धर्मराज जी की आरती हिंदी में – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

Dharmraj Ji Ki Aarti

आज के इस लेख में हम आपके साथ धर्मराज जी की आरती (Dharmraj Ji Ki Aarti) का पाठ करेंगे। यमराज जी को ही धर्मराज के नाम से जाना जाता है क्योंकि वे विश्व के सभी प्राणियों के सत्कर्मों और दुष्कर्मों का लेखा-जोगा रखते हैं। उन्हीं की आज्ञा के अनुसार ही मनुष्य को उसके पाप व पुण्य का फल प्राप्त होता हैं। ऐसे में उन्हें धर्मराज की उपाधि दी गयी है जो धर्म का पालन करवाने का कार्य करते हैं।

क्या आप जानते हैं कि धर्मराज की आरती (Dharmraj Ki Aarti) एक नहीं बल्दी दो-दो हैं। ऐसे में आपको यहाँ दोनों तरह की धर्मराज आरती पढ़ने को मिलेगी और वो भी उनके हिंदी अर्थ सहित। अंत में हम आपके साथ धर्मराज भगवान की आरती के लाभ व महत्व भी सांझा करेंगे। तो आइये सबसे पहले करते हैं श्री धर्मराज आरती।

Dharmraj Ji Ki Aarti | धर्मराज जी की आरती

ॐ जय जय धर्म धुरंधर, जय लोकत्राता।
धर्मराज प्रभु तुम ही, हो हरिहर धाता॥

जय देव दण्ड पाणिधर यम तुम, पापी जन कारण।
सुकृति हेतु हो पर तुम, वैतरणी तारण॥

न्याय विभाग अध्यक्ष हो, नीयत स्वामी।
पाप पुण्य के ज्ञाता, तुम अन्तर्यामी॥

दिव्य दृष्टि से सबके, पाप-पुण्य लखते।
चित्रगुप्त द्वारा तुम, लेखा सब रखते॥

छत्र पात्र वस्त्रान्न क्षिति, शय्याबानी।
तब कृपया पाते हैं, सम्पत्ति मनमानी॥

द्विज, कन्या, तुलसी, का करवाते परिणय।
वंशवृद्धि तुम उनकी, करते निःसंशय॥

दानोद्यापन-याजन, तुष्ट दयासिन्धु।
मृत्यु अनन्तर तुम ही, हो केवल बन्धु॥

धर्मराज प्रभु, अब तुम दया हृदय धारो।
जगत सिन्धु से स्वामिन, सेवक को तारो॥

धर्मराज जी की आरती, जो कोई नर गावे।
धरणी पर सुख पाके, मनवांछित फल पावे॥

धर्मराज आरती हिंदी में – अर्थ सहित

ॐ जय जय धर्म धुरंधर, जय लोकत्राता।
धर्मराज प्रभु तुम ही, हो हरिहर धाता॥

धर्म का पालन करवाने वाले धर्मराज भगवान की जय हो, जय हो। तीनों लोकों में दुष्टों को उनकी करनी का दंड देने वाले की जय हो। धर्मराज देवता ही भगवान श्रीहरि के आदेश पर हमें अपनी-अपनी करनी का फल देकर धर्म का पालन करवाना सुनिश्चित करते हैं।

जय देव दण्ड पाणिधर यम तुम, पापी जन कारण।
सुकृति हेतु हो पर तुम, वैतरणी तारण॥

यम देव दंड देने का अधिकार रखते हैं अर्थात वे दंडाधिकारी हैं। वे हम सभी मनुष्यों के पापों का अंत कर देते हैं अर्थात पाप के अनुसार उसका दंड देकर उसको शून्य कर देते हैं। जिस किसी पर भी धर्मराज की कृपा हो जाती है, वह वैतरणी नदी को पार कर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

न्याय विभाग अध्यक्ष हो, नीयत स्वामी।
पाप पुण्य के ज्ञाता, तुम अन्तर्यामी॥

धर्मराज ही न्याय विभाग के अध्यक्ष हैं अर्थात हम सभी का न्याय अंतिम रूप में वही करते हैं। ऐसे में वे हमारे स्वामी हैं। उन्हें हम सभी के पापों और पुण्यों का ज्ञान है और इसी कारण उन्हें अंतर्यामी भी कहा जाता है।

दिव्य दृष्टि से सबके, पाप-पुण्य लखते।
चित्रगुप्त द्वारा तुम, लेखा सब रखते॥

उनके पास ईश्वर के द्वारा दी गयी दिव्य दृष्टि है जिसकी सहायता से वे हम सभी के पाप-पुण्य लिखते रहते हैं। भगवान चित्रगुप्त की सहायता से वे हम सभी का लेखा-जोगा रखते हैं।

