मंगला गौरी स्तुति (Mangla Gauri Stuti) | रामायण में सीता गौरी पूजन

Gauri Stuti

मंगला गौरी स्तुति (Mangla Gauri Stuti)

रामायण में उल्लेख है कि माता सीता ने श्रीराम से विवाह करने के लिए माता गौरी का पूजन किया था और इसके लिए उन्होंने गौरी स्तुति (Gauri Stuti) की रचना की थी। इसे हम मंगला गौरी स्तुति (Mangla Gauri Stuti) के नाम से भी जानते हैं जिसकी रचना से प्रसन्न होकर माता गौरी ने सीता को श्रीराम से विवाह का आशीर्वाद दिया था। उसी के बाद से ही गौरी स्तुति का महत्व बहुत बढ़ गया था।

रामायण में सीता गौरी पूजन (Gori Stuti) तो हर कोई जानता है और सभी ने रामायण धारावाहिक में इसे देखा भी होगा। तो यह उसी समय की बात है जब माता सीता ने पुष्प वाटिका में श्रीराम को देखा था और उसके बाद वे सीधे गौरी मंदिर गयी थी और गौरी स्तुति की रचना की थी। आज के इस लेख में हम आपके साथ संपूर्ण गौरी स्तुति इन हिंदी में भी साझा करेंगे ताकि आप उसका भावार्थ जान सकें। इसी के साथ ही आपको गौरी स्तुति के फायदे व महत्व भी जानने को मिलेंगे।

गौरी स्तुति (Gauri Stuti)

जय जय जय गिरिराज किसोरी।
जय महेस मुख चंद चकोरी।।

जय गजबदन हरानन माता।
जगत जननि दामिनी दुति गाता।।

देवी पूजि पद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि जन होहिं सुखारे।।

मोर मनोरथ जानहु नीकें।
बसहु सदा उर पुर सबहीं के।।

कीन्हेऊं प्रगट न कारन तेहिं।
कीन्हेऊं प्रगट न कारन तेहिं।।

बिनय प्रेम बस भई भवानी।
खसी माल मुरति मुसकानि।।

सादर सियं प्रसाद सिर धरेऊ।
बोली गौरी हरषु हियं भरऊ।।

सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
पूजिहिं मनुकामना तुम्हारी।।

नारद बचन सदा सूचि साचा।
सो बर मिलहि जाहिं मन राचा।।

मनु जाहिं राचेउ मिलहिं सो बरु सहज सुंदर सांवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।

एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हियं हरषीं अली।
तुलसी भवानिहिं पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।

गौरी स्तुति इन हिंदी (Gauri Stuti In Hindi)

जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कि जब पुष्प वाटिका में माता सीता श्रीराम को देखती हैं तो उसी समय वे गौरी के मंदिर में जाकर गौरी स्तुति की रचना करती हैं। अब ऊपर आपने जो गौरी स्तुति पढ़ी वह रामायण में लिखी हुई है लेकिन इसमें से केवल प्रथम पांच पंक्तियाँ ही माता सीता के द्वारा रचित है तथा अन्य पंक्तियों में सीता गौरी पूजन की क्रिया, गौरी माता का सीता को आशीर्वाद देना तथा माता सीता का आशीर्वाद पाकर स्नेह से मंदिर से चले जाने को बताया गया है।

अब हम भक्तों को तो इन सभी पंक्तियों को मिलाकर ही गौरी स्तुति का पाठ करना होता है, तभी यह हमारे लिए लाभदायक होती है। तो आइये इस गौरी स्तुति का हिंदी अर्थ आपको समझा देते हैं।

जय जय जय गिरिराज किसोरी।
जय महेस मुख चंद चकोरी।।

जय गजबदन हरानन माता।
जगत जननि दामिनी दुति गाता।।

देवी पूजि पद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि जन होहिं सुखारे।।

