रावण की सभा में अंगद का पैर कोई क्यों नही उठा पाया था?

Angad Ka Pair Kyu Nahi Utha

अंगद किष्किन्धा के राजा बालि का पुत्र था (Angad Ka Pair Ramayan) जिसने रावन को भी पराजित कर दिया था। स्वयं भगवान श्रीराम को बालि को मिले वरदान के कारण छुपकर उसका वध करना पड़ा था। जब श्रीराम ने रावण के साथ युद्ध करने से पहले अंगद को शांतिदूत बनाकर रावण के दरबार में भेजा तो वहां उसका अपमान किया गया।

रावण ने श्रीराम के शांति संदेश को उनकी कायरता बताया तथा अंगद का उपहास किया। इस पर अंगद ने भरी सभा में रावण के सभी योद्धाओं को चुनौती दी कि यदि कोई भी उसका पैर उठा लेगा (Angad Ka Pair Kyu Nahi Utha) तो वह अपनी हार स्वीकार कर लेगा तथा प्रभु श्रीराम पूरी वानर सेना के साथ लंका से वापस लौट जायेंगे। यह कहकर अंगद ने वहां अपना पैर जमा दिया (Angad Ka Pair Jamana)।

इसके बाद रावण के दरबार में एक-एक करके सभी बाहुबली योद्धा आगे आएं लेकिन कोई भी अंगद का पैर नही उठा पाया। अंत में रावण का शक्तिशाली पुत्र मेघनाथ भी आया तथा उसने अंगद का पैर उठाने का पूरा प्रयास किया लेकिन वह भी सफल न हो सका (Angad Ka Pair Jamana Lanka Mein)। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि आखिर अंगद में इतनी शक्ति कैसे आ गयी थी कि रावण के दरबार का एक से बढ़कर एक शक्तिशाली योद्धा तथा स्वयं देवताओं को भी जीत लेने वाला इंद्रजीत एक वानर पुत्र अंगद का पैर नही उठा पाए थे?

दरअसल रामायण में कुछ योद्धाओं जैसे कि बालि, हनुमान, जाम्बवंत जी के बाहुबल व शक्ति का विस्तार से वर्णन किया हुआ हैं। वे इतने ज्यादा शक्तिशाली थे कि कोई भी उनका सामना नही कर सकता था। अंगद उन्ही में से एक बालि का पुत्र था (Angad Ka Pair Jamana Ramayan) जिससे उसके अंदर भी अपार शक्ति का भंडार था। साथ ही उसके पिता ने स्वयं लंकापति रावण को भी युद्ध में हराया था।

इसका दूसरा मुख्य कारण यह था कि अंगद ने उस समय अपनी प्राण विद्या का उपयोग किया था जिससे शरीर इतना ज्यादा बलिष्ठ तथा भारी बन जाता हैं कि बड़े से बड़े योद्धाओं के लिए भी उसे हिला पाना नामुमकिन होता हैं। इसी विद्या के सहारे अंगद ने अपने पैर को इतना ज्यादा भारी कर लिया था कि वह धरती पर जहाँ जमाया गया वही जम गया। इसके फलस्वरुप कोई भी योद्धा उसके पैर को टस से मस नही कर पाया था।

अंत में जब रावण उसका पैर उठाने आया था तब अंगद ने स्वयं ही अपना पैर हटा लिया था (Angad Ka Pair Uthana) तथा इसके लिए रावण को दुत्कारा था। उसने रावण से कहा था कि उसने यह चुनौती रावण के योद्धाओं को दी थी ना की स्वयं उसको। इसलिये यदि उसे किसी के पैर पड़ने ही हैं तो जाकर प्रभु श्रीराम के पड़े। इतना कहकर अंगद ने रावण का राजमुकुट गिरा दिया तथा तेज गति से वायु मार्ग से बाहर चला गया।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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1 Comment

  1. हरि से कियो है वैर मान समधी के राखे
    त्रेता युग की बात मजे द्वापुर मैं चाखे
    उस समय अंगद जी के पैर को स्वयं शेषनाग जी ने पकड़ रखा था इसलिए कोई पैर नही उठा पाया लेकिन जब रावण आया तो शेष जी ने देखा कि समधी जी आ रहे है शेषनाग जो रावण के समधी थे मेघनाथ को शेष कन्या ब्याही गई थी जब शेष ने देखा रावण को आते हुए तो पैर छोड़ दिया अंगद ने बात बनाते हुए रावण से कहा की मेरे पैर पकड़ने से क्या होगा प्रभु श्री राम के पैर पकड़ इसके बाद भगवान ने द्वापुर युग मैं शेषनाग की रस्सी बनाकर समुद्र मंथन करवाया है

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