शिक्षाप्रद कहानियां- बापूजी के नखरे और माँ का प्रेम

Moral Stories In Hindi

मिश्रा जी 60 बरस के थे। 2 बच्चे थे, एक बेटी और एक बेटा। बेटी की शादी तो 10 साल पहले ही हो गयी थी और बेटे की बस कुछ साल पहले ही। पत्नी का देहांत बेटी की शादी के कुछ सालों बाद ही एक बीमारी से हो गया (Moral Stories In Hindi) था। भगवान की दया से बहू बहुत अच्छी मिली थी और एक प्यारा सा पोता भी हो गया था।

दिनभर अपने पोते के साथ खेलते, किताबे पढ़ते, घर के काम भी कर देते। खाने-पीने के मामले में भी कोई नखरे नही करते, बहू जो भी देती वह खा लेते। ऐसा नही हैं कि बहू पूछती नही थी, शुरू में तो उसने कई बार पूछा कि बापूजी नाश्ते में क्या बनाऊ, खाने में क्या खाओगे लेकिन बापूजी हमेशा यहीं कहते कि जो तेरा मन हो वो बना ले।

उम्र के इस पड़ाव पर जब बाकि बुजुर्ग थोड़े चिढ़चिढ़े से हो जाते हैं और बात-बात पर आनाकानी या नखरे दिखाते हैं तो वही मिश्रा जी सबसे अलग थे। उनके ना ही कोई नखरे थे और ना ही कोई आनाकानी।

बहुत बार बहू के मन में यह सवाल आया कि आखिर बापूजी की कोई तो इच्छा होगी या कुछ और। एक दिन हिम्मत करके उसने बापूजी से पूछ ही लिया कि बापूजी आप तो मेरे पापा से भी कम नखरे दिखाते हो। वे तो मेरे पापा हैं फिर भी अपनी पसंद-नापसंद बता देते हैं और हर दूसरे दिन अपनी ये चीज़ तो कभी वो चीज़ बनाने की फरमाइश कर देते हैं लेकिन मुझे इस घर में आये 3 साल से ज्यादा का वक्त बीत गया लेकिन आपके मुहं से ऐसा कुछ नही सुना।

बापूजी ने बस हंस के बात टाल दी तो उनकी बहू भी आज पक्का मन बना कर बात जानने आई थी। उसने बोलना जारी रखा, बापूजी ऐसे नही चलेगा, हर किसी के कुछ ना कुछ तो नखरे होते ही हैं ना, चाहे कोई कितना ही सीधा क्यों ना हो लेकिन नखरे तो होते ही हैं थोड़े बहुत।

बापूजी ने ऐसा कुछ नही हैं बहू, तू ज्यादा सोचती हैं, कहकर बात टालनी चाही लेकिन इस पर भी बहू नही मानी। कहना जारी रखा कि नही बापूजी, मुझे विश्वास नही होता। क्या आपकी मेरे सामने कोई झिझक हैं? अगर ऐसा हैं तो मुझे बताइए, मेरे लिए आप भी मेरे पापा जैसे ही हैं, मैं आजकल की बहूओं जैसी नही हूँ जो छोटी-मोटी बात पर बुरा मान जाउंगी। अपने पापा समान ससुरजी के थोड़े बहुत नखरे तो उठा ही सकती हूँ या फिर आप मुझे इस काबिल भी नही समझते।

बापूजी के भाव थोड़े गंभीर हो गए। वे समझ गए कि उनके कोई नखरे ना दिखाने की बात अब बहू अपने ऊपर ले जा रही हैं और खुद को दोषी मानने लगी हैं। वे कुछ बोलना चाह रहे थे लेकिन बहू ने बोलना जारी रखा, बापूजी, अगर आप मुझे अपना नही मानते या मुझसे कोई गलती हुई हैं तो प्लीज मुझे बताइए लेकिन ऐसे मुझसे किसी भी चीज़ का ना मांगना या कोई भी नखरे नही दिखाना सच में मुझे बहुत अखरता हैं। आखिर कुछ तो आपकी भी पसंद-नापसंद होगी, कुछ तो नखरे होंगे?

बापूजी ने बहू रानी की सभी शंकाओं पर विराम लगाते हुए बस एक बात बोली और बात वही समाप्त हो गयी, “दरअसल बेटा, जब मैं 1 साल का ही था, तभी मेरी माँ चल बसी थी, तो मेरे नखरे उठाता कौन!!”

बहू निरुत्तर हो गयी और बात वही समाप्त हो गयी।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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