काली चालीसा (Kali Chalisa) | काली चालीसा हिंदी में (Kali Chalisa In Hindi)

Kali Chalisa

काली चालीसा (Kali Chalisa)

जब भी काली माँ का नाम आता है तो हम सभी भयभीत हो जाते हैं लेकिन उनसे भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। दरअसल माँ का यह रूप तो दुष्टों का नाश करने के उद्देश्य से प्रकट किया गया है। ऐसे में जो माँ काली दुष्टों, पापियों, अधर्मियों, शत्रुओं का नाश करने में दिनरात लगी हुई है, उनसे तो हमें भयभीत होने की बजाये उनका धन्यवाद करना चाहिए। माँ काली के महत्व को काली चालीसा (Kali Chalisa) के माध्यम से अच्छे से जाना जा सकता है।

अब आप माँ काली के महत्व का इसी से ही अनुमान लगा लीजिये कि माँ काली चालीसा (Maa Kali Chalisa) एक नहीं बल्कि दो-दो है। अब माँ दुर्गा ने दुष्ट से दुष्ट पापियों का नाश करने के उद्देश्य से ही अपने इस भयंकर रूप काली को प्रकट किया था जो हमेशा ही क्रोध की अग्नि में जलता रहता है। ऐसे में आज के इस लेख में हम आपके साथ माँ काली की दोनों चालीसाओं को सांझा करने जा रहे हैं।

इसी के साथ ही आपको काली चालीसा हिंदी में (Kali Chalisa In Hindi) भी पढ़ने को मिलेगी ताकि आप उसका संपूर्ण अर्थ व महत्व जान सकें। यदि हम काली चालीसा अर्थ सहित जान लेते हैं तो हमें उसका ज्यादा लाभ देखने को मिलता है। अंत में आपको काली चालीसा के लाभ भी जानने को मिलेंगे, तो आइये पढ़ते हैं श्री काली चालीसा।

काली चालीसा (Kali Chalisa)

।। दोहा ।।

जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार।

महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार।।

।। चौपाई ।।

अरि मद मान मिटावन हारी, मुण्डमाल गल सोहत प्यारी।

अष्टभुजी सुखदायक माता, दुष्टदलन जग में विख्याता।

भाल विशाल मुकुट छवि छाजै, कर में शीश शत्रु का साजै।

दूजे हाथ लिए मधु प्याला, हाथ तीसरे सोहत भाला।

चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे, छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे।

सप्तम करदमकत असि प्यारी, शोभा अद्भुत मात तुम्हारी।

अष्टम कर भक्तन वर दाता, जग मनहरण रूप ये माता।

भक्तन में अनुरक्त भवानी, निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी।

महशक्ति अति प्रबल पुनीता, तू ही काली तू ही सीता।

पतित तारिणी हे जग पालक, कल्याणी पापी कुल घालक।

शेष सुरेश न पावत पारा, गौरी रूप धर्यो इक बारा।

तुम समान दाता नहिं दूजा, विधिवत करें भक्तजन पूजा।

रूप भयंकर जब तुम धारा, दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा।

नाम अनेकन मात तुम्हारे, भक्तजनों के संकट टारे।

कलि के कष्ट कलेशन हरनी, भव भय मोचन मंगल करनी।

महिमा अगम वेद यश गावैं, नारद शारद पार न पावैं।

भू पर भार बढ्यौ जब भारी, तब तब तुम प्रकटीं महतारी।

आदि अनादि अभय वरदाता, विश्वविदित भव संकट त्राता।

कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा, उसको सदा अभय वर दीन्हा।

ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा, काल रूप लखि तुमरो भेषा।

कलुआ भैंरों संग तुम्हारे, अरि हित रूप भयानक धारे।

सेवक लांगुर रहत अगारी, चौसठ जोगन आज्ञाकारी।

त्रेता में रघुवर हित आई, दशकंधर की सैन नसाई।

खेला रण का खेल निराला, भरा मांस-मज्जा से प्याला।

रौद्र रूप लखि दानव भागे, कियौ गवन भवन निज त्यागे।

तब ऐसौ तामस चढ़ आयो, स्वजन विजन को भेद भुलायो।

ये बालक लखि शंकर आए, राह रोक चरनन में धाए।

तब मुख जीभ निकर जो आई, यही रूप प्रचलित है माई।

बाढ्यो महिषासुर मद भारी, पीड़ित किए सकल नर-नारी।

करूण पुकार सुनी भक्तन की, पीर मिटावन हित जन-जन की।

तब प्रगटी निज सैन समेता, नाम पड़ा मां महिष विजेता।

शुम्भ-निशुम्भ हने छन माहीं, तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं।