मोर मनोरथ जानहु नीकें।
बसहु सदा उर पुर सबहीं के।।

कीन्हेऊं प्रगट न कारन तेहिं।
कीन्हेऊं प्रगट न कारन तेहिं।।

माता सीता गौरी मंदिर पहुँच कर माता गौरी के सामने हाथ जोड़कर कहती हैं कि हे पर्वत पुत्री गौरी माता!! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप चंद्रमा जैसे मुख वाले शिव शंकर के मुख को हमेशा निहारती रहती हैं। आप ही गणेश व कार्तिक की माता हैं। आप ही इस सृष्टि की जननी व विद्युत के जैसी गति वाली हो।

देवता, मनुष्य व ऋषि-मुनि जो भी देवी गौरी के चरण पूजता है और उनका ध्यान करता है, उसे हर तरह का सुख प्राप्त होता है। अब आप मेरी इच्छा को तो जानती ही हैं क्योंकि आप तो सभी के हृदय में निवास करती हैं। अब मैं किस प्रकार अपनी इच्छा आपके सामने प्रकट करूँ क्योंकि आप तो अंतर्यामी हैं और मेरी मनः स्थिति भलीभांति जानती हैं।

बिनय प्रेम बस भई भवानी।
खसी माल मुरति मुसकानि।।

सादर सियं प्रसाद सिर धरेऊ।
बोली गौरी हरषु हियं भरऊ।।

माता सीता के द्वारा अपने प्रति यह प्रेम देखकर माता गौरी की मूर्ति मुस्कुराने लगती है और बहुत प्रसन्न हो जाती है। माता गौरी अपने गले में पहनी माला को नीचे माता सीता के गले में गिराकर उन्हें आशीर्वाद देती हैं और हर्षित होकर उनसे कहती हैं कि…

सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
पूजिहिं मनुकामना तुम्हारी।।

नारद बचन सदा सूचि साचा।
सो बर मिलहि जाहिं मन राचा।।

मनु जाहिं राचेउ मिलहिं सो बरु सहज सुंदर सांवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।

हे सीते!! मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूँ कि तुम्हारी हर मनोकामना पूरी होगी। नारद मुनि के वचन हमेशा ही सत्य होते हैं और तुम्हें मनचाहा वर मिलेगा। जिससे तुम्हें प्रेम हो गया है, तुम्हें वही सुंदर व सांवरा वर आसानी से मिल जाएगा। वे (श्रीराम) करुणा को लिए हुए और बुद्धिमान हैं तथा वे आपके स्नेह को समझ गए हैं।

एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हियं हरषीं अली।
तुलसी भवानिहिं पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।

माता गौरी के मुख से इन शब्दों को सुनकर माता सीता बहुत प्रसन्न हो गयी और अपनी सखियों सहित उल्लास मनाया। इसके पश्चात तुलसी व भवानी माता की पूजा करके और मन में मंद-मंद मुस्कुराती हुई माता सीता मंदिर से चली गयी।

रामायण में सीता गौरी पूजन (Gori Stuti)

त्रेता युग में जब भगवान विष्णु ने अयोध्या नगरी में भगवान श्रीराम का रूप लिया, तब माता लक्ष्मी भी जनकपुरी में माता सीता के रूप में अवतरित हुई थी। जब माता सीता विवाह योग्य हो गयी तब उनके पिता राजा जनक ने सीता स्वयंवर का आयोजन किया। तब जनकपुरी की पुष्प वाटिका में माता सीता अपनी सखियों सहित पुष्प लेने आयी थी और उसी समय ही श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण सहित गुरु विश्वामित्र के लिए पुष्प लेने आये थे।

उसी समय माता सीता व श्रीराम का प्रथम मिलन हुआ था और दोनों ने एक-दूसरे को देखा था। दोनों ही एक-दूसरे को देखकर प्रेम में डूब गए थे और इसके तुरंत बाद माता सीता गौरी मंदिर गयी थी। वहां उन्होंने गौरी माता को नमन कर गौरी स्तुति की रचना की थी। यह गौरी स्तुति रामायण में भी उल्लेखित की गयी है ताकि आमजन इसका लाभ उठा सके। गौरी स्तुति के पाठ के पश्चात ही माता गौरी ने माता सीता को श्रीराम से विवाह का आशीर्वाद प्रदान किया था।

