बालि सुग्रीव युद्ध व बालि का भगवान श्रीराम के द्वारा वध

Bali Vadh In Ramayan

जब पापी रावण माता सीता का अपहरण कर उन्हें अपने साथ लंका ले गया (Bali Sugriv Yudh) तब भगवान श्रीराम माता सीता की खोज में सुग्रीव के पास पहुंचे। वहां जाकर हनुमान की सहायता से दोनों के बीच मित्रता हुई। भगवान राम ने सुग्रीव को उनका खोया हुआ राज्य किष्किन्धा बालि से लौटने की प्रतिज्ञा ली तो वही सुग्रीव ने माता सीता को ढूंढने में उनकी सहायता करने का वचन दिया (Bali Aur Sugriv Ki Ladai)।

बालि को भगवान ब्रह्मा से मिले वरदान के कारण उससे सामने से युद्ध करके नही हराया जा सकता था (Ram Dwara Bali Ka Vadh) क्योंकि वरदान के प्रभाव से बालि जिससे भी युद्ध करता, उसे उसी समय अपने शत्रु की आधी शक्ति प्राप्त हो जाती थी जिस कारण उसे हरा पाना असंभव था। इसलिये भगवान राम व सुग्रीव ने मिलकर योजना बनाई कि सुग्रीव सामने से जाकर बालि को चुनौती देगा व भगवान राम पीछे से छुपकर बालि का वध कर देंगे।

सुग्रीव का बालि को युद्ध के लिए पुकारना (Sugreev Aur Bali Ka Yudh)

भगवान राम के कहे अनुसार सुग्रीव किष्किन्धा नगरी गया व बालि को युद्ध के लिए ललकारा। बालि भी सुग्रीव की गर्जना सुनकर उससे युद्ध करने को तैयार हो गया व नगर से बाहर आकर उससे युद्ध किया। वरदान स्वरुप उसे सुग्रीव की आधी शक्ति मिल चुकी थी।

भगवान श्रीराम दूर एक वृक्ष के पीछे छुपे हुए खड़े थे व अपने धनुष पर निशाना लगा रखा था लेकिन बालि व सुग्रीव दोनों भाई थे। श्रीराम ने बालि को पहले कभी देखा नही था लेकिन जब उन्होंने उसे देखा तो वह दिखने में एक दम सुग्रीव के समान था। दोनों भाइयों का रंग, रूप, शरीर की काया व हाव-भाव सब समान थे। इसी कारणवश भगवान राम बालि के ऊपर तीर नही चला पाए क्योंकि वे गलती से सुग्रीव को बालि समझकर उसका भी वध कर सकते थे।

उस युद्ध में भगवान श्रीराम ने तीर नही चलाया व बालि के हाथों सुग्रीव की पराजय हुई। सुग्रीव किसी तरह अपनी जान बचाकर वहां से भागा व भगवान राम पर क्रोध करने लगा। भगवान राम ने उन्हें अपनी चिंता बताई व इसका एक उपाय निकाला। उन्होंने बालि के गले में पुष्पों का हार पहनाया व फिर से बालि को युद्ध के लिए ललकारने को कहा।

सुग्रीव बालि का युद्ध व बालि वध (Bali Vadh)

इस बार सुग्रीव वह फूलों की माला पहनकर किष्किन्धा नगरी के द्वार पर गया व बालि को युद्ध के लिए पुकारा। फिर से सुग्रीव की पुकार सुनकर बालि अत्यंत क्रोध में भर गया व युद्ध के लिए जाने लगा। बालि की पत्नी तारा को आशंका हुई कि इसमें कोई षड़यंत्र हो सकता हैं व उसे सुग्रीव के साथ भगवान श्रीराम के होने की बात भी पता थी इसलिये उसने बालि को युद्ध में ना जाने को कहा। किंतु बालि अपने घमंड में इतना चूर था कि उसने तारा की एक बात नही सुनी व युद्ध के लिए चला गया (Ram aur Bali ka Yudh)।

इस बार भी सुग्रीव व बालि के बीच भीषण युद्ध होने लगा किंतु सुग्रीव के गले में पुष्पों की माला होने के कारण भगवान राम को उन्हें पहचानने में कठिनाई नही हुई। इस बार उन्हें बालि की छाती को निशाना बनाकर तीर छोड़ दिया जो सीधा जाकर बालि के हृदय में लगा। तीर लगते ही बालि अचेत होकर धरती पर गिर पड़ा व कराहने लगा। उसे भगवान श्रीराम पर अत्यधिक क्रोध आया व उनसे छुपकर वार करने का कारण पूछा।

भगवान श्रीराम ने बालि के हर प्रश्न का उत्तर दिया व उसकी शंका का समाधान किया। साथ ही भगवान राम ने उसके द्वारा किए गए अधर्म के कार्य बताए व यह बताया कि उसका वध करना क्यों आवश्यक था। अंत में बालि को अपनी भूल ज्ञात हुई व उसने सुग्रीव व भगवान श्रीराम से अपने कर्मों के लिए क्षमा मांगी व अपने प्राण त्याग दिए।

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.