महाकाली चालीसा (Mahakali Chalisa)
जब भी महाकाली माँ का नाम आता है तो हम सभी भयभीत हो जाते हैं लेकिन उनसे भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। दरअसल माँ का यह रूप तो दुष्टों का नाश करने के उद्देश्य से प्रकट किया गया है। ऐसे में जो माँ महाकाली दुष्टों, पापियों, अधर्मियों, शत्रुओं का नाश करने में दिनरात लगी हुई हैं, उनसे तो हमें भयभीत होने की बजाये उनका धन्यवाद करना चाहिए। माँ महाकाली के महत्व को महाकाली चालीसा (Mahakali Chalisa) के माध्यम से अच्छे से जाना जा सकता है।
अब आप माँ महाकाली के महत्व का इसी से ही अनुमान लगा लीजिये कि श्री महाकाली चालीसा (Shri Mahakali Chalisa) एक नहीं बल्कि दो-दो है। अब माँ दुर्गा ने दुष्ट से दुष्ट पापियों का नाश करने के उद्देश्य से ही अपने इस भयंकर रूप महाकाली को प्रकट किया था जो हमेशा ही क्रोध की अग्नि में जलता रहता है। ऐसे में आज के इस लेख में हम आपके साथ माँ महाकाली की दोनों चालीसाओं को सांझा करने जा रहे हैं।
इसी के साथ ही आपको महाकाली चालीसा इन हिंदी (Mahakali Chalisa In Hindi) भी पढ़ने को मिलेगी ताकि आप उसका संपूर्ण अर्थ व महत्व जान सकें। यदि हम महाकाली चालीसा अर्थ सहित जान लेते हैं तो हमें उसका ज्यादा लाभ देखने को मिलता है। अंत में आपको महाकाली चालीसा के लाभ भी जानने को मिलेंगे। तो आइये पढ़ते हैं महाकाली की चालीसा।
महाकाली चालीसा (Mahakali Chalisa)
।। दोहा ।।
जय जय सीताराम के मध्यवासिनी अम्ब।
देहु दर्श जगदम्ब अब, करो न मातु विलम्ब।।
जय तारा जय कालिका जय दश विद्या वृन्द।
काली चालीसा रचत एक सिद्धि कवि हिन्द।।
प्रातः काल उठ जो पढ़े, दुपहरिया या शाम।
दुःख दारिद्रता दूर हों सिद्धि होय सब काम।।
।। चौपाई ।।
जय काली कंकाल मालिनी, जय मंगला महाकपालिनी।
रक्तबीज बधकारिणी माता, सदा भक्त जननकी सुखदाता।
शिरो मालिका भूषित अंगे, जय काली जय मद्य मतंगे।
हर हृदयारविन्द सुविलासिनी, जय जगदम्बा सकल दुःख नाशिनी।
ह्रीं काली श्रीं महाकराली, क्रीं कल्याणी दक्षिणाकाली।
जय कलावती जय विद्यावती, जय तारा सुन्दरी महामति।
देहु सुबुद्धि हरहु सब संकट, होहु भक्त के आगे परगट।
जय ॐ कारे जय हुंकारे, महा शक्ति जय अपरम्पारे।
कमला कलियुग दर्प विनाशिनी, सदा भक्तजन की भयनाशिनी।
अब जगदम्ब न देर लगावहु, दुख दरिद्रता मोर हटावहु।
जयति कराल कालिका माता, कालानल समान द्युतिगाता।
जयशंकरी सुरेशि सनातनि, कोटि सिद्धि कवि मातु पुरातनि।
कपर्दिनी कलि कल्प बिमोचनि, जय विकसित नव नलिन बिलोचनि।
आनन्द करणि आनन्द निधाना, देहुमातु मोहि निर्मल ज्ञाना।
करूणामृत सागर कृपामयी, होहु दुष्ट जनपर अब निर्दयी।
सकल जीव तोहि परम पियारा, सकल विश्व तोरे आधारा।
प्रलय काल में नर्तन कारिणी, जय जननी सब जगकी पालनि।
महोदरी महेश्वरी माया, हिमगिरि सुता विश्व की छाया।
स्वछन्द रद मारद धुनि माही, गर्जत तुम्हीं और कोउ नाही।
स्फुरति मणिगणाकार प्रताने, तारागण तू ब्योंम विताने।
श्री धारे सन्तन हितकारिणी, अग्नि पाणि अति दुष्ट विदारिणि।
धूम्र विलोचनि प्राण विमोचिनी, शुम्भ निशुम्भ मथनि वरलोचनि।
सहस भुजी सरोरूह मालिनी, चामुण्डे मरघट की वासिनी।
खप्पर मध्य सुशोणित साजी, मारेहु माँ महिषासुर पाजी।
