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Laxmi Stotra In Hindi

इस लेख के माध्यम से आपको श्री लक्ष्मी स्तोत्र In Hindi (Laxmi Stotra In Hindi) में अर्थ सहित पढ़ने को मिलेगा ताकि आप उसका संपूर्ण अर्थ व महत्व जान सकें। यदि लक्ष्मी स्तोत्र को पढ़ने के साथ-साथ उसका हिंदी अर्थ भी जान लिया जाए तो यह आपके लिए अत्यधिक हितकारी सिद्ध होगा।

साथ ही हम आपके साथ श्री लक्ष्मी स्तोत्र PDF In Hindi (Laxmi Stotra PDF) और उसकी इमेज भी साझा करेंगे। ऐसे में आप पीडीएफ फाइल या इमेज पर क्लिक कर उसे डाउनलोड कर सकते हैं और आगे के लिए अपने मोबाइल में रख सकते हैं। आइए सबसे पहले जानते हैं महा लक्ष्मी स्तोत्र हिंदी में।

Laxmi Stotra In Hindi | श्री लक्ष्मी स्तोत्र In Hindi

सिंहासनगतः शक्रस्सम्प्राप्य त्रिदिवं पुनः।
देवराज्ये स्थितो देवीं तुष्टावाब्जकरां ततः॥

देव इंद्र ने स्वर्ग लोक में जाकर पुनः अपने सिंहासन पर अपना अधिकार प्राप्त किया और वहां आरूढ़ हुए। इसके पश्चात उन्होंने माँ लक्ष्मी का स्तोत्र आरम्भ किया ताकि उनका पद व शक्ति बनी रहे।

इंद्र उवाच

नमस्तस्यै सर्वभूतानां जननीमब्जसम्भवाम्।
श्रियमुनिन्द्रपद्माक्षीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम्॥

इंद्र बोले, “माँ लक्ष्मी जो तीनों लोकों में निवास करती हैं और उनकी जननी हैं, जिनकी आँखें कमल के पुष्प के समान खिली हुई व बड़ी-बड़ी हैं, जो भगवान विष्णु के वक्ष स्थल में निवास करती हैं, उनको मेरा नमन है।”

पद्मालयां पद्मकरां पद्मपत्रनिभेक्षणाम्।
वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियाम्यहम्॥

माता लक्ष्मी का निवास स्थल कमल पुष्प पर है, उन्होंने अपने हाथों में भी कमल के पुष्प ले रखे हैं, कमल पुष्प के जैसे ही उनकी आँखें हैं, कमल पुष्प जैसा ही उनका मुख है, कमल पुष्प उन्हें बहुत प्रिय है और मैं उनकी वंदना करता हूँ।

त्वं सिद्धिस्त्वं स्वधा स्वाहा सुधा त्वं लोकपावनी।
सन्धया रात्रिः प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती॥

माँ लक्ष्मी ही सिद्धि प्रदान करने वाली, स्वधा, स्वाहा, सुधा अर्थात चेतना हैं और इस लोक का कल्याण करने वाली हैं। आपके कारण ही दिन, रात, संध्या इत्यादि है और आप ही माँ सरस्वती हो।

यज्ञविद्या महाविद्या गुह्यविद्या च शोभने।
आत्मविद्या च देवि त्वं विमुक्तिफलदायिनी॥

माँ लक्ष्मी ही यज्ञविद्या अर्थात तपस्या, महाविद्या अर्थात भक्ति तथा गुह्यविद्या अर्थात मोहमाया है जो उन पर बहुत अच्छी लगती है। उनके द्वारा ही हमें आत्मविद्या प्राप्त होती है और हमारी मुक्ति भी उन्हीं के हाथों में ही है।

आन्वीक्षिकी त्रयीवार्ता दण्डनीतिस्त्वमेव च।
सौम्यासौम्येर्जगद्रूपैस्त्वयैतद्देवि पूरितम्॥

आपके द्वारा ही इस सृष्टि में अनुसंधान व आविष्कार संभव हो पाते हैं, आप ही वार्ता व दंडनीति की देवी हो अर्थात आपके कारण ही कूटनीति व राजनीति संभव है। आप ही अपने सौम्य व उग्र रूप में इस विश्व को पूर्ण करती हो।

का त्वन्या त्वमृते देवि सर्वयज्ञमयं वपुः।
अध्यास्ते देवदेवस्य योगिचिन्त्यं गदाभृतः॥

आप ही एकमात्र ऐसी स्त्री हो जो सभी जगह व्याप्त हो और जिसका देवता ध्यान करते हैं व योगी चिंतन करते हैं। आपका ध्यान करके हम सभी धन्य हो जाते हैं और मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

