंदर कैकेय के लिए आगे बढ़ गया।

आचार्य चाणक्य की गांधार की राजनीति में भूमिका (Chanakya In Gandhar In Hindi)

गांधार की राजधानी तक्षशिला में भारत का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय था जिसके एक आचार्य चाणक्य थे। जब उन्हें आम्भिराज की मृत्यु व आम्भी कुमार के विदेशी आक्रांता सिकंदर के साथ हुए समझौते की भनक लगी तो उन्होंने विद्रोह कर दिया। उन्होंने तक्षशिला में पढ़ रहे हजारों छात्रों का सहयोग इसमें लिया।

आचार्य चाणक्य के आदेश पर तक्षशिला के हर मार्ग पर छात्रों ने भगवा ध्वज फहरा दिया व गांधार नरेश के साम्राज्य को चुनौती दी। जब आम्भी नरेश को इसकी जानकारी मिली तो वे गुस्से में तक्षशिला विश्वविद्यालय पहुंचे लेकिन आचार्य ने राजा तक को चेतावनी दे दी कि भविष्य में इसका परिणाम अच्छा नही होगा। इसके बाद आचार्य शीघ्र ही तक्षशिला से कैकेय प्रदेश के लिए निकल गए।

सिकंदर व राजा पोरस का युद्ध (Sikander War In India In Hindi)

जब सिकंदर गांधार में था तब उसने अपना एक दूत कैकेय प्रदेश में राजा पर्वतेश्वर (पोरस या पुरु) के पास भी भेजा था। उसे लगा था कि जिस प्रकार आम्भी कुमार ने आत्म-समर्पण कर दिया हैं, उसी प्रकार राजा पोरस भी बिना युद्ध किये आत्म-समर्पण कर देंगे।

सिकंदर का दूत राजा पोरस के पास पंहुचा व उन्हें आत्म-समर्पण करने को कहा। यह सुनकर राजा पोरस अत्यधिक क्रोधित हो गए थे और तुरंत ही अपनी सेना को युद्ध की तैयारियों के आदेश दे दिए। पोरस द्वारा आत्म-समर्पण का प्रस्ताव ठुकराए जाने के पश्चात सिकंदर अपनी व गांधार की विशाल सेना के साथ झेलम नदी के तट तक आ पहुंचा।

झेलम नदी के उस पार कैकेय शुरू होता था जहाँ राजा पोरस की हजारों की संख्या में सेना खड़ी थी। इसमें हाथी व महावत, अश्व सेना, अश्व रथों की सेना व पैदल सेना थी। राजा पोरस एक विशालकाय हाथी पर उस सेना के मध्य में थे। इसके विपरीत सिकंदर की सेना में अश्व सेना व पैदल सेना थी।

सिकंदर ने रणनीति के तहत राजा पोरस पर दो ओर से आक्रमण किया। उसने रात के अँधेरे व ख़राब मौसम के शोर में युद्धभूमि से दूर एक किनारे से अपनी सेना की एक टुकड़ी के साथ झेलम नदी पार कर ली। इसके बाद राजा पोरस की सेना पर दो तरफ से आक्रमण किया गया।

दोनों ओर से भीषण युद्ध हुआ। इतिहासकारों के अनुसार इस युद्ध में राजा पोरस की पराजय तो हुई थी लेकिन सिकंदर की सेना को भी भारी क्षति हुई थी। राजा पोरस के हाथियों की सेना ने सिकंदर की सेना को अभूतपूर्व क्षति पहुंचाई थी। इसके साथ ही सिकंदर भी राजा पोरस के साहस से अत्यधिक प्रभावित हुआ था क्योंकि वे अंतिम समय तक लड़ते रहे थे।

अंत में राजा पोरस को अपनी पराजय स्वीकार करनी पड़ी और उन्होंने आत्म-समर्पण कर दिया। सिकंदर ने उन्हें अपना क्षत्रप व मित्र बना लिया। राजा पोरस अब एक तरह से राजा रहकर भी सिकंदर के ही अधीन थे। कैकेय जनपद भी अब सिकंदर के अधीन राज्यों के अंदर आ चुका था।