मान मथनहारी खल दल के, सदा सहायक भक्त विकल के।

दीन विहीन करैं नित सेवा, पावैं मनवांछित फल मेवा।

संकट में जो सुमिरन करहीं, उनके कष्ट मातु तुम हरहीं।

प्रेम सहित जो कीरति गावैं, भव बन्धन सों मुक्ती पावैं।

काली चालीसा जो पढ़हीं, स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं।

दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा, केहि कारण मां कियौ विलम्बा।

करहु मातु भक्तन रखवाली, जयति जयति काली कंकाली।

सेवक दीन अनाथ अनारी, भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी।

।। दोहा ।।

प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ।

तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ।।

काली चालीसा हिंदी में (Kali Chalisa In Hindi)

।। दोहा ।।

जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार।

महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार।।

हे माँ काली, आपकी जय हो। आप ही कलियुग में पापों का नाश करने वाली हो। आपकी महिमा तो सभी जगह फैली हुई है। आपने ही माँ दुर्गा के रूप में महिषासुर राक्षस का वध किया था और इसी कारण आपका एक नाम महिषमर्दिनी पड़ गया था। आपने ही राक्षसों का अंत कर देवताओं के भय का नाश किया था।

।। चौपाई ।।

अरि मद मान मिटावन हारी, मुण्डमाल गल सोहत प्यारी।

अष्टभुजी सुखदायक माता, दुष्टदलन जग में विख्याता।

भाल विशाल मुकुट छवि छाजै, कर में शीश शत्रु का साजै।

दूजे हाथ लिए मधु प्याला, हाथ तीसरे सोहत भाला।

आप ही हमारे अहंकार का नाश करती हैं और आपके गले में राक्षसों की मुंडमाला बहुत ही सुंदर लग रही है। आपकी आठ भुजाएं हैं जो बहुत ही सुख प्रदान करती है, इन्हीं भुजाओं से आप दुष्टों का नाश करती हैं। आपका भाला अत्यधिक विशाल व सिर पर मुकुट हैं। हाथों में आपने शत्रु का कटा हुआ सिर पकड़ा हुआ है। दूसरे हाथ में आपने राक्षसों के रक्त से भरा हुआ प्याला लिया हुआ है और तीसरे हाथ में भाला बहुत ही सुंदर लग रहा है।

चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे, छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे।

सप्तम करदमकत असि प्यारी, शोभा अद्भुत मात तुम्हारी।

अष्टम कर भक्तन वर दाता, जग मनहरण रूप ये माता।

भक्तन में अनुरक्त भवानी, निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी।

आपके चौथे हाथ में खप्पर है तो पांचवे हाथ में खड्ग अर्थात तलवार है। छठे हाथ में आपने त्रिशूल लिया हुआ है। सातवें हाथ में करदमकत है जिससे आपकी शोभा बढ़ रही है। आठवें हाथ से आप अपने भक्तों को अभयदान दे रही हैं और आपका यह रूप पूरे जगत में प्रसिद्ध व मन को मोहित करने वाला है। आप भक्तों को अत्यधिक सुख प्रदान करने वाली हैं और ऋषि, मुनि व ज्ञानी पुरुष दिन-रात आपका नाम ही जपते हैं।

महशक्ति अति प्रबल पुनीता, तू ही काली तू ही सीता।

पतित तारिणी हे जग पालक, कल्याणी पापी कुल घालक।

शेष सुरेश न पावत पारा, गौरी रूप धर्यो इक बारा।

तुम समान दाता नहिं दूजा, विधिवत करें भक्तजन पूजा।

आपकी शक्ति का कोई अंत नहीं है और आपके कई रूप हैं। आप भयंकर रूप लिए काली भी हैं तो वही सौम्य रूप लिए माँ सीता भी हैं। आप अपने सौम्य रूप में इस जगत का पालन करती हैं और उसका कल्याण करती हैं तो वहीं भयंकर रूप में पापियों का नाश भी करती हैं। जब आपने गौरी का रूप धरा था तब शेषनाग व शिव भी आपको पार नहीं पा सके थे। आपके जैसा दानवीर कोई नहीं है और हम सभी भक्तगण विधिवत रूप से आपकी पूजा करते हैं।

रूप भयंकर जब तुम धारा, दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा।

नाम अनेकन मात तुम्हारे, भक्तजनों के संकट टारे।

कलि के कष्ट कलेशन हरनी, भव भय मोचन मंगल करनी।

महिमा अगम वेद यश गावैं, नारद शारद पार न पावैं।

आप जब क्रोधित हो जाती हैं तो दुष्टों की सेना में हाहाकार मच जाता है। आप उन सभी का वध कर देती हैं। हे माँ!! आपके तो गुणों के अनुसार अनेक नाम हैं और आप उसी के अनुसार ही अपने भक्तों के संकटों को दूर करती हैं। आप इस कलियुग के सभी प्रकार के संकटों को हरने वाली हैं और इस जगत का मंगल करने वाली हैं। आपकी महिमा का बखान तो सभी वेद भी करते हैं और उसे नारद मुनि व शारदा माता भी पार नहीं पा सकते हैं।