अम्ब अम्बिका चण्ड चण्डिका, सब एके तुम आदि कालिका।
अजा एकरूपा बहुरूपा, अकथ चरित्र तव शक्ति अनूपा।
कलकत्ता के दक्षिण द्वारे, मूरति तोर महेशि अपारे।
कादम्बरी पानरत श्यामा, जय मातंगी काम के धामा।
कमलासन वासिनी कमलायनि, जय श्यामा जय जय श्यामायनि।
मातंगी जय जयति प्रकृति हे, जयति भक्ति उर कुमति सुमति हे।
कोटि ब्रह्म शिव विष्णु कामदा, जयति अहिंसा धर्म जन्मदा।
जल थल नभ मण्डल में व्यापिनी, सौदामिनि मध्य अलापिनि।
झननन तच्छु मरिरिन नादिनी, जय सरस्वती वीणा वादिनी।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे, कलित कण्ठ शोभित नरमुण्डा।
जय ब्रह्माण्ड सिद्धि कवि माता, कामाख्या और काली माता।
हिंगलाज विन्ध्याचल वासिनि, अट्ठहासिनी अरु अघन नाशिनी।
कितनी स्तुति करूँ अखण्डे, तू ब्रह्माण्डे शक्तिजितचण्डे।
करहु कृपा सबपे जगदम्बा, रहहिं निशंक तोर अवलम्बा।
चतुर्भुजी काली तुम श्यामा, रूप तुम्हार महा अभिरामा।
खड्ग और खप्पर कर सोहत, सुर नर मुनि सबको मन मोहत।
तुम्हरी कृपा पावे जो कोई, रोग शोक नहिं ताकहँ होई।
जो यह पाठ करे चालीसा, तापर कृपा करहि गौरीशा।
।। दोहा ।।
जय कपालिनी जय शिवा, जय जय जय जगदम्ब।
सदा भक्तजन केरि दुःख हरहु मातु अवलम्ब।।
महाकाली चालीसा इन हिंदी (Mahakali Chalisa In Hindi)
।। दोहा ।।
जय जय सीताराम के मध्यवासिनी अम्ब।
देहु दर्श जगदम्ब अब, करो न मातु विलम्ब।।
श्रीराम व माता सीता के बीच में निवास करने वाली माँ अम्बा!! आपकी जय हो, जय हो। हे माँ जगदंबा!! अब मुझे दर्शन दीजिये। इसमें बिल्कुल भी देरी ना कीजिये।
जय तारा जय कालिका जय दश विद्या वृन्द।
काली चालीसा रचत एक सिद्धि कवि हिन्द।।
माँ तारा की जय हो। माँ कालिका की जय हो। सभी दस महाविद्याओं की जय हो। हम काली चालीसा का सिद्धि पूर्वक जाप करते हैं।
प्रातः काल उठ जो पढ़े, दुपहरिया या शाम।
दुःख दारिद्रता दूर हों सिद्धि होय सब काम।।
सुबह जल्दी उठ कर या फिर दोपहर या शाम में जो कोई भी इस महाकाली चालीसा का पाठ करता है, उसके सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो जाती है तथा उसके सभी काम बन जाते हैं।
।। चौपाई ।।
जय काली कंकाल मालिनी, जय मंगला महाकपालिनी।
रक्तबीज बधकारिणी माता, सदा भक्त जननकी सुखदाता।
शिरो मालिका भूषित अंगे, जय काली जय मद्य मतंगे।
हर हृदयारविन्द सुविलासिनी, जय जगदम्बा सकल दुःख नाशिनी।
हे राक्षसों का कंकाल लिए हुए माँ काली!! आपकी जय हो। हे हम सभी का मंगल करने वाली महाकपालिनी!! आपकी जय हो। आपने ही रक्तबीज राक्षस का वध किया था और अपने भक्तों को सुख प्रदान किया था। आपने राक्षसों के सिर को अपने गले में धारण किया हुआ है और आप ही मातंगी माता हो। आप हमारे हृदय को आनंद पहुँचाने वाली और दुखों का नाश करने वाली माँ जगदंबा हो।
ह्रीं काली श्रीं महाकराली, क्रीं कल्याणी दक्षिणाकाली।
जय कलावती जय विद्यावती, जय तारा सुन्दरी महामति।
देहु सुबुद्धि हरहु सब संकट, होहु भक्त के आगे परगट।
जय ॐ कारे जय हुंकारे, महा शक्ति जय अपरम्पारे।
आप ही काली, महाकराली, कल्याणी व दक्षिणाकाली हो। आप ही कलावती, विद्यावती, तारा व महामती हो। आप हमें बुद्धि प्रदान कर हमारे संकटों का नाश कीजिये और अपने भक्तों को दर्शन दीजिये। आपकी हुँकार सब जगह सुनायी देती है और आपकी शक्ति अपरंपार है।
