इंद्र पुत्र जयंत और माता सीता की कहानी

रामायण (Ramayan In Hindi)

रामायण में इंद्र पुत्र जयंत की कथा (Indra Putra Jayant Ki Katha) भी आती है। जयंत देव इंद्र व उनकी पत्नी शुचि का पुत्र था। वैसे तो जयंत का उल्लेख कुछ एक जगह पर देखने को मिलता है लेकिन पहली बार उसका उल्लेख श्रीराम के वनवास काल के समय में मिलता है।

दरअसल जब जयंत का पहली बार उल्लेख मिलता है तब उसकी रामायण (Jayant Ramayan) में सकारात्मक भूमिका नहीं होती है। वह अपने पिता के देवराज होने पर अहंकार में भरा हुआ होता है। उसके इसी अहंकार का अंत भगवान श्रीराम के द्वारा किया जाता है। आइए जाने इसके पीछे की रोचक कहानी।

इंद्र पुत्र जयंत की कथा

यह उस समय की बात है जब भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला हुआ था। उस समय वे अपनी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ चित्रकूट में रह रहे थे। एक दिन भगवान श्रीराम माता सीता के साथ अपनी कुटिया के बाहर उनकी गोद में सर रखकर लेटे थे। तब इंद्र पुत्र जयंत को एक शरारत सूझी व उसने कौवे का रूप धारण कर लिया। वह कौवा बनकर उनकी कुटिया के पास आया।

जयंत ने यह जानते हुए भी कि श्रीराम भगवान विष्णु और सीता माता लक्ष्मी के अवतार हैं, फिर भी उनके साथ शरारत करने का सोचा। यह केवल और केवल इसी बात का प्रमाण था कि उसे अपने पिता इंद्र का देवलोक के अधिपति होने का अहंकार था। हालाँकि भगवान श्रीराम ने भी उसका यह अहंकार दूर करने में एक पल की भी देरी नहीं की। इस कहानी को हम जयंत और सीता की कहानी भी कह सकते हैं।

माता सीता को मारी चोंच

जयंत की उद्दडंता तब हुई जब उसने माता सीता के पाँव में चोंच मारी। माता सीता के द्वारा उसे बार-बार हटाने का प्रयास किया गया लेकिन उसने चोंच मारनी जारी रखी। इसके कारण माता सीता के पैर से रक्त बहने लगा। जब भगवान राम ने माता सीता को इस तरह परेशान होते देखा तो उन्होंने इसका कारण पूछा। माता सीता ने उन्हें अपना पैर दिखाया व कौवे के द्वारा परेशान करना बताया।

भगवान राम ने चलाया ब्रह्मास्त्र

भगवान राम कौवे की इस हरकत से अत्यंत क्रोधित हो गए। चूँकि भगवान राम अत्यंत धैर्यवान व विनम्र स्वभाव के व्यक्तित्व वाले थे किंतु माता सीता को पहुँचे आघात के कारण उन्होंने अपना संयम खो दिया। उन्होंने उसी समय अपना ब्रह्मास्त्र निकाला व उस कौवे पर चला दिया।

जयंत भागा तीनों लोकों में

भगवान श्रीराम के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रहार करने पर इंद्र पुत्र जयंत वहाँ से भाग गया लेकिन ब्रह्मास्त्र ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। वह अपने प्राण बचाकर तीनों लोकों में दौड़ा किंतु कोई भी उसे नहीं बचा सका। अपने पिता के देव लोक में भी किसी के अंदर उसे बचाने का साहस नहीं था। तब नारद मुनि ने उससे कहा कि उसे केवल प्रभु श्रीराम ही बचा सकते हैं।

जयंत ने मांगी श्रीराम से क्षमा

तब जयंत भागता हुआ वापस चित्रकूट की उसी कुटिया में आया व भगवान श्रीराम के चरणों में गिर पड़ा। उसने अपने अपराध के लिए भगवान श्रीराम से क्षमा मांगी। तब भगवान राम ने उसे ब्रह्मास्त्र को अपना कोई अंग देने को कहा। तब जयंत के कहने पर प्रभु श्रीराम ने उनकी दाईं आँख फोड़ दी व उसे क्षमा कर दिया।

इस तरह से इंद्र पुत्र जयंत की कथा (Indra Putra Jayant Ki Katha) अहंकार, दंड व क्षमा से जुड़ी हुई है। श्रीराम ने अपने जीवन में कई तरह के संदेश दिए हैं जिसमें से एक इंद्र पुत्र जयंत के अहंकार का अंत कर देवलोक के सभी देवताओं को संदेश देना था कि ईश्वर चाहे मनुष्य अवतार में हो लेकिन वे फिर भी तुमसे अधिक शक्तिशाली हैं।

जयंत की कथा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: जयंत ने किसका रूप धारण करके सीता जी को घायल किया था?

उत्तर: जयंत ने कौवे का रूप धारण करके सीता जी को घायल किया था उसने माता सीता के पैर में चोंच मारी थी

प्रश्न: जयंत ने सीता के साथ क्या किया?

उत्तर: जयंत ने माता सीता व श्रीराम के साथ शरारत करने के लिए एक कौवे का रूप धारण किया था इसके बाद उसने माता सीता के पैर में चोंच मारी थी

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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