स्वामी विवेकानंद व रामकृष्ण परमहंस के बीच प्रश्नोत्तर व उनका गूढ़

Conversation between Vivekananda and Ramakrishna

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) का भारतीयता व हिंदू धर्म में बहुत बड़ा स्थान हैं जिन्होंने देश ही नही अपितु विदेशों में भी इसका प्रचार प्रसार किया। खासकर युवा उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित थे व उन्हें अपना आदर्श तथा गुरु मानते थे। इसी तरह स्वामी विवेकानंद अपना गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस को मानते थे जो अपनी साधना के अंतिम पड़ाव में थे (Swami Vivekananda questions and answers in Hindi)।

रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद से अत्यधिक प्रभावित हुए थे व उन्होंने विवेकानंद को अपने शिष्य के तौर पर स्वीकार कर लिया था (Ramakrishna and Vivekananda stories)। विवेकानंद तर्क व विवेकपूर्ण प्रश्नों के द्वारा अपनी जिज्ञासा को शांत करने का प्रयत्न करते थे व रामकृष्ण परमहंस (Ramkrishna Paramhans in Hindi) भी उनके हर प्रश्न का उचित उत्तर देकर उनकी बुद्धि को भक्ति में बदल दिया करते थे।

आज हम स्वामी विवेकानंद के द्वारा पूछे गए ऐसे ही कुछ प्रश्नों व स्वामी रामकृष्ण परमहंस के द्वारा दिए गए उन प्रश्नों के उत्तरों के बारे में जानेंगे। साथ ही हम उनका गूढ़ जानने का भी प्रयत्न करेंगे।

स्वामी विवेकानंद व रामकृष्ण परमहंस के बीच का संवाद (Swami Vivekananda questions and answers in Hindi)

स्वामी विवेकानंद: मैं समय नहीं निकाल पाता हूँ। जीवन आपाधापी से भर हुआ लगता है।

रामकृष्ण परमहंस: गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं लेकिन उत्पादकता स्वतंत्रता प्रदान करती है।

अर्थ: इस पृथ्वी पर भगवान ने सभी को एक समान ही समय दिया हैं। दिन में 24 घंटे, हर घंटे में 60 मिनट व हर मिनट में 60 सेकंड निर्धारित हैं। चाहे कोई राजा हो या रंक, हर किसी को ईश्वर ने समय समान रूप से वितरित किया है। फिर हम यह कैसे सोच सकते हैं कि हमारे पास समय नही हैं? जब इस पृथ्वी में सभी के पास समय समान रूप से हैं तो समय की कमी केवल हमारे पास हैं यह सोच पूर्णतया गलत है। यह केवल हमारी दिनचर्या के निर्धारित ना होने का परिणाम है। इसलिये हमे अपनी दिनचर्या को सुनियोजित करना चाहिए ताकि हम समय का उत्तम उपयोग कर सके। वह केवल समय ही हैं जो एक बार बीत जाता हैं तो कभी वापस लौटकर नही आता है।

स्वामी विवेकानंद: लोगों की ऐसी कौन सी बात हैं जो आपको सबसे ज्यादा विचलित करती है?

रामकृष्ण परमहंस: जब भी वे कष्ट में होते हैं तो ईश्वर से पूछते हैं, “मैं ही क्यों?” किंतु जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, “मैं ही क्यों?”

अर्थ: इसका अर्थ यह हुआ कि मनुष्य इस सांसारिक जीवन में केवल सुखों की ही अनुभूति करे यह संभव नही क्योंकि सुख व दुःख एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। जो व्यक्ति इन दोनों से मुक्त हो जाता हैं वह मोक्ष को प्राप्त करता है। इसलिये सांसारिक सुखों की आकांशा रखने वालों को दुःख का भी भागी बनना ही पड़ेगा। यही बात भगवान श्रीकृष्ण ने भागवत गीता में भी कही है।

स्वामी विवेकानंद: आज जीवन इतना जटिल सा क्यों हो गया है?

रामकृष्ण परमहंस: जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो क्योंकि यह इसे और जटिल बना देता है। जीवन को केवल जियो।

अर्थ: आज व्यक्ति के दुःख का सबसे बड़ा कारण यही हैं कि वह हमेशा दूसरों के जीवन से अपने जीवन की तुलना करता है। कौन कहा घूम रहा है, कितना खुश हैं, किसके पास कितना धन वैभव हैं, इत्यादि हम हर समय यही सोचते रहते हैं। किसी चीज़ के ना हो पाने या ना मिल पाने का दुःख हमेशा हम अपने मन में बनाये रखते हैं व यह जीवन ऐसे ही नीरस व्यतीत होता रहता है।

ऐसा करने से हमारे भविष्य में होने वाले काम या तो सही से हो नही पाते या हम उसका पूरा आनंद नही उठा पाते। इसलिये यह हम पर निर्भर करता हैं कि हम अपने जीवन को किस तरह से लेते हैं। हम चाहे तो दुःख की घड़ी में भी आशा की किरण व छोटी से छोटी चीज़ में भी खुशी ढूंढ सकते हैं अन्यथा सब कुछ होने के पश्चात भी हम किसी ना किसी चीज़ के ना होने का दुःख मना सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद: अच्छे लोग हमेशा दुःख ही क्यों पाते हैं?