कमला कलियुग दर्प विनाशिनी, सदा भक्तजन की भयनाशिनी।
अब जगदम्ब न देर लगावहु, दुख दरिद्रता मोर हटावहु।
जयति कराल कालिका माता, कालानल समान द्युतिगाता।
जयशंकरी सुरेशि सनातनि, कोटि सिद्धि कवि मातु पुरातनि।
माँ कमला के रूप में आप कलियुग के पापों का नाश करती हैं और भक्तों के भय को दूर करती हैं। हे माँ जगदंबा!! अब आप बिना देर करे अपने भक्तों के दुःख व दरिद्रता को दूर कर दीजिये। हे कालिका माता!! आपकी जय हो। स्वयं काल भी आपकी महिमा का गुणगान करते हैं। आप ही माँ पार्वती हो और उस रूप में आप सभी सिद्धियाँ ली हुई हो।
कपर्दिनी कलि कल्प बिमोचनि, जय विकसित नव नलिन बिलोचनि।
आनन्द करणि आनन्द निधाना, देहुमातु मोहि निर्मल ज्ञाना।
करूणामृत सागर कृपामयी, होहु दुष्ट जनपर अब निर्दयी।
सकल जीव तोहि परम पियारा, सकल विश्व तोरे आधारा।
इस कल्प के कलयुग में आपने अवतार लिया है और आप हमेशा नए अवतार लेकर आती हैं। आप हमें आनंद प्रदान करती हैं और आपके द्वारा ही हमें निर्मल ज्ञान की प्राप्ति होती है। आप करुणा की सागर हैं और हम सभी पर कृपा करती हैं। आप दुष्ट व पापियों के लिए बहुत ही निर्दयी हैं। सभी जीव आपको प्यारे हैं और इस सृष्टि का आधार आप ही हैं।
प्रलय काल में नर्तन कारिणी, जय जननी सब जगकी पालनि।
महोदरी महेश्वरी माया, हिमगिरि सुता विश्व की छाया।
स्वछन्द रद मारद धुनि माही, गर्जत तुम्हीं और कोउ नाही।
स्फुरति मणिगणाकार प्रताने, तारागण तू ब्योंम विताने।
आप प्रलय के समय में नृत्य करती हैं और संपूर्ण जगत का पालन-पोषण भी आपके ही हाथों में है। आप ही महेश्वरी व मोहमाया हैं और हिमालय की पुत्री के रूप में इस विश्व को छाया देती हैं। आप अपनी धुन में घूमती हैं और आपकी गर्जना बहुत ही भीषण है। आपकी स्फूर्ति का कोई तोड़ नहीं है और आप तारों को एक ही क्षण में पार कर देती हैं।
श्री धारे सन्तन हितकारिणी, अग्नि पाणि अति दुष्ट विदारिणि।
धूम्र विलोचनि प्राण विमोचिनी, शुम्भ निशुम्भ मथनि वरलोचनि।
सहस भुजी सरोरूह मालिनी, चामुण्डे मरघट की वासिनी।
खप्पर मध्य सुशोणित साजी, मारेहु माँ महिषासुर पाजी।
आप संतजनों के हित के लिए अवतार लेती हैं और दुष्टों का नाश करती हैं। आपके द्वारा ही हमारे प्राण है और आपने ही शुंभ-निशुंभ नामक राक्षसों का वध किया था। आपकी हजारों भुजाएं हैं और आपने चामुंडा का रूप लिया हुआ है। आपके हाथों में खप्पर अर्थात राक्षसों का कटा हुआ सिर है और आपने अपने इस भीषण रूप में महिषासुर दैत्य का वध किया था।
अम्ब अम्बिका चण्ड चण्डिका, सब एके तुम आदि कालिका।
अजा एकरूपा बहुरूपा, अकथ चरित्र तव शक्ति अनूपा।
कलकत्ता के दक्षिण द्वारे, मूरति तोर महेशि अपारे।
कादम्बरी पानरत श्यामा, जय मातंगी काम के धामा।
आपके कई रूप हैं जिनमें अम्बिका व चंडिका भी है। आप अपने गुणों के अनुसार कई तरह के रूप लेती हैं जो सभी एक ही है। पश्चिम बंगाल के कलकत्ता शहर में आपका भव्य मंदिर स्थित है। आपकी मूर्ति को तो स्वयं शिव भी पार नहीं पा सकते हैं। आप ही माँ कादम्बरी व श्यामा हो। आप ही मातंगी माता के रूप में हमारे काम बना देती हो।
