प्रभु श्रीराम व रावण का भीषण युद्ध चल रहा था (Ahiravan Mahiravan Vadh) जिसमे एक-एक करके रावण के सभी शक्तिशाली योद्धा, पुत्र, भाई-बंधु मारे जा रहे थे। जब रावण का अति-शक्तिशाली तथा पराक्रमी पुत्र मेघनाद भी मारा गया तब रावण गहन चिंता में डूब गया। अब उसके पास कोई भी शक्तिशाली योद्धा नही बचा था। ऐसे में उसे अपने भाई तथा मित्र अहिरावण (Ahiravan Kon Tha) की याद आयी जो पाताल लोक का राजा (Mahiravan Vadh Ramayan) था। अहिरावण को महिरावण के नाम से भी जाना जाता हैं। तब श्रीराम व लक्ष्मण का अहिरावण से सामना हुआ।
अहिरावण द्वारा राम लक्ष्मण के हरण करने की कथा (Ahiravan Ki Kahani And Vadh Story)
विभीषण को हुई चिंता (Ahiravan In Ramayan In Hindi)
रावण ने अहिरावण को अपनी सहायता करने के लिए तुरंत बुलावा भेज दिया तथा लंकेश की आज्ञा पाकर वह जल्दी से लंका पहुँच भी गया। विभीषण को अपने गुप्त सूत्रों से पता चल गया था कि रावण ने अहिरावण (Kaun Tha Ahiravana) को बुलावा भेजा हैं जो अत्यंत मायावी राक्षस था। इसलिये उसे प्रभु श्रीराम तथा लक्ष्मण की सुरक्षा की चिंता सताने लगी।
हनुमान बने रक्षक
विभीषण ने श्रीराम तथा लक्ष्मण की सुरक्षा करने के उद्देश्य से हनुमान को सबसे उपयुक्त समझा तथा उन्हें श्रीराम की सुरक्षा में तैनात किया। श्रीराम तथा लक्ष्मण सुबेल पर्वत पर अपनी कुटिया में सो रहे थे तथा बाहर हनुमान पहरा दे रहे थे। हनुमान ने कुटिया के चारों ओर सुरक्षा का अभेद्य घेराव बना दिया था जिसके अंदर किसी मायावी शक्ति का प्रवेश करना असंभव था।
अहिरावण ने धरा विभीषण का रूप (Ram Laxman Haran)
जब अहिरावण भगवन श्रीराम तथा लक्ष्मण का अपहरण करने पहुंचा तब वह कुटिया के अंदर प्रवेश करने में असमर्थ था। ऐसे में उसने एक चाल सोची तथा विभीषण का भेष बनाकर हनुमान के पास गए। हनुमान उसकी चाल में फंस गए तथा उसे कुटिया में प्रवेश दे दिया। अंदर पहुंचकर अहिरावण ने श्रीराम व लक्ष्मण का पत्थर की शिला सहित अपहरण कर लिया तथा तेज गति से उन्हें पाताल लोक ले गए।
हनुमान पहुंचे पाताल लोक (Ahiravan Ka Vadh Ramayan)
विभीषण को इस दुःखद घटना का समाचार जैसे ही मिला तो उन्होंने हनुमान को जल्द से जल्द पाताल लोक जाकर श्रीराम व लक्ष्मण की सहायता करने को कहा। यह सुनकर हनुमान अपनी तेज गति से पाताल लोक के लिए उड़ गए।
हनुमान की हुई अपने पुत्र मकरध्वज से भेंट
पाताल लोक के द्वार पर हनुमान की भेंट अपने पुत्र मकरध्वज से हुई जो वहां का सुरक्षा प्रहरी था लेकिन अपने पिता को सामने देखकर भी उसने अपनी स्वामी भक्ति नही छोड़ी। तब दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमे अन्तंतः मकरध्वज की पराजय हुई। हनुमान ने उसे वही बंदी बना लिया तथा पाताललोक में प्रवेश किया। अंदर पहुंचकर हनुमान ने देखा कि श्रीराम तथा लक्ष्मण मूर्छित अवस्था में मायावी देवी के सामने पड़े हैं तथा अहिरावण उनकी बलि की तैयारी कर रहा हैं।
हनुमान ने धरा पंचमुखी हनुमान रूप (Panchmukhi Hanuman And Ahiravana Vadh)
अहिरावण ने माँ देवी की प्रतिमा के सामने पांच दिशाओं में पांच दीप जला रखे थे जिनको एक साथ एक ही समय में बुझाने पर ही अहिरावण की मृत्यु (Ahiravan Vadh) संभव थी। इसलिये हनुमान ने अपना पंचमुखी रूप धरा तथा एक साथ पाँचों दीप बुझा दिए (Ahiravan Hanuman Yudh)। पाँचों दीप के बुझते ही अहिरावण की मृत्यु हो गयी। उसके पश्चात हनुमान ने श्रीराम तथा लक्ष्मण को बंधनों से मुक्त किया तथा पुनः पृथ्वी लोक चले गए। जाने से पूर्व श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल लोक का राजा घोषित कर दिया।