छत्र पात्र वस्त्रान्न क्षिति, शय्याबानी।
तब कृपया पाते हैं, सम्पत्ति मनमानी॥

हमें इस पृथ्वी लोक पर घर, भोजन, वस्त्र, शयन, संपत्ति इत्यादि सभी तरह की सुख-सुविधाएँ धर्मराज की कृपा से ही प्राप्त होती है अर्थात हमारे पिछले जन्मों के कर्मों के आधार पर धर्मराज ही यह निर्णय लेते हैं कि हम इस जन्म में किन-किन सुविधाओं का भोग कर पाएंगे।

द्विज, कन्या, तुलसी, का करवाते परिणय।
वंशवृद्धि तुम उनकी, करते निःसंशय॥

जो मनुष्य ब्राह्मण, कन्या और तुलसी माता का विवाह करवाते हैं, उनकी वंश वृद्धि स्वयं धर्मराज करवाते हैं अर्थात धर्मराज की कृपा से ही हमारे घर पुत्र प्राप्ति होती है।

दानोद्यापन-याजन, तुष्ट दयासिन्धु।
मृत्यु अनन्तर तुम ही, हो केवल बन्धु॥

हमें धर्मराज की कृपा पाने के लिए दान, उपवास, दया इत्यादि कार्य करते रहने चाहिए। मृत्यु के पश्चात अनंत काल तक धर्मराज ही हमारे सहायक होते हैं अर्थात हमें उनकी शरण में ही जाना होता है।

धर्मराज प्रभु, अब तुम दया हृदय धारो।
जगत सिन्धु से स्वामिन, सेवक को तारो॥

हे धर्मराज देवता!! अब आप अपने इस सेवक पर दया कीजिये और मेरा उद्धार कीजिये। आप ही इस जगत से मेरा बेड़ा पार लगवा सकते हैं और मुझे मोक्ष प्रदान कर सकते हैं।

धर्मराज जी की आरती, जो कोई नर गावे।
धरणी पर सुख पाके, मनवांछित फल पावे॥

जो मनुष्य सच्चे मन के साथ धर्मराज जी की आरती का पाठ करता है, उसे अवश्य ही धर्मराज की कृपा से इस धरती पर सुख प्राप्त होता है और मन की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती है।

Dharmraj Ki Aarti | धर्मराज की आरती

धर्मराज कर सिद्ध काज, प्रभु मैं शरणागत हूँ तेरी।
पड़ी नाव मझदार भंवर में, पार करो, न करो देरी॥
धर्मराज कर सिद्ध काज॥

धर्मलोक के तुम स्वामी, श्री यमराज कहलाते हो।
जों जों प्राणी कर्म करत हैं, तुम सब लिखते जाते हो॥

अंत समय में सब ही को, तुम दूत भेज बुलाते हो।
पाप पुण्य का सारा लेखा, उनको बांच सुनते हो॥

भुगताते हो प्राणिन को तुम, लख चौरासी की फेरी।
धर्मराज कर सिद्ध काज॥

चित्रगुप्त हैं लेखक तुम्हारे, फुर्ती से लिखने वाले।
अलग अगल से सब जीवों का, लेखा जोखा लेने वाले॥

पापी जन को पकड़ बुलाते, नरको में ढाने वाले।
बुरे काम करने वालो को, खूब सजा देने वाले॥

कोई नही बच पाता न, याय निति ऐसी तेरी।
धर्मराज कर सिद्ध काज॥

दूत भयंकर तेरे स्वामी, बड़े बड़े डर जाते हैं।
पापी जन तो जिन्हें देखते ही, भय से थर्राते हैं॥

बांध गले में रस्सी वे, पापी जन को ले जाते हैं।
चाबुक मार लाते, जरा रहम नहीं मन में लाते हैं॥

नरक कुंड भुगताते उनको, नहीं मिलती जिसमें सेरी।
धर्मराज कर सिद्ध काज॥

धर्मी जन को धर्मराज, तुम खुद ही लेने आते हो।
सादर ले जाकर उनको तुम, स्वर्ग धाम पहुचाते हो॥

जों जन पाप कपट से डरकर, तेरी भक्ति करते हैं।
नर्क यातना कभी ना करते, भवसागर तरते हैं॥

कपिल मोहन पर कृपा करिये, जपता हूँ तेरी माला।
धर्मराज कर सिद्ध काज, प्रभु मैं शरणागत हूँ तेरी।
पड़ी नाव मझदार भंवर में, पार करो, न करो देरी॥
धर्मराज कर सिद्ध काज॥

धर्मराज आरती इन हिंदी – अर्थ सहित

धर्मराज कर सिद्ध काज, प्रभु मैं शरणागत हूँ तेरी।
पड़ी नाव मझदार भंवर में, पार करो, न करो देरी॥