कमलासन वासिनी कमलायनि, जय श्यामा जय जय श्यामायनि।
मातंगी जय जयति प्रकृति हे, जयति भक्ति उर कुमति सुमति हे।
कोटि ब्रह्म शिव विष्णु कामदा, जयति अहिंसा धर्म जन्मदा।
जल थल नभ मण्डल में व्यापिनी, सौदामिनि मध्य अलापिनि।
आप कमल के आसन पर विराजमान हो और आपके नेत्र भी कमल पुष्प के समान है। आपका वर्ण श्याम अर्थात काला है। आप ही मातंगी व प्रकृति का स्वरुप हो। आप ही हमें बुद्धि प्रदान करने वाली हो। आप भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश हो और आप ही धर्म की रक्षा करती हो। आप जल, आकाश, भूमि इत्यादि हर जगह फैली हुई हो और ब्रह्माण्ड के केंद्र में भी आप ही हो।
झननन तच्छु मरिरिन नादिनी, जय सरस्वती वीणा वादिनी।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे, कलित कण्ठ शोभित नरमुण्डा।
जय ब्रह्माण्ड सिद्धि कवि माता, कामाख्या और काली माता।
हिंगलाज विन्ध्याचल वासिनि, अट्ठहासिनी अरु अघन नाशिनी।
आप ही माँ सरस्वती के रूप में वीणा बजा रही हो। आप ही माँ चामुंडा हो जिसने अपने गले में राक्षसों के कटे हुए सिर की माला पहनी हुई है। आप ही इस ब्रह्माण्ड की निर्माता हो और आप ही माँ कामाख्या व माँ काली हो। हिंगलाज में विन्ध्याचल पर्वत पर आपका वास है और आप ही विघ्नों का नाश करने वाली हो।
कितनी स्तुति करूँ अखण्डे, तू ब्रह्माण्डे शक्तिजितचण्डे।
करहु कृपा सबपे जगदम्बा, रहहिं निशंक तोर अवलम्बा।
चतुर्भुजी काली तुम श्यामा, रूप तुम्हार महा अभिरामा।
खड्ग और खप्पर कर सोहत, सुर नर मुनि सबको मन मोहत।
मैं आपकी कितनी ही आराधना कर लू, वह भी कम है। आप ही इस ब्रह्माण्ड को शक्ति प्रदान करती हो। आप हम सभी पर कृपा कीजिये और अहंकार को दूर कर हमारे जीवन में प्रकाश फैलाइए। आपकी चार भुजाएं हैं और रंग काला है। आपका रूप बहुत ही सुन्दर व अतुलनीय है। आपने अपने हाथों में खड्ग अर्थात तलवार व खप्पर पकड़ा हुआ है। आप इस रूप में देवताओं, मनुष्य व ऋषि-मुनि सभी का मन मोह लेती हो।
तुम्हरी कृपा पावे जो कोई, रोग शोक नहिं ताकहँ होई।
जो यह पाठ करे चालीसा, तापर कृपा करहि गौरीशा।
जिस किसी पर भी आपकी कृपा हो जाती है, उसे किसी भी प्रकार का रोग व दुःख नहीं होता है। जो कोई भी व्यक्ति इस महाकाली चालीसा का पाठ करता है, उस पर माँ महागौरी की कृपा होती है।
।। दोहा ।।
जय कपालिनी जय शिवा, जय जय जय जगदम्ब।
सदा भक्तजन केरि दुःख हरहु मातु अवलम्ब।।
कपालिनी माता की जय हो, पार्वती माता की जय हो। जगदंबा माता की जय हो, जय हो, जय हो। हे मातारानी!! आप हमेशा ही अपने भक्तों का बिना देरी किये दुःख दूर कर देती हैं।
श्री महाकाली चालीसा – द्वितीय (Shri Mahakali Chalisa)
।। दोहा ।।
मात श्री महाकालिका ध्याऊँ शीश नवाय।
जान मोहि निजदास सब दीजै काज बनाय।।
।। चौपाई ।।
नमो महाकालिका भवानी, महिमा अमित न जाय बखानी।
तुम्हारो यश तिहुँ लोकन छायो, सुर-नर-मुनि सब गुण गायो।
परी गाढ़ देवन पर जब-जब, कियो सहाय मात तुम तब-तब।
महाकालिका घोर स्वरूपा, सोहत श्यामल बदन अनूपा।
जिव्हा लाल दन्त विकराला, तीन नेत्र गल मुण्डनमाला।
चार भुज शिव शोभित आसन, खड्ग खप्पर कीन्हें सब धारण।
रहें योगिनी चौसठ संगा, दैत्यन के मद कीन्हा भंगा।