भू पर भार बढ्यौ जब भारी, तब तब तुम प्रकटीं महतारी।

आदि अनादि अभय वरदाता, विश्वविदित भव संकट त्राता।

कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा, उसको सदा अभय वर दीन्हा।

ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा, काल रूप लखि तुमरो भेषा।

जब कभी भी इस धरती पर पाप का बोझ बढ़ जाता है, तब-तब आप इस धरती पर अवतार रूप में प्रकट होती हो। आप आदि काल से ही सज्जन मनुष्यों को अभय का वरदान देती आ रही हैं और यह तो सभी जानते हैं कि आप ही इस जगत के संकट दूर करती हैं। जिस किसी ने भी आपका नाम लिया है, आपने उसे तुरंत ही अभय का वरदान दिया है। आपका ध्यान तो स्वयं शेषनाग व भगवान शिव भी करते हैं और काल भी आपका भेष धरते हैं।

कलुआ भैंरों संग तुम्हारे, अरि हित रूप भयानक धारे।

सेवक लांगुर रहत अगारी, चौसठ जोगन आज्ञाकारी।

त्रेता में रघुवर हित आई, दशकंधर की सैन नसाई।

खेला रण का खेल निराला, भरा मांस-मज्जा से प्याला।

कलुआ भैरों भी आपके साथ ही है जिन्होंने भयानक रूप धरा हुआ है। आपकी सेवा में लंगूर हमेशा ही तैयार रहते हैं और चौसठ जोगन आपकी आज्ञा का पालन करती हैं। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की रावण के साथ युद्ध में आप भी सहायता करने के लिए आयी थी। आपके द्वारा ही दुष्ट रावण की सेना में हाहाकार मच गया था। आपने उस युद्ध में अप्रत्यक्ष रूप से अलग ही खेल खेला था और अपने प्याले को राक्षसों के मांस व रक्त से भर लिया था।

रौद्र रूप लखि दानव भागे, कियौ गवन भवन निज त्यागे।

तब ऐसौ तामस चढ़ आयो, स्वजन विजन को भेद भुलायो।

ये बालक लखि शंकर आए, राह रोक चरनन में धाए।

तब मुख जीभ निकर जो आई, यही रूप प्रचलित है माई।

आपका रोद्र रूप देख कर तो सभी दानव अपना घरबार छोड़कर भागने लग जाते हैं। जब आपका क्रोध बढ़ता ही चला गया और वह शांत होने को नहीं आया तब आप सज्जन व दुर्जन पुरुषों में भेद करना ही भूल गयी और रोद्र रूप धारण कर लिया। आपका यह रूप देखकर सब भयभीत हो गए और तब भगवान शिव आपके चरणों में लेट गए। शिव को अपने चरणों में देखकर आपकी जीभ बाहर आ गयी और आपका यही रूप संपूर्ण विश्व में प्रचलित हो गया।

बाढ्यो महिषासुर मद भारी, पीड़ित किए सकल नर-नारी।

करूण पुकार सुनी भक्तन की, पीर मिटावन हित जन-जन की।

तब प्रगटी निज सैन समेता, नाम पड़ा मां महिष विजेता।

शुम्भ-निशुम्भ हने छन माहीं, तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं।

एक समय में महिषासुर राक्षस का आंतक बहुत बढ़ गया था और उसने मनुष्यों पर बहुत अत्याचार शुरू कर दिए थे। सभी भक्तों ने एक सुर में आपका ही नाम पुकारा था और आपने उनका कष्ट दूर करने की ठान ली। तब आप अपनी सेना सहित वहां प्रकट हुई और महिषासुर का सेना सहित अंत कर दिया जिस कारण आपका एक नाम महिष विजेता पड़ गया। आपने पलभर में ही शुम्भ-निशुम्भ जैसे आततायी राक्षसों का अंत कर दिया और आपके जैसा इस जगत में कोई दूसरा नहीं है।

मान मथनहारी खल दल के, सदा सहायक भक्त विकल के।

दीन विहीन करैं नित सेवा, पावैं मनवांछित फल मेवा।

संकट में जो सुमिरन करहीं, उनके कष्ट मातु तुम हरहीं।

प्रेम सहित जो कीरति गावैं, भव बन्धन सों मुक्ती पावैं।

आपने अपने भक्तों के मान की हमेशा ही रक्षा की है और उनकी सहायता की है। जो भी दीन-हीन व्यक्ति आपकी सेवा करता है, उसकी आपकी कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। संकट के समय जो आपका ध्यान करता है, आप उसके सभी कष्ट दूर कर देती हैं। जो भी आपकी कीर्ति का बखान प्रेम सहित करता है, आप उसके सभी सांसारिक बंधनों को तोड़ देती हैं।

काली चालीसा जो पढ़हीं, स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं।

दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा, केहि कारण मां कियौ विलम्बा।

