दुर्गा पूजा का महत्व व संपूर्ण जानकारी

Durga Puja Par Nibandh

दुर्गा पूजा का त्यौहार मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में मनाया जाता हैं (Durga Puja Par Nibandh)। इसके साथ ही इसे भारत के कुछ अन्य राज्यों जैसे कि असम, उड़ीसा, बिहार, झारखंड, त्रिपुरा में भी मनाया जाता हैं। दुर्गा पूजा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती हैं। इस दिन बाकि भारत में नवरात्र पर्व मनाया जा रहा होता हैं। यह 10 दिनों का त्यौहार होता हैं तथा मुख्य आयोजन षष्टी (छठे दिन) से शुरू होता हैं। आइए दुर्गा पूजा (Durga Puja In Hindi) के बारे में जानते हैं।

दुर्गा पूजा के बारे में जानकारी (Durga Puja In Hindi)

दुर्गा पूजा क्यों मनाई जाती हैं? (Durga Puja Kyon Manaya Jata Hai)

सर्वप्रथम हम दुर्गा पूजा के इतिहास के बारे में जानते हैं कि आखिर क्यों इसका आयोजन किया जाता हैं। एक समय में महिषासुर नामक राक्षस था जो भगवान ब्रह्मा से वरदान पाकर अत्यधिक शक्तिशाली हो गया था। इसी अहंकार में उसने स्वर्ग लोक में देवताओं को पराजित कर दिया व इंद्र से उसका आसन छीन लिया (Durga Puja Par Nibandh Likhiye)।

तब सभी देवता त्रिमूर्ति से सहायता मांगने गए। त्रिमूर्ति ने अपने तेज से माँ दुर्गा का निर्माण किया जो पार्वती माता का ही एक रूप थी। उन्होंने महिषासुर से नौ दिनों तक भीषण युद्ध किया तथा अंतिम दिन उसका वध कर दिया। इसलिये यह पर्व दस दिनों तक मनाया जाता हैं तथा अंतिम दिन माँ दुर्गा की मूर्ति को नदी में विसर्जित कर दिया जाता हैं।

दुर्गा पूजा के अन्य नाम (Durga Puja Essay In Hindi)

इसे हम नवरात्र के नाम से भी जानते हैं क्योंकि दोनों में ही मातारानी की पूजा की जाती हैं। नवरात्र में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विधान हैं तथा दसवें दिन दशहरा मनाया जाता हैं (Durga Puja Kab manaya jata Hai)। उसी प्रकार दुर्गा पूजा में पहले नौ दिन माँ दुर्गा की आराधना की जाती हैं तथा दसवें दिन उनकी मूर्ति को नदी में विसर्जित कर दिया जाता हैं।

इसे विभिन्न राज्यों तथा भाषाओँ में विभिन्न नामों से जाना जाता हैं जैसे कि दुर्गोत्सव, दुर्गा पूजो, अकाल उत्सव, शारदीय पूजो, महा पूजो, भगबती पूजो इत्यादि। बांग्लादेश में इसे भगबती पूजो के नाम से जाना जाता हैं तथा वहां रहने वाले सनातानी माँ दुर्गा की पूरे विधि-विधान के साथ आराधना करते हैं।

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में इसे कुल्लू दशहरा, कर्नाटक के मैसूर राज्य में मैसूर दशहरा, तमिलनाडु में बोम्मई गोलू, आंध्र प्रदेश में बोम्मला कोलुवु व तेलंगाना में बठुकम्मा के नाम से जाना जाता हैं।

दुर्गा पूजा का आयोजन (Durga Puja Celebration In Hindi)

दुर्गा पूजा का त्यौहार मुख्य रूप से छह दिनों के लिए मनाया जाता हैं जिसका प्रारंभ पांचवे दिन से हो जाता हैं। इस दिन को महालय के नाम से जाना जाता हैं। यह नवरात्र के पंचम दिन होता हैं।

इसके बाद के दिनों को षष्ठी, महा सप्तमी, महा अष्टमी, महा नवमी तथा विजयादशमी के नाम से जाना जाता हैं। माँ दुर्गा के पंडाल सजने तो बहुत पहले से शुरू हो जाते हैं लेकिन षष्ठी के दिन से यह आम भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं।

इसमें माँ दुर्गा की महिषासुर मर्दिनी वाली प्रतिमा लगी होती हैं अर्थात जिसमे वे अपने रोद्र रूप में हैं व हाथ में त्रिशूल व अन्य अस्त्र-शस्त्र पकड़े हुए हैं। उनके पैरों के नीचे दुष्ट राक्षस महिषासुर हैं व माँ दुर्गा उसे त्रिशूल से मार रही हैं। माँ के पीछे उनका वाहन सिंह होता हैं तथा उनके साथ में माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती, भगवान कार्तिक व भगवान गणेश होते हैं।