हे धर्मराज प्रभु!! मैं आपकी शरण में आया हूँ और अब आप मेरे सभी काम बना दीजिये। मेरी नांव बीच मझदार में फंस गयी है और अब आप ही बिना देरी किये उसे पार लगवा सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि धर्मराज जी की कृपा से ही हमारा जीवन सरल बन सकता है और आगे का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। ऐसे में उनकी हम पर कृपा होनी बहुत आवश्यक है।

धर्मलोक के तुम स्वामी, श्री यमराज कहलाते हो।
जों जों प्राणी कर्म करत हैं, तुम सब लिखते जाते हो॥

अंत समय में सब ही को, तुम दूत भेज बुलाते हो।
पाप पुण्य का सारा लेखा, उनको बांच सुनते हो॥

भुगताते हो प्राणिन को तुम, लख चौरासी की फेरी।

धर्मराज जी धर्म लोक के स्वामी हैं जहाँ पर हम सभी मनुष्यों के कर्मों का लेखा-जोगा रखा जाता है। हम इस पृथ्वी पर रहकर अपने जीवनकाल में जो भी कर्म करते हैं, उन सभी का लेखा-जोगा धर्मलोक में धर्मराज के पास रहता है।

जब हमारा अंत समय आता है तब धर्मराज अपने दूत हमारी आत्मा को लेने के लिए भेजते हैं। जब हमारी आत्मा उनके लोक में पहुँचती है तो धर्मराज हमारे सभी पाप-पुण्य का लेखा-जोगा हमारे सामने पढ़कर सुनाते हैं।

उन्हीं पाप व पुण्यों के अनुसार जो फल हमें भोगना होता है, वे धर्मराज हमें देते हैं। इसी के साथ ही चौरासी लाख योनियों में भेजने का कार्य भी धर्मराज ही करते हैं।

चित्रगुप्त हैं लेखक तुम्हारे, फुर्ती से लिखने वाले।
अलग अगल से सब जीवों का, लेखा जोखा लेने वाले॥

पापी जन को पकड़ बुलाते, नरको में ढाने वाले।
बुरे काम करने वालो को, खूब सजा देने वाले॥

कोई नही बच पाता न, याय निति ऐसी तेरी।

धर्मलोक में चित्रगुप्त जी धर्मराज के सहायक हैं जो अपनी पुस्तक में हम सभी मनुष्यों के कर्मों को बहुत ही तेजी के साथ लिखते रहते हैं। वे हर मनुष्य व प्राणी का अलग-अलग लेखा-जोगा अपने पास रखते हैं।

इस धरती पर जो भी पापी है अर्थात जो व्यक्ति बुरे कर्म करता है, उसे मृत्यु के पश्चात धर्मराज नरक में भेजते हैं। जो कोई भी बुरा कर्म करता है, उसे मृत्यु के पश्चात धर्मराज दंड देते हैं।

धर्मराज की दृष्टि से इस पृथ्वी का कोई भी प्राणी नहीं बच सकता है और यही इस सृष्टि का नियम भी है। ऐसे में हम अपने जीवनकाल में जो भी कर्म करेंगे, उसका फल हमें धर्मराज के द्वारा भोगना ही पड़ेगा।

दूत भयंकर तेरे स्वामी, बड़े बड़े डर जाते हैं।
पापी जन तो जिन्हें देखते ही, भय से थर्राते हैं॥

बांध गले में रस्सी वे, पापी जन को ले जाते हैं।
चाबुक मार लाते, जरा रहम नहीं मन में लाते हैं॥

नरक कुंड भुगताते उनको, नहीं मिलती जिसमें सेरी।

धर्मराज के दूत बहुत ही विशाल देह वाले हैं जो भयंकर रूप लिए हुए हैं। उन्हें देखकर तो बड़े से बड़ा और शक्तिशाली मनुष्य भी डर जाता है। वहीं जो पापी मनुष्य हैं या बुरे कर्म करते हैं, वे तो उन दूतों को देखकर भय से कंपकंपाने लगते हैं।

जब पापीजनों का अंत समय आता है तब धर्मराज के द्वारा भेजे गए यही भयंकर दूत उसके गले में रस्सी बांधकर घसीटते हुए उसे धर्मलोक लेकर जाते हैं। रास्ते में वे उसे चाबुक मारते हैं और उसे तरह-तरह की यातनाएं देते हैं।

सभी दुष्ट लोगों को धर्मराज के आदेश पर नरक का दुःख भोगना पड़ता है। उन पर किसी भी तरह की दया नहीं की जाती है और उन्हें नरक की अग्नि में जलना पड़ता है।

धर्मी जन को धर्मराज, तुम खुद ही लेने आते हो।
सादर ले जाकर उनको तुम, स्वर्ग धाम पहुचाते हो॥

जों जन पाप कपट से डरकर, तेरी भक्ति करते हैं।
नर्क यातना कभी ना करते, भवसागर तरते हैं॥