करहु मातु भक्तन रखवाली, जयति जयति काली कंकाली।

सेवक दीन अनाथ अनारी, भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी।

जो भी इस काली चालीसा का पाठ करता है, वह बिना किसी बंधन के स्वर्ग लोक को प्राप्त करता है। हे मातारानी!! अब आप हम सभी पर अपनी दया दिखाइए और इसमें किसी तरह की देरी मत कीजिये। हे माँ काली कंकाली!! आप हम सभी भक्तों की रक्षा कीजिये। हम सभी आपके सेवक अनाथ व अनाड़ी हैं और भक्तिभाव से आपकी ही शरण में आये हैं।

।। दोहा ।।

प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ।

तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ।।

जो भी व्यक्ति प्रेम भाव से काली चालीसा पाठ करता है और मातारानी का ध्यान करता है, उसके सभी काम माँ काली की कृपा से बन जाते हैं और वह सभी सुखों को प्राप्त करता है।

माँ काली चालीसा – द्वितीय (Maa Kali Chalisa)

।। दोहा ।।

जय काली जगदम्ब जय, हरनि ओघ अघ पुंज।

वास करहु निज दास के, निशदिन हृदय-निकुंज।।

जयति कपाली कालिका, कंकाली सुख दानि।

कृपा करहु वरदायिनी, निज सेवक अनुमानि।।

।। चौपाई ।।

जय जय जय काली कंकाली। जय कपालिनी, जयति कराली।।

शंकर प्रिया, अपर्णा, अम्बा। जय कपर्दिनी, जय जगदम्बा।।

आर्या, हला, अम्बिका, माया। कात्यायनी उमा जगजाया।।

गिरिजा गौरी दुर्गा चण्डी। दाक्षाणायिनी शाम्भवी प्रचंडी।।

पार्वती मंगला भवानी। विश्वकारिणी सती मृडानी।।

सर्वमंगला शैल नन्दिनी। हेमवती तुम जगत वन्दिनी।।

ब्रह्मचारिणी कालरात्रि जय। महारात्रि जय मोहरात्रि जय।।

तुम त्रिमूर्ति रोहिणी कालिका। कूष्माण्डा कार्तिकी चण्डिका।।

तारा भुवनेश्वरी अनन्या। तुम्हीं छिन्नमस्ता शुचिधन्या।।

धूमावती षोडशी माता। बगला मातंगी विख्याता।।

तुम भैरवी मातु तुम कमला। रक्तदन्तिका कीरति अमला।।

शाकम्भरी कौशिकी भीमा। महातमा अग जग की सीमा।।

चन्द्रघण्टिका तुम सावित्री। ब्रह्मवादिनी माँ गायत्री।।

रूद्राणी तुम कृष्ण पिंगला। अग्निज्वाल तुम सर्वमंगला।।

मेघस्वना तपस्विनि योगिनी। सहस्त्राक्षि तुम अगजग भोगिनी।।

जलोदरी सरस्वती डाकिनी। त्रिदशेश्वरी अजेय लाकिनी।।

पुष्टितुष्टि धृति स्मृति शिव दूती। कामाक्षी लज्जा आहूती।।

महोदरी कामाक्षि हारिणी। विनायकी श्रुति महा शाकिनी।।

अजा कर्ममोही ब्रह्माणी। धात्री वाराही शर्वाणी।।

स्कन्द मातु तुम सिंह वाहिनी। मातु सुभद्रा रहहु दाहिनी।।

नाम रूप गुण अमित तुम्हारे। शेष शारदा बरणत हारे।।

तनु छवि श्यामवर्ण तव माता। नाम कालिका जग विख्याता।।

अष्टादश तब भुजा मनोहर। तिनमहँ अस्त्र विराजत सुंदर।।

शंख चक्र अरु गदा सुहावन। परिघ भुशुण्डी घण्टा पावन।।

शूल बज्र धनुबाण उठाए। निशिचर कुल सब मारि गिराए।।

शुंभ निशुंभ दैत्य संहारे। रक्तबीज के प्राण निकारे।।

चौंसठ योगिनी नाचत संगा। मद्यपान कीन्हेउ रण गंगा।।

कटि किंकिणी मधुर नूपुर धुनि। दैत्यवंश कांपत जेहि सुनि-सुनि।।

कर खप्पर त्रिशूल भयकारी। अहै सदा सन्तन सुखकारी।।

शव आरूढ़ नृत्य तुम साजा। बजत मृदंग भेरी के बाजा।।

रक्त पान अरिदल को कीन्हा। प्राण तजेउ जो तुम्हिं न चीन्हा।।

लपलपाति जिव्हा तब माता। भक्तन सुख दुष्टन दुःख दाता।।

लसत भाल सेंदुर को टीको। बिखरे केश रूप अति नीको।।