आचार्य चाणक्य की कैकेय की राजनीति में भूमिका (Chanakya And Porus In Hindi)

आम्भी कुमार के देशद्रोह करने के पश्चात, आचार्य चाणक्य उसी समय कैकेय प्रदेश के लिए निकल गए ताकि वहां सिकंदर के होने वाले आक्रमण के बारे में सचेत किया जा सके। चाणक्य तुरंत जाकर कैकेय के महामंत्री से मिले जो उनके मित्र भी थे। उन्होंने भविष्य में होने वाले कैकेय राज्य पर सिकंदर के आक्रमण से उन्हें अवगत करवाया, साथ ही आम्भी के द्वारा उनकी सहायता करने के बारे में भी बताया।

चाणक्य ने उन्हें तुरंत महाराज को सूचित करने और युद्ध की तैयारियां शुरू करने को कहा। इसके बाद वे मगध के लिए निकल गए क्योंकि कैकेय अकेला सिकंदर व गांधार की सेना का सामना नही कर सकता था। उसके लिए मगध की सेना का कैकेय की सेना का साथ देना आवश्यक था। इसलिए चाणक्य उसी समय मगध के लिए निकल गए।

आचार्य चाणक्य की मगध में भूमिका (Chanakya And Dhanananda Story In Hindi)

कैकेय से आचार्य चाणक्य मगध निकल गए ताकि धनानंद से सहायता प्राप्त की जा सके और भारत की सीमाओं की रक्षा की जा सके। धनानंद एक स्त्रीलोलुप, मदिरा व अहंकार के नशे में रहने वाला कुटील राजा था। जिस समय आचार्य चाणक्य धनानंद के महल में पहुंचे तब भी धनानंद मदिरा के नशे में चूर नृत्य का आनंद ले रहा था।

आचार्य चाणक्य ने उसकी सभा में पहुँच कर उसे भारत की स्थिति व सिकंदर के संभावित खतरे से अवगत करवाया। अपने आनंद में पड़े इस व्यवधान से धनानंद क्रोध से भर उठा और उसने अपने सैनिकों को चाणक्य की शिखा पकड़ कर राजभवन से बाहर फेंक देने का आदेश दे दिया।

आचार्य चाणक्य की शिखा पकड़ कर उन्हें राजभवन से घसीटते हुए बाहर फेंक दिया गया। इसके बाद आचार्य चाणक्य ने अपनी शिखा खोलते हुए धनानंद जैसे राजा को अपदस्थ कर वहां एक सुयोग्य व्यक्ति को बिठाने और उसके नेतृत्व में संपूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोने की भीषण प्रतिज्ञा ली, जिसे चाणक्य प्रतिज्ञा के नाम से जाना जाता है।

सिकंदर का छोटे जनपदों पर आक्रमण व घायल होना (Sikandar Ka Bharat Vijay Abhiyan)

गांधार व कैकेय जीतने के पश्चात, सिकंदर भारत के छोटे जनपदों पर आक्रमण करता हुआ आगे बढ़ रहा था। उसने कट व विपाशा जनपद भी जीत लिए थे। फिर मालव व क्षुद्रक नाम के दो मध्यम दर्जे के जनपद आते थे। मालव पहले पड़ता था व फिर क्षुद्रक।

चाणक्य के नेतृत्व में दोनों राजाओं की बैठक बुलाई गयी जिसमे निर्णय लिया गया कि क्षुद्रक की सेना मालव की सीमाओं की रक्षा के लिए अपनी सेना भेजेगी। हालाँकि क्षुद्रक की सेना मालव की रक्षा करने पहुँच पाती उससे पहले ही सिकंदर की सेना वहां पहुँच गयी और युद्ध छेड़ दिया।

इस युद्ध में मालव सैनिक बड़ी वीरता से लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए। इसी युद्ध में सिकंदर एक भाले या तीर से बुरी तरह घायल हो गया था। यह देखकर सिकंदर की सेना ने मालव राज्य के हर व्यक्ति चाहे वह वृद्ध हो या स्त्री या बच्चा, मौत के घाट उतार दिया।

