![Indra and Indrani Rakhi Story In Hindi](https://dharmyaatra.in/wp-content/uploads/2020/07/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%9A%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C-%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A4%BE.png)
रक्षाबंधन से जुड़ी हुई कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं किंतु आज हम आपको उस कथा के बारे में बताएँगे (Indra And Indrani Rakshabandhan Story In Hindi) जब रक्षाबंधन पर्व को बनाने की शुरुआत हुई थी। यह कथा हैं देवराज इंद्र का अपनी पत्नी शुची/ इंद्राणी के द्वारा रक्षा सूत्र बंधवाना। जी हां, सही सुना आपने। आजकल यह पर्व मुख्यतया भाई व बहन के बीच सिमटकर रह गया हैं (Rakshabandhan Story Of Indra In Hindi) किंतु जब इसकी शुरुआत हुई थी तब इसे केवल भाई-बहन का नही बल्कि अपने परिचित की रक्षा हेतु राखी बांधने से होता था। आइये जानते हैं इंद्र व इंद्राणी की रक्षाबंधन से जुड़ी कथा।
देवराज इंद्र की रक्षाबंधन से जुड़ी कथा (Indra And Indrani Rakshabandhan Story In Hindi)
एक बार देवासुर संग्राम हो रहा था जिसमें असुर देवताओं पर भारी पड़ रहे थे। उस भयानक युद्ध में देवराज इंद्र तथा उनकी शक्ति क्षीण पड़ती जा रही थी जिससे वे विचलित हो गए थे। कुछ उपाय न सूझता देखकर वे अपने गुरु महर्षि बृहस्पति से सहायता मांगने के लिए गए।
उसी युद्ध में महर्षि दधिची ने अपने हड्डियों का दान किया था जिससे इंद्र को वज्र की प्राप्ति हुई थी। इसके पश्चात इंद्र अपने गुरु बृहस्पति से आशीर्वाद लेने गए (Rakhi Story Of Lord Indra Dev And Indrani)। तब इंद्र की व्यथा उनकी पत्नी इंद्राणी भी सुन रही थी। बृहस्पति ने इंद्र की रक्षा तथा युद्ध में उनकी विजय के लिए देवराज इंद्र की पत्नी इंद्राणी को आदेश दिया कि वह एक रक्षा सूत्र ले तथा उसे मंत्र से अभिमंत्रित करके इंद्र के हाथों में बांध दे।
गुरु के आदेश पर इंद्राणी ने एक रक्षा सूत्र लिया तथा उसे मंत्रो इत्यादि से अभिमंत्रित किया (Indra Indrani Raksha Bandhan)। इसके पश्चात उसने वह रक्षासूत्र अपने पति इंद्र की कलाई पर बांध दिया। मान्यता हैं कि इसी रक्षा सूत्र की शक्ति के फलस्वरूप इंद्र वह युद्ध जीतने में सफल हुए थे तथा असुरों का वध हुआ था।
उस घटना के पश्चात ही रक्षाबंधन का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई। चूँकि यह घटना श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन घटित हुई थी इसलिये प्रतिवर्ष इस दिन को रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन केवल बहन अपने भाई को ही नही अपितु ब्राह्मण राजाओं को तथा पुरोहित अपने यजमानों को भी राखी बांधते हैं।