त्वया देवि परित्यक्तं सकलं भुवनत्रयम्।
विनष्टप्रायमभवत्त्वयेदानीं समेधितम्॥

यदि आप इस सृष्टि को छोड़ देती हैं तो इसका विनाश तय है। अतः आप ही इस सृष्टि की रचना और उसका पालन करती हो। माँ लक्ष्मी के द्वारा ही इस सृष्टि की आधार सरंचना रखी गयी है और वे ही इसकी पालनकर्ता हैं।

दाराः पुत्रास्तथाऽऽगारं सुहृद्धान्यधनादिकम्।
भवत्येतन्महाभागे नित्यं त्वद्वीक्षणान्नृणाम्॥

हम सभी को आपके द्वारा ही स्त्री, पुत्र, धन, भोजन, घर इत्यादि की प्राप्ति संभव हो पाती है अर्थात आपकी कृपा के बिना यह सब हमें नहीं मिल सकता है।

शरीरारोग्यमैश्वर्यमरिपक्षक्षयः सुखम्।
देवि त्वदृष्टिदृष्टानां पुरुषाणां न दुर्लभम्॥

जो भी मनुष्य माँ लक्ष्मी का ध्यान करता है और उनकी आराधना करता है, उसका शरीर रोगरहित हो जाता है, उसका यश चारों ओर फैलता है, उसके सभी संकटों का नाश हो जाता है तथा वह परम सुख को प्राप्त करता है।

त्वमम्बा सर्वभूतानां देवदेवो हरिः पिता।
त्वयैतद्विष्णुना चाम्ब जगद्वयाप्तं चराचरम्॥

आप ही हम सभी की और इस सृष्टि की माता हैं और भगवान श्री हरि अर्थात भगवान विष्णु हम सभी के पिता हैं। आप दोनों की कृपा के कारण ही हमारा जीवन संभव है और यह सृष्टि टिकी हुई है।

मनःकोशस्तथा गोष्ठं मा गृहं मा परिच्छदम्।
मा शरीरं कलत्रं च त्यजेथाः सर्वपावनि॥

हे माँ लक्ष्मी!! आप सदैव ही हमारे घर में, धन-संपदा में, पशुशाला में, शरीर में, आत्मा में निवास करें और इन्हें छोड़ कर कभी ना जाएं। कहने का अर्थ यह हुआ कि आपकी कृपा सदैव ही हमारे ऊपर बनी रहे।

मा पुत्रान्मा सुहृद्वर्गान्मा पशून्मा विभूषणम्।
त्यजेथा मम देवस्य विष्णोर्वक्षःस्थलाश्रये॥

हे माँ लक्ष्मी, जो भगवान विष्णु के वक्ष स्थल में निवास करती हैं, आप हमारे पुत्र, हृदय, पशुओं तथा आभूषणों को छोड़कर कभी ना जाएं और सदा ही इन पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें।

सत्त्वेन सत्यशौचाभ्यां तथा शीलादिभिर्गुणैः।
त्यज्यन्ते ते नराः सद्यः सन्त्यक्ता ये त्वयाऽमले॥

आप जिस भी मनुष्य का त्याग कर देती हैं या उसे छोड़ कर चली जाती हैं, उस मनुष्य से सभी तरह के सात्विक, सत्य, शौच, सभ्यता, शील इत्यादि के गुण भी चले जाते हैं तथा उसका विनाश होना शुरू हो जाता है।

त्वयाऽवलोकिताः सद्यः शीलाद्यैरखिलैर्गुणैः।
कुलैश्वर्यैश्च युज्यन्ते पुरुषा निर्गुणा अपि॥

वहीं जिस मनुष्य पर आपकी कृपा दृष्टि पड़ जाती है, उसका तो उद्धार ही हो जाता है। उस व्यक्ति के अंदर सभी तरह के गुण आ जाते हैं, कुल का वैभव बढ़ता है तथा वह ऐश्वर्य संपन्न हो जाता है।

सश्लाघ्यः सगुणी धन्यः स कुलीनः स बुद्धिमान्।
स शूरः सचविक्रान्तो यस्त्वया देवि वीक्षितः॥

आपकी कृपा दृष्टि पाया हुआ व्यक्ति बहुत ही प्रसन्न है। उसके पास धन, धान्य, बुद्धिमानी, वीरता इत्यादि किसी भी चीज़ की कमी नहीं होती है और उसका उद्धार हो जाता है।

सद्योवैगुण्यमायान्ति शीलाद्याः सकला गुणाः।
पराङ्गमुखी जगद्धात्री यस्य त्वं विष्णुवल्लभे॥