मुंडमाल गल अतिशय सोहत। भुजामल किंकण मनमोहत।।

प्रलय नृत्य तुम करहु भवानी। जगदम्बा कहि वेद बखानी।।

तुम मशान वासिनी कराला। भजत तुरत काटहु भवजाला।।

बावन शक्ति पीठ तव सुन्दर। जहाँ बिराजत विविध रूप धर।।

विन्धवासिनी कहूँ बड़ाई। कहूँ कालिका रूप सुहाई।।

शाकम्भरी बनी कहूँ ज्वाला। महिषासुर मर्दिनी कराला।।

कामाख्या तव नाम मनोहर। पुजवहिं मनोकामना द्रुततर।।

चंड मुंड वध छिन महं करेउ। देवन के उर आनन्द भरेउ।।

सर्व व्यापिनी तुम माँ तारा। अरिदल दलन लेहु अवतारा।।

खलबल मचत सुनत हुँकारी। अगजग व्यापक देह तुम्हारी।।

तुम विराट रूपा गुणखानी। विश्व स्वरूपा तुम महारानी।।

उत्पत्ति स्थिति लय तुम्हरे कारण। करहू दास के दोष निवारण।।

माँ उर वास करहू तुम अंबा। सदा दीन अवलंबा।।

तुम्हारो ध्यान धरै जो कोई। ता कहँ भीति कतहुँ नहिं होई।।

विश्वरूप तुम आदि भवानी। महिमा वेद पुराण बखानी।।

अति अपार तव नाम प्रभावा। जपत न रहन रंच दुःख दावा।।

महाकालिका जय कल्याणी। जयति सदा सेवक सुखदानी।।

तुम अनन्त औदार्य विभूषण। कीजिये कृपा क्षमिये सब दूषण।।

दास जानि निज दया दिखावहु। सुत अनुमानित सहित अपनावहु।।

जननी तुम सेवक प्रति पाली। करहु कृपा सब विधि माँ काली।।

पाठ करै चालीसा जोई। तापर कृपा तुम्हारी होई।।

।। दोहा ।।

जय तारा जय दक्षिणा, कलावती सुखमूल।

शरणागत भक्त है, रहहु सदा अनुकूल।।

काली चालीसा अर्थ सहित (Kali Chalisa Lyrics In Hindi)

।। दोहा ।।

जय काली जगदम्ब जय, हरनि ओघ अघ पुंज।

वास करहु निज दास के, निशदिन हृदय-निकुंज।।

जयति कपाली कालिका, कंकाली सुख दानि।

कृपा करहु वरदायिनी, निज सेवक अनुमानि।।

हे माँ काली!! आपकी जय हो। हे माँ जगदंबा!! आपकी जय हो। आप ही इस जगत के कष्ट व अहंकार को दूर करती हो। आप अपने भक्तों व सेवक के हृदय में दिन-रात वास करें। हे कपाली कालिका!! आपकी जय हो। आप हम सभी को सुख प्रदान करने वाली हो। आप अपने इस सेवक पर कृपा कीजिये और हमें वरदान दीजिये।

।। चौपाई ।।

जय जय जय काली कंकाली। जय कपालिनी, जयति कराली।।

शंकर प्रिया, अपर्णा, अम्बा। जय कपर्दिनी, जय जगदम्बा।।

आर्या, हला, अम्बिका, माया। कात्यायनी उमा जगजाया।।

गिरिजा गौरी दुर्गा चण्डी। दाक्षाणायिनी शाम्भवी प्रचंडी।।

हे काली कंकाली माँ!! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। हे कपालिनी माँ!! आपकी जय हो। आप अंबा माँ के रूप में शिव भगवान को प्रिय हो। हे कपर्दिनी व जगदंबा माँ!! आपकी जय हो। आर्या, हला, अम्बिका, माया, कात्यायनी, उमा, जगजाया, गिरिजा, गौरी, दुर्गा, चंडी, दाक्षाणायिनी, शाम्भवी, प्रचंडी इत्यादि कई नाम आपके ही हैं।

पार्वती मंगला भवानी। विश्वकारिणी सती मृडानी।।

सर्वमंगला शैल नन्दिनी। हेमवती तुम जगत वन्दिनी।।

ब्रह्मचारिणी कालरात्रि जय। महारात्रि जय मोहरात्रि जय।।

तुम त्रिमूर्ति रोहिणी कालिका। कूष्माण्डा कार्तिकी चण्डिका।।

पार्वती, मंगला, भवानी, विश्वकारिणी, सती, मृडानी, सर्वमंगला, शैलपुत्री, नंदिनी, हेमवती इत्यादि भी आपके ही नाम हैं। आप इस जगत में वंदनीय हैं। आपके ब्रह्मचारिणी, कालरात्रि, महारात्रि व मोहरात्रि रूप की जय हो। आप ही त्रिमूर्ति, रोहिणी, कालिका, कूष्मांडा, कार्तिकी व चंडिका हो।

