प्रभु श्रीराम ने बाली के पुत्र अंगद को रावण की सभा में शांति दूत (Angad Shanti Doot) बनाकर भेजा था। यह तब की बात है जब प्रभु श्रीराम ने वानर सेना के साथ समुंद्र को लाँघ लिया था तथा लंका पहुँच गए थे। युद्ध शुरू होने से पूर्व उनके मन में विचार आया कि रावण को एक अंतिम अवसर दिया जाना चाहिए जिससे रक्तपात रोका जा सके।
उन्होंने सभी को शास्त्र व धर्म का उदाहरण दिया व कहा कि यदि एक व्यक्ति के साथ निजी शत्रुता के कारण बहुत जनों का युद्ध में नरसंहार संभव हो तो ऐसे में शत्रु को एक आखिरी अवसर दिया जाना चाहिए। उनके अनुसार यदि शत्रु क्षमा मांग लेता है तो युद्ध रोका जा सकता है। ऐसे में आज हम आपको बताएँगे कि श्रीराम ने हनुमान या किसी ओर की बजाए अंगद को ही शांतिदूत बनाकर (Angad Ka Shanti Doot Bankar Jana) रावण की सभा में क्यों भेजा था ।
श्रीराम के शांति वाले विचारों से सभी सहमत हुए तथा रावण के दरबार में एक शांतिदूत भेजने का निर्णय हुआ। इसके बाद सभी के मन में यह संशय था कि किसको रावण की सभा में शांतिदूत बनाकर भेजा जाए जो प्रभु श्रीराम का संदेश रावण को सही रूप में बता सके। इस पर लक्ष्मण ने हनुमान का सुझाव दिया लेकिन श्रीराम ने हनुमान को भेजने से मना कर दिया।
प्रभु श्रीराम ने तर्क दिया कि हनुमान को पहले माता सीता का पता लगाने भेजा जा चुका है जिस कारण हनुमान की रावण व लंकावासियों से भेंट हो चुकी है। यदि अभी भी हनुमान को शांतिदूत बनाकर भेजा जाएगा तो शत्रु सेना में यह संदेश जाएगा कि वानर सेना में केवल एक ही वीर है जिसे बार-बार भेजा जा रहा है। इसलिए प्रभु श्रीराम ने हनुमान को शांतिदूत बनाकर भेजने से मना कर दिया।
इस पर किष्किन्धा नरेश सुग्रीव ने बालिपुत्र अंगद को भेजने का (Angad Ka Shanti Doot Bankar Jana) सुझाव दिया। रावण की सभा में किसी ऐसे वानर को दूत बनाकर भेजना था जो वीर होने के साथ-साथ चतुर भी हो। शांतिदूत को परमवीर होने के साथ-साथ अति-बुद्धिमान होना आवश्यक था। रावण छल करने में उत्तम था ऐसे में शांतिदूत वीर होना आवश्यक था। इसी के साथ वह चतुराई से प्रभु श्रीराम का संदेश शत्रु को समझा सके, इसके लिए उसका बुद्धिमान व धैर्यवान होना भी आवश्यक था।
वीर अंगद में यह सभी गुण थे इसलिए महाराज सुग्रीव ने उसका सुझाव दिया। उनके नाम पर जामवंत जी भी सहमत हुए। अंत में सभी को अंगद को भेजे जाने का प्रस्ताव पसंद आया। प्रभु श्रीराम ने अंगद को अपना संदेश व उद्देश्य बताया तथा उसे आशीर्वाद देकर रावण की सभा में भेज दिया।
इस तरह से रावण की सभा में अंगद का शांति दूत बनकर जाना बहुत ही सफल रहा था। वह इसलिए क्योंकि ना केवल उसने लंका के राजा रावण को श्रीराम का शांति संदेश पढ़कर सुनाया था बल्कि राक्षसों को भरी सभा में अपना पैर उठाने की चुनौती तक दे दी थी। इस तरह हनुमान की भाँति ही अंगद ने शांतिदूत (Angad Shanti Doot) की भूमिका में भी रावण व उसके योद्धाओं को बता दिया था कि वानर सेना भी किसी से कम नहीं है।
अंगद शांति दूत से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: अंगद को दूत बनाकर राम ने लंका में क्यों भेजा?
उत्तर: अंगद चतुर भी था और शक्तिशाली भी। इस कारण महाराज सुग्रीव ने श्रीराम को अंगद को शांतिदूत बनाकर भेजने का सुझाव दिया था जिसे श्रीराम ने स्वीकार कर लिया था।
प्रश्न: अंगद को दूत बनाकर राम ने लंका क्यों भेजा?
उत्तर: हनुमान को फिर से लंका भेजना उचित नहीं था क्योंकि इससे लंकावासियों को लगता कि श्रीराम की सेना में एक ही महान वानर है। इसलिए अंगद को उसकी चतुराई व बल के आधार पर लंका भेजा गया था।
प्रश्न: क्या रावण अंगद का पैर उठा सकता था?
उत्तर: यह तो उस समय की परिस्थिति की बात है। वैसे ग्रंथों में वर्णित है कि मेघनाद भी अंगद का पैर नहीं उठा पाया था। मेघनाद अपने पिता रावण से भी अधिक शक्तिशाली था। ऐसे में रावण कैसे ही अंगद का पैर उठा लेता।
प्रश्न: अंगद कौन का पुत्र है?
उत्तर: रामायण में अंगद वानरराज बाली व पंचकन्या में से एक तारा का एकमात्र पुत्र था। अपने चाचा सुग्रीव के बाद वही किष्किन्धा का राजा बना था।
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