वहीं यदि आप उस मनुष्य से नाराज़ हो जाती हैं और उसे छोड़ कर चली जाती हैं तो उसके यही सभी गुण अवगुण में बदल जाते हैं और उसका पतन हो जाता है।

न ते वर्णयितुं शक्तागुणञ्जिह्वाऽपि वेधसः।
प्रसीद देवि पद्माक्षि माऽस्मांस्त्याक्षीः कदाचन॥

हे माता लक्ष्मी!! आपके गुणों का वर्णन तो स्वयं भगवान ब्रह्मा भी नहीं कर सकते हैं, मैं तो फिर भी एक तुच्छ सेवक हूँ। इसलिए अब आप मुझ पर प्रसन्न होकर अपनी कृपा कीजिये।

श्रीपराशर उवाच

एवं श्रीः संस्तुता स्मयक् प्राह हृष्टा शतक्रतुम्।
श्रृण्वतां सर्वदेवानां सर्वभूतस्थिता द्विज॥

पराशर जी कहते हैं कि माता लक्ष्मी ने इंद्र देव के द्वारा लक्ष्मी स्तोत्र किये जाने पर उसे ध्यानपूर्वक सुना और उसके बाद वे इंद्र देव के सामने प्रकट हो गयी।

श्री बोलीं परितुष्टास्मि देवेश स्तोत्रेणानेन ते हरेः।
वरं वृणीष्व यस्त्विष्टो वरदाऽहं तवागता॥

माता लक्ष्मी ने इंद्र देव से कहा कि हे देव इंद्र!! मैं तुम्हारे द्वारा रचित इस लक्ष्मी स्तोत्र से बहुत प्रसन्न हूँ और अब मैं तुम्हे यहाँ वरदान देने ही आयी हूँ। इसलिए अपनी इच्छा अनुसार कोई भी वर मुझसे मांग लो।

इंद्र उवाच

वरदा यदिमेदेवि वरार्हो यदिवाऽप्यहम्।
त्रैलोक्यं न त्वया त्याच्यमेष मेऽस्तु वरः परः॥

यह सुनकर इंद्र देव बहुत ही प्रसन्न हो गए और उन्होंने माता लक्ष्मी से कहा कि यदि आप मुझसे प्रसन्न होकर मुझे वर देने के लिए यहाँ आयी हैं तो मुझे पहला वरदान यह चाहिए कि आप कभी भी इन तीनों लोकों का त्याग करके नहीं जाएँगी।

स्तोत्रेण यस्तवैतेन त्वां स्तोष्यत्यब्धिसम्भवे।
स त्वया न परित्याज्यो द्वितीयोऽस्तुवरो मम॥

दूसरे वर के रूप में इंद्र देव ने माता लक्ष्मी से यह कहा कि जो भी इस इंद्रकृत महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करेगा, आप उस व्यक्ति का त्याग कभी नहीं करेंगी और हमेशा उसका भला करेंगी।

श्री उवाच

त्रैलोक्यं त्रिदशश्रेष्ठ न सन्त्यक्ष्यामि वासव।
दत्तो वरो मयाऽयं ते स्तोत्राराधनतुष्टया॥

यह सुनकर देवी लक्ष्मी ने इंद्र देव से कहा कि तुम्हारी पहली इच्छा के फलस्वरूप मैं तुम्हे यह वरदान देती हूँ कि मैं अब कभी भी इस लोक सहित तीनों लोकों को छोड़कर नहीं जाऊंगी और हमेशा यहाँ वास करुँगी।

यश्च सायं तथा प्रातः स्तोत्रेणानेन मानवः।
स्तोष्यते चेन्न तस्याहं भविष्यामि पराङ्गमुखी॥

साथ ही माता लक्ष्मी ने कहा कि जो भी मनुष्य या देवतागण प्रातःकाल या संध्या काल में से किसी एक समय में सच्चे मन से इस लक्ष्मी स्तोत्रम् का पाठ करेगा, मैं हमेशा ही उसका कल्याण करुँगी।

लक्ष्मी स्तोत्र इमेज

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लक्ष्मी स्तोत्र (Laxmi Stotra)
लक्ष्मी स्तोत्र (Laxmi Stotra)

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श्री लक्ष्मी स्तोत्र PDF In Hindi | Laxmi Stotra PDF

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यह रहा उसका लिंक: श्री लक्ष्मी स्तोत्र PDF In Hindi

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निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने श्री लक्ष्मी स्तोत्र In Hindi (Laxmi Stotra In Hindi) में पढ़ लिया है। यदि आपको श्री लक्ष्मी स्तोत्र PDF In Hindi या इमेज डाउनलोड करने में किसी तरह की समस्या आती है या आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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