चंड-मुंड को पटक पछारा, पल में रक्तबीज को मारा।
दियो सहजन दैत्यन को मारी, मच्यो मध्य रण हाहाकारी।
कीन्हो है फिर क्रोध अपारा, बढ़ी अगारी करत संहारा।
देख दशा सब सुर घबड़ाये, पास शम्भू के हैं फिर धाये।
विनय करी शंकर की जाके, हाल युद्ध का दियो बताके।
तब शिव दियो देह विस्तारी, गयो लेट आगे त्रिपुरारी।
ज्यों ही काली बढ़ी अंगारी, खड़ा पैर उर दियो निहारी।
देखा महादेव को जबही, जीभ काढ़ि लज्जित भई तबही।
भई शांति चहुँ आनन्द छायो, नभ से सुरन सुमन बरसायो।
जय जय जय ध्वनि भई आकाशा, सुर-नर-मुनि सब हुए हुलाशा।
दुष्टन के तुम मारन कारण, कीन्हा चार रूप निज धारण।
चंडी दुर्गा काली माई, और महाकाली कहलाई।
पूजत तुमहिं सकल संसारा, करत सदा डर ध्यान तुम्हारा।
मैं शरणागत मात तिहारी, करौं आय अब मोहि सुखारी।
सुमिरौ महाकालिका माई, होउ सहाय मात तुम आई।
धरूँ ध्यान निशदिन तब माता, सकल दुःख मातु करहु निपाता।
आओ मात न देर लगाओ, मम शत्रुघ्न को पकड़ नशाओ।
सुनहु मात यह विनय हमारी, पूरण हो अभिलाषा सारी।
मात करहु तुम रक्षा आके, मम शत्रुघ्न को देव मिटाके।
निशवासर मैं तुम्हें मनाऊं, सदा तुम्हारे ही गुण गाउं।
दया दृष्टि अब मोपर कीजै, रहूँ सुखी ये ही वर दीजै।
नमो-नमो निज काज सैवारनि, नमो-नमो हे खलन विदारनि।
नमो-नमो जन बाधा हरनी, नमो-नमो दुष्टन मद छरनी।
नमो-नमो जय काली महारानी, त्रिभुवन में नहिं तुम्हरी सानी।
भक्तन पे हो मात दयाला, काटहु आय सकल भवजाला।
मैं हूँ शरण तुम्हारी अम्बा, आवहू बेगि न करहु विलम्बा।
मुझ पर होके मात दयाला, सब विधि कीजै मोहि निहाला।
करे नित्य जो तुम्हरो पूजन, ताके काज होय सब पूरन।
निर्धन हो जो बहु धन पावै, दुश्मन हो सो मित्र हो जावै।
जिन घर हो भूत बैताला, भागि जाय घर से तत्काला।
रहे नही फिर दुःख लवलेशा, मिट जाय जो होय कलेशा।
जो कुछ इच्छा होवें मन में, संशय नहिं पूरन हो क्षण में।
औरहु फल संसारिक जेते, तेरी कृपा मिलैं सब तेते।
।। दोहा ।।
दोहा महाकलिका कीपढ़ै नित चालीसा जोय।
मनवांछित फल पावहि गोविन्द जानौ सोय।।
महाकाली चालीसा अर्थ सहित (Mahakali Chalisa Lyrics In Hindi)
।। दोहा ।।
मात श्री महाकालिका ध्याऊँ शीश नवाय।
जान मोहि निजदास सब दीजै काज बनाय।।
हे महाकालिका माता!! मैं आपके चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ। अब आप इस सेवक पर दया कीजिये और मेरे सभी काम बना दीजिये।
।। चौपाई ।।
नमो महाकालिका भवानी, महिमा अमित न जाय बखानी।
तुम्हारो यश तिहुँ लोकन छायो, सुर-नर-मुनि सब गुण गायो।
परी गाढ़ देवन पर जब-जब, कियो सहाय मात तुम तब-तब।
महाकालिका घोर स्वरूपा, सोहत श्यामल बदन अनूपा।
हे महाकालिका व भवानी माता!! आपको मेरा नमन है। आपकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है। आपका वैभव तो तीनों लोकों में फैला हुआ है। आपकी महिमा का गुणगान तो देवता, मनुष्य व ऋषि-मुनि सब करते हैं। जब कभी भी देवताओं पर संकट आया है, तब-तब आपने उनकी सहायता की है। आपका महाकालिका रूप बहुत ही भयंकर है जिसका वर्ण काला है।
जिव्हा लाल दन्त विकराला, तीन नेत्र गल मुण्डनमाला।
चार भुज शिव शोभित आसन, खड्ग खप्पर कीन्हें सब धारण।
रहें योगिनी चौसठ संगा, दैत्यन के मद कीन्हा भंगा।