जब क्षुद्रक की सेना वहां पहुंची तो सिकंदर की सेना के द्वारा किये गए भीषण रक्तपात को देखकर इतनी ज्यादा विचलित हो गयी थी कि उन्होंने उसी समय आत्म-समर्पण कर दिया था। इसके बाद सिकंदर की सेना मुसिकानोस, अम्वश, क्षत्रिय, बस्ती, ओक्सिकानोस इत्यादि छोटे जनपदों को जीतते हुए व्यास नदी की ओर बढ़ रही थी। मुसिकानोस के ब्राह्मणों ने सिकंदर की सेना के विरुद्ध विद्रोह कर दिया जिस कारण उनकी निर्मम हत्या कर दी गयी।

सिकंदर की सेना में विद्रोह (Alexander Army In India In Hindi)

सिकंदर को भारत में आये 2 वर्ष से अधिक का समय हो चुका था और युद्ध पर निकले 12 वर्ष के आसपास का समय। उसकी सेना के आत्म-विश्वास में लगातार कमी आ रही थी तथा वे बुरी तरह थक चुके थे। साथ ही उन्हें अब अपने घर-परिवार की याद आने लगी थी।

सिकंदर को अपनी सेना का पहली बार विद्रोह राजा पोरस से हुए युद्ध के बाद सहना पड़ा था। यह प्रथम बार था जब सिकंदर की सेना को इतनी ज्यादा क्षति हुई थी क्योंकि इससे पहले उनका कभी भी हाथियों की सेना के साथ युद्ध नही हुआ था। उस समय सिकंदर ने अपने जोशीले भाषण से इस विद्रोह को थोड़ा बहुत दबा दिया था और आगे बढ़ चला था।

लेकिन जब उसकी सेना व्यास नदी के किनारे पहुंची तब उसकी सेना ने आगे बढ़ने से मना कर दिया। व्यास नदी के उस पार मरुभूमि को पार करके गंगा नदी पड़ती थी। उस नदी पर भारत का विशाल जनपद मगध था जिसके पास कैकेय से कहीं अधिक हाथियों व घोड़ो की सेना थी।

सिकंदर की सेना को पहले ही राजा पोरस ने बहुत नुकसान पहुँचाया था और वे अच्छी तरह जानते थे कि व्यास नदी को पार कर भारत के बड़े जनपदों से युद्ध करना स्वयं अपनी मृत्यु को निमंत्रण देने जैसा हैं। साथ ही लगातार युद्ध करने से उनकी शक्ति भी क्षीण हो चुकी थी।

सिकंदर का भारत से लौटना (Alexander Return From India In Hindi)

सिकंदर के कई बार प्रयास करने के पश्चात भी जब सेना आगे बढ़ने को तैयार नही हुई तब उसने वापस अपनी भूमि की ओर लौटने का निर्णय ले लिया। इसके लिए उसने बीच में पड़ने वाले कई छोटे जनपदों को भी लूटा जिसमे से एक भारत का मुल्तान जनपद भी था।

इसके बाद उसने अपनी सेना को तीन भागों में विभाजित किया और अलग-अलग रास्तों से अपने देश लौटने का आदेश दिया। एक टुकड़ी का नेतृत्व उसने स्वयं किया। बेबीलोन से गुजरते हुए बीच में बड़े-बड़े मरुस्थल पड़े जिसमें उसके कई सैनिकों की मृत्यु हो गयी।

अंत में अपने देश लौटते हुए सिकंदर की बेबीलोन में ही रहस्य तरीके से मृत्यु हो (Sikandar Ki Mrityu Kab Hui) गयी। उसकी मृत्यु के कई कारण हैं, जैसे कि:

  • राजा पोरस से हुए युद्ध में घायल होना,
  • मालव से युद्ध करते समय बुरी तरह घायल होना,
  • आचार्य चाणक्य द्वारा छलपूर्वक राजा पोरस या सिकंदर के करीबी कॉयनस की सहायता से उसे विष दे देना,
  • बेबीलोन में भीषण बुखार का आना जो कि विष का ही प्रभाव था।

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

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