बुधवार आरती (Budhwar Aarti) – कृष्ण जी की 2 आरती

Budhwar Ki Aarti

बुधवार की आरती (Budhwar Ki Aarti) – महत्व व लाभ सहित

सप्ताह का हर दिन किसी ना किसी भगवान को समर्पित होता है। इसमें से बुधवार का दिन भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित माना जाता है। यद्यपि इस दिन कुछ लोग भगवान गणेश की भी पूजा करते हैं किन्तु मुख्य रूप से इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की ही पूजा की जाती है। ऐसे में बुधवार की आरती (Budhwar Ki Aarti) के रूप में श्रीकृष्ण की स्तुति की जाती है।

श्रीकृष्ण जी को समर्पित एक नहीं बल्कि कई आरतियाँ हैं किन्तु आज हम आपके सामने बुधवार आरती (Budhwar Aarti) के रूप में दो मुख्य आरतियाँ रखेंगे। इनमें से एक कृष्ण आरती प्राचीन है जो धार्मिक पुस्तकों में लिखी हुई है तो वहीं दूसरी आज के समय में बहुत प्रसिद्ध है। इसी के साथ ही हम बुधवार की आरती करने का महत्व व लाभ भी आपके सामने रखेंगे। तो आइये सबसे पहले करते हैं आरती बुधवार की (Aarti Budhwar Ki)।

बुधवार आरती (Budhwar Aarti) – प्राचीन

आरती युगल किशोर की कीजै,
तन मन धन न्यौछावर कीजै॥

गौर श्याम मुख निरखन कीजै,
प्रेम स्वरुप नयन भर दीजै।
रवि शशि कोटि बदन की शोभा,
ताहि देखि मेरो मन लोभा॥

कंचन थार कपूर की बाती,
हरि आये निर्मल भई छाती।
फूलन की सेज फूलन की माला,
रत्न सिंहासन बैठे नंद लाला॥

मोर मुकुट कर मुरली सोहे,
नटवर भेष निरख मन मोहे।
ओढें पीत नील पट सारी,
कुंजन ललना लाल बिहारी॥

श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी,
आरती करत सकल बृजधारी।
नंद नंदन वृषभानु किसोरी,
परमानन्द प्रभु अविचल जोरी॥

आरती युगल किशोर की कीजै,
तन मन धन न्यौछावर कीजै॥

बुधवार की आरती (Budhwar Ki Aarti) – प्रसिद्ध

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला॥

गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली,
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि स्यामा प्यारी की॥
आरती कुंजबिहारी की…॥

कनकमय मोर-मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै,
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिनी संग,
अतुल रति गोपकुमारी की॥
आरती कुंजबिहारी की…॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मल हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा,
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की॥
आरती कुंजबिहारी की…॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू।
चहुँ दिसि गोपि ग्वाल धेनू,
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की…॥

आरती बुधवार की (Aarti Budhwar Ki) – महत्व

सप्ताह के प्रत्येक दिन का अपना महत्व है। ईश्वर के जिस स्वरुप का उस दिन अधिक महत्व होता है, उनकी उपासना करने से उनकी कृपा दृष्टि हमारे ऊपर पड़ती है। द्वापर युग में जन्मे श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के ऐसे पूर्ण अवतार थे जो सभी 64 कलाओं से परिपूर्ण थे। जैसे-जैसे कलियुग का समयकाल बढ़ता चला जाएगा, वैसे-वैसे ही श्रीकृष्ण की दी शिक्षाएं प्रासंगिक होती चली जाएगी।

ऐसे में बुधवार की आरती के माध्यम से श्रीकृष्ण के गुणों और शक्तियों के ऊपर ही प्रकाश डाला गया है। इसी के साथ ही बुधवार आरती श्रीकृष्ण की उपासना और पूजा करने में भी अहम भूमिका निभाती है। यही बुधवार की आरती का महत्व होता है।

बुधवार की आरती के लाभ (Budhwar Aarti Benefits In Hindi)

इस युग में भगवान विष्णु के 10 अवतार हैं और उनमें से 9 अवतार हो चुके हैं जिनमें से श्रीकृष्ण सबसे भिन्न व विचित्र अवतार थे। वे एक ऐसे अवतार थे जिन्होंने धर्म रक्षा के लिए अधर्म को उसी की भाषा में ही उत्तर देकर संपूर्ण विश्व को चकित कर दिया। एक तरह से श्रीकृष्ण ने हम मनुष्यों को कलयुग में अधर्म का सामना किस तरह से करना है, इसकी अद्भुत शिक्षा दी है।

यदि कोई व्यक्ति श्रीकृष्ण को समझ गया तो उसका उद्धार होना लगभग तय है। बुधवार की आरती के माध्यम से हम श्रीकृष्ण को अपने समीप पाते हैं और उन्हें अपने अंदर महसूस करते हैं। इससे ना केवल हमारा मन शुद्ध होता है बल्कि आत्मा भी तृप्त हो जाती है। वहीं यदि श्रीकृष्ण हमसे प्रसन्न हो जाते हैं तो फिर इस सृष्टि में कोई भी संकट या बाधा हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती है क्योंकि स्वयं श्रीकृष्ण हमारी रक्षा करते हैं। यही बुधवार आरती के लाभ होते हैं।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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