मंगला गौरी स्तुति (Mangla Gauri Stuti) – महत्व

माता सती भगवान शिव की प्रथम पत्नी थी जिन्होंने अपने पिता दक्ष के द्वारा भगवान शिव का अपमान किये जाने पर अग्नि कुंड में कूदकर आत्म-दाह कर लिया था। उसके पश्चात माता सती ने हिमालय पर्वत के यहाँ पुत्री रूप में पुनर्जन्म लिया जिनका नाम पार्वती व गौरी रखा गया। माता सती के आत्म-दाह के बाद से ही भगवान शिव अनंत योग साधना में चले गए थे। तब माता गौरी ने शिव को पुनः पति रूप में प्राप्त करने के लिए कई वर्षों की कठोर तपस्या की थी जिस कारण उनका शिव से पुनः विवाह हुआ।

इसी प्रकार माता लक्ष्मी ने जब त्रेता युग में माता सीता के रूप में जन्म लिया और श्रीहरि ने श्रीराम के रूप में जन्म लिया। तब माता सीता ने स्वयंवर से पहले श्रीराम को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इस गौरी स्तुति की रचना की थी। इसके बाद ही उनके विवाह में आने वाली हर बाधा दूर हो गयी थी और श्रीराम ने उस स्वयंवर में विजयी होकर माता सीता से विवाह किया था। यही माता सीता द्वारा रचित गौरी स्तुति का महत्व होता है।

गौरी स्तुति के फायदे (Gauri Stuti Benefits In Hindi)

यदि किसी कन्या के विवाह में बार-बार अड़चन आ रही है, उसके विवाह में बिना किसी कारण विलंब हो रहा है, उसे अपनी इच्छा के अनुरूप वर चाहिए जो जीवनपर्यंत उसका साथ निभाए, तो उसे सीता माता के द्वारा लिखी गयी इस गौरी स्तुति का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे विवाह में आ रही हर प्रकार की अड़चन व ग्रह दोष दूर हो जाते हैं।

कई बार यह देखने में आता है कि व्यक्ति की कुंडली या ग्रहों की स्थिति इस प्रकार होती है कि उसका विवाह नहीं हो पाता है या विवाह के उपरांत भी अड़चन आती है। ऐसे में मनचाहा वर प्राप्त करने और विवाह बाद शांति से जीवनयापन करने के लिए हर स्त्री को मंगला गौरी स्तुति का पाठ करना चाहिए। पुरुष भी मनचाही स्त्री से विवाह करने के लिए गौरी स्तुति मंत्र का पाठ कर सकता है।

गौरी स्तुति से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: गौरी की पूजा कैसे करें?

उत्तर: माता गौरी जो कि माता पार्वती ही हैं, उनकी पूजा करने के लिए आपको माता सीता के द्वारा लिखी गयी गौरी स्तुति या पार्वती स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

प्रश्न: गौरी पूजन क्या होता है?

उत्तर: गौरी पूजन मुख्यतया अविवाहित स्त्री के द्वारा अपना मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए किया जाता है जिसमें वह गौरी स्तुति या पार्वती स्तोत्र का पाठ करती है।

प्रश्न: गौरी पूजन क्यों करते हैं?

उत्तर: मनचाहा वर प्राप्त करने, विवाह में आ रही अड़चन को दूर करने तथा शीघ्र विवाह करने के उद्देश्य गौरी पूजन किया जाता है।

प्रश्न: गौरी पूजा कौन करता है?

उत्तर: वैसे तो गौरी पूजा कोई भी कर सकता है लेकिन मुख्य तौर पर अविवाहित स्त्री के द्वारा अपने मनचाहे वर की प्राप्ति के उद्देश्य से गौरी पूजन किया जाता है।

प्रश्न: गौरी पूजा घर पर कब करनी चाहिए?

उत्तर: आप अपने घर पर किसी भी समय गौरी पूजा कर सकते हैं लेकिन श्रावण के महीने में गौरी माता की पूजा किया जाना बहुत लाभदायक होता है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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