रामायण: अंगद का जीवन परिचय

Ramayan Angad Story In Hindi

रामायण में अंगद (Ramayan Angad Story In Hindi) की अहम भूमिका थी। वह शक्तिशाली राजा बालि का पुत्र था जिसने श्रीराम से पहले ही रावण को बुरी तरह पराजित कर दिया (Who Is Angad In Ramayana In Hindi) था। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात अंगद श्रीराम की सेना के साथ मिल गया तथा रावण की सेना से भीषण युद्ध लड़ा। युद्ध शुरू होने से पहले श्रीराम ने अंगद को ही शांतिदूत बनाकर रावण के दरबार में भेजा था जहाँ उसने अपनी शक्ति व बुद्धि दोनों का परिचय दिया था। आज हम आपको अंगद का संपूर्ण जीवन परिचय देंगे।

रामायण में अंगद का जीवन परिचय (Ramayan Angad Story In Hindi)

अंगद का जन्म व परिवार (Angad Ka Janam Kaise Hua Tha)

अंगद के पिता का नाम बालि (Angad Kiska Putra Tha) था। बालि किष्किन्धा के राजा होने के साथ-साथ अत्यंत बलशाली थे तथा उन्हें वरदान प्राप्त था कि जो कोई भी उससे युद्ध करने आएगा तो उसकी आधी शक्ति बालि के अंदर आ जाएगी (Bali Putra Angad Ka Janm)। अपनी इसी शक्ति के कारण बालि ने लंका के राजा रावण को हराकर छह माह तक उसकी बेइज्जती की थी।

अंगद की माँ का नाम तारा (Angad Ki Maa Ka Naam) था जो हिंदू धर्म की पांच सर्वश्रेष्ठ महिलाओं जिन्हें हम पंचकन्या के नाम से जानते हैं, उसमे आती है। अंगद के चाचा का नाम सुग्रीव था।

अंगद का श्रीराम की सेना में मिलना (Who Is Angad In Ramayana In Hindi)

अंगद ने अपनी युवावस्था में ही कई तरह के बदलाव देखे। एक दिन उसे सूचना प्राप्त होती हैं कि उसके पिता बालि का मायावी राक्षस के द्वारा वध कर दिया गया हैं तथा उसके चाचा सुग्रीव किष्किन्धा के राजा बन चुके हैं। उसके कुछ दिनों के पश्चात अंगद के पिता जीवित लौट आते हैं तथा सुग्रीव को देशनिकाला दे देते हैं तथा पुनः किष्किन्धा के राजा बन जाते हैं।

इसके बाद अंगद के चाचा बालि से छुपकर ऋषयमुख पर्वत पर रहने लगते हैं जहाँ उसके पिता ने सुग्रीव पर नज़र रखने का कार्य सौंपा होता हैं। एक दिन अंगद आकर अपने पिता को सूचना देता हैं कि सुग्रीव से मिलने अयोध्या के दोनों राजकुमार श्रीराम व लक्ष्मण आए हैं।

इसके कुछ दिनों के पश्चात उसे सूचना मिलती हैं कि श्रीराम ने उसके पिता बालि का वध कर दिया है। वह तुरंत अपनी माता तारा के साथ युद्धस्थल पर जाता हैं जहाँ वह देखता हैं कि बालि श्रीराम के बाण से घायल है जिसके कुछ ही देर में प्राण निकल जाएंगे। मृत्यु से पहले बालि अंगद को आदेश देता है कि वह जीवनपर्यंत श्रीराम के आदेशो (Angad Bali Sambad) का पालन करे व माता सीता को ढूंढने में उनका सहयोग दे।

इसके बाद किष्किन्धा का राजा पुनः सुग्रीव बन जाता है व अंगद को वहां का राजकुमार बनाया जाता है। उसकी माँ तारा का विवाह सुग्रीव के साथ हो जाता है।

अंगद का रावण के दरबार में शांतिदूत बनकर जाना (Angad Shanti Doot Bankar Lanka Mein)

श्रीराम के आदेश पर सुग्रीव की वानर सेना को चार दलों में बांटकर चारो दिशाओं में माता सीता की खोज के लिए भेजा जाता है। इसमें से दक्षिण दिशा में भेजे गए दल का नेतृत्व अंगद को दिया जाता है। उसके दल में हनुमान, जाम्बवंत, नल, नील जैसे शक्तिशाली योद्धा होते है। यही दल वापस आकर श्रीराम को माता सीता का पता देता है।