तारा भुवनेश्वरी अनन्या। तुम्हीं छिन्नमस्ता शुचिधन्या।।

धूमावती षोडशी माता। बगला मातंगी विख्याता।।

तुम भैरवी मातु तुम कमला। रक्तदन्तिका कीरति अमला।।

शाकम्भरी कौशिकी भीमा। महातमा अग जग की सीमा।।

आप ही माँ तारा, भुवनेश्वरी, अनन्या, छिन्नमस्ता, शुचिधन्या, धूमावती, षोडशी, बगलामुखी, मातंगी के रूप में प्रसिद्ध हो। तुम ही भैरवी, कमला व रक्तदंतिका के रूप में प्रसिद्ध हो। तुम ही शाकम्भरी, कौशिकी, भीमा, महातमा के रूप में इस जगत की सीमा हो।

चन्द्रघण्टिका तुम सावित्री। ब्रह्मवादिनी माँ गायत्री।।

रूद्राणी तुम कृष्ण पिंगला। अग्निज्वाल तुम सर्वमंगला।।

मेघस्वना तपस्विनि योगिनी। सहस्त्राक्षि तुम अगजग भोगिनी।।

जलोदरी सरस्वती डाकिनी। त्रिदशेश्वरी अजेय लाकिनी।।

तुम ही चन्द्रघंटिका, सावित्री, ब्रह्मवादिनी, गायत्री, रुद्राणी, कृष्ण पिंगला, अग्नि की ज्वाला, सभी का मंगल करने वाली, मेघ की गर्जना, तपस्विनी, योगिनी, सहस्त्राक्षि, भोगिनी, जल में निवास करने वाली, सरस्वती, डाकिनी, त्रिदशेश्वरी, ना जीती जा सकने वाली व लाकिनी हो।

पुष्टितुष्टि धृति स्मृति शिव दूती। कामाक्षी लज्जा आहूती।।

महोदरी कामाक्षि हारिणी। विनायकी श्रुति महा शाकिनी।।

अजा कर्ममोही ब्रह्माणी। धात्री वाराही शर्वाणी।।

स्कन्द मातु तुम सिंह वाहिनी। मातु सुभद्रा रहहु दाहिनी।।

आपके द्वारा ही भगवान शिव को स्मृति होती है और आप ही कामाक्षी रूप में लज्जा की आहुति दे देती हो। आप ही महोदरी रूप में कामाक्षी का नाश करती हो तो वहीं गणेश भगवान आपके महाशाकिनी रूप का ध्यान करते हैं। भगवान ब्रह्मा आपके ब्रह्माणी रूप का ध्यान करते हैं तो वहीं विष्णु शर्वाणी रूप में मग्न रहते हैं। आप ही स्कंदमाता के रूप में सिंह की सवारी करती हैं। आप ही माँ सुभद्रा के रूप में कष्टों का नाश करती हैं।

नाम रूप गुण अमित तुम्हारे। शेष शारदा बरणत हारे।।

तनु छवि श्यामवर्ण तव माता। नाम कालिका जग विख्याता।।

अष्टादश तब भुजा मनोहर। तिनमहँ अस्त्र विराजत सुंदर।।

शंख चक्र अरु गदा सुहावन। परिघ भुशुण्डी घण्टा पावन।।

आपके गुणों के अनुसार अनेक नाम हैं जिनका वर्णन करते हुए तो शेषनाग व शारदा भी हार जाते हैं। आपके शरीर का रंग श्याम अर्थात काला है और आपका काली नाम पूरे जगत में प्रसिद्ध है। आपकी आठ भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र बहुत ही सुन्दर लग रहे हैं। आपने अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा इत्यादि ले रखे हैं जिससे आप राक्षसों का वध करती हैं और भक्तों को सुख देती हैं।

शूल बज्र धनुबाण उठाए। निशिचर कुल सब मारि गिराए।।

शुंभ निशुंभ दैत्य संहारे। रक्तबीज के प्राण निकारे।।

चौंसठ योगिनी नाचत संगा। मद्यपान कीन्हेउ रण गंगा।।

कटि किंकिणी मधुर नूपुर धुनि। दैत्यवंश कांपत जेहि सुनि-सुनि।।

आपने शूल, बज्र व धनुष-बाण उठाया हुआ है और उससे आपने राक्षसों का कुल सहित नाश कर दिया है। आपने ही शुंभ-निशुंभ व रक्तबीज जैसे भयानक राक्षसों का वध किया था। आपके साथ चौंसठ योगियां नाच रही हैं और आपने युद्धभूमि में मदिरा पान किया था। आपकी आवाज मात्र से ही दैत्य वंश में हाहाकार मच जाता है और वे कांपने लग जाते हैं।