कपिल मोहन पर कृपा करिये, जपता हूँ तेरी माला।

जो मनुष्य अपने जीवनकाल में सत्कर्म करता है, उसे तो मृत्यु के समय स्वयं धर्मराज लेने आते हैं। धर्मराज उस सज्जन व्यक्ति की आत्मा को अपने साथ आदर सहित लेकर जाते हैं और फिर उसे स्वर्ग लोक छोड़ देते हैं।

जो मनुष्य इस पृथ्वी लोक में रहकर पाप और कपट से डरकर धर्मराज जी की आरती करते हैं और उनका ध्यान करते हैं, उन्हें कभी भी नरक की यातनाएं नहीं सहनी पड़ती है। साथ ही धर्मराज जी की कृपा से वे भवसागर को पार कर मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

हे धर्मराज!! आप इस धर्मराज की आरती को लिखने वाले और आपके नाम की माला जपने वाले कपिल मोहन जी पर अपनी कृपा बरसाइये। साथ ही जो इस धर्मराज आरती का पाठ कर रहे हैं, उन पर भी अपनी कृपा दृष्टि कर उनका उद्धार कीजिये।

धर्मराज जी की आरती का महत्व

इस पृथ्वी पर जो भी जन्म लेता है, उसे एक ना एक दिन मृत्यु की गोद में समा जाना होता है। स्वयं ईश्वरीय अवतार भी इस नियम से बंधे हुए हैं और उन्हें भी अपना उद्देश्य पूर्ण करने के बाद मनुष्य की देह का त्याग कर अपने धाम को लौटना पड़ा था। ऐसे में मनुष्य के द्वारा अपने जीवनकाल में जो भी कर्म किये जाते हैं और उसके अनुसार उसके जो भी पाप या पुण्य बनते हैं, उन सभी का फल मृत्यु के देवता यमराज अर्थात धर्मराज ही देते हैं।

धर्मराज चालीसा के माध्यम से धर्मराज के गुणों, शक्तियों, महत्व तथा उद्देश्य के ऊपर ही प्रकाश डाला गया है। इसी के साथ ही धर्मराज जी की आरती उनकी आराधना भी करती है ताकि वे हमसे प्रसन्न हो सकें। यही धर्मराज की आरती का महत्व होता है।

धर्मराज की आरती के लाभ

जो व्यक्ति सच्चे मन के साथ धर्मराज जी का ध्यान कर धर्मराज आरती का पाठ करता है, मृत्यु के देवता यमराज उससे अवश्य ही प्रसन्न होते हैं। धर्मराज जी की आरती का पाठ करने से उसे पहला लाभ जो मिलता है वह होता है अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाना। उसकी कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती है और ना ही उसे इस पृथ्वी में किसी का भय रह जाता है।

इसी के साथ ही उसके द्वारा जो भी पापकर्म किये गए हैं और उसके लिए उसे जो भी दंड मिलने वाला है, उसमें भी उसके साथ धर्मराज के द्वारा नरमी बरती जाती है। एक तरह से जिस व्यक्ति के द्वारा धर्मराज की आरती की जाती है, उससे धर्मराज जी अत्यधिक प्रसन्न होते हैं और मृत्यु के पश्चात उसके जीवन को कष्टदायक होने से बचाते हैं।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने दोनों तरह की धर्मराज जी की आरती हिंदी में अर्थ सहित (Dharmraj Ji Ki Aarti) पढ़ ली हैं। साथ ही आपने धर्मराज की आरती पढ़ने से मिलने वाले लाभ और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

धर्मराज आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: धर्मराज का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर: धर्मराज को हम कई नामों से जानते हैं जिनमें से मुख्य नाम यमराज या यम है। इसके अलावा धर्मराज को मृत्यु के देवता या काल के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न: धर्मराज की माता कौन है?

उत्तर: धर्मराज की माता का नाम सरण्यू है किन्तु यदि आप युधिष्ठिर जो धर्मराज के अवतार थे, उनकी माता का नाम जानना चाहते हैं तो युधिष्ठिर की माता का नाम कुंती है।

प्रश्न: धर्मराज के पिता का क्या नाम था?

उत्तर: धर्मराज जिन्हें हम यमराज के नाम से भी जानते हैं, उनके पिता का नाम सूर्य देव है। वहीं धर्मराज के अवतार युधिष्ठिर के पिता का नाम पांडू है।

प्रश्न: धर्मराज किसे और क्यों कहा गया है?

उत्तर: धर्मराज मृत्यु के देवता यमराज को कहा गया है। अब उन्हें धर्मराज इसलिए कहा गया है क्योंकि वे मनुष्यों के सभी पापों व पुण्यों का लेखा-जोगा रखते हैं और उसी के अनुसार ही उसको फल देते हैं।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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