इसके बाद अंगद श्रीराम व वानर सेना के साथ समुंद्र पर सेतु बनाकर लंका पहुँच जाता है। वहां श्रीराम रावण से युद्ध करने से पहले अंगद को शांतिदूत बनाकर रावण के दरबार में भेजते है। श्रीराम अंगद को परामर्श देते है कि वह रावण तक उनका शांति संदेश उचित माध्यम के साथ पहुंचा दे तथा उसके ना मानने पर उसे श्रीराम की चेतावनी भी बता दे।

अंगद का रावण से संवाद (Angad Ravan Samvad Ramayan In Hindi)

अंगद श्रीराम का शांति संदेश लेकर श्रीराम के दरबार में जाता है तो उसे बैठने तक को स्थान नही दिया जाता। यह देखकर वह अपनी पूँछ को बड़ा करके रावण से भी ऊँचा अपना स्थान बना लेता है तथा वहां बैठकर श्रीराम का संदेश पढ़ता है।

वह रावण को माता सीता को सम्मानसहित लौटा देने व श्रीराम की शरण (Ravan Angad Samvad In Hindi) में जाने को कहता है। रावण अंगद का परिचय जानकर उससे सहानुभूति जताता हैं तथा उसके पिता की मृत्यु का प्रतिशोध श्रीराम व सुग्रीव से लेने में सहायता करने का प्रस्ताव रखता है। इसके साथ ही वह अंगद को किष्किन्धा का राजा बनाने को भी कहता है।

अंगद रावण के इस प्रस्ताव को निर्लज्जता के साथ ठुकरा देता हैं तथा रावण का सभी के सामने अपमान करता है। इससे क्रोधित होकर रावण श्रीराम के शांति संदेश को ठुकरा देता है। तब अंगद रावण को श्रीराम की चेतावनी पढ़कर सुनाता है व कहता हैं कि अब उसका अंत समय आ गया हैं व श्रीराम उसका सेना सहित वध कर देंगे।

इसी के साथ अंगद भरी सभा में सभी को चेतावनी देता हैं कि यदि अभी भी कोई श्रीराम की शरण में जाना चाहता है तो चला जाए अन्यथा बाद में किसी के भी प्राण नही बचेंगे। रावण के दरबार में सभी योद्धा एक छोटी आयु के वानर के द्वारा ऐसी बड़ी-बड़ी बाते करने पर उसका उपहास करते है।

अंगद की रावण के योद्धाओं को चुनौती (Angad Ka Pair Ramayan)

अपना उपहास होता देखकर अंगद रावण की सभा में सभी को चुनौती देते है कि जो कोई भी उसका पैर भूमि से उठा देगा तो वह अपनी हार स्वीकार कर लेगा तथा श्रीराम बिना युद्ध किये अपनी सेना वहां से लेकर लौट जाएंगे। यह कहकर अंगद अपनी प्राण विद्या के सहारे बायां पैर धरती पर जमा (Angad Ka Pair Jamana) देता है।

फिर एक-एक करके रावण के दरबार में उपस्थित सभी योद्धा आते हैं लेकिन अंगद का पैर नही उठा पाते। रावण का शक्तिशाली पुत्र मेघनाद भी अंगद का पैर उठाने में अक्षम होता है। यह देखकर अंत में रावण अंगद का पैर उठाने अपने सिंहासन से उठकर नीचे आता है।

रावण को आता देखकर अंगद अपना पैर हटा लेता हैं तथा उसे श्रीराम के पैर पकड़ने को कहता है। इतना कहकर अंगद ठोकर मारकर रावण का मुकुट उतारकर बाहर श्रीराम के चरणों में फेंक देता हैं व तेज गति से महल के बाहर चला जाता है।

अंगद की श्रीराम-रावण युद्ध में भूमिका व किष्किन्धा का राजा बनना (Angad Yudh Ramayan)

तब श्रीराम व रावण की सेनाओं का युद्ध शुरू हो जाता है जिसमे अंगद भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह युद्ध में रावण के कई शक्तिशाली योद्धाओं का अंत कर देता है। रावण वध के पश्चात वह श्रीराम के साथ उनका राज्याभिषेक देखने अयोध्या जाता है तथा कुछ दिनों के पश्चात पुनः किष्किन्धा नगरी आ जाता है।

इसके कई वर्षों के पश्चात जब श्रीराम सरयू नदी में समाधि लेने वाले होते हैं तब उसके चाचा सुग्रीव अंगद को किष्किन्धा का राजा बनाकर स्वयं जल में समाधि लेने चले जाते है। इसके कई वर्षो के पश्चात अंगद ने शांतिपूर्वक अपने प्राण त्याग (Angad Ki Mrityu Kaise Hui) दिए थे।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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