कर खप्पर त्रिशूल भयकारी। अहै सदा सन्तन सुखकारी।।

शव आरूढ़ नृत्य तुम साजा। बजत मृदंग भेरी के बाजा।।

रक्त पान अरिदल को कीन्हा। प्राण तजेउ जो तुम्हिं न चीन्हा।।

लपलपाति जिव्हा तब माता। भक्तन सुख दुष्टन दुःख दाता।।

आपने अपने हाथों में खप्पर व त्रिशूल भी पकड़ा हुआ है जिससे शत्रु भयभीत रहते हैं। आप हमेशा अपने भक्तों को सुख प्रदान करती हैं। आप राक्षसों के शवों पर नृत्य करती हैं और मृदंग की ताल पर नाचती हैं। आप तो युद्धभूमि में शत्रुओं का रक्त तक पी जाती हैं। आपकी जीभ उनका रक्त पीने के लिए लपलपाती है और आप अपने भक्तों के सभी दुःख व संकट दूर कर देती हैं।

लसत भाल सेंदुर को टीको। बिखरे केश रूप अति नीको।।

मुंडमाल गल अतिशय सोहत। भुजामल किंकण मनमोहत।।

प्रलय नृत्य तुम करहु भवानी। जगदम्बा कहि वेद बखानी।।

तुम मशान वासिनी कराला। भजत तुरत काटहु भवजाला।।

आपने भाला पकड़ा हुआ है, सिन्दूर का तिलक किया हुआ है और बाल बिखरे हुए हैं। आपके गले में राक्षसों के कटे सिर की माला है और आठों भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र हैं। आपकी यह छवि बहुत ही सुन्दर लग रही है। आप प्रलय काल में भवानी रूप में नृत्य करती हैं और आपकी महिमा का बखान तो वेद भी करते हैं। आप अग्नि में वास करती हैं और आपके भजन करने से हमारे सभी बंधन टूट जाते हैं।

बावन शक्ति पीठ तव सुन्दर। जहाँ बिराजत विविध रूप धर।।

विन्धवासिनी कहूँ बड़ाई। कहूँ कालिका रूप सुहाई।।

शाकम्भरी बनी कहूँ ज्वाला। महिषासुर मर्दिनी कराला।।

कामाख्या तव नाम मनोहर। पुजवहिं मनोकामना द्रुततर।।

आपके बावन शक्तिपीठ बहुत ही सुन्दर लग रहे हैं जिनमें आपने अलग-अलग रूप लिए हुए हैं। कहीं आप विंध्यवासिनी रूप में प्रचलित हैं तो कहीं आपका कालिका नाम प्रसिद्ध है। कहीं आप शाकम्भरी तो कहीं ज्वाला माता तो कहीं महिषासुर मर्दिनी के रूप में विख्यात हैं। आपका कामख्या नाम मन को मोहित कर देने वाला है और जो भी आपकी पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

चंड मुंड वध छिन महं करेउ। देवन के उर आनन्द भरेउ।।

सर्व व्यापिनी तुम माँ तारा। अरिदल दलन लेहु अवतारा।।

खलबल मचत सुनत हुँकारी। अगजग व्यापक देह तुम्हारी।।

तुम विराट रूपा गुणखानी। विश्व स्वरूपा तुम महारानी।।

आपने ही चंड-मुंड नामक राक्षसों का वध कर देवताओं को अभय वरदान दिया था। माँ तारा के रूप में आप हर जगह व्याप्त हैं और दुष्टों की सेना में आप हाहाकार मचा देती हैं। आपकी हुँकार सुनते ही दुष्टों की सेना में प्रलय मच जाती है और आपका रूप हर जगह व्याप्त है। आपका रूप बहुत ही विशाल है और आप सब जगह वंदनीय हैं।

उत्पत्ति स्थिति लय तुम्हरे कारण। करहू दास के दोष निवारण।।

माँ उर वास करहू तुम अंबा। सदा दीन जन की अवलंबा।।

तुम्हारो ध्यान धरै जो कोई। ता कहँ भीति कतहुँ नहिं होई।।

विश्वरूप तुम आदि भवानी। महिमा वेद पुराण बखानी।।

हम सभी की उत्पत्ति का कारण आप ही हैं और आप ही हमारे दोष को दूर कर सकती हैं। आप इस सेवक के हृदय में वास कीजिये और इस दीन की रक्षा कीजिये। आपका ध्यान जो कोई भी व्यक्ति करता है, उसे किसी भी प्रकार का संकट नहीं होता है। आप आदि काल से हैं और संपूर्ण विश्व में विख्यात हैं। आपकी महिमा का वर्णन तो वेद भी करते हैं।

अति अपार तव नाम प्रभावा। जपत न रहन रंच दुःख दावा।।

महाकालिका जय कल्याणी। जयति सदा सेवक सुखदानी।।

तुम अनन्त औदार्य विभूषण। कीजिये कृपा क्षमिये सब दूषण।।

दास जानि निज दया दिखावहु। सुत अनुमानित सहित अपनावहु।।

आपके नाम की बहुत महिमा है और जो भी आपका नाम जपता है, उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं। महाकालिका के रूप में आप हम सभी का कल्याण करती हैं और अपने भक्तों को सुख प्रदान करती हैं। आप अनन्त, औदार्य से विभूषित हैं और अब आप हमारे दोष दूर कर हमें क्षमा कीजिये। आप हमें अपना सेवक मान कर हम पर थोड़ी दया दिखाइए और हमें अपना लीजिये।