मुख्यतया बंगाल में माँ दुर्गा के बड़े-बड़े दरबार सजते हैं जिन्हें पंडाल कहा जाता हैं। आजकल यह पर्व बंगाल के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी बहुत लोकप्रिय हो गया हैं तथा वहां भी लोग अपनी सुविधानुसार पंडाल सजाते हैं। हालाँकि उत्तर भारत में मातारानी का नवरात्र त्यौहार, कंजक पूजन व दशहरा पर्व मनाने की परंपरा हैं (Durga Puja Information In Hindi)।

दुर्गा पूजा में सभी लोग तैयार होकर पंडाल में जाते हैं व माता रानी की पूजा करते हैं। इन दिनों कई उत्सवो व कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता हैं। आइए इन कार्यक्रमों के बारे में जानते हैं:

  • बोधना: इस दिन माँ दुर्गा को जगाया जाता हैं व उनका स्वागत किया जाता हैं। यह छठे दिन किया जाता हैं।
  • अधिवास: यह भी छठे दिन आयोजित किया जाता हैं जिसमें उन्हें विभिन्न भोग लगाए जाते हैं तथा उनकी आराधना की जाती हैं।
  • नवपत्रिका स्नान: पूजा के सातवें दिन माँ दुर्गा को शुद्ध जल से स्नान (Navpatrika Puja) करवाया जाता हैं।
  • संधि पूजा या अष्टमी पुष्पांजलि: मान्यता हैं कि महिषासुर से युद्ध करते-करते अष्टमी के दिन माँ दुर्गा ने अति भयानक रूप ले लिया था तथा युद्ध भीषण हो चला था (Ashtami Pushpanjali)। इसी दिन माँ दुर्गा की तीसरी आँख से माँ चामुंडा/ चंडी का निर्माण हुआ था जिसनें राक्षसों का संहार किया था। उसी को ध्यान में रखते हुए अष्टमी व नवमी को बड़ी धूमधाम से पूजा की जाती हैं।
  • होम व भोग/ कुमारी पूजा: यह देवी दुर्गा का सबसे पवित्र रूप माना जाता हैं (Kumari Puja)। इसमें एक वर्ष से लेकर सोलह वर्ष की आयु तक कोई भी कन्या को माँ दुर्गा का रूप मानकर उसकी आराधना की जाती हैं। यह नौवे दिन किया जाता हैं।
  • संध्या आरती: जब से पंडालों में भक्तों को आना शुरू होता हैं अर्थान षष्ठी से संध्या आरती शुरू हो जाती हैं। तब से लेकर नवमी तक दुर्गा पंडालों में विशाल व भव्य संध्या आरती का आयोजन किया जाता हैं।
  • सिंदूर खेला: यह आयोजन अंतिम दिन किया जाता हैं (Sindur Khela) जिसे केवल सुहागन महिलाएं ही खेलती हैं। यह दिन माँ दुर्गा के द्वारा महिषासुर राक्षस के वध के रूप में याद किया जाता हैं अर्थात बुराई पर अच्छाई की विजय। इस उपलक्ष्य में सुहागन महिलाएं माँ के साथ सिंदूर की होली खेलती हैं तथा एक-दूसरे पर भी सिंदूर डालती हैं।
  • धुनुची नाच: यह एक प्रकार का शक्ति नृत्य (Dhunuchi Naach) हैं जो माँ दुर्गा के क्रोध, ऊर्जा व शक्ति को दिखता हैं। इसमें नारियल व हवन सामग्री से माँ दुर्गा की आराधना की जाती हैं।

दुर्गा पूजा का अंतिम दिन/ दशमी/ विजयादशमी (Durga Puja Visarjan)

दस दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार का अंत माँ दुर्गा की मूर्तियों को पंडालों से निकालकर उन्हें नदी में विसर्जित कर देने से समाप्त हो जाता हैं। इस दिन सभी भक्त माँ दुर्गा के साथ सिंदूर होली खेलकर उन्हें पंडाल से बाहर निकालते हैं। वे सभी नाचते गाते हुए उन्हें नदी तक लेकर जाते हैं तथा वहां विसर्जित कर देते हैं। मान्यता हैं कि इसके पश्चात माँ दुर्गा पुनः अपने लोक कैलाश पर्वत को चली जाती हैं।

इसके बाद सभी लोग अपने मित्रों, सगे-संबंधियों से मिलते हैं, उन्हें बधाई देते हैं, पकवान खाते हैं व खुशियाँ मनाते हैं। इस प्रकार दस दिनों तक चलने वाले इस उत्सव का समापन हो जाता है।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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