चंड-मुंड को पटक पछारा, पल में रक्तबीज को मारा।
आपकी जीभ लाल व दांत बहुत बड़े हैं। आपकी तीन आँखें और गले में राक्षसों के कटे सिर की माला है। आपने अपनी चार भुजाओं में खड्ग, खप्पर इत्यादि अस्त्र-शस्त्र लिए हुए हैं। आपके साथ हमेशा ही चौंसठ योगिनी रहती हैं और आपने दैत्यों के अहंकार का अंत किया है। आपने चंड-मुंड को पटक कर मार डाला और रक्तबीज को मारने में एक पल की भी देरी नहीं की।
दियो सहजन दैत्यन को मारी, मच्यो मध्य रण हाहाकारी।
कीन्हो है फिर क्रोध अपारा, बढ़ी अगारी करत संहारा।
देख दशा सब सुर घबड़ाये, पास शम्भू के हैं फिर धाये।
विनय करी शंकर की जाके, हाल युद्ध का दियो बताके।
आप दैत्यों का संहार कर देती हैं और इसे देख कर दैत्य सेना में हाहाकार मच जाता है। जब कभी भी धर्म की हानि होती है तो आपका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच जाता है और आप आगे बढ़कर अधर्मियों का नाश करने लग जाती हैं। किन्तु जब दैत्यों का अंत हो गया और आप तब भी नहीं रुकी और क्रोध की अग्नि में जलती रही तब सभी देवता भी यह देखकर भयभीत हो उठे।
सभी देवता डर के मारे भगवान शिव के पास गए और उनके सामने प्रार्थना की। उन्होंने भगवान शिव को युद्ध भूमि की पूरी स्थिति बताई और अपने साथ चलने को कहा।
तब शिव दियो देह विस्तारी, गयो लेट आगे त्रिपुरारी।
ज्यों ही काली बढ़ी अंगारी, खड़ा पैर उर दियो निहारी।
देखा महादेव को जबही, जीभ काढ़ि लज्जित भई तबही।
भई शांति चहुँ आनन्द छायो, नभ से सुरन सुमन बरसायो।
तब भगवान शिव स्थिति की नाजुकता को भांपते हुए महाकाली के चरणों में लेट गए। जैसे ही काली माता ने आगे बढ़कर शिव की देह के ऊपर अपना पैर रखा तो महादेव को अपने चरणों में लेटा देख आप बहुत लज्जित हो गयी। इसी लज्जा में आपकी जीभ बाहर निकल आयी। इसके बाद आप तुरंत शांत हो गयी और इसे देखकर चारों ओर आनंद छा गया। यह दृश्य देखकर देवताओं ने आकाश से पुष्प वर्षा की।
जय जय जय ध्वनि भई आकाशा, सुर-नर-मुनि सब हुए हुलाशा।
दुष्टन के तुम मारन कारण, कीन्हा चार रूप निज धारण।
चंडी दुर्गा काली माई, और महाकाली कहलाई।
पूजत तुमहिं सकल संसारा, करत सदा डर ध्यान तुम्हारा।
आकाश में जय हो, जय हो की ध्वनि गूँज उठी। देवता, मनुष्य व ऋषि-मुनि सभी बहुत प्रसन्न हुए। शत्रुओं का अंत करने के लिए आपने अपने चार रूप धारण किये थे। यह चार रूप चंडी, दुर्गा, काली व महाकाली कहलाये थे। सारा संसार ही आपकी पूजा करता है और पाप के डर के मारे आपका ध्यान करता है।
मैं शरणागत मात तिहारी, करौं आय अब मोहि सुखारी।
सुमिरौ महाकालिका माई, होउ सहाय मात तुम आई।
धरूँ ध्यान निशदिन तब माता, सकल दुःख मातु करहु निपाता।
आओ मात न देर लगाओ, मम शत्रुघ्न को पकड़ नशाओ।
हे महाकाली!! मैं आपकी शरण में आया हूँ और अब आप मुझे सुख प्रदान कीजिये। मैं सदा आपका ही ध्यान करता हूँ और मुझे केवल आपका ही सहारा है। मैं दिन-रात आपका ही ध्यान करता हूँ और अब आप मेरे दुखों का अंत कीजिये। आप मुझे दर्शन देने में देरी ना करें और मेरे शत्रुओं का नाश कीजिये।
सुनहु मात यह विनय हमारी, पूरण हो अभिलाषा सारी।
मात करहु तुम रक्षा आके, मम शत्रुघ्न को देव मिटाके।