जननी तुम सेवक प्रति पाली। करहु कृपा सब विधि माँ काली।।

पाठ करै चालीसा जोई। तापर कृपा तुम्हारी होई।।

आप हमेशा से ही अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और हम सभी विधिपूर्वक आपकी पूजा करते हैं। जो भी इस काली माँ की चालीसा का पाठ करता है, उस पर माँ की कृपा दृष्टि रहती है।

।। दोहा ।।

जय तारा जय दक्षिणा, कलावती सुखमूल।

शरणागत भक्त है, रहहु सदा अनुकूल।।

माँ तारा की जय हो, माँ दक्षिणा की जय हो। कलावती के रूप में आप सुखों को प्रदान करने वाली हो। आपकी शरण में हम सभी भक्तगण आये हैं और अब आप हमारा उद्धार कीजिये।

श्री काली चालीसा का महत्व (Kali Mata Chalisa – Mahatva)

माँ दुर्गा ने अपने गुणों के अनुसार कई तरह के रूप लिए हैं और उसी के अनुसार ही उनकी पूजा करने का विधान रहा है। अब मातारानी के कुछ रूप बहुत ही मनोहर, मन को शांति देने वाले तथा सौम्य रंग रूप वाले होते हैं लेकिन इन सभी रूपों के विपरीत माँ दुर्गा का माँ काली वाला रूप मन को भयभीत कर देने वाला, काले रंग का व गले में राक्षसों के कंकाल लिए हुए होता है। इस रूप में मातारानी रक्त से सनी हुई, क्रोधित व लाल आँखों वाली होती है।

काली चालीसा के माध्यम से हमें ना केवल माँ काली के रूप का वर्णन मिलता है अपितु उन्होंने किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जन्म लिया था, इसके बारे में भी पता चलता है। ऐसे में धर्म का कार्य करने वाले लोगों को तो माँ काली से भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि जिस तरह से माँ काली सज्जन मनुष्यों की अधर्मी लोगों से रक्षा कर पाने में समर्थ होती है, उतना तो मातारानी का कोई भी अन्य रूप नहीं कर सकता है।

इस तरह से माँ काली के महत्व को इस काली चालीसा के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है। इससे हमें यह ज्ञात होता है कि माँ काली भी उतनी ही आवश्यक हैं जितनी की मातारानी के अन्य रूप। अब यदि पाप बहुत अधिक बढ़ जाता है और वह धर्म के ऊपर हावी होने लगता है तो उस समय माँ काली ही हमारी व धर्म की रक्षा कर सकती हैं और अधर्म का नाश करने में समर्थ होती हैं। यही माँ काली चालीसा का मुख्य महत्व होता है।

काली चालीसा के लाभ (Kali Chalisa Benefits In Hindi)

अब यदि आप प्रतिदिन सच्चे मन के साथ श्री काली चालीसा का पाठ करते हैं और माँ काली का ध्यान करते हैं तो अवश्य ही माँ आपकी हरेक इच्छा को पूरा करती हैं। यदि आपको कोई परेशान कर रहा है या आपके शत्रु हमेशा आपका नुकसान करने की ताक में रहते हैं या आपके जीवन में कई तरह के संकट आये हुए हैं और उनका हल नहीं निकल पा रहा है या फिर आपको किसी अन्य बात को लेकर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है तो निश्चित तौर पर आपको काली माता की चालीसा का पाठ करना चाहिए।

माँ काली के द्वारा अपने भक्तों की हरसंभव सहायता की जाती है। जो भी भक्तगण सच्चे मन से माँ काली चालीसा का जाप करता है तो माँ काली उसके हर तरह के संकटों का नाश कर देती हैं और उसे आगे का मार्ग दिखाती हैं। ऐसे में आपको अपने हर तरह के कष्ट, पीड़ा, दुःख, दर्द, संकट, परेशानियाँ, नकारात्मक भावनाएं इत्यादि को दूर करने के लिए नित्य रूप से काली चालीसा का पाठ करना चाहिए।

काली चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: काली का मंत्र कौन सा है?

उत्तर: काली का मंत्र “ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिका, क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा” है

प्रश्न: मां काली को बुलाने का मंत्र क्या है?

उत्तर: मां काली को बुलाने का मंत्र “ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते” है।

प्रश्न: मां काली का बीज मंत्र क्या है?

उत्तर: मां काली का बीज मंत्र “ॐ क्रीं कालिकायै नमः” है।

प्रश्न: मां काली का दिन कौन सा होता है?

उत्तर: मां काली का दिन शुक्रवार को माना जाता है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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