जब लक्ष्मण मेघनाथ के शक्ति बाण से मूर्छित हो गए थे (Hanuman Ji Sanjivani Buti Kis Ke Liye Laye The) तब वीर हनुमान लंका के राज वैद्य सुशेन के बताए अनुसार हिमालय से संजीवनी पर्वत को उठा लाये थे। रामायण के अनुसार यह पर्वत कैलाश तथा ऋषभ पर्वत के बीच स्थित था। वर्तमान में इसका स्थान उत्तराखंड के द्रोणागिरी पर्वत या उड़ीसा के गंधमर्धन पर्वत (Hanuman Ji Sanjivani Buti Kahan Se Layi The) को माना जाता हैं।
वैद्य सुशेन ने हनुमान को सूर्योदय होने से पहले तक संजीवनी बूटी लाने को कहा था अन्यथा लक्ष्मण के प्राण निकल जाते। सुशेन वैद्य से संजीवनी बूटी का पता पाकर हनुमान हिमालय पर्वत की ओर (Hanuman Ji Sanjivani Buti Lene Gaye) उड़ पड़े। वहां पहुंचकर कई सारी दिव्य औषधियों को देखकर वे अचंभित हो गए थे। इसलिये समय व्यर्थ न करते हुए हनुमान पूरा का पूरा संजीवनी पहाड़ ही उठा लाये थे (Hanuman Ji Dwara Sanjivani Buti Lana।
जब वैद्यराज सुशेन ने संजीवनी बूटी से लक्ष्मण का उपचार कर लिया तथा वे भलीभांति ठीक हो गए तब उन्होंने हनुमान को वह पर्वत वापस उसी स्थान पर रख आने को बोला (Did Hanuman Put The Mountain Back)। इस पर हनुमान ने प्रश्न किया कि अब इसकी क्या आवश्यकता हैं।
इस प्रश्न का उत्तर सुशेन वैद्य ने विस्तार से दिया तथा हनुमान व बाकि लोगों को समझाया कि किसी चीज़ पर केवल एक प्राणी या जाति का अधिकार नही होता (Did Hanuman Return The Mountain)। यह पहाड़ तथा उस पर उगने वाली यह विभिन्न बूटियाँ केवल हिमालय के प्राकृतिक स्वरुप में ही फलफूल सकती हैं। यदि उन्हें इसी लंका नगरी में रखा गया तो एक बार समाप्त होने के पश्चात वह वापस नही उगेगी।
इससे उस पर्वत की महत्ता समाप्त हो जाती तथा उन बूटियों से मिलने वाला मानव जाति को लाभ अधूरा रह जाता। इसलिये सुशेन वैद्य ने वह पर्वत उसी स्थान पर वापस रख आने को बोला। सुशेन वैद्य के यह वचन सुनकर हनुमान को अपनी भूल का आभास हुआ (Hanuman Takes Back Mountain From Lanka To Himalaya) तथा वे श्रीराम से आज्ञा पाकर पुनः उस पर्वत का वहां रख आये।