निशवासर मैं तुम्हें मनाऊं, सदा तुम्हारे ही गुण गाउं।
दया दृष्टि अब मोपर कीजै, रहूँ सुखी ये ही वर दीजै।
हे महाकाली!! आप मेरी प्रार्थना सुन लीजिये और मेरी मनोकामनाओं को पूरा कीजिये। हे मातारानी!! आप यहाँ आकर मेरे शत्रुओं का नाश कर दीजिये। मैं हमेशा ही आपको मनाता हूँ और आपके गुण गाता हूँ। अब आप मुझ पर दया कीजिये और मुझे सुखी रहने का वरदान दीजिये।
नमो-नमो निज काज सैवारनि, नमो-नमो हे खलन विदारनि।
नमो-नमो जन बाधा हरनी, नमो-नमो दुष्टन मद छरनी।
नमो-नमो जय काली महारानी, त्रिभुवन में नहिं तुम्हरी सानी।
भक्तन पे हो मात दयाला, काटहु आय सकल भवजाला।
मेरे सभी काम बनाने वाली मातारानी, आपको मेरा नमन है। कष्टों को दूर करने वाली माँ, आपको मेरा नमन है। बाधाओं को दूर करने वाली मातारानी, आपको मेरा नमन है। दुष्टों के अहंकार को दूर करने वाली महाकाली, आपको मेरा नमन है। हे काली महारानी!! आपको मेरा नमन है। तीनों लोकों में आपके जैसा कोई नहीं है। आप अपने भक्तों पर दया करती हैं और उनके कष्टों को दूर करती हैं।
मैं हूँ शरण तुम्हारी अम्बा, आवहू बेगि न करहु विलम्बा।
मुझ पर होके मात दयाला, सब विधि कीजै मोहि निहाला।
करे नित्य जो तुम्हरो पूजन, ताके काज होय सब पूरन।
निर्धन हो जो बहु धन पावै, दुश्मन हो सो मित्र हो जावै।
हे माँ अंबा!! मैं आपकी शरण में आया हूँ और अब आप दर्शन देने में देरी ना कीजिये। मुझ पर दया दिखाइए और मेरे सभी काम बना दीजिये। जो कोई भी प्रतिदिन आपकी पूजा करता है, उसके सभी काम पूरे हो जाते हैं। यदि वह गरीब है तो वह धनवान बन जाता है। साथ ही शत्रु भी मित्र बन जाता है।
जिन घर हो भूत बैताला, भागि जाय घर से तत्काला।
रहे नही फिर दुःख लवलेशा, मिट जाय जो होय कलेशा।
जो कुछ इच्छा होवें मन में, संशय नहिं पूरन हो क्षण में।
औरहु फल संसारिक जेते, तेरी कृपा मिलैं सब तेते।
महाकाली की कृपा से जिनके घर में भूत, प्रेत या पिशाच होते हैं, वे भी भाग जाते हैं। जिनके घर में किसी प्रकार का दुःख, कलेश या अन्य कोई संकट होता है तो वह भी दूर हो जाता है। किसी के मन में यदि कोई इच्छा होती है तो वह भी महाकाली की कृपा से पूरी हो जाती है। महाकाली की कृपा से हमें इस संसार के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
।। दोहा ।।
दोहा महाकलिका कीपढ़ै नित चालीसा जोय।
मनवांछित फल पावहि गोविन्द जानौ सोय।।
जो कोई भी महाकाली की चालीसा का पाठ करता है, उसे अपनी इच्छा अनुसार फल की प्राप्ति होती है।
महा काली चालीसा – महत्व (Maha Kali Chalisa – Mahatva)
माँ दुर्गा ने अपने गुणों के अनुसार कई तरह के रूप लिए हैं और उसी के अनुसार ही उनकी पूजा करने का विधान रहा है। अब मातारानी के कुछ रूप बहुत ही मनोहर, मन को शांति देने वाले तथा सौम्य रंग रूप वाले होते हैं लेकिन इन सभी रूपों के विपरीत माँ दुर्गा का माँ महाकाली वाला रूप मन को भयभीत कर देने वाला, काले रंग का व गले में राक्षसों के कंकाल लिए हुए होता है। इस रूप में मातारानी रक्त से सनी हुई, क्रोधित व लाल आँखों वाली होती हैं।।
महाकाली चालीसा के माध्यम से हमें ना केवल माँ महाकाली के रूप का वर्णन मिलता है अपितु उन्होंने किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जन्म लिया था, इसके बारे में भी पता चलता है। ऐसे में धर्म का कार्य करने वाले लोगों को तो माँ महाकाली से भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि जिस तरह से माँ महाकाली सज्जन मनुष्यों की अधर्मी लोगों से रक्षा कर पाने में समर्थ होती हैं, उतना तो मातारानी का कोई भी अन्य रूप नहीं कर सकता है।
इस तरह से माँ महाकाली के महत्व को इस महाकाली चालीसा के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है। इससे हमें यह ज्ञात होता है कि माँ महाकाली भी उतनी ही आवश्यक हैं जितनी की मातारानी के अन्य रूप। अब यदि पाप बहुत अधिक बढ़ जाता है और वह धर्म के ऊपर हावी होने लगता है तो उस समय माँ महाकाली ही हमारी व धर्म की रक्षा कर सकती हैं और अधर्म का नाश करने में समर्थ होती हैं। यही माँ महाकाली चालीसा का मुख्य महत्व होता है।
महाकाली चालीसा के लाभ (Mahakali Chalisa Benefits In Hindi)
अब यदि आप प्रतिदिन सच्चे मन के साथ श्री महाकाली चालीसा का पाठ करते हैं और माँ महाकाली का ध्यान करते हैं तो अवश्य ही माँ आपकी हरेक इच्छा को पूरी करती हैं। यदि आपको कोई परेशान कर रहा है या आपके शत्रु हमेशा आपका नुकसान करने की ताक में रहते हैं या आपके जीवन में कई तरह के संकट आये हुए हैं और उनका हल नहीं निकल पा रहा है या फिर आपको किसी अन्य बात को लेकर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है तो निश्चित तौर पर आपको महाकाली माता की चालीसा का पाठ करना चाहिए।
माँ महाकाली के द्वारा अपने भक्तों की हरसंभव सहायता की जाती है। जो भी भक्तगण सच्चे मन से माँ महाकाली चालीसा का जाप करता है तो माँ महाकाली उसके हर तरह के संकटों का नाश कर देती हैं और उसे आगे का मार्ग दिखाती हैं। ऐसे में आपको अपने हर तरह के कष्ट, पीड़ा, दुःख, दर्द, संकट, परेशानियाँ, नकारात्मक भावनाएं इत्यादि को दूर करने के लिए नित्य रूप से महाकाली चालीसा का पाठ करना चाहिए।
महाकाली चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: महाकाली किसका रूप है?
उत्तर: महाकाली माँ दुर्गा का ही विकराल व भयंकर रूप हैं जिसका उद्देश्य दुष्ट से दुष्ट पापियों का नाश कर इस धरती को पाप मुक्त करना है।
प्रश्न: महाकाली के कितने अवतार है?
उत्तर: महाकाली स्वयं माँ काली का या माँ दुर्गा का एक अवतार हैं। अतः महाकाली का कोई अन्य अवतार नहीं है।
प्रश्न: महाकाली मां कौन है?
उत्तर: महाकाली माँ दुर्गा का एक ऐसा अवतार हैं जो बहुत ही भीषण व मन को भयभीत कर देने वाला है। इस अवतार की उत्पत्ति दुष्ट से दुष्ट पापियों का संहार करने के लिए हुआ था।
प्रश्न: महाकाली का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर: महाकाली का दूसरा नाम काली व कालिका है। हालाँकि यह माँ दुर्गा का ही एक अवतार हैं। इसलिए इन्हें अन्य किसी भी अवतार के नाम से बुलाया जा सकता है।
प्रश्न: क्या देवी काली मांस खाती है?
उत्तर: देवी काली का प्रकटन ही इसी उद्देश्य के तहत हुआ था। उन्होंने अपने प्याले में राक्षसों का रक्त भर लिया था जिसे वे पी रही थी और उसी के साथ ही वे उनके शरीर का मांस खा रही थी।
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