रामकृष्ण परमहंस: हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है, सोने को शुद्ध होने के लिए अग्नि में तपना पड़ता है। उसी प्रकार से अच्छे लोग दुःख नहीं पाते अपितु परीक्षाओं से गुजरते हैं। इससे मिले अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है।

अर्थ: यह पूर्णतया हम पर निर्भर करता हैं कि हम अपने जीवन में आने वाली समस्याओं व चुनौतियों को किस रूप में लेते हैं। यदि हम बिना कठिनाई के ही आगे बढ़ते रहेंगे तो हम अपने जीवन में कुछ भी नही सीख पाएंगे। इसलिये यह बहुत आवश्यक हैं कि हम अपने जीवन में सफलता पाने के लिए चुनौतियों के सामने हार मानने या उसे एक समस्या लेने की बजाये, उससे लड़े व उससे कुछ सीखने का प्रयत्न करे। हर कठिनाई या समस्या हमे जीवन का कुछ ना कुछ मूल्य सिखाकर ही जाती हैं।

स्वामी विवेकानंद: समस्याओं से घिरे रहने के कारण हम जान ही नहीं पाते कि हम किस ओर जा रहे हैं?

रामकृष्ण परमहंस: अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो। इसलिये अपने भीतर झांको। आखें हमें दृष्टि देती हैं किंतु हृदय मार्ग दिखाता है।

अर्थ: कभी-कभी जीवन में ऐसे क्षण आते हैं कि हमे समझ नही आता हैं कि अब कौनसा निर्णय लेना उचित रहेगा व कौनसा नही। उस समय यदि हम गलत निर्णय ले बैठे तो यह हमे असफल बना सकता हैं। हमेशा दिमाग से काम लेना भी उचित नही रहता हैं। इसलिये कभी-कभी जब हमारा दिमाग निर्णय नही ले पा रहा हो या उलझन में हो तब हमे हमारे हृदय की सुननी चाहिए। जो हमारे मन को अच्छा लगता हैं यदि हम उस पर काम करेंगे तो अवश्य सफल होंगे।

स्वामी विवेकानंद: कठिन समय में भी कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?

रामकृष्ण परमहंस: हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए बजाये इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है। जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो व जो प्राप्त न हो सका उसे नहीं।

अर्थ: जीवन में कठिन समय अवश्य आता हैं व यदि हम उसके सामने हार गए या थक गए तो हम आगे बढ़ ही नही पायेंगे। जीवन में कभी भी असफलता से नही डरना चाहिए क्योंकि सफलता व असफलता दोनों ही जीवन के अंग हैं। सफलता जहाँ हमें किसी चीज़ की प्राप्ति करवाती हैं तो वही असफलता हमे कुछ ना कुछ सिखाकर जाती हैं व साथ ही आगे भी प्रयास करते रहने की प्रेरणा देती हैं। यदि हम असफलता के डर से प्रयास करना ही छोड़ देंगे तो हम कभी भी अपने जीवन को सफल नही बना पाएंगे।

स्वामी विवेकानंद: कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं व्यर्थ जा रही हैं।

रामकृष्ण परमहंस: कोई भी प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती हैं। अपनी आस्था बनाए रखो और डर को एक ओर रख दो। जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है। यह कोई समस्या नहीं है जिसे तुम्हें सुलझाना है। मेरा विश्वास करो, यदि तुम यह जान जाओगे कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है।

अर्थ: जीवन में कुछ कठिनाई आने पर या किसी को खो देने पर हम अपने जीवन को व्यर्थ समझने लगते हैं व किसी-किसी के मन में तो आत्म-हत्या तक के विचार आने लगते हैं जो पूर्णतया गलत हैं। यह जीवन हमे विधाता ने दिया हैं व हर कोई यहाँ कुछ ना कुछ करके जाता है। हर किसी के जन्म लेने का उद्देश्य उसका इस संसार में कुछ योगदान देना होता है। इसलिये बिना यह सोचे कि हमने अभी तक क्या पाया और क्या खोया, हमे इस बात का चिंतन करना चाहिए कि हम अभी क्या कर रहे हैं व उससे हमारा व दूसरों का क्या भला हो सकता है।

स्वामी विवेकानंद: मैं अपने जीवन में सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूं।

रामकृष्ण परमहंस: बिना किसी अफसोस के अपने भूतकाल का सामना करो, पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो व निडर होकर भविष्य की तैयारी करो।

अर्थ: मनुष्य का ज्यादातर समय अपने भूतकाल में घटित हुई घटनाओं को सोचने में ही लग जाता हैं या भविष्य में उसके साथ कैसा होगा, यह सोचने में निकल जाता हैं। व्यक्ति को भूतकाल व भविष्यकाल का चिंतन करने की बजाये, वह वर्तमान में क्या कर्म कर रहा है, उस पर ध्यान देना चाहिए। भूतकाल में घटित हुई घटनाओं से शिक्षा लेकर व भविष्य की तैयारी करके मनुष्य को वर्तमान में कर्म करने चाहिए। साथ ही उससे मिलने वाले परिणामों की तैयारी भी उसे पहले ही कर लेनी